ईशा विद्या के लिए एक डॉक्टर ने 1260 किमी की दौड़ लगाई

इस विशेष फीचर में, मुंबई में रहने वाले डेंटिस्ट आदित्य साहू ईशा के साथ की अपनी यात्रा के बारे में बता रहे हैं। हाल ही में उन्होंने ईशा विद्या के लिए फंड जुटाने के लिए मुंबई से कोयंबटूर तक 1260 किमी की दौड़ लगाई। इस दौड़ के अपने रोमांचक अनुभव और विवरण वे यहाँ साझा कर रहे हैं। ईशा विद्या ग्रामीण भारत में शिक्षा का स्तर उठाने और गरीब बच्चों को उनकी पूर्ण क्षमता को साकार करने में सहयोग करने की एक पहल है।

डॉ. आदित्य साहू की जीवंत और शांत मौजूदगी इसका आभास नहीं देती कि उन्होंने हाल ही में 1260 किलोमीटर की दौड़ 27 दिनों में पूरी की है। आदित्य ईशा विद्या के लिए फंड जुटाने के लिए लगभग एक दशक से दौड़ रहे हैं। बहुत मृदुभाषी होने के बावजूद, आदित्य प्रकृति की एक सच्ची शक्ति हैं। युवावस्था के शुरुआती दौर में वे अवसाद के शिकार रहे, लेकिन अपने अवसाद पर काबू पाने के बाद उन्होंने डेंटिस्ट की अपनी डिग्री पूरी की और फिर मुंबई चले गए। शुरुआत में दौड़ना उन्हें किसी विशाल चीज़ का एक हिस्सा बनने की अनुभूति देता था।

आदित्य साझा करते हैं, ‘मैंने दौड़ना इसलिए शुरू किया क्योंकि उससे मैं दुनिया से जुड़ा हुआ महसूस करता था।’ यह जुड़ाव उनकी कल्पना से कहीं ज्यादा गहन निकला – क्योंकि यह लोगों को जोड़ने के साथ-साथ बच्चों को उज्ज्वल भविष्य दे रहा था। उन्होंने 2011 में इनर इंजीनियरिंग प्रोग्राम किया, और प्रोग्राम के बाद उन्होंने सोचा, ‘क्यों न दौड़ने के साथ-साथ फंड भी जुटाया जाए? यह दौड़ में एक मकसद जोड़ देता है। मैंने मुंबई मैराथन से शुरू किया था। और 2015 में मैंने स्टोक कांगरी पहाड़ पर चढ़ाई की और लद्दाख में 72 किलोमीटर की दौड़ पूरी की।’  

अपने सबसे हाल की कोशिश में, आदित्य ने एक नई चुनौती ली और मुंबई से कोयंबटूर तक की दौड़ शुरू की।

जब देवी बुलाती हैं

2021 में आदित्य अपने नए डेंटल क्लीनिक में व्यस्त थे। शुरू में योजना एवरेस्ट पर्वत पर चढ़ाई करने की थी – जो इंसान दो आयरन मैन ट्रायथलोन (जिसमें प्रतिभागी एक ही दिन में 3.86 किलोमीटर तैराकी, 180.35 किलोमीटर साइकिलिंग और एक मैराथन दौड़ता है) पूरा कर चुका हो उसके लिए एवरेस्ट का लक्ष्य सबसे सही था। दुर्भाग्य से महामारी ने इस काम में रुकावट डाली और चढ़ाई करने के लिए नेपाल की यात्रा करना संभव नहीं था। यहाँ तक कि यात्रा प्रतिबंधों ने सामान्य दौड़ को भी काफी मुश्किल बना दिया था।  

आदित्य स्पष्ट करते हैं, ‘लॉकडाउन में बहुत सी गतिविधियों पर प्रतिबंध लग गया था और दूसरी तरफ़ मैंने एक नया क्लीनिक शुरू किया था, जिसमें मैं काफ़ी व्यस्त हो गया था। एक और बात यह थी कि मेरे योग अभ्यास बहुत अच्छी तरह से नहीं हो पा रहे थे। कोई भी खिलाड़ी अक्सर आउट–ऑफ–फॉर्म हो जाता है – तो मैं जानता था कि यह स्थिति पलटेगी। आख़िरकार अक्टूबर में मेरी ऊर्जा सुंदर तरीके से बहने लगी।’

हालांकि हिमालय की चोटियां पहुंच से बाहर थीं, लेकिन एक नई चोटी क्षितिज में उभर रही थी। ‘अक्टूबर में मैं एक दिन के लिए आश्रम आया और मुझे महसूस हुआ जैसे कि देवी ने बुलाया है। मैं लिंग भैरवी गया और उसके बाद जब मैं मुंबई लौटकर आया, मेरे मन में फंड जुटाने के लिए मुंबई से कोयंबटूर तक चलकर जाने का यह विचार उभरा।’ नई ऊर्जा और दिशा के साथ, आदित्य ने इस चुनौती के लिए तैयारी शुरू कर दी।

किसी भी चुनौती को स्वीकार करना

आदित्य के क़रीबी लोग इस बा‍त को लेकर थोड़े चिंतित थे कि वह अकेले सड़कों पर और अनजान जगहों पर दौड़ रहे होंगे। लेकिन वह इस यात्रा को संभव बनाने के लिए अडिग और समर्पित रहे। ‘मैं शरीर से तैयार नहीं था, लेकिन ऊर्जा की दृष्टि से मैं अच्छी स्थिति में था क्योंकि मैं जानता हूँ कि मैं निडर हूँ और मैं किसी भी स्थिति में ढल सकता हूँ। मैं कहीं भी रह सकता हूँ, मैं कुछ भी खा सकता हूँ, तो मैंने बस यह करने के लिए खुद को तैयार कर लिया।’

