बस वह करना, जिसे किए जाने की ज़रूरत है
हर यंत्र जो आप बनाते हैं, वो केवल आपके जीवन के विस्तार एवं गहराई के लिए है। यदि वह मक़सद पूरा नहीं होता तो आप जो भी बना रहे हैं, वह कोई मायने नहीं रखता। एक इमारत बनाने के लिए हमें बिजली, पंप, आदि की जरूरत होती है। ये सब तभी फायदेमंद हैं जब वो हमारे जीवन का विस्तार करें। नहीं तो उनके बिना दुनिया ज्यादा अच्छी होगी। बस एक पेड़ के नीचे रहना कहीं ज़्यादा अच्छा होगा। अगर आप इमारत में जरूरत से ज़्यादा काम करें ये आपका पूरा जीवन ले लेगा। लेकिन एक पेड़ पर ‘जरूरत से ज़्यादा काम करने’ जैसा कुछ नहीं होता है। पेड़ बस वहाँ है, और आप भी उसके साथ उसी पेड़ के नीचे रह सकते हैं ।
आप सोच सकते हैं, ‘ये कैसी जिंदगी है?’ लेकिन दूसरे लोग कौन सा बेहतर जीवन जी रहे हैं? जब आप तुलना करते हैं केवल तभी कोई बेहतर लग सकता है। दूसरे लोग सोच सकते हैं कि आप बेहतर हैं, लेकिन जीवन के स्तर पर देखें तो, कोई क्या बेहतर कर रहा है? खाना, सोना, बच्चे पैदा करना - केवल यही कर रहे हैं न लोग। हमें कुछ ऐसा करना है जिससे दुनिया में सुविधाएँ बढ़ाई जा सकें, लेकिन आख़िर किस सीमा तक - यह हमें ज़रूर पता होना चाहिए। क्योंकि इन सुख-सुविधाओं के साथ हमनें कई बीमारियों को बुला लिया है- शरीर और मन दोनों में। अगर हम जरूरत से ज़्यादा करेंगे, तो ये आत्मघाती होगा।
संपूर्ण स्वतंत्रता
ख़ुद को जानना ही वो संतुलन है। तब आप किसी चीज़ के साथ या उसके बिना, एक पूर्ण मानव की तरह जीवन जी सकते हैं। तब बाहर आप केवल वही करेंगे जो परिस्थिति की मांग है, आप खुद के लिए कुछ नहीं करेंगे। यही मुक्ति आपको मिलती है। जब आप अपनी ज़रूरत के लिए कुछ करते हैं, तो वो आपको बांधता है। धीरे-धीरे, अनजाने में, आप उसमें इतना उलझ जाते हैं कि बाहर आने का रास्ता ही नहीं रहता। लेकिन अगर आप सिर्फ़ इसलिए कुछ करते हैं, क्योंकि वह हालात की ज़रूरत है, तो एक दिन जब उसकी ज़रूरत नहीं रह जाती, आप वह काम छोड़ सकते हैं, और इसमें कोई बंधन नहीं होता है।
हम जिसे ज्ञान या आत्म-ज्ञान कहते हैं वो बस यही है। ये आपको ऐसी आज़ादी देता है कि आपका अस्तित्व पूर्ण हो जाता है। आपको ख़ुद को पूर्ण महसूस करने के लिए कुछ करने की, कुछ सोचने की, कुछ अनुभव करने की ज़रूरत नहीं है। आप स्वयं में पूर्ण हैं।