प्रतिभागी: सद्गुरु, कर्ण को एक कुशल योद्धा के रूप में जाना जाता है, जिसमें अर्जुन को हराने और कृष्ण को मारने की क्षमता थी। लेकिन, पूरे महाकाव्य में कहीं भी वह कोई लड़ाई नहीं जीत पाया, चाहे वह गंधर्वों के साथ हो, जो उसे बांधते हैं, या जब वह विराट राज्य के लिए लड़ता है और अर्जुन उसे हरा देता है।ऐसा क्यों है?
सद्गुरु: अपने जन्म से ही, कर्ण के ऊपर न तो कृपा थी और न ही उसके पास भाग्य था। महान बनने की बेकार लालसा की वजह से समझदार होने से पहले ही उसने गलत गठबंधन किए जिससे वह बाहर नहीं निकल सका। वह बहुत जल्दी में था। यह कुछ ऐसा ही था जैसे आप अपने किशोरावस्था में कुछ ऐसा चयन कर लेते हैं, जिस पर बड़े होने पर आपको पछतावा होता है। सौभाग्य से आपमें से अधिकांश लोग, ऐसी चीजों से बाहर निकल चुके हैं।
जब किसी ने हाथ बढ़ाया तो कर्ण ने उसे थाम लिया, क्योंकि वह बहुत हताश और बेसब्र था। उसके बाद वह कभी वापस नहीं मुड़ सका। उसने कृपा पाने का चुनाव नहीं किया – उसने अहंकार को अपना साथी चुना। इस वजह से उसकी सारी प्रतिभा बेकार चली गई। यह जीवन का सत्य है –अगर आप अहंकारी हैं, तो जो भी क्षमता और योग्यता आपके पास होती है, वह अपंग हो जाती है और कोई फल नहीं देती है। यदि योग्यता के साथ कृपा हो, तो यह आपको अपने आप से बहुत बड़ा बनने में मदद करेगी । जीवन ऐसा ही होना चाहिए और ऐसा है तो इसका मतलब है कि आप अच्छे से जी रहे हैं।
मेरे साथ ऐसा हुआ था – मैं कर्नाटक के जंगल में अकेले ही भटका करता था। वहाँ साल के करीब चार महीने धुंध रहती है। मैं पैदल चल रहा था, तभी मैंने अचानक एक विशाल आग को दूर जंगल में जलते हुए देखा। मैं उसे क़रीब से देखना चाहता था इसीलिए उसकी ओर दौड़ना शुरू कर दिया। मैं लगभग 4-5 किलोमीटर दौड़कर जब मौके पर पहुंचा तो देखा कि एक छोटी सी झोपड़ी के पास दो आदमी बैठे हैं जिनके सामने थोड़ी सी आग जल रही है। हवा में कोहरे के लाखों कणों ने उस छोटी सी आग को कई गुना बढ़ा दिया था, जिससे ऐसा लग रहा था कि इस 'आग के पहाड़' ने पूरे आकाश को रोशन कर दिया है।
आपका जीवन भी ऐसा ही होना चाहिए। यदि कृपा की धुंध आप पर पड़ती है, तो यह इसी प्रकार आपको विशाल बना देगी। आप छोटी आग हैं, लेकिन आप बड़ी आग की तरह दिखेंगे। लेकिन आपको यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि आप एक छोटी सी आग ही हैं।
आगे जारी…