सद्गुरु मानव जाति के सामने मौजूद इस समय की सबसे बड़ी चुनौती के बारे में बता रहे हैं। वे समस्या की जड़ को समझाते हुए यह बता रहे हैं कि कैसे सिर्फ मानव चेतना ही आने वाले संकट को टाल सकती है।
प्रश्नकर्ता: आजकल धरती की हालत की किस बात से आपको सबसे ज़्यादा चिंता हो रही है?
सद्गुरु: मैं चिंता करने वालों में से नहीं हूँ। धरती किसी तरह के संकट में नहीं है – इंसान को भयानक अनुभवों से गुज़रना पड़ सकता है, अगर हमने कुछ चीज़ों की परवाह नहीं की। उस अर्थ में हमें ‘टॉपसॉयल’ यानी मिट्टी की सबसे ऊपरी परत की परवाह करनी चाहिए। टॉपसॉयल इस धरती पर 87 फीसदी जीवन के लिए जिम्मेदार है, जिसमें हम भी शामिल हैं। उसके जैविक तत्वों की मौजूदगी को लेकर और उसमें घटित होने वाले जीवन के अर्थ में उस मिट्टी की गुणवत्ता में बहुत कमी आई है।
पिछले 50 से 70 सालों में टॉपसॉयल की जैव-विविधता बहुत तेज़ी से गिरी है। टॉपसॉयल को ठीक करने का सिर्फ यह एक तरीका है कि हम उसमें काफी मात्रा में जैविक तत्व वापस डालें, जो पेड़ों और पशुओं से ही मिल सकता है। लेकिन हम हर साल अरबों पशुओं को खा जाते हैं और पेड़ काफी हद तक नष्ट हो चुके हैं। अगर हम पर्याप्त मात्रा में दुनिया की मिट्टी को छाया में नहीं रखते, तो बाकी प्रजातियों की संख्या कम हो जाएगी और वे शायद तभी वापस आएंगी, जब मनुष्य नष्ट हो चुका होगा।
अगर इस धरती के सारे कीट गायब हो जाएं, तो धरती का सारा जीवन 4 से 6 साल में खत्म हो जाएगा। अगर सभी कीड़े गायब हो जाएं, तो इस धरती पर सारा जीवन, मेरे और आपके समेत, 18 से 24 महीने में खत्म हो जाएगा। अगर सारे माइक्रोब्स, वायरस और बैक्टीरिया गायब हो जाएं, तो जीवन तुरंत नष्ट हो जाएगा। लेकिन अगर सारे मनुष्य गायब हो जाएं, तो धरती बहुत अच्छे से फलेगी-फूलेगी। हमे यह समझना चाहिए कि हम ब्रह्मांड के केंद्र नहीं हैं। यह इंसान के मन में आने वाले सबसे विनाशकारी विचारों में से एक है।
धर्म और दर्शन ये प्रचार करते हैं कि यहां हर दूसरा जीवन, इंसानों के लिए है क्योंकि इंसान को ईश्वर ने अपनी छवि में बनाया है। अगर आप चींटियों के मोहल्ले में जाकर उनसे पूछें, ‘क्या तुम मनुष्य की सेवा करना चाहती हो,’ वे आपकी टांगों पर चढ़कर आपको सबक सिखा देंगी। हर जीव ख़ुद में एक संपूर्ण जीवन है। वे यहां हमारी सेवा के लिए नहीं हैं। लेकिन उनके अस्तित्व की प्रकृति हमारे अस्तित्व के लिए मददगार है।
हमें उनका आभारी होना चाहिए और उनका आदर, उनकी परवाह करनी चाहिए क्योंकि हमारे पास रचने और नष्ट करने की क्षमता है। अभी हम रचने की नहीं, नष्ट करने की अपनी क्षमता का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल कर रहे हैं।
