पत्र लिखे जाते हैं
दिल के आँसुओं से,
पर परोपकारी गुरु
ने लिखी एक कविता
दिखाया मुझे आईना,
और दी एक चुटकी विभूति – कृपाभरी।
गतिविधियों के ज्वर में
महीनों बीत गए,
पर साधना चलती रही।
कुछ चूक भी हुई,
पर ज़्यादातर चलता रहा मैं,
मार्ग पर अटल।
नंदी हैं मेरी एकमात्र प्रेरणा,
जो कहते हैं
‘बस करते रहो पालन
शिव के निर्देशों का
और बस करो इंतज़ार।’
फिर आया एक मौका
कुछ दिनों तक मौन रहने का,
तब प्रकट हो गया
गुरु का जादू
ध्यानलिंग के पावन प्रांगण में,
बनने लगी एक दूरी,
मेरे और बाक़ी सारी चीज़ों के बीच,
जिन्हें मैं 'मैं' मान बैठा था।
एक गहरा दर्द जो
मौजूद था मेरे दिल में,
कई वर्षों से, वो घुल गया,
और लगे खिलने
खुशियों के फूल।
तब दिल के आंसू,
बदल गए
आभार के आंसुओं में।
—एक ईशा आश्रम स्वयंसेवक