शुरुआती कोविड राहत गतिविधियाँ
जब 2020 की शुरुआत में कोविड-19 महामारी फैली, तो सद्गुरु ने तत्काल ‘ईशा आउटरीच’ के जरिए ईशा के कोविड राहत प्रयासों को सक्रिय कर दिया। ईशा आउटरीच करीब 1.1 करोड़ स्वयंसेवियों को एक मंच देता है कि वे समाज सेवा में अपना समय और ऊर्जा दे सकें। सद्गुरु के मार्गदर्शन में टीमें रोकथाम, जागरूकता बढ़ाने और कमज़ोर समुदायों को पोषण प्रदान करने पर विशेष जोर के साथ एक समग्र योजना बनाकर काम करती रही हैं। खास तौर पर समाज के आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग कुपोषण और भुखमरी के जोखिम पर थे। ईशा आउटरीच ने 549,726 भोजन और 1,488,415 इम्युनिटी बढ़ाने वाले हर्बल पेय की व्यवस्था की, साथ ही 66,892 फ्रंटलाइन वर्कर्स को प्रोटेक्टिव किट दिए। ईशा योग केंद्र के पास रहने वाले कुल दो लाख लोगों को इन प्रयासों का लाभ मिला। इसके अलावा, ईशा स्वयंसेवियों ने राज्य स्वास्थ्य विभाग और स्थानीय पुलिस के सहयोग से संक्रमण से बचाव के लिए सूचनाप्रद वीडियो क्लिप और पुस्तिकाएँ बांटीं।
दूसरी लहर: आउटरीच को बढ़ाना और तीव्र करना
कोविड-19 की दूसरी लहर ने भारत को तगड़ा झटका दिया, जिसमें संक्रमण की रफ्तार काफ़ी तेज़ रही। ईशा आउटरीच ने ईशा योग केंद्र के आस-पास 17 पंचायतों के 43 गाँवों पर विशेष ध्यान देते हुए अपनी महामारी राहत गतिविधियों को तेज़ कर दिया। फ्रंटलाइन वर्कर्स के साथ सहयोग करना, हज़ारों जिंदगियों को बचाना, लोगों का उत्साह बनाए रखना और मरने वालों का गरिमा के साथ अंतिम संस्कार करना, इन सभी गतिविधियों का समाज पर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ रहा है।
मरीजों के लिए मुफ्त परिवहन
ईशा स्वयंसेवी उन मरीजों को मुफ्त और सुरक्षित परिवहन प्रदान करते रहे हैं, जो अस्पताल और कोविड केयर सेंटर तक जाने के लिए एंबुलेंस का खर्च उठाने में असमर्थ होते हैं। मरीजों की हालत बिगड़ने से पहले उन्हें अस्पताल तक पहुँचाने की इस जरूरी सेवा ने कई जीवन बचाए हैं। मरीजों को ले जाते समय सभी सुरक्षा प्रोटोकॉल को बनाए रखने के लिए बहुत सावधानी रखी जाती है।
‘शुरू में, मुझे बाहर निकलने में थोड़ी हिचकिचाहट हो रही थी। लेकिन फिर मैंने उन फ्रंटलाइन योद्धाओं के बारे में सोचा जो इस मुश्किल स्थिति में अपना सहयोग देने के लिए अपना जीवन दाँव पर लगाने को तैयार हैं। सद्गुरु ने मुझे इन लोगों के लिए कुछ करने का मौका दिया है – इस सोच ने मुझे आनंद और लगन के साथ इसे करने के लिए प्रेरित किया।’
– शक्तिवेल, तिरुवन्नामलाई
फ्रंटलाइन वर्कर्स के लिए पौष्टिक रिफ्रेशमेंट किट
जिन फ्रंटलाइन वर्कर्स को आसानी से भोजन उपलब्ध है, उन्हें भी तनावपूर्ण स्थितियों में लंबे और अनियमित कार्य-समय के कारण मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। कई बार ठीक से भोजन करने के लिए बैठने का समय ही नहीं होता, खासकर जब वे फील्ड में होते हैं। इन फ्रंटलाइन वर्कर्स की मदद के लिए, स्वयंसेवियों ने ‘पौष्टिक रिफ्रेशमेंट किट’ बनाने और बाँटने का बढ़िया समाधान खोजा है, उस किट में हाथ से बने मल्टीग्रेन कुकीज और बढ़िया छाछ का एक पैकेज होता है। इन्हें लंबे समय तक रखा जा सकता है और इन्हें रखना और ले जाना बहुत आसान भी होता है।
तमिलनाडु में, ईशा आउटरीच ने अब तक 13 सरकारी अस्पतालों को 75000 रिफ्रेशमेंट किट की आपूर्ति की है, जिससे 7000 चिकित्सा कर्मियों को फायदा मिला है।
