बैंक में . . . आकर्षण बिंदु बनना
सद्गुरु: यह 1983 की घटना है। हैदराबाद की वो पहली क्लास मुझे खास तौर पर याद है। मैं जब वहाँ पहुँचा, तब शहर में किसी को भी नहीं जानता था। किसी ने मुझे बताया था कि वहाँ एक बैंक मैनेजर है जो मेरी मदद कर सकता है। तो मैं उनसे मिलने पहुँच गया। वो कामकाज का दिन था, मैंने दो घंटे तक वहाँ इंतजार किया। फिर मैं उनके ऑफिस में चला गया। मैंने उन्हें बताया कि मैं यहाँ एक ‘इंट्रोडक्शन प्रोग्राम’ देने के लिए आया हूँ। उन्होंने कहा, ‘वो मुझे बता चुके हैं। बैठिए।’ मैंने कहा, ‘ठीक है।’
वो अपने काम में लगे रहे। बीच में जब दो मिनट का ब्रेक दिखा, मैं खड़ा हो गया। मैं डेनिम और एक पुरानी सी शर्ट पहने हुए था। बैंक मैनेजर के ऑफिस में बिना उसकी इजाज़त के, मैंने अपना परिचय देना शुरू कर दिया। वो भौंचक रह गए। मैं बोलता गया। पंद्रह मिनट तक मैंने अपना परिचय दिया। तभी एक कर्मचारी फाइल के साथ अंदर आया। मैंने उसे देखते ही कहा ‘रुको।’ वो वहीं रुक गया और मेरा परिचय सुनने लगा।