सद्गुरु द्वारा सुनाई गई कहानी के साथ होली के आनंदमय उल्लास में डुबकी लगाइए और जानिए कि कैसे उत्सव, नृत्य और प्रचुरता आखिरकार एक तरह से परे ले जाती है, जिसे देखने के लिए शिव भी उत्सुक हुए हैं।
कृष्ण एक राजसी परिवार में पैदा हुए थे लेकिन उनका पालन-पोषण एक ग्वाले के घर पर हुआ। उनके पालक पिता नंद ग्वालों के सरदार थे, लेकिन फिर भी थे ग्वाला ही। यशोदा उनकी असली माता नहीं थी, लेकिन वह ये नहीं जानती थी। कृष्ण को एक दिव्य अवतार माना जाता है क्योंकि उनके जन्म को लेकर कई भविष्यवाणियां की गई थीं।
कुछ योगी, खासकर कृष्ण द्वैपायन, एक महान ऋषि जिन्हें बाद में व्यास मुनि के नाम से जाना गया, इस विशेष बालक की तलाश में थे, जो उस खास दिन जन्म लेने वाला था। उनके अनुसार वह कृष्ण ही थे जिनके लिए योगी लंबे समय से इंतज़ार कर रहे थे। कृष्ण के जीवन को लेकर सभी भविष्यवाणियों के कारण, और जिस तरह से वह जिए और बाद में उन्होंने जो कार्य किए, उसके कारण आम तौर पर उन्हें ‘तारणहार’ कहा जाता था। वह लोगों को उनके दुख, दर्द और सीमाओं से मुक्त करने आए थे।
एक समय बाद, गोकुल और बरसाना के लोग वृंदावन जाकर बस गए, जो ज्यादा हरी-भरी जगह थी। कई मायनों में इन नई बस्तियों ने पुरानी परंपराओं को छोड़ दिया और अपने पुराने पारंपरिक घरों से निकलकर एक ज्यादा समृद्ध और सुंदर जगह बसकर वे बहुत उल्लासित थे। खासकर युवाओं और बच्चों को पहले से ज्यादा आजादी थी। यहाँ हालात अलग थे।
समुदाय में उल्लास और आजादी की एक नई भावना थी। राधे, जो अपने समूह के बाकी बच्चों से उम्र में थोड़ी बड़ी थी, हमेशा दिल से आज़ाद थी और अपने समुदाय में एक तरह की आज़ादी से रहती थी। वह लड़कियों की सरदार थी और कृष्ण लड़कों के, फिर एक आनंदमय मेल होता था। कृष्ण सात साल के थे, राधे बारह की, उन दोनों के साथ उनके हमउम्र बच्चों की एक पूरी फौज थी।
होली के त्यौहार के समय, जब सब कुछ आनंदमय होता था, पूर्णिमा की एक रात को ये लड़के-लड़कियां यमुना नदी के तट पर जमा होते थे। इस नई जगह के कारण, पुरानी परंपराएं टूट गईं और पहली बार, ये छोटे लड़के-लड़कियां नदी में एक ही साथ नहाने गए। शुरू में उन्होंने खेलना शुरू किया, एक-दूसरे पर पानी उछालते हुए, रेत फेंकते हुए और एक-दूसरे के साथ मज़ाक़ करते हुए।
थोड़ी देर बाद, वे नाचने लगे और नाचते गए, नाचते गए क्योंकि वे उल्लास और आनंद की अवस्था में थे। धीरे-धीरे अनाड़ी लोग एक-एक करके हटने लगे। जब कृष्ण ने ढेर सारे बच्चों को नाच छोड़ते देखा, तो उन्होंने अपनी कमर से मुरली निकाली और अपनी मनमोहक धुन बजाने लगे। वह दृष्य इतना अनोखा था कि हर कोई खड़ा हो गया, वे उनके चारों ओर जमा हो गए और एक बार फिर से झूमने लगे, लगभग आधी रात तक झूमते रहे।
यह रास लीला की पहली घटना थी, जहाँ लोगों का एक सरल आनंदमय मिलन ऊँचा उठकर दिव्य अवस्था में पहुंच गया। जब यह रास लीला शुरू हुई, तो शिव पहाड़ पर ध्यान कर रहे थे। कृष्ण हमेशा से शिव के भक्त थे। एक भी दिन नहीं बीतता था, जब कृष्ण सुबह-शाम महादेव मंदिर नहीं जाते थे, उन्होंने जीवन भर, जहां भी संभव था, यह किया।
तो, शिव ध्यान कर रहे थे और अचानक उन्हें अनुभव हुआ कि जो मुक़ाम उन्होंने ध्यान से प्राप्त किया था, वहाँ तक ये बच्चे सिर्फ नाचते हुए पहुंचने जा रहे थे। वह हैरान थे कि उनका भक्त यह छोटा सा लड़का सिर्फ बांस का एक टुकड़ा बजाते हुए और नाचते हुए लोगों को परम अवस्था में लिए जा रहा था। शिव रास देखना चाहते थे। वह उठे और यमुना के तट पर पहुंच गए।
वह यमुना नदी को पार करके देखना चाहते थे कि क्या हो रहा है। लेकिन नदी की देवी वृंदादेवी उठ खड़ी हुईं और बोलीं, ‘आप वहाँ नहीं जा सकते।’ शिव ने कहा, ‘क्या? मैं नहीं जा सकता?’ वह बोलीं, ‘नहीं। यह कृष्ण का रास है। इसमें किसी पुरुष को जाने की इजाजत नहीं है। अगर आप वहाँ जाना चाहते हैं तो आपको एक स्त्री के रूप में जाना होगा।’
शिव को एक परम पुरुष के रूप में देखा जाता है। लिंग का प्रतीक और वे सारी चीज़ें यह दर्शाने के लिए हैं कि वह पौरुष के अवतार हैं। शिव के लिए एक स्त्री बनना एक अजीब अनुरोध था। लेकिन, रास पूरे जोर-शोर से चल रहा था। वह जाना चाहते थे। लेकिन नदी की देवी ने कहा, ‘कम से कम आपको एक स्त्री की पोशाक पहननी होगी, तभी मैं आपको जाने दूंगी। वरना नहीं।’ शिव ने आस-पास देखा, वैसे भी कोई देख नहीं रहा था। उन्होंने कहा, ‘ठीक है, मुझे एक गोपी के कपड़े दो।’ वृंदादेवी ने उनके लिए एक गोपी के कपड़े पेश किए। शिव उन्हें पहनकर पार चले गए। वह ऐसे प्रतिक्रिया करते थे।
तो शिव को भी स्त्री बनना पड़ता है, अगर वह रास लीला में शामिल होना चाहते हैं।
और प्रेम, आनंद और दिव्यता का यह नृत्य चलता रहा...