‘यूथ एंड ट्रूथ’ अभियान भारत के युवाओं को प्रेरित करने और सशक्त बनाने के लिए है। इसके तहत सद्गुरु ने विद्यार्थियों से बात करने के लिए कई स्कूलों और विश्वविद्यालयों का दौरा किया। शिक्षक दिवस पर, सद्गुरु मैसूर के ‘डेमोन्स्ट्रेशन मल्टीपर्पज़ स्कूल’ गए, जहाँ उन्होंने अपनी पूर्व अंग्रेज़ी शिक्षिका सरस्वती के साथ मंच साझा किया, और एक घटना को याद किया जिसने छोटी उम्र में उन पर अमिट छाप छोड़ी थी।
सद्गुरु: मुझे ये स्वीकार करना पड़ेगा कि मैं सही मायने में एक विद्यार्थी था ही नहीं। मैं स्कूल तभी जाता था जब जाना बहुत जरूरी होता था। यह बात कि मैंने इस स्कूल में 2 साल बिताए, साबित करती है कि यहाँ मुझे सबसे अच्छा लगा।
मुझे बताना पड़ेगा कि मुझे सरस्वती जी कैसे याद हैं…
हम कक्षा X-C में थे। दरअसल उन दिनों जो हमारे प्रधानाध्यापक थे, वे अक्सर चाहते थे कि हमारे पूरे सेक्शन को उठाकर तालाब में फेंक दें। लेकिन ऐसा हुआ नहीं, पर वो ऐसा ही सोचते थे। हमें पता चला कि हमें एक नई अंग्रेजी टीचर मिलने वाली हैं। वो सत्र शुरू होने के एक या दो महीने के बाद ही आईं थीं। पहले दिन जब वो आईं, मैं कुछ लड़कों के साथ बाहर था। हम सोच रहे थे कि ये कौन शिक्षक है, क्योंकि वास्तव में कोई हमारी कक्षा में आना नहीं चाहता था।
मुझे याद है सरस्वती जी ने कड़क कलफ लगी हुई बूटे वाली सफेद साड़ी पहनी थी और मोरनी की तरह चल रही थीं। हम बात कर रहे थे कि वो कहाँ से आई हैं? उन्होंने पहले कहाँ पढ़ाया है?
‘नहीं, वो अभी ही ग्रेजुएट हुई हैं।’
‘ओह, तो क्या वो हमें संभाल सकती हैं, वो तो अभी ही कॉलेज से बाहर निकली हैं।’
वह हमारी पहली क्लास थी उनके साथ। मुझे विश्वास था कि नए होने के कारण वो नर्वस थीं। पढ़ाते समय वो पूरे कमरे मे घूम रही थीं। मैं आख़िरी बेंच पर बैठा था। हम उनका जीना दूभर करने के लिए कुछ करना चाहते थे। वो क्लास से बातें करते हुए आख़िरी बेंच तक पहुंचना चाहती थीं, ये जताने के लिए कि उन्हें सबकी फिक्र है। वो मेरी टेबल पर झुकी हुई थीं, लेकिन उनका चेहरा दूसरी ओर था। मुझे शरारत का मौक़ा मिला गया। मैंने पेन खोला और स्याही उनकी सफेद कलफ की हुई साड़ी पर उँडेल दी, और साड़ी ने उसे तुरंत पूरा सोख लिया। तब उन्हें ये पता नहीं चला। कुछ बच्चे हँस रहे थे। ख़ैर, वो चली गईं।
शायद स्टाफ रूम में किसी ने उनको उनकी साड़ी पर स्याही के बड़े धब्बे के बारे में बताया। लंच के बाद जब मैं कक्षा में था, मुझे स्टाफ रूम में बुलाया गया। मैंने सोचा, ‘एक बार फिर निलंबन (सस्पेंशन)।’ क्योंकि उन दो सालों में मैं करीब छः बार निलंबित हो चुका था।
मैं वहाँ गया तो उन्होंने मुझसे मेरा पेन माँगा। मैंने उन्हें दे दिया, मुझे लगा वो सबूत के तौर पर मेरा खाली पेन रख लेंगी। उन्होंने स्याही की एक बोतल निकाली, पेन को भरा और मुझे वापस कर दिया। मैंने कहा, ‘धन्यवाद, मैम,’ और वापस कक्षा में चला गया । इस एक चीज ने मुझे कभी उनको भूलने नहीं दिया।