हिंसा के कारण और समाधान
डायरेक्टर एक्स और सद्गुरु ने शांति लाने वाली परम शक्ति पर चर्चा की।
कनाडा के फिल्म व वीडियो निर्माता-निर्देशक एक्स ने सद्गुरु से बातचीत की जिसका मुद्दा था - समाज में हिंसा घटाने के लिए ध्यान की ताक़त। निर्देशक एक्स ने अपने गृहनगर टोरंटो, कनाडा में हिंसा की घटनाओं को कम करने में ध्यान की शक्ति का लाभ उठाने के लिए ‘ऑपरेशन प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स’ बनाया है। उन्होंने जस्टिन बीवर, उशर, निक्की मिनाज, जे-जेड, वन डायरेक्शन और रिहाना जैसे कलाकारों के साथ काम करते हुए उत्तर अमेरिकी म्यूजिक वीडियो की संस्कृति को आकार दिया है। सद्गुरु हिंसा की जड़ तक जाते हुए बता रहे हैं कि उसका हल क्या है।
डायरेक्टर एक्स: मैंने टोरंटो में ‘ऑपरेशन प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स’ नाम से एक संगठन बनाया है। यह हिंसा और आक्रामक लोगों के ब्रेन साइंस के ऊपर काम करता है। दिमाग़ के वो हिस्से जो बचपन में हुए शोषण, उपेक्षा और तनाव के कारण बिगड़ जाते हैं, उन्हें कैसे मेडीटेशन के ज़रिए ठीक किया जा सकता है। हम अपने स्कूल, समाज, सड़क, पुलिस, जेल और हाँ नौकरशाही में भी, मेडीटेशन को अपनाए जाने की कोशिश कर रहे हैं। हमें सबसे अच्छी प्रगति देखने को मिली, जब एक हाई स्कूल ने ‘मेडीटेशन मेंटर्स’ नामक एक प्रोग्राम शुरू किया। उसमें बच्चे अपने और अपने दोस्तों का जीवन बदल रहे हैं। टोरंटो में बंदूक हिंसा से तबाह हुए एक और छोटे समुदाय ने मेडीटेशन को अपनाया है और उनका जीवन भी बदल रहा है। मैं इस विषय पर आपके विचार सुनना चाहूँगा।
ध्यानमय होने के अलग-अलग आयाम
सद्गुरु: अंग्रेज़ी में ‘मेडीटेशन’ शब्द का कोई खास मतलब नहीं है, जिसके कारण काफी भ्रम पैदा होता है। हालांकि तमाम वैज्ञानिक अध्ययनों में ध्यानमय होने के बहुत से नतीजे दिखे हैं, फिर भी लोगों की राय मेडीटेशन के बारे में अलग-अलग है। संस्कृत भाषा में मेडीटेशन को बताने के लिए कई शब्द हैं, जैसे जप, तप, ध्यान, धारण, समाधि, शून्य और सम्यमा। ये सभी ध्यानमय होने के अलग-अलग आयाम हैं।
इसे मेडीटेशन कहने के बजाय, मैं कहूँगा कि यह ध्यानमय होने का गुण है। ध्यान एक गुण है – यह कोई काम नहीं है, जो आप करते हैं।
मूल कारण, जिस पर ध्यान देने की जरूरत है
अभी, जब हिंसा की बात आती है, चाहे वह बंदूक, चाकू या हाथ से होने वाली हिंसा हो या किसी दूसरे रूप में होने वाली हिंसा हो, हम हमेशा हिंसा के परिणाम को ठीक करने की कोशिश करते हैं। किसी का गोली चलाना, किसी को मारना-काटना या घूंसा मारना, सिर्फ एक परिणाम है। असली समस्या यह है कि एक व्यक्ति के अंदर गुस्सा, कुंठा, नफरत या पूर्वाग्रह है। क्या हम उस पर काम करना चाहते हैं? नहीं। क्योंकि हमारे समाज का पूरा ढाँचा ही इन पूर्वाग्रहों पर आधारित है।
किसी को ऐसा लग सकता है कि किसी देश में नस्ली बराबरी लाना, हिंसा का व्यापक हल हो सकता है। लेकिन ऐसा नहीं है – हमें विश्वव्यापी मानवता की जरूरत है। वरना, अलग-अलग नस्लें, धर्म, देश, परिवार और व्यक्ति हर समय एक-दूसरे से लड़ते-भिड़ते रहेंगे।