‘सरकारी राजाजी अस्पताल मदुरै के सबसे पुराने अस्पतालों में से एक है, जिनमें 150 से ज्यादा नर्सें काम करती हैं। हमने चीफ नर्स को पौष्टिक रिफ्रेशमेंट किट सौंपे, जिन्होंने बताया कि उन्हें आम तौर पर सिर्फ पके हुए भोजन के पैकेट मिलते हैं और वे इन बढ़िया कुकीज और छाछ के लिए बहुत आभारी हैं क्योंकि वे उन्हें रख सकती हैं और जरूरत पड़ने पर इस्तेमाल कर सकती हैं, जो पके हुए भोजन के साथ नहीं हो सकता।’ – मणिमारन, मदुरै
यह कोशिश तमिलनाडु के बाहर भी चल रही है। ट्रैफिक मैनेजमेंट सेंटर, बेंगलुरु सिटी पुलिस को अपने कर्मियों में बाँटने के लिए 4,500 पौष्टिक रिफ्रेशमेंट किट सौंपे गए। दूसरे पुलिस बलों को भी 25,000 पौष्टिक रिफ्रेशमेंट किट देने की एक योजना चल रही है।
साल भर से चल रही महामारी राहत की अपनी गतिविधियों को जारी रखते हुए, ईशा आउटरीच ने पुदुचेरी में फ्रंटलाइन वर्कर्स तक भी मदद पहुँचाई है। ईशा स्वयंसेवी पुदुचेरी की लेफ्टिनेंट गवर्नर डॉ. तमिलसाई सुंदराजन से मिले और फ्रंटलाइन वर्कर्स के लिए 12,750 रिफ्रेशमेंट किट सौंपे।
इम्युनिटी बढ़ाने वाली ईशा क्रियाएँ
सद्गुरु ने कुछ सरल लेकिन शक्तिशाली ईशा क्रियाएँ तैयार की हैं, जो ऑक्सीजन का स्तर बढ़ाती हैं और इम्युनिटी बढ़ाने में मदद करती हैं। उन क्रियाओं को ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुँचाने के लिए स्वयंसेवी वेबिनार और प्रत्यक्ष सत्र आयोजित कर रहे हैं। अब तक तमिलनाडु में 17,000 लोगों को सिंह क्रिया सिखाई गई है, जिससे चिकित्सा कर्मियों, किसानों, शिक्षकों, आईटी पेशेवरों और कारपोरेट लीडर्स नेताओं सहित हर कार्यक्षेत्र के लोगों को लाभ पहुँचा है।
तमिलनाडु में लॉकडाउन से पहले, 500 प्रशिक्षित स्वयंसेवियों (योग वीर) ने राज्य भर में 5000 लोगों को व्यक्तिगत तौर पर सूर्य शक्ति की योग क्रिया सिखाई।
7 मई को उसके लॉन्च से लेकर 31 मई तक, 61 वेबिनार आयोजित किए गए जिनमें 22808 लोगों ने भाग लिया।
भावनात्मक सपोर्ट और टेलीमेडिसिन के साथ कोविड हेल्पलाइन
होम आइसोलेशन में इलाज और रिकवरी में मदद करने के लिए 21 डॉक्टरों और 18 स्वयंसेवियों के साथ एक 24x7 हेल्पलाइन सेवा टेलीफोन से ऑनलाइन डॉक्टरी परामर्श प्रदान करते हुए कोविड-19 मरीजों की मदद करती है। इसकी शुरुआत के दो सप्ताह के भीतर ही 200 से अधिक मरीज इन परामर्शों का लाभ उठा चुके हैं।
इसके अलावा, स्वयंसेवी ऐसे व्यक्तियों और परिवारों को भावनात्मक समर्थन दे रहे हैं, जो मानसिक कष्ट और दुख की स्थिति में हैं। एक सक्रिय टेलीग्राम ग्रुप है, जहाँ 200 से ज्यादा स्वयंसेवी उस इलाके में चिकित्सा सहायता से जुड़े अनुरोधों और सूचना (जैसे प्लाज्मा की जरूरतों/डोनर्स, ऑक्सीजन सिलेंडर और कन्संट्रेटर की जरूरतों/आपूर्तिकर्ता की सूचना, अस्पताल बेड की उपलब्धता, इत्यादि) को साझा करते हैं।
तमिलनाडु सरकार के साथ मिलकर काम
ईशा कोविड एक्शन ने सरकारी अस्पतालों में फ्रंटलाइन वर्कर्स की मदद करने के लिए तमिलनाडु सरकार को लगभग 500 ऑक्सीजन कन्संट्रेटर, 2 वाहन और सैकड़ों पीपीई किट तथा मास्क सौंपे। इसके अलावा, ईशा ने कोयंबटूर सरकारी अस्पताल को सीधे 500 पीपीई किट, 5000 एन95 मास्क और 500 कंटीन्यूअस पॉजिटिव एयरवे प्रेशर (सीपैप) मशीनें दीं।
