ईशा

पत्थर का रूपांतरण हो सकता है, एक गधे का नहीं 

1998 में एक शिक्षक सम्मेलन में सद्‌गुरु ने बड़े ही रोचक तरीक़े से बताया था कि ईशा को जीना और अपनी साँसों में भर लेने का वास्तव में क्या मतलब है। वे यह भी बताते हैं कि रूपांतरण और सशक्तिकरण की ज़बरदस्त संभावनाओं का बेहतरीन तरीक़े से कैसे इस्तेमाल करें।

सद्‌गुरु: समय के साथ कई आध्यात्मिक तौर-तरीक़े अपने मक़सद से भटक चुके हैं। लोगों के लिए चीज़ें बहुत सुविधाजनक होती गईं, और बहुत से आश्रम तो महलों की तरह हो गए हैं। मैं उम्मीद करता हूँ कि ईशा में ऐसा न हो। ईशा का मतलब है दिव्य। ईशा का अर्थ ‘राजा’ भी होता है। हमें कभी राजा नहीं बनना चाहिए। एक राजा होना एक संकेत है कि आप अहं के शिखर पर हैं जहाँ आप हर चीज़ से निश्चिन्त हैं और जागरूकता जा चुकी है। जबकि दिव्यता परम जागरूकता है - कुछ भी तय नहीं, हर चीज़ तरल है।

आश्रम में रहने का सही मतलब क्या है? 

आश्रम में रहने का मतलब है बेघर होकर रहना - किसी एक स्थान से बिना बंधे रहना और साथ ही ख़ुद को पूरी तरह  समर्पित कर देना। यह आश्रम, यहाँ के मकान, हम यहाँ जो कुछ भी कर रहे हैं वो सारे काम, व्यक्तिगत रूप से मेरे लिए कोई मायने नहीं रखते हैं। जैसे ही मैं ये बात कहता हूँ, लोग चकित होकर पूछते हैं, ‘तब आप ये सब कर क्यों रहे हैं?’ मैं ये सब इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि आपको इसकी ज़रूरत है। हालाँकि व्यक्तिगत रूप से ये मेरे लिए कोई मायने नहीं रखता, फिर भी मैं अपना पूरा जीवन केवल इसे करते हुए गँवाने को तैयार हूँ। इस रास्ते पर यही बात सबको समझने की आवश्यकता है । हम ये सब इसलिए नहीं कर रहे हैं क्योंकि ये हमारे लिए महत्व रखता है- हम बस कर रहे हैं क्योंकि इसकी ज़रूरत है।

जब हम समर्पण की बात करते हैं, लोग उसे वफादारी समझते हैं। समर्पण वफादारी नहीं है। वफादारी एक अंधी भावना है। आपकी वफादारी बदल सकती है, पर आपका समर्पण कभी नहीं बदलता। वफादारी आपका रूपांतरण करने में सक्षम नहीं है - यह केवल उलझन है। समर्पण आपके रूपांतरण में सक्षम है, ये आपको उलझन से मुक्त करता है। हमने कभी किसी से वफादारी की माँग नहीं की। हमें वफादारी नहीं चाहिए- हम कोई सेना नहीं बना रहे हैं। वफादारी के साथ बुद्धिमत्ता काम नहीं करती। समर्पण के साथ, बुद्धिमत्ता काम करती है। यही सबसे ज़रूरी बात है।

परम मुक्ति

जब आप उन सभी साधारण बंधनों की, जो आपको सुरक्षा की भावना देते हैं, परवाह नही करते, तो आप मुक्त हैं। अगर लोग जागरूक हैं, तो किसी को अपने भीतर पूरी तरह स्वतंत्र देखना उनके लिए सुन्दर और अद्भुत होगा। लेकिन जो लोग बेखबरी और असुरक्षा की भावना के साथ जी रहे हैं उनके लिए किसी को पूरी तरह स्वतंत्र देखना भयावह होगा, क्योंकि उन्हें लगता है कि इस मुक्ति के साथ तो आप जो चाहे कर सकते हैं। आप पर एकमात्र नियंत्रण सिर्फ आपका है। ये बात समाज को खतरनाक लगती है।

