जीवन-रहस्य

ध्यानलिंग : जिसके लिए सद्‌गुरु ने सबकुछ दाँव पर लगा दिया था

24 जून को, हम ध्यानलिंग प्राण-प्रतिष्ठा की 22वीं वर्षगांठ मनाने जा रहे हैं। ध्यानलिंग की प्राण-प्रतिष्ठा होने के कुछ महीने बाद, अक्टूबर 1999 में सद्‌गुरु ने आश्रमवासियों के साथ बैठकर कुछ बहुत व्यक्तिगत बातें साझा की थीं, जिसमें उन्होंने बताया था कि प्राण-प्रतिष्ठा की प्रक्रिया का उनके लिए क्या अर्थ था और ध्यानलिंग में एक विश्वस्तरीय असर पैदा करने की संभावना क्यों है।
सद्गुरु, ध्यानलिंग प्राण-प्रतिष्ठा के कुछ समय बाद आश्रम के लोगों से मिलते हुए

सद्‌गुरु: ध्यानलिंग के निर्माण में बहुत से लोग शामिल रहे हैं। यह कई लोगों का सपना रहा है। ध्यानलिंग को संभव करने की इच्छा के इस पूरे पहलू ने मेरे जीवन को बहुत उलझा दिया है। अगर मुझे यह करना नहीं होता, तो मैं और सुंदर तरीके से जी सकता था। लेकिन मैं इसे बोझ की तरह नहीं देखता, इस पूरी प्रक्रिया में जबर्दस्त सुंदरता है, लेकिन मैं उसे आप जैसे किसी को सौंपना पसंद करता, जैसे मेरे गुरु ने मुझे सौंपा था।

अगर ध्यानलिंग नहीं होता, तो यह जीवन जरूरी नहीं होता। इस भूमिका को अपनाना संभव ही नहीं होता। मैं किसी पछतावे के साथ ऐसा नहीं कह रहा हूँ। मैंने जो किया है, उसका पूरा आनंद लिया है। व्यक्तिगत रूप से मैं इससे बड़े एडवेंचर के बारे में नहीं सोच सकता। काश मैं किसी तरह इसे शब्दों में व्यक्त कर सकता। मेरे शरीर की एक-एक कोशिका थक गई है – मैं बस यही कह सकता हूँ। और जब मैं ध्यानलिंग को देखता हूँ, तो सब सार्थक हो जाता है।

संबलपुर में कर्म यात्रा के दौरान सद्‌गुरु (वह स्थान जहाँ बिल्वा ध्यान किया करते थे)। सद्‌गुरु इस यात्रा पर ध्यानलिंग की प्राण-प्रतिष्ठा की तैयारी के लिए गए थे

जीवन के हर पहलू को एक लक्ष्य के लिए समर्पित करना

मुझे इसके लिए कई लोगों को एक साथ लाना था – कुछ सशरीर और कुछ अशरीर लोगों को – कई बार उनकी इच्छा से और कई बार अनिच्छा से। अगर मैं शुरू में ही लोगों को बता देता कि मैं क्या करना चाहता हूँ, तो मुझे यकीन है कि मेरे आस-पास कोई नहीं टिकता। लेकिन धीरे-धीरे वे इसमें डूबते चले गए। इच्छा और अनिच्छा लोगों की समझदारी, विकास और बोध के स्तर पर निर्भर करती है।

जब जीवन की समझ किसी की सीमित होती है, तो कुछ चीज़ें बहुत महत्वपूर्ण होती हैं। लेकिन जब उसकी समझ और बोध अगले स्तर पर चले जाते हैं, फिर दूसरी चीज़ें महत्वपूर्ण हो जाती हैं। जैसे-जैसे वह विकास करता है, उसकी सीमाएँ विस्तृत होती जाती हैं और वे असीम की तरफ बढ़ती जाती हैं। उनके जीवन में क्या महत्वपूर्ण है, यह बदलता रहता है।ध्यानलिंग समय और स्थान में सीमित नहीं है। चूँकि यह पूरी तरह प्राण-प्रतिष्ठित है, इसलिए अगर कोई वाकई इसे खुले रूप से अपनाता है, तो वह चाहे जहाँ भी रहे, यह उसके लिए उपलब्ध होता है।

ध्यानलिंग की प्राणप्रतिष्ठा प्रक्रिया ने कई लोगों के तार्किक आयाम को एक तरफ धकेल दिया और फिर उन लोगों ने बस उस स्थिति की अपार शक्ति को स्वीकार कर लिया। वरना, बहुत तार्किक तरीके से सोचने वाले कई लोग ध्यानलिंग के लिए कभी काम नहीं करते। अब भी बहुत सालों से मुझे जानने वाले कुछ लोग समझ नहीं सकते कि मैंने उसे क्यों बनाया।

Dhyanalinga is not within time and space. Since it is fully consecrated, if someone is really open to it, it is available to them wherever they are.

उसके लिए जीने-मरने को तैयार

उसे संभव बनाने की प्रक्रिया में, न सिर्फ मेरा शरीर बल्कि मेरी शख्सियत भी इतनी क्षत-विक्षत हो गई कि अधिकांश समय मुझे पूरी चेतना में उसे समेटकर रखना पड़ता था। बचपन से ही हम अपनी शख्सियत कई रूपों में बनाते हैं, मैंने बचपन से जो बनाया, वह एक तरह का व्यक्ति था। लेकिन जब मेरे साथ कुछ चीज़ें हुईं और पुरानी यादें बहुत तेज़ी से लौटकर आईं, तो मैं जो करना चाहता था, उसके लिए एक अलग तरह की शख्सियत बनाई। अब उसी शख्सियत को संभालने के लिए थोड़ी कोशिश करनी पड़ती है।

मैं अपनी शख्सियत में बहुत ज्यादा बदलाव नहीं चाहता था, ताकि मैं अपने आस-पास के लोगों के लिए अजनबी न बन जाऊँ और साथ ही यह काम भी जारी रहे। प्राण-प्रतिष्ठा की इस पूरी प्रक्रिया ने मुझे कई रूपों में आबाद किया है और साथ ही बर्बाद भी किया है। लेकिन मैं शिकायत नहीं करूँगा, क्योंकि मेरे हाथ-पैर अब भी काम कर रहे हैं। मैं इसकी भी उम्मीद नहीं कर रहा था। मैं किसी भी चीज़ के लिए तैयार था।

ध्यानलिंग वाकई कितनी पहुँच में है?

अमेरिका में कुछ लोग हैं, जो यहाँ आए भी नहीं हैं, लेकिन वे ध्यानलिंग के साथ इतने जुड़े हुए हैं कि उनके लिए यह लगभग वहीं होने जैसा है। यह बहुत सुंदर बात है कि ऐसा हो रहा है। ध्यानलिंग समय और स्थान में सीमित नहीं है। चूँकि यह पूरी तरह प्राण प्रतिष्ठित है, इसलिए अगर कोई वाकई इसे खुले रूप से अपनाता है, तो वह चाहे जहाँ भी रहे, यह उसके लिए उपलब्ध होता है। जिन लोगों ने कभी उसके बारे में सुना या जाना नहीं है, वे इसकी खोज में आएँगे, सिर्फ इसलिए क्योंकि यह एक गहन, अनुभव के स्तर पर आपको छूता है।