अधिकांश लोगों ने धरती को महसूस ही नहीं किया है, उन्हें धरती का कोई अनुभव नहीं है। उनका पूरा अनुभव हमेशा 18 डिग्री सेल्सियस का होता है क्योंकि उनके एयरकंडीशनर उतने तापमान पर सेट होते हैं। वे बस उस चारदीवारी को जानते हैं, जिसमें वे रह रहे हैं। जब आप इस तरह जीते हैं, तो आप शारीरिक और मानसिक रूप से कमज़ोर हो जाते हैं। जो वाकई धरती पर रहता है और उसका अनुभव करता है, वह ज्यादा कुदरती, ज्यादा जीवंत होता है। दुर्भाग्य से ज्यादातर लोग अपनी सामाजिक और मानसिक व्यवस्था को ही अस्तित्व की हकीकत समझ बैठते हैं।
बारिश, धूप, बाढ़, नदियां, समुद्र – ये सब दुनिया है। आपके विचार सिर्फ मनोवैज्ञानिक हैं और वे हर दिन बदल सकते हैं। आप अभी दस तरह के मानसिक चरणों से गुज़र सकते हैं, अगर आप इच्छुक हों, लेकिन ज्यादातर लोग एक ही जगह पर फँसे रहते हैं।
जब आप 12 साल के थे, तब क्या हुआ था, दुनिया के बारे में आपकी समझ क्या थी और आपके लिए सबसे महत्वपूर्ण क्या था, जब आप 18, 30, 40, 50, 60 के थे, तब क्या हुआ था – अगर आप चाहें तो आप पाँच मिनट के अंदर इन सब से गुज़र सकते हैं। हर मनुष्य में पाँच मिनट के अंदर 60 साल के अनुभवों से गुज़रने और तेज़ी से आगे बढ़ने के लिए जरूरी बौद्धिक ढांचा होता है। सचेतन विकास करने का यही मतलब है।
इसी वजह से हमने भारत में कुछ बड़े अभियान, जैसे प्रोजेक्ट ग्रीनहैंड्स, नदी अभियान, कावेरी कॉलिंग और अब ‘जागरूक धरती’ शुरू किए। उदाहरण के लिए, मैंने देखा कि भारत के दक्षिणी राज्यों में, जहाँ हम रहते हैं, वहाँ पर्याप्त हरियाली नहीं है। वह हरियाली 16 प्रतिशत है जबकि हमारा राष्ट्रीय लक्ष्य 33 प्रतिशत का है। शुरू में, मैंने लोगों को बताने की कोशिश की, ‘देखिए, हमें पेड़ लगाने की जरूरत है,’ लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया। तो मैंने उन्हें दक्षिण भारत में दिन के ग्यारह बजे तेज़ धूप में बैठाया। फिर मैं उन्हें पेड़ की छाया में ले गया, तब हर किसी ने राहत की साँस ली।
मैंने एक खास प्रक्रिया सेट की, जो अब भी जारी है। मैंने कहा, ‘बस साँस लीजिए और देखिए – आप जो बाहर छोड़ते हैं, वह पेड़ अंदर ले रहा है, पेड़ जो बाहर छोड़ रहा है, वह आप अंदर ले रहे हैं।’ किसी के भीतर इसे एक जीवंत अनुभव बनाने का एक ख़ास तरीका है। जब उन्होंने वहाँ बैठकर उसका अनुभव किया, तो उन्हें महसूस हुआ कि उनके आधे फेफड़े बाहर पेड़ के रूप में लटके हुए हैं। अब आप उन्हें पेड़ लगाने से रोक नहीं सकते क्योंकि वे जानते हैं कि वे पेड़ नहीं, उनके फेफड़े हैं।
यह योग का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है – जीवन के समावेश और विशालता का एक संपूर्ण अनुभव करना। अगर आप इंसान को जीवन के लिए मददगार और उत्पादक बनाना चाहते हैं, तो यह अनुभव हर किसी को होना चाहिए।
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