लोग हमेशा सोचते हैं कि स्वतंत्रता का मतलब जो चाहे वो करना है। बंधन यहीं पर है। स्वतंत्रता का सही मतलब है कि इस समय जो जरूरी है उसे आप अपने भीतर बिना परेशान हुए कर सकें। अगर आप हर परिस्थिति के अनुसार ढलने में सक्षम हैं- तो वही स्वतंत्रता है। यह किसी के लिए खतरनाक नहीं है। वास्तव में जब हर इंसान ऐसी स्वतंत्रता पा लेगा तभी दुनिया सुरक्षित हो पाएगी। 

रूपांतरण की क़ाबिलियत 

योग के बहुत से पहलू हैं जिन्हें हमने छोड़ दिया है क्योंकि हमें इस ऊर्जा पर भरोसा है। हमने यम और नियम को छोड़ दिया क्योंकि जब ऊर्जा इस तरह की है तो, चीजें ऐसे ही होंगी। लेकिन अगर आपके पास आश्रम में एक गधा है, तो ऊर्जा का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, क्योंकि वह असंवेदनशील है। वह आश्रम में रहने पर भी अपना रूपांतरण नहीं कर सकता। आप ख़ुद को गधा बनाकर अपने चारों ओर की ऊर्जा से प्रभावित हुए बिना भी रह सकते हैं। यही एक खतरा है।

अगर आप खुद को एक गधा बना सकते हैं, तब ऊर्जा आपको छू भी नहीं पाएगी। नहीं तो किसी के भी अछूता रह जाने का कोई और कारण नहीं है। एक पल के लिए भी अगर कोई मेरे सामने ईमानदारी के साथ बैठता है, तो वह अछूता नहीं रह सकता, उसके जीवन में कुछ तो छू जाएगा। अगर आप यहाँ बिल्कुल जड़ होकर बैठें, तब हम आपके साथ कुछ नहीं कर सकते। हम पत्थर को रूपांतरित कर सकते हैं, पर हम गधों को रूपांतरित करने में असमर्थ हैं। और हम आश्रम में गर्दभ-तकनीक नहीं लाना चाहते, क्योंकि हमने तय कर लिया है कि किस तरह के लोगों के साथ हम काम करना चाहते हैं।

ईशा को अपने भीतर संभालिए 

हमें तय करना है कि किस तरह की परिस्थितियों में हम जाना चाहते हैं, किस तरह का रूपांतरण हम लाना चाहते हैं, किस स्तर का काम हम करना चाहते हैं। क्योंकि जब हम काम को सही दिशा में, सही तरीक़े से करेंगे तभी परिणाम मिलेगा। अगर आप दुनिया में सब कुछ करने की कोशिश करेंगे तो कुछ हासिल नहीं होगा। तो हमने तय कर लिया है कि कहाँ काम करना है। यहाँ हर व्यक्ति के लिए, एक गधे तक के लिए भी हर दिन सैकड़ों अवसर हैं कि वह हालात को स्पष्ट रूप से देखे और आसानी से खुद ही उससे बाहर निकले। लेकिन हम उनकी मूर्खता को ज़बरदस्ती बाहर निकालना नहीं चाहते।

यहाँ आश्रम के बाहर बहुत से गधे हैं । अगर आप बाहर जाएँगे और अगर आपने ठीक से अपने पाँव नहीं जमाए हों, तो वे सारे इकट्ठे होकर आपको लात मारेंगे। लेकिन जिसे हम ‘ईशा’ कहते हैं अगर आप उसे अपने भीतर संभालकर रखें, तो सही चीज़ें होने लगेंगी।