जैसा कि इतनी बड़ी कोशिश में अक्सर होता है, कुछ चीज़ें उतनी सरल नहीं थीं। आदित्य ने एक बड़े बैकपैक के साथ अपनी यात्रा शुरू की, लेकिन ज़्यादा वजन ने कुछ शारीरिक समस्याएं पैदा कर दीं। ‘मैं उतना नहीं दौड़ सका। मुंबई में मेरे घुटने की एक नस चोटिल हो गई, इसलिए मैंने भार कम करने का फैसला किया। मेरी योजना अब दौड़ने के बजाए चलने और जॉगिंग की हो गई।’

पहले हफ़्ते में ही आदित्य को पेट में तकलीफ़ हुई और उन्हें बुखार आ गया, लेकिन वह अगले ही दिन अपने पैरों पर खड़े थे और 40 किलोमीटर दौड़े। ‘मैंने इससे पहले कभी कई दिनों का लम्बा कार्यक्रम नहीं किया था। मैंने मैराथन या आयरन मैन जैसे एक दिन वाले कार्यक्रम किए थे, लेकिन इंसानी शरीर वाकई हालात के अनुसार ढल जाता है।’

रास्ते में दोस्ताना मुलाकातें

दौड़ में सिर्फ चुनौतियां और कष्ट नहीं थे। आदित्य का प्रखर नज़रिया और गर्मजोशी रास्ते में कई अच्छे पल भी लाई।

‘मुझे लगता है कि दुनिया मेरी दोस्त है और इसी वजह से मुझे रास्ते में कुछ वाकई बढ़िया लोग मिले। गाते हुए किसानों से लेकर उदार ट्रक ड्राइवरों और इस प्रयास के बारे में सुनने पर मुफ्त में चाय पिलाने वाली वेट्रेस तक, कई सुखद मुलाकातें होती रहीं।’ आदित्य साझा करते हैं, ‘महाराष्ट्र में कहीं, रेस्तरां में लोगों को आकर्षित करने के लिए कुछ लोग बैठे थे। उनमें से एक रोबोट डांस कर रहा था। उसके अंदर अपने काम को लेकर वाकई बहुत जुनून था। मुझे वह बहुत प्रेरणादायक लगा, इसलिए मैंने उसके साथ तस्वीरें लीं और उससे बातचीत की।’

कॉलेज वापसी 

पूरी दौड़ के दौरान, आदित्य ने एक निश्चित रफ्तार बनाए रखी, 40 किलोमीटर रोजाना से शुरू करके कभी-कभी 50 किलोमीटर तक जाते हुए वे हर दिन आठ या नौ घंटे दौड़ते थे। जैसे-जैसे यात्रा आगे बढ़ी, प्रति‍दिन की दूरी थोड़ी नीचे यानी लगभग 30 किलोमीटर तक आ गई। तेरह दिन दौड़ने के बाद, उन्होंने एक ब्रेक लिया। बेलगाम में, अपने कॉलेज में आदित्य का गर्मजोशी से स्वागत हुआ, जहां उन्होंने डेंटिस्ट की पढ़ाई की थी। उनकी कोशिश न सिर्फ ईशा विद्या के विद्यार्थियों की मदद कर रही थी, बल्कि उनके पुराने कॉलेज के लोगों को प्रेरणा भी दे रही थी। ‘मैंने एक दिन का ब्रेक लिया क्योंकि कॉलेज मुझे सम्मानित करना चाहता था। वे ईशा विद्या के बच्चों के लिए फंड भी इकट्ठा कर रहे हैं। उन्हें मुझ पर बहुत गर्व है,’ आदित्य कहते हैं।

अंदर के शिखर को छूना

27 दिन के बाद आदित्य ने ईशा योग केंद्र पहुंचकर एक विजेता की तरह अपनी दौड़ खत्म की। हालांकि इस समय एवरेस्ट पर्वत पर चढ़ाई करना संभव नहीं था, लेकिन आदित्य एक अलग तरह के शिखर पर फ़तह हासिल करने में सफल रहे, जिसे वे ‘अंदर का हिमालय’ कहते हैं।

आदित्य बताते हैं, ‘अंदर का हिमालय वह है, जब आप अपने बारे में ज्यादा जानते हैं – कैसे आपका शरीर स्थितियों के अनुकूल ढल सकता है, कैसे आप मानसिक तौर पर स्थितियों और हर दिन एक अलग जगह पर होने की मुश्किल का सामना कर सकते हैं। मेरे लिए हर दिन सब कुछ एक अलग तरीके से सामने आ रहा था। ऐसे में आप अपनी ताकत को पहचान पाते हैं कि आप कितनी दूर तक जा सकते हैं और मानदंड को कितना ऊंचा उठा सकते हैं। यह वास्तव में मेरे लिए एक आँख खोलने वाली घटना थी – मैं खुद को बेहतर तरीके से जान पाया।’

ईशा विद्या के बच्चों की मदद करने के कई तरीके हैं। अधिक जानकारी के लिए ishavidhya.org पर जाएं।