योग और ज्ञान

गुरु-पूजा – कोई प्रार्थना नहीं, दिव्यता का आह्वान है 

सद्‌गुरु ने प्रभावशाली तर्कों एवं वैज्ञानिक कसौटी पर सिद्ध की जा सकने वाली विधियों के साथ, आध्यात्मिकता को आत्म-रूपांतरण की तकनीक के रूप में पेश किया है। ऐसे में गुरु-पूजा, जो कि पिछले तीस सालों से ईशा में की जाने वाली एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक प्रकिया रही है, किस तरह इस कसौटी पर सही है। जानने के लिए पढ़ें . . .

आत्म विसर्जन

सद्‌गुरु: यहाँ होने वाली पूजा आमतौर पर होने वाली पूजा से अलग है। जब कोई ध्यान की अवस्था में रहने वाला व्यक्ति पूजा करता है तो उसकी गुणवत्ता अलग होनी ही चाहिए। यदि पूजा महज़ भीख माँगने के लिए हो, तो उसका कोई विशेष महत्व नहीं है। लेकिन गुरु-पूजा की प्रक्रिया अपने आप में बहुत शक्तिशाली है, इसे अगर ध्यानपूर्वक पूरी बारीकी से किया जाए। हालाँकि इसे सावधानी पूर्वक करने की ज़रूरत है पर ये कोई अभ्यास नहीं है। गुरु-पूजा ख़ुद को उड़ेलने जैसा है – आप जो हैं उसका एक बहाव है गुरु-पूजा। 

आप जिस मूर्ति में विश्वास करते हैं उसकी पूजा करने में, और किसी जीवंत और आपको वास्तविक अनुभव देने वाली चीज़ की पूजा करने में बहुत अंतर है। इसलिए कोई भी पूजा जीवंत तभी होती है, जब पूजे जाने वाला जीवंत हो। जब कोई व्यक्ति किसी ऐसी चीज़ की पूजा करता है जो उसके लिए जीवंत है- बाहर भी और अपने भीतर भी- उस पूजा का एक अलग ही महत्व है।

सबसे तेज़ तरीक़ा 

ऐसी कई चीज़ें हैं जिन्हें आप ख़ुद से कभी नहीं सीख सकते। यह जानने के लिए कि जीवन क्या है, एक जन्म काफ़ी नहीं है। कुछ लोगों में कई जन्मों का ज्ञान सारभूत रूप से मौजूद है। मेरे अंदर जो ज्ञान है उसे ख़ुद से सीखने में आपको कई जन्म लग जाएंगे। लोगों ने सैकड़ों जन्म लगाकर जो ज्ञान हासिल किया उसे हम इसी जन्म में पा सकते हैं। हम वो देना चाहते हैं, पर उसे पाने के लिए हमें सही माहौल तैयार करना होगा। स्वयं को ग्रहणशील बनाने के लिए गुरु-पूजा बहुत महत्वपूर्ण और प्रभावशाली साधन है।

गुरु-पूजा की सही विधि

गुरु-पूजा करते समय आपको वहाँ पूरी तरह से होना चाहिए – वहाँ कुछ और नहीं होना चाहिए। आपको पूरी विधि को इस निपुणता के साथ सीखना है कि आपको पूजा करते समय सोचना न पड़े। जिस पल आप सोचने लगते हैं, ध्यान भंग हो जाता है। इसी तरह जैसे ही आप ने सोचा कि क्या करना है, पूजा नहीं रही। इसीलिए पूजा शुरू करने के पहले, इंतजाम बिलकुल पूरा होना चाहिए। हर चीज़ बिलकुल सही स्थान पर होनी चाहिए ताकि सब कुछ बस एक प्रवाह में होता जाए। 

