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नीलकंठ की कथा

आदियोगी शिव के कई नामों में से एक नीलकंठ है, या जिसका कंठ नीले रंग का हो। सद्गुरु शिव के नीले कंठ के प्रतीक को समझा रहे हैं।

प्रश्न: शिव के नीले कंठ का प्रतीक क्या है?

सद्गुरु: यौगिक परंपरा में एक कहानी है। देवताओं और दानवों के बीच लगातार लड़ाई चल रही था। जब लड़ाइयाँ बार-बार होने लगीं और कई मारे जाने लगे, तो उन्होंने समुद्र के अंदर छिपे जीवन के रस या अमृत को बाहर लाने, औेर उसे अपने बीच बाँट लेने का फैसला किया ताकि वे दोनों अमर हो जाएँ और वे खुशी-खुशी लड़ाई कर सकें। युद्ध इतना भयानक इसलिए है क्योंकि उसमें बहुत मौतें होती हैं। अगर मौत से निपट लिया जाए, तो युद्ध एक शानदार चीज़ है।

उन्होंने आपस में हाथ मिलाते हुए समुद्र का मंथन करने का फैसला किया। कहानी यह है कि उन्होंने मेरु नामक एक पर्वतचोटी को बाहर निकाला और समुद्र को मथने के लिए एक विशाल साँप को रस्सी की तरह इस्तेमाल किया। जब उन्होंने मंथन शुरू किया, तो अमृत या जीवन रस की बजाय, समुद्र की गहराई से एक घातक ज़हर निकला। उसे हलाहल कहते थे। यह घातक ज़हर बहुत ज्यादा मात्रा में था। सभी देवता डर गए कि अगर इतना ज़हर बाहर निकला तो पूरी दुनिया नष्ट हो जाएगी। और इसमें कोई कुछ नहीं कर सकता था।

हमेशा की तरह, जब कोई भी कुछ करने को तैयार नहीं था, तो उन्हें लगा कि शिव ही इसके लिए सही होंगे। उन्होंने शिव को बुलाया और उन्हें दिखाया कि किस मात्रा में ज़हर निकल रहा है। ‘अगर यह फैला तो जीवन नष्ट हो जाएगा। आपको कुछ करना होगा।’ हमेशा की तरह, अपनी चिंता किए बिना, वह उस ज़हर को पी गए। उनकी पत्नी पार्वती ने यह देखा तो जाकर उनकी गर्दन पकड़ ली, तो वह उनके गले तक ही रुक गया और उनका गला नीला हो गया।

यह एक बहुत महत्वपूर्ण कहानी है। यह हर इंसान के लिए सच है। अगर आप किसी इंसान की गहराई में जाएँ, तो सिर्फ एक चीज़ होती है, लगातार बढ़ता जीवन। अगर वे अपनी पहचान उससे जोड़ लेते हैं, तो उनका मन और भावनाएँ भी उसी तरह काम करेंगी। लेकिन अगर आप सतही तौर पर उन्हें छूते हैं, तो यह एक स्त्री है, यह एक पुरुष है, यह एक अमेरिकी है, यह एक भारतीय है, और ऐसी कई सारी चीज़ें। यह भेदभाव ज़हर है। जब उन्होंने सतह पर मंथन किया, तो दुनिया का ज़हर बाहर आया। हर कोई उस ज़हर से भाग रहा था क्योंकि कोई भी ज़हर को नहीं छूना चाहता।

शिव ने दुनिया का ज़हर पी लिया और वह उनके गले पर ही रुक गया। अगर वह अंदर चला जाता, तो उनके अंदर ज़हर भर जाता। लेकिन वह उनके गले पर ही रुक गया, ताकि वह जब चाहें, उसे बाहर थूक सकें। अगर वह आपके गले में हो, तो आप उसे थूक सकते हैं। अगर वह आपके शरीर में घुस जाए, तो आप उसे बाहर नहीं निकाल सकते। फ़िलहाल आपकी राष्ट्रीयता, जेंडर, परिवार, जेनेटिक पहचानें, नस्ली पहचानें, धर्म, आपके गले तक नहीं रुके हैं। वे आपके शरीर की हर कोशिका तक पहुँच गए हैं। उसे मथकर ऊपर लाने की जरूरत है, ताकि आप उसे बाहर थूक सकें और यहाँ सिर्फ जीवन के एक अंश के रूप में जी सकें।

यही शिव के नीलकंठ होने का प्रतीक है। उन्होंने दुनिया का सारा ज़हर अपने गले में भर लिया, और जब भी बाहर निकालने की जरूरत हो, तब वे उसे थूकने के लिए तैयार थे। अगर वह उनके शरीर में चला जाता, फिर उसे बाहर निकालने का कोई तरीका नहीं होता। सारी आध्यात्मिक प्रक्रिया एक तरह से मंथन की प्रक्रिया है ताकि आपके सभी पक्षपात उभर आएँ और एक दिन हम आपको उसे थूकने के लिए कह सकें। अगर वह बहुत गहराई में होगा, तो उसे बाहर कैसे निकालेंगे? अगर मैं आपके किसी पूर्वाग्रह को बाहर निकालने की कोशिश करूँगा, तो आपको ऐसा अनुभव होगा जैसे आपका जीवन बाहर निकाला जा रहा है। अगर मैं आपके लिंग, बच्चों, माता-पिता या देश के साथ आपकी पहचानों को खत्म करने की कोशिश करूँगा, तो ऐसा लगेगा मानो आपका जीवन खत्म हो रहा है। नहीं, सिर्फ भेदभाव का ज़हर खत्म किया जा रहा है। इसलिए अब भेदभाव का ज़हर थूकने का समय है।


संपादक की टिप्पणी: शिव के अलग-अलग रूपों से चकित हैं? शिव के अलग-अलग रूपों और उनके प्रतीकों के बारे में पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें

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