योगिक कहानियों में एक बहुत खूबसूरत कहानी है। आदियोगी शिव और पार्वती की शादी एक बडी घटना थी।
चूँकि पार्वती एक राजकुमारी थी तो आस पास के सभी जाने-माने व्यक्ति आमंत्रित थे — राजा-रानियाँ, देवी - देवता - सब एक से बढ़कर कर एक , हर एक महँगी परिधान में सुसज्जित ।
तब आता है दुल्हा, शिव - जटाधारी, उलझे बालों के साथ, सिर से पैर तक राख में लिपटे हुए, ताजा मारे हाथी की खून टपकती चमड़ी की शाल लिए हुए। और पूरी तरह नशे में चूर, बिलकुल परमानंद में । और उनके साथ चल रहे लोग सब विक्षिप्त और विकृत जीव, वे मानव रूप में भी नहीं थे और वे हर तरह का शोर कर रहे थे जो किसी की समझ नहीं आ रहा था।
मीना -पार्वती की माँ ने, इस दुल्हे को देखा और वह बेहोश हो गयी । पार्वती ने विनती करते हुए शिव से कहा — तुम जैसे भी हो मुझे फर्क नहीं पड़ता। मैं सिर्फ तुमे चाहती हम, तुम जैसे भी हो। पर सिर्फ मेरी माँ के लिए अपना थोड़ा सा मधुर रूप धारण कर लो।
शिव मान गए और उन्होंने एक खूबसूरत रूप धारण कर लिया, अच्छे से तैयार हो कर फिर से शादी में आए। और जब उन्होंने शिव को देखा उन्होंने कहा के वे सुंदरर्मूर्ति हैं। जिसका मतलब वे सबसे खुबसूरत इंसान थे जो उन्होंने अभी तक देखे थे। वे नो फीट लम्बे थे। वे कहते हैं जब शिव खड़े होते तो वे घोड़े के सिर के बराबर होते थे। जब वे दक्षिण की ओर आए तो उन्होंने कहा के वे सामान्य से दोगुने लम्बे थे, सामान्य ऊँचाई साढ़े चार फुट से पाँच फुट थी। वे लगभग नो फीट लम्बे थे, उनको देख कर हर कोई आश्चर्यचकित थे।
शिव शादी के लिए बैठ गए। भारत में, खासकर इस तरह की शादियों में, दुल्हे और दुल्हन के पूर्वजों के बारे में बहुत गर्व से बताया जाता है। वे अपने वंश के बारे में, वे कहाँ से आते हैं, उनका रक्त कितना शुद्ध है, और पूरा वंश-वृक्ष खंगाल देते थे।
दुल्हन के लिए, पार्वती के पिता हिमावत हिमालय पर्वत क्षेत्र के राजा थे। दुल्हन की वंशावली के बारे में काफी महान चीजें कही गयी। अब उन्होंने पूछा “दुल्हे के बार में बताया जाए।”
शिव चुपचाप बैठे रहे, शांत रहे। उन्होंने कुछ नहीं कहा। उनके साथ आए लोगों में से कोई भी समझने लायक भाषा नहीं बोल सकता था। वे सिर्फ अनाप-शनाप आवाजे निकाल रहे थे। दुल्हन के पिता अपमानित थे “ एक व्यक्ति बिना वंश के। ऐसे व्यक्ति को वे अपनी पुत्री कैसे दे सकते हैं ? कोई नहीं जानता वो कहाँ से आया है, उसके माता पिता कौन हैं , उसकी वंशावली क्या है। ऐसे व्यक्ति को मैं अपनी पुत्री कैसे दे सकता हुँ।” वे गुस्से से खड़े हुए।
तब ऋषि नारद, जो शादी समारोह में मेहमान थे, अपने एकतारे सहित आगे बड़े। उन्होंने एकतारे की तार को छेड़ा, “ तंगगग.., तंगगग.., तंगगग.. ”
राजा और भी नाराज़ हो गए “ अब तुम यह एकतारा किसलिए बजा रहे हो? “
नारद ने कहा, “ यही इनका वंश है। इनकी कोई माता नहीं , कोई पिता नहीं ”
फिर इनका उद्गम क्या है।
“तंगगग… यही इनका उद्गम है, गूंज। इनका जन्म गूंज से ही हुआ है। इनका कोई कुल नहीं, कोई पूर्वज नहीं, कोई वंशावली नहीं है। वे स्वयंभू हैं — स्वनिर्मित, बिना वंश का जीव।
राजा और बौखला गया , पर शादी हो गयी।
यह कहानी हमें याद दिलाती है के जब हम आदियोगी की बात करते हैं, हम किसी सज्जन, सुलझे हुए व्यक्ति की बात नहीं कर रहे, पर एक मौलिक रूप, जो जीवन के साथ सम्पूर्ण रूप से एक है, की बात कर रहे हैं। वे शुद्ध चेतना, पूरी तरह अभिमान रहित, किसी भी चीज़ को कभी ना दोहराने वाला , सहज, निर्माण कुशल, निरंतर रचनात्मक। वे बस जीवन हैं।
यह आध्यात्मिक क्रिया की मूलभूत जरूरत है। अगर आप यहाँ यादों, विचारों और आस्थों की गठरी, यानी एक मेमोरी स्टिक , जो आपने बाहर से एकत्र की है , तब आप मनोवैज्ञानिक क्रिया के पूरी तरह गुलाम बन चुके हैं। परंतु अगर आप यहाँ जीवन के रूप में बैठते हैं तो आप अस्तित्व संबंधी क्रिया का एक हिस्सा होंगे। अगर आप चाहते हैं तो आप पूरे ब्रह्माण्ड को पा सकते हैं।
जीवन ने हर चीज आप के लिए खुली रखी है। प्रकृति के किसी के लिए भी कुछ रोका नहीं है। कहते हैं “ दरवाजा खटखटाओ, वो खुलेगा। “आप को तो खटखटाना भी नहीं है। क्योंकि कोई असल दरवाजा है ही नहीं। अगर आप अपने जीवन की यादों और दोहराव से दूरी बनाना जानते हैं, तो आप जीवन के दूसरे आयामों तक पहुंच सकते हैं।आत्मज्ञान का रास्ता पर्याप्त खुला हुआ है।