सद्गुरु: ध्यानलिंग के निर्माण में बहुत से लोग शामिल रहे हैं। यह कई लोगों का सपना रहा है। ध्यानलिंग को संभव करने की इच्छा के इस पूरे पहलू ने मेरे जीवन को बहुत उलझा दिया है। अगर मुझे यह करना नहीं होता, तो मैं और सुंदर तरीके से जी सकता था। लेकिन मैं इसे बोझ की तरह नहीं देखता, इस पूरी प्रक्रिया में जबर्दस्त सुंदरता है, लेकिन मैं उसे आप जैसे किसी को सौंपना पसंद करता, जैसे मेरे गुरु ने मुझे सौंपा था।
अगर ध्यानलिंग नहीं होता, तो यह जीवन जरूरी नहीं होता। इस भूमिका को अपनाना संभव ही नहीं होता। मैं किसी पछतावे के साथ ऐसा नहीं कह रहा हूँ। मैंने जो किया है, उसका पूरा आनंद लिया है। व्यक्तिगत रूप से मैं इससे बड़े एडवेंचर के बारे में नहीं सोच सकता। काश मैं किसी तरह इसे शब्दों में व्यक्त कर सकता। मेरे शरीर की एक-एक कोशिका थक गई है – मैं बस यही कह सकता हूँ। और जब मैं ध्यानलिंग को देखता हूँ, तो सब सार्थक हो जाता है।