हमारे समाज का ढाँचा ‘तुम बनाम मैं’ है।
हम जो कुछ भी करते हैं, चाहे वह कारोबार हो, राजनीति हो या कूटनीति, उसमें हिंसा है। यह मत सोचिए कि सिर्फ वह व्यक्ति हिंसक है, जो किसी को गोली मार रहा है। हमारे समाज का ढाँचा ‘तुम बनाम मैं’ है। जब बात तुम बनाम मैं की होगी तो यह हिंसक हो जाएगा। मैं बंदूक हिंसा या हिंसा के किसी दूसरे रूप को सही ठहराने की कोशिश नहीं कर रहा, मैं बस यह कह रहा हूँ कि वह महज़ एक नतीजा है। नतीजे को कानून-व्यवस्था से संभालने की जरूरत होती है। लेकिन जो महत्वपूर्ण है, वह है आत्म-रूपांतरण।
क्या हम ख़ुद में और अपने आस-पास जितना संभव हो, उतने लोगों में रूपांतरण लाने के लिए अपना जीवन लगाने को तैयार हैं? इसके लिए, आपको आत्म-रूपांतरण के साधनों की जरूरत है। मैं आपको हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के हमारे केंद्र से जोड़ूँगा, जहाँ इस विषय में काफी काम किया जा रहा है – वे शोध करते हैं कि किस तरह एक जगह पर एक खास तरह से बैठने मात्र से ही इंसानी शरीर के मूलभूत जैव मानदंड (बायो-पैरामीटर्स) बदल जाते हैं। अगर आप एक खास प्रवृत्ति और फोकस के साथ बैठते हैं, तो आपकी हर चीज़ बदल जाती है।
‘अच्छा’ होना काफी नहीं है
यह बहुत ज़रूरी है कि हम जो हैं, उसका रसायन बदले, क्योंकि हर इंसानी अनुभूति - शांति, गुस्सा, खुशी, दुख, कष्ट, परमानंद, हर अनुभूति का एक रासायनिक आधार होता है। हम आनंद का एक रसायन तैयार करने के लिए खुशहाली की तकनीकों, रूपांतरण के साधनों की बात करते हैं।
जब आप आनंदित होते हैं, तो क्या आपके हिंसक बनने की संभावनाएँ होती हैं? जब आप दुखी होते हैं, तभी आपके हिंसक होने की संभावना बहुत ज्यादा होती है। इसके बाद सिर्फ थोड़ा उकसाने की जरूरत होती है। लेकिन दुनिया में हमने सबसे बड़ी गलती यह की है कि हमने ‘अच्छे’ लोग पैदा करने की कोशिश की। ये अच्छे लोग लगातार दूसरे अच्छे लोगों से लड़ते रहते हैं – अच्छे भारतीय अच्छे पाकिस्तानियों से लड़ रहे हैं, अच्छे ईसाई अच्छे मुसलमानों से लड़ रहे हैं, अच्छे अमेरिकी किसी से भी लड़ रहे हैं।
यह बहुत सारी अच्छाई का टकराव है, क्योंकि अच्छाई का आपका नज़रिया और उनका नज़रिया अलग-अलग है। अगर आप इसे अलग रखकर धरती पर ज्यादा आनंदित और समझदार इंसान पैदा करने पर ध्यान देंगे, तो आप देखेंगे कि ये टकराव कम हो जाएँगे।
क़ैदियों के लिए आंतरिक आज़ादी
लेकिन आपके शहर के लिए तात्कालिक हल क्या है? आपके बच्चों और इन सभी लोगों को इस समाधान की जरूरत है। हमने ‘कैदियों के लिए आंतरिक आज़ादी’ कार्यक्रम किए हैं -जिन्हें हम पिछले 20-21 सालों से करते रहे हैं।
दक्षिण भारत की जेलों में हमारे प्रोग्राम अनिवार्य हैं। लंबे समय की कैद भुगत रहे सभी कैदी ध्यान की सरल प्रक्रियाओं से गुज़रते हैं, जिससे उनके अंदर अद्भुत रूपांतरण होता है जिसे आपको देखना चाहिए। आप विश्वास नहीं करेंगे – उन्होंने अपने आत्म-रूपांतरण के बारे में हज़ारों कविताएँ लिखी हैं।