आत्म विसर्जन
सद्गुरु: यहाँ होने वाली पूजा आमतौर पर होने वाली पूजा से अलग है। जब कोई ध्यान की अवस्था में रहने वाला व्यक्ति पूजा करता है तो उसकी गुणवत्ता अलग होनी ही चाहिए। यदि पूजा महज़ भीख माँगने के लिए हो, तो उसका कोई विशेष महत्व नहीं है। लेकिन गुरु-पूजा की प्रक्रिया अपने आप में बहुत शक्तिशाली है, इसे अगर ध्यानपूर्वक पूरी बारीकी से किया जाए। हालाँकि इसे सावधानी पूर्वक करने की ज़रूरत है पर ये कोई अभ्यास नहीं है। गुरु-पूजा ख़ुद को उड़ेलने जैसा है – आप जो हैं उसका एक बहाव है गुरु-पूजा।
आप जिस मूर्ति में विश्वास करते हैं उसकी पूजा करने में, और किसी जीवंत और आपको वास्तविक अनुभव देने वाली चीज़ की पूजा करने में बहुत अंतर है। इसलिए कोई भी पूजा जीवंत तभी होती है, जब पूजे जाने वाला जीवंत हो। जब कोई व्यक्ति किसी ऐसी चीज़ की पूजा करता है जो उसके लिए जीवंत है- बाहर भी और अपने भीतर भी- उस पूजा का एक अलग ही महत्व है।
सबसे तेज़ तरीक़ा
ऐसी कई चीज़ें हैं जिन्हें आप ख़ुद से कभी नहीं सीख सकते। यह जानने के लिए कि जीवन क्या है, एक जन्म काफ़ी नहीं है। कुछ लोगों में कई जन्मों का ज्ञान सारभूत रूप से मौजूद है। मेरे अंदर जो ज्ञान है उसे ख़ुद से सीखने में आपको कई जन्म लग जाएंगे। लोगों ने सैकड़ों जन्म लगाकर जो ज्ञान हासिल किया उसे हम इसी जन्म में पा सकते हैं। हम वो देना चाहते हैं, पर उसे पाने के लिए हमें सही माहौल तैयार करना होगा। स्वयं को ग्रहणशील बनाने के लिए गुरु-पूजा बहुत महत्वपूर्ण और प्रभावशाली साधन है।
गुरु-पूजा की सही विधि
गुरु-पूजा करते समय आपको वहाँ पूरी तरह से होना चाहिए – वहाँ कुछ और नहीं होना चाहिए। आपको पूरी विधि को इस निपुणता के साथ सीखना है कि आपको पूजा करते समय सोचना न पड़े। जिस पल आप सोचने लगते हैं, ध्यान भंग हो जाता है। इसी तरह जैसे ही आप ने सोचा कि क्या करना है, पूजा नहीं रही। इसीलिए पूजा शुरू करने के पहले, इंतजाम बिलकुल पूरा होना चाहिए। हर चीज़ बिलकुल सही स्थान पर होनी चाहिए ताकि सब कुछ बस एक प्रवाह में होता जाए।