logo
logo

शिव के सर्वोत्तम होने के 5 कारण

शिव के प्रशंसक बालक, युवा, गृहस्थ अथवा संन्यासी सभी हैं। क्या है जो शिव को इतना आकर्षक बनाता है? यहाँ पाँच कारण प्रस्तुत हैं।

शिव के सर्वोत्तम होने के 5 कारण


शिव के प्रशंसक बालक, युवा, गृहस्थ अथवा संन्यासी सभी हैं। क्या है जो शिव को इतना आकर्षक बनाता है? यहाँ पाँच कारण प्रस्तुत हैं।

#1 वे सर्व-समावेशी हैं। वे किसी के भी साथ खुश रह सकते हैं।


सद्गुरू: शिव की आराधना केवल देवता ही नहीं करते हैं। असुर, यक्ष और भी कई तरह के जीव उनको पूजते हैं। भूत, प्रेत, यक्ष, पिशाच, राक्षस- वे सभी जिनको सबने त्याग दिया है- शिव ने उन्हें स्वीकार किया है।

ऐसी कथा है कि-जब उनका विवाह हुआ- तब हर कोई जो कुछ भी था, हर कोई जो कैसा भी था, हर कोई जो कुछ भी नहीं था- वे सब शामिल हुए। सभी देवता और दिव्य जन, सभी असुर, राक्षस, विकृत गण, भूत, प्रेत- सभी आए। आमतौर पर ये लोग एक दूसरे के साथ ठीक से नहीं रह सकते। लेकिन शिव के विवाह में, हर कोई वहाँ था। क्योंकि वे” पशुपति” थे, पाशविक प्रवृत्तियों के स्वामी, सभी पशु आए। और सर्पों का आना तो तय था, इसलिए वे आए। पक्षी और कीड़े- मकोड़े इससे वंचित रहना नहीं चाहते थे, इसलिए वे भी अतिथि बने। हर प्राणी उनके विवाह में सम्मिलत हुए।

यह कथा ये बताने की कोशिश कर रही है कि जब हम इन प्राणियों की बात करते हैं तो हम किसी सभ्य, सुसंस्कृत मनुष्य की बात नहीं कर रहे हैं बल्कि एक आदि स्वरूप जो जीवन के साथ पूर्ण एकत्व की स्थिति में विराजमान हैं। वे विशुद्ध चेतना हैं, बिना किसी छल के, पुनरावृत्ति विहीन, हमेशा तत्पर, सर्वथा मौलिक, सतत रचयिता। वे केवल जीवन हैं।

#2 वे परम पुरुष हैं पर स्त्रित्व से भी जुड़े हैं


सद्गुरु: आमतौर पर, शिव पौरुष का प्रतीक हैं, पर शिव के अर्धनारीश्वर रूप में आप देखेंगे कि, उनका आधा भाग पूर्ण विकसित स्त्री का है। मैं इसकी कथा सुनाता हूँ। शिव उन्मत्त स्थिति में थे इसी कारण पार्वती उनकी ओर आकर्षित हुईं। जब पार्वती अनेक उपाय करके और अनेक मदद लेकर उन्हें प्रसन्न कर पाईं तब उन्होंने विवाह किया। विवाह हो जाने पर, स्वाभाविक ही, शिव अपने अनुभव बताना चाहते थे। पार्वती बोलीं,” आप अपने भीतर जिस अवस्था में रहते हैं, मैं भी उसे अनुभव करना चाहती हूँ। मैं क्या करूँ? मैं किसी भी प्रकार की तपस्या करने के लिए तैयार हूँ। शिव मुस्काए और बोले,” तुम्हें कोई महान तप करने की जरूरत नहीं है। तुम बस आकर मेरी गोद में बैठो। पार्वती बिना किसी प्रतिरोध के उनके पास आकर उनकी बाईं गोद में बैठ गईं। वे इतनी इच