सूक्ष्म ऊर्जा से संपर्क

पूजा एक बड़ी प्रभावशाली प्रक्रिया हो सकती है। यह संपर्क साधने का एक आसान तरीका है। आज आधुनिक विज्ञान हमें स्पष्ट बता रहा है कि हम जिसे पदार्थ कहते हैं वह केवल ऊर्जा है। इस आधार पर, हम मानव शरीर को सात चक्रों के रूप में देखते हैं। ये सात चक्र सीढ़ी के सात पायदानों जैसे हैं, या कहें कि स्थूल से सूक्ष्म की ओर जाने की प्रक्रिया हैं। ऊर्जा का सबसे स्थूल रूप भौतिक शरीर है। जैसे-जैसे वही ऊर्जा सूक्ष्म होती जाती है, हम उसे आकाशीय शरीर, सूक्ष्म शरीर, मानसिक शरीर, आध्यात्मिक शरीर आदि कहने लगते हैं। हम जिसे गुरु कहते हैं वो सूक्ष्म शरीर या सर्वोत्तम रूप है। पूजा एक विधि है जिसके द्वारा आप इसे अपेक्षाकृत स्थूल रूप में या भौतिक वास्तविकता के करीब ला सकते हैं।

आपने रामकृष्ण परमहंस के काली के साथ हुए अनुभवों के बारे में सुना होगा। उनकी पूजा इतनी प्रबल थी कि वह एक भौतिक सच्चाई बन गई। अगर पूजा के विज्ञान को ठीक से संभाला जाए, सही भावना के साथ, तो असाधारण घटनाएँ घट सकती हैं। इसका उपयोग अपने भीतर तथा हर उस चीज के अंदर जाने के लिए किया जा सकता है, जिसे हम योग कहते हैं।

षोडष उपचार - गुरु पूजा का सार 

इसके अर्पण की विधि को ‘षोडस उपचार’ कहा जाता है। ये गुरु की सेवा करने की सोलह विधियाँ हैं। पूजा उसके गीत में नहीं, बल्कि अर्पण में है। अगर आप इसे सच में अर्पण करें, तो हर चीज जो आप अर्पित करते हैं, वो आप ही हैं। तब पूजा में एक अलग ही विशेषता आ जाती है। अचानक आपके आसपास अलग ही तरह का वातावरण और ऊर्जा होगी। अधिकतर लोगों को जीवित गुरु की पूजा करने का सौभाग्य प्राप्त नहीं होता। उनके पास केवल मृत गुरु होते हैं। लेकिन जब आपके पास जीवित गुरु हों, पूजा बेहद प्रभावशाली हो सकती है। कुछ ऐसे बिरले पल भी आ सकते हैं जब पूरी तरह से दूसरे आयाम में चीजें घटित होने लगें, जैसा कि हमारी कुछ पूजाओं में आपमें से कुछ ने देखा भी है। 

दैवीय बनना

जिस भावना एवं चेतना के साथ आप ये अर्पण करते हैं वो बहुत महत्वपूर्ण है। आप जो दे सकते हैं, बस दे दीजिए। बस। गुरु-पूजा प्रार्थना नहीं है- यह एक आह्वान है। यह अपने भीतर सबसे ऊँची चीज़ का आह्वान करने के लिए है।  यह गुरुओं को आमंत्रित करने, उनकी सेवा करने, उन्हें देवत्व के स्तर तक ऊँचा उठाने और इस प्रक्रिया में स्वयं को भी उसी स्तर तक उठाने के लिए है। ईश्वर इस संसार के शासक नहीं हैं। ईश्वर एक अर्पण है। हर चीज़ बस अर्पित कर दी गई है। वे इस संसार को नहीं चला रहे, हम इस संसार को चला रहे हैं। ईश्वर बनने का मतलब मालिक बनना नहीं है। भगवान मालिक नहीं – हमारे नौकर हैं। हर दिन वे हमारी सेवा कर रहे हैं ताकि हमारा जीवन संभव हो सके। गुरु-पूजा इसी चेतना को किसी इंसान के भीतर लाने के लिए है।