सद्गुरु ने राज्य के नौ जिलों में सभी ईशा विद्या स्कूलों के परिसर को कोविड केयर सेंटरों के रूप में काम करने का प्रस्ताव भी सरकार को दिया।
गरिमामय मृत्यु
अस्पतालों में मरीजों की भरमार तो है ही और दुख की बात है कि श्मशान घाटों पर भी यही हाल है। इस महामारी ने थोड़े ही समय में बड़ी संख्या में लोगों की जान ले ली, इसलिए कोविड-19 से मरने वाले लोगों के शव अक्सर श्मशान गृहों के बाहर पड़े रहते हैं, कई बार तो कई घंटों के लिए। जगह और संसाधनों की भारी कमी परिवारों को अपने प्रियजनों को गरिमापूर्ण विदाई नहीं देने दे रही और प्रशासन के सामने एक बड़ी चुनौती पैदा कर रही है। इस विकट स्थिति को देखते हुए, सद्गुरु ने जोर दिया कि मृतकों और शोक संतप्त लोगों, दोनों के लिए सम्मान व गरिमा से मृतकों की विदाई जरूरी है।
परिवहन सहायता
एक आम समस्या जो परिवारों के सामने आती है, वह है मृतकों को श्मशान गृहों तक ले जाने के लिए शव वाहन खोजने की। मृतकों को सरकारी अस्पतालों के भरे हुए मुर्दाघरों से श्मशान गृहों तक ले जाने के लिए चालीस मोर्चरी वैन प्रदान किए गए हैं। परिवहन की व्यवस्था करने के लिए ईशा स्वयंसेवी राज्य स्वास्थ्य अधिकारियों, सरकारी अस्पतालों और शोक संतप्त परिजनों के साथ भी मिलकर काम कर रहे हैं। जिन मामलों में नजदीकी परिजन भी अस्पताल में हैं और मृतक को श्मशान गृह तक ले जाने में असमर्थ हैं, वहाँ स्वयंसेवी दूसरे परिजनों से संपर्क करके सुनिश्चित कर रहे हैं कि अंतिम संस्कार हो जाए और सभी औपचारिकताएँ पूरी की जाएँ।
श्मशान गृह सेवाओं का विस्तार
ईशा स्वयंसेवियों के एक समर्पित समूह ने यह सुनिश्चित करने के लिए कदम बढ़ाया है कि तमिलनाडु में ईशा द्वारा संचालित अठारह सरकारी श्मशान गृह, कोविड-19 मृतकों की बड़ी संख्या को संभालने में सक्षम हों और सभी सुरक्षा प्रोटोकॉल का पालन करते हुए समय पर अंतिम संस्कार हो सके। अतिरिक्त अस्थायी भट्ठियों के साथ श्मशान गृहों का विस्तार किया गया है और वे लंबे समय तक खुले रहते हैं। स्वयंसेवी इस बात को सुनिश्चित करने के लिए अनवरत काम कर रहे हैं कि मृतकों से पूरी संवेदनशीलता और सम्मान के साथ पेश आया जाए।
श्मशान गृहों पर काम कर रहे एक स्वयंसेवी ने साझा किया: ‘दाह संस्कार और रस्मों के पूरा होने के बाद, कई रिश्तेदारों ने हमसे साझा किया कि उन्होंने मन की शांति और कृतज्ञता का अनुभव किया। उन्होंने हमें बताया कि हम जिस तरह का पवित्र माहौल बना रहे हैं, उससे वे कितने अभिभूत हैं। यह उनकी सारी उम्मीदों से बढ़कर है। जब वे ऐसे अनुभवों के बारे में हमें बताते हैं तो इस मुश्किल समय में हम यह काम करते हुए बहुत संतुष्टि महसूस करते हैं।’
हमारे प्रयासों में मदद करें
हमारे प्रयासों के लिए बहुत से उपकरणों और संसाधनों की जरूरत पड़ती है।
हर कोविड केयर सेंटर में 70 लाख रुपये से 2 करोड़ रुपये तक लगते हैं, जो बिस्तरों की संख्या पर निर्भर करता है। प्रत्येक एंबुलेंस के लिए 2-3 लाख रुपये लगते हैं।
कोयंबटूर में हमारे केंद्रित प्रयासों में करीब 5 करोड़ रुपये लगने की संभावना है।
इनके अलावा, दूसरे प्रयासों में भी कई लाख रुपये लग रहे हैं, जो दूसरी कोविड लहर की अवधि की लंबाई और तीव्रता पर निर्भर करता है।
भारत को तत्काल मदद की जरूरत है। आप अपना मूल्यवान योगदान देकर फर्क ला सकते हैं।
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