हमें प्राइवेसी क्यों चाहिए?
प्रश्न: सद्गुरु, कभी-कभी मैं अलग-थलग महसूस करता हूँ और मुझे कुछ प्राइवेसी की जरूरत महसूस होती है। साथ ही मैं सोचता हूँ, क्या प्राइवेसी की इच्छा होना आध्यात्मिक प्रक्रिया का भाग नहीं है?
सद्गुरु: आपको अलग-थलग इसीलिए लगता है क्योंकि आपने ख़ुद को बंद कर रखा है। एक सीमा रेखा है जिसके परे आप किसी को नहीं जाने देते। जब कोई वहाँ घुसता है,तो आप अलग-थलग महसूस करते हैं। हमारी पूरी कोशिश इस सीमा रेखा को तोड़ने के लिए है।
अकेले होना अलग बात है। आप वास्तव में अकेले तभी हो सकते हैं जब हर चीज़ आप ही का एक हिस्सा हो, और आपके अलावा दूसरा कुछ या दूसरा कोई न हो। परम ज्ञान अकेले होना ही है। अलग-थलग होना, अकेले होना नहीं है। तो सवाल है कि प्राइवेसी क्या है? हम जब भी असुविधा महसूस करते हैं, हम अकेले रहना चाहते हैं। अकेले होने का मतलब अब कोई दखल नहीं दे रहा है, और वे जानते तक नहीं कि दखल दिया कैसे जाए। जैसे ही आप ऐसी सीमा रेखा खींचते हैं, वो आपको अकेला छोड़ देते हैं। केवल मैं हर चीज़ में दखल देता हूँ। अगर आप रोक भी लगा दें तो मैं दूसरी तरह से घुस जाऊँगा। अगर मैंने आपको छोड़ दिया होता तो आप आज यहाँ मेरे सामने नहीं होते।
जब आप ख़ुद अपनी राह में रोड़ा हों
आपमें से कई लोग अभी भी इस स्थिति में हैं कि अगर आपको कुछ भी कहा जाए, चाहे वो आपके भले के लिए हो, आप थोड़ा चिढ़ जाते हैं या परेशान हो जाते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि आपका अपना एक व्यक्तित्व, अपनी खुद की इच्छा, और अपनी निजता है। हमें आपसे ऐसे बात करना होता है जैसे हम आपसे पूछ रहे हों। लेकिन असल में, आपके लिए जो सबसे अच्छा हो सकता है उसे देखते हुए, हम आपको बता रहे हैं। भले ही ये आपके लिए सबसे बेहतर हो पर आप विरोध करेंगे, केवल इसलिए कि कोई दूसरा आपको कह रहा है। यदि आपका समर्पण संपूर्ण है, तो इसकी ज़रूरत नहीं है। यदि कोई आपकी प्राइवेसी में दखल देता है, आपको बुरा लगेगा। अगर प्राइवेसी की जरूरत ही न हो तो बुरा लगने की कोई संभावना ही नहीं है।
ख़ुद को यूँ ही समर्पित कर देने के लिए भरोसे की जरूरत होती है। हमने ये इसलिए बताया क्योंकि अगर आपको चुनने का विकल्प दिया जाए तो आप कुछ और ही करेंगे। मैं आपको कई बार बता चुका हूँ, पर कुछ दिनों के बाद, आप फिर से आएंगे और कहेंगे, ‘ये मेरे लिए नहीं है।’ इस ‘मेरे’ को भूल जाइए। यहाँ अभी कोई ‘आप’ नहीं है। जब तक आपका अस्तित्व स्थापित नहीं होता, तब तक वहाँ कोई ‘आप’ नहीं है। वहाँ केवल मन और भावनाओं का झमेला है। इस झमेले को जो आपने बाहर से इकट्ठा किया है, इसे ‘आप’ के रूप में मत समझिए।
जब मैं आपसे बात कर रहा हूँ, मैं जानता हूँ मैं आपसे एक अस्तित्व के रूप में बात नहीं कर रहा हूँ। कुछ ऐसे पल होते हैं जब आप एक अस्तित्व के रूप में मेरे साथ होते हैं। उन पलों में कोई समस्या नहीं है, कुछ कहने की जरूरत नहीं है। हर चीज, जैसे होनी चाहिए, वैसे होती है। लेकिन जब आप अपने झमेले के साथ आते हैं, हमें आपसे बात करनी पड़ती है। हमें आपके मन और भावनाओं को सावधानी से संभालना पड़ता है। नहीं तो, अगर एक भी गलती हुई, तो आपकी उलझनें आपको भगा ले जाएँगी। आपका आंतरिक अस्तित्व भले ही यहाँ रहने के लिए आतुर हो, लेकिन आपके मन और भावनाओं की उलझनें आपको दूर ले जा सकती हैं।
एकत्व के दो मार्ग
मेरा अस्तित्व और आपका अस्तित्व अलग नहीं हो सकता है। अगर आप उस स्तर पर हैं, तो हम जो चाहें वो कर सकते हैं। वहाँ प्राइवेसी का कोई सवाल ही नहीं है। सार्वभौमिकता का अर्थ है कि या तो यहाँ केवल आप हैं या फिर आप हैं ही नहीं। ये दो ही रास्ते हैं। उत्तरदायित्व का रास्ता है कि यहाँ केवल आप हैं। समर्पण का मार्ग है कि आप वहाँ हैं ही नहीं। अगर आप वहाँ हैं तो पूरा आस्तित्व आप ही हैं, वहाँ कोई एकांत नहीं है। अगर आप वहाँ नहीं है, तो एकांत का प्रश्न ही नहीं उठता।
भौतिक शरीर को कुछ प्राइवेसी की जरूरत है- वो अलग बात है। लेकिन जब आप किसी के प्रेम में पड़ जाते हैं, तब प्राइवेसी की आवश्यकता ही नहीं रहती क्योंकि कहीं न कहीं वहाँ एकत्व की भावना है। जब सार्वभौमिकता की बात आती है, आपको प्राइवेसी की जरूरत है क्या? एक योगी सड़क पर नंगा चलता है, उसे कोई समस्या नहीं है, शारीरिक प्राइवेसी की कोई जरूरत नहीं। मैं ख़ुद को इसलिए नहीं ढंककर रखता हूँ, क्योंकि मुझे प्राइवेसी चाहिए, बल्कि इसलिए कि आप इसे पचा नहीं पाएँगे। क्योंकि तब यदि आप मुझे देखेंगे भी तो, आपको प्राइवेसी की जरूरत होगी। जैसे ही प्रेम आपके जीवन में प्रवेश करता है,प्राइवेसी की ज़रूरत गायब हो जाती है। चूँकि प्रेम का अभाव है, इसलिए प्राइवेसी आपके जीवन में एक बड़ा मुद्दा है।
जब प्राइवेसी की ज़रूरत ही ख़त्म हो जाए
प्राइवेसी की जरूरत, अलगाव की जरूरत है। ये एक सीमा है जो आपने बनाई है। जब आपकी जिम्मेदारियाँ असीमित हो जाती हैं, तो इसका मतलब कि आप अपनी सीमा को अनंत की ओर ले जा रहे हैं, यानी वहाँ कोई सीमा ही नहीं है। अगर आप किसी को ये सीमा हटाने के लिए कहें तो क्या वे हटा सकते हैं? उन्हें पता तक नहीं है कि ये सीमा है कहाँ। आप अपनी सीमा अपनी ज़िम्मेदारियों से तय करते हैं। यदि आप एक क्लर्क हैं, तो आप मैनेजर बनना चाहते हैं क्योंकि आप अपनी सीमा का विस्तार करना चाहते हैं। हर किसी के अंदर अपनी सीमा को और आगे बढ़ाने की चाह होती है।
आप ज्यादा पैसा, मित्र, या संपत्ति क्यों चाहते है? क्योंकि आप अभी जो हैं, उससे अधिक बनना चाह रहे हैं। संपत्ति का एक टुकड़ा आपको बड़ा नहीं बनाता है, चाहे आप एक एकड़ के स्वामी हों या हज़ार एकड़ के। केवल जब आपका उत्तरदायित्व बढ़ता है, आप बड़ा अनुभव करते हैं- क्योंकि सीमा बढ़ जाती है। जब आपका उत्तरदायित्व असीमित हो जाता है, आपकी कोई सीमा नहीं रह जाती, और तब प्राइवेसी की भी जरूरत नहीं रह जाती।