संगीत में मग्न – कहीं भी, कभी भी
22 वर्षीय माँ नताशा ने बहुत कम उम्र में ही शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में अपना कदम रखा था। उनके माता-पिता शेखर और शांति, उत्साही और प्रतिभावान संगीतकार हैं और नियमित रूप से साउंड्स ऑफ ईशा के कंसर्ट में प्रस्तुति देते रहते हैं। ‘घर का माहौल हमेशा संगीतमय रहता था, इसलिए स्वाभाविक रूप से मेरा रुझान उधर हुआ। ऐसा नहीं है कि मेरे माता-पिता ने मुझ पर जोर डाला, बल्कि संगीत मेरे लिए एक स्वाभाविक चुनाव था,’ माँ नताशा बताती हैं।
2005 में, उनके माता-पिता ‘होम पेरेंट्स’ के रूप में ईशा होम स्कूल में शामिल हुए, और तभी माँ नताशा ने एक छात्रा के रूप में दाखिला लिया। फिर 2008 में वह ईशा संस्कृति में आ गईं। ‘कक्षाओं का कोई निर्धारित ढांचा नहीं था। वे प्रकृति के बीच, खुले में, अक्सर झरने के पास, कभी पेड़ों के नीचे या कभी-कभी तो कैंपिंग ट्रिप के दौरान होती थीं,’ वह ईशा संस्कृति की छात्रा के रूप में अपने दिनों को प्यार से याद करते हुए बताती हैं। ‘एक बार, जब हम ऊपर पहाड़ पर गए, अचानक तेज़ बरसात शुरू हो गई। मैं परेशान हो गई कि कक्षा कैंसिल हो जाएगी, लेकिन हमारे टीचर ने एक छाता खोल दिया और हम उसके नीचे बैठ गए और संगीत सीखने लगे।’
समय के साथ, माँ नताशा ने ईशा संस्कृति के दूसरे विषयों के साथ योग, कलरीपयट्टू, कर्नाटक संगीत और भरतनाट्यम की बारीकियाँ भी सीखीं। और बाद में उन्होंने कर्नाटक संगीत में विशेषज्ञता हासिल की।
अपने प्रशिक्षण के दौरान, उन्हें सद्गुरु से सीधा मार्गदर्शन भी मिला। उनकी तेजी़ से उभरती प्रतिभा को और बढ़ाने के लिए सद्गुरु ने उन्हें ईशा संस्कृति के बाहर भी अलग-अलग संगीतकारों की छत्रछाया में सीखते हुए अपने कौशल को और बढ़ाने की सलाह दी। नताशा ने कर्नाटक संगीत के उस्ताद ए.एस. मूर्ति के पास पांच महीने तक कक्षाएं लीं, जहां उन्होंने नए गाने सीखे और संगीत के अपने रियाज़ को तेज़ किया। वह 20 सालों से ज्यादा समय से सीख रही थीं, और 8 सालों से सिखा रही थीं, जब उनके सामने अचानक एक नया अवसर आया।