एक और रहस्य पर से पर्दा हटाते हुए सद्गुरु बताते हैं कि कैसे योगाभ्यासों को व्यवस्थित किए जाने की जरूरत है और परमानंद के मार्ग पर एक गुरु क्या भूमिका निभाता है।
सद्गुरु: जिस तरह मेडिकल फिजियोलॉजी होती है, योग की भी एक संपूर्ण फिजियोलॉजी है। योग फिजियोलॉजी का एक पहलू, जिसे आधुनिक न्यूरोसाइंस भी मानता है, मस्तिष्क में मौजूद पीयूष ग्रंथि (पीनियल ग्लैंड) है। योग में, उसे आज्ञा चक्र के रूप में देखा जाता है। पीनियल ग्लैंड के स्राव बड़े पैमाने पर हमारे मिजाज और अनुभवों को नियंत्रित और संयमित करते हैं। अगर आपका पीनियल स्राव स्थिर और सक्रिय है, तो अपने भीतर सुखद मिजाज होना कोई समस्या नहीं है।
एक और पहलू है, जिसके बारे में कम लोग जानते हैं, जिसे अब तक मेडिकल क्षेत्र में पहचाना नहीं गया है, लेकिन योग फिजियोलॉजी उसे मस्तिष्क के एक हिस्से के रूप में देखता है, वह है बिंदु। बिंदु शब्द का मतलब है, एक बहुत ही छोटा स्थान जिसे और बांटा नहीं जा सकता। अगर आप अपने कान के छिद्र से अपने सिर के ऊपर तक एक सीधी रेखा खींचे और वहाँ से अपने सिर के पीछे की तरफ 45 डिग्री के झुकाव पर एक रेखा खींचे, तो उस रेखा के ठीक बीच में बिंदु स्थित होता है।
दुनिया की कई संस्कृतियों में मस्तिष्क में बिंदु की मौजूदगी को पहचाना गया है और यह समझा गया है कि इस बिंदु को हमेशा सुरक्षित रखा जाना चाहिए। भारत में हिंदू लोग पारंपरिक रूप से उस जगह पर बालों का एक गुच्छा रखते थे ताकि वह सुरक्षित रहे। दूसरी संस्कृतियों में जहाँ लोग अपना सिर मुँडवाते थे, वे उस जगह को ढंकने के लिए कपड़े की छोटी टोपी पहनते हैं। जहाँ भी आप जाएँ, आप देखेंगे कि कम से कम किसी खास तरह का कार्य करते समय, जिसे वे आध्यात्मिक मानते हैं, लोग अपने बिंदु को ढंककर रखना चाहते हैं।
दुनिया में हर कहीं, कोई न कोई इस बारे में जागरूक रहा है और शायद इसके बारे में बताया भी है। किसी न किसी तरह उन्हें यह बात पता थी कि इस भाग को सुरक्षित और सक्रिय किए जाने की जरूरत है। हिंदू जीवन शैली में, जब ब्राह्मण छोटे लड़कों को दीक्षा देते हैं, तो वे बाकी के बाल मुँड़वाकर उस जगह एक चोटी छोड़ देते हैं। हर बार अपनी साधना करने से पहले, बालक उस चोटी को मरोड़ता है और कसकर बांध देता है। शुरू में इससे दर्द होता है, लेकिन कुछ समय बाद, उसकी साधना के बेहतर होने के साथ उसके अंदर परमानंद की एक गहन भावना पैदा होती है।
बिंदु मस्तिष्क का एक छोटा सा हिस्सा है, जो एक ख़ास तरह के स्राव से घिरा हुआ है। मैं नहीं जानता कि ब्रेन सर्जन कब इस पहलू पर आएंगे, या आएंगे भी या नहीं क्योंकि यह इतना छोटा है कि वे उसे अनदेखा कर सकते हैं। लेकिन अगर आप अपने सिस्टम पर थोड़ा ध्यान दें, तो आप पाएँगे कि वह हमेशा मौजूद है। बिंदु के दो पक्ष हैं। उसके साथ ही एक और स्थान है। उसमें भी स्राव होता है, लेकिन वह जहरीला होता है। अगर आप जीवन के साथ गलत चीज़ें करते हुए गलत स्थान को छूते हैं, तो सिस्टम में इस तरह ज़हर फैल जाएगा कि आप बेवजह पीड़ित रहेंगे। ढेर सारे लोगों ने अपने साथ ऐसा किया है।
दुनिया में कई संस्कृतियां इसे लेकर जागरूक रही हैं – कुछ टोपी पहनते हैं, कुछ बालों के गुच्छे रखते हैं, जबकि कुछ लोग दूसरी तरह से ध्यान रखते हैं। आप हमेशा गौर करेंगे कि उन संस्कृतियों में मानसिक असंतुलन का स्तर काफी कम है।
योग प्रणाली में क्रियाओं का शुरुआती चरण इस प्रकार से तैयार किया गया है जिससे स्थिरता आ सके, जो परमानंद से ज्यादा महत्वपूर्ण है। अगर स्थिरता से पहले परमानंद मिल जाए, तो आप क्रैश कर सकते हैं। अगर पहले स्थिरता आती है और उसके बाद परमानंद, तो वह बेहद शानदार होगा। परमानंद की प्रक्रियाएं कभी लिखी नहीं गईं या उपदेश के रूप में सिखाई नहीं गईं। ये चीज़ें व्यक्तिपरक होती हैं, इसलिए ऐसी चीज़ें सिर्फ किसी खास प्राणी की मौजूदगी में ही घटित होती हैं।
तंत्र पर कुछ किताबें हैं, जो बहुत गैरजिम्मेदाराना हैं। उन्हें लिखने वाले लोग आम तौर पर अज्ञानी लोग थे जिन्होंने अंदाज़ा लगाने का काम किया। मान लीजिए, आप कोई किताब पढ़ते हैं जिसके पहले दो अध्यायों में खुद को स्थिर करने की सरल क्रियाओं के बारे में बताया गया है, जबकि आखिरी पाँच अध्यायों में आपको परमानंद के स्तर पर ले जाने की क्रियाओं के बारे में बताया गया है। आप कौन सी क्रियाएँ करेंगे? आप निश्चित रूप से मुसीबत को न्यौता देंगे।
जब लोग स्थिरता के बिना परमानंद के पीछे जाएँगे, तो वे पागल हो जाएँगे। कभी किसी ऐसी चीज़ की इच्छा मत कीजिए, जो अब तक आपके बोध में नहीं है, क्योंकि तब आप गलत चीज़ों की आकांक्षा करेंगे। सिर्फ अपनी सरल साधना कीजिए। इसीलिए परंपराओं में हमेशा भरोसे पर ज़ोर दिया गया है क्योंकि अगर हम आपको पहले से कुछ बता देंगे, तो स्वाभाविक रूप से आप गलत चीज़ों की कल्पना करेंगे और उसके पीछे जाएंगे।
इसीलिए बुनियादी प्रोग्राम में आम तौर पर हम उन सब चीज़ों की बात नहीं करते। इसे तार्किक रूप से समझाया नहीं जा सकता। इसके लिए पहले जीवन को थोड़ा ठीक करने की जरूरत है।
एक आदमी अदालत में घुसा। वह प्रतिवादी था।
जज ने उसे देखकर पूछा, ‘क्या तुम्हारे पास कोई वकील है?’
वह आदमी बोला, ‘नहीं, लेकिन जूरी में मेरे कुछ अच्छे दोस्त हैं।’
आप इसे तर्क से हासिल नहीं कर सकते। इसीलिए गुरु बीच में आए क्योंकि थोड़े-बहुत ठोकने-पीटने और धकेलने के बिना आप सीमा को पार नहीं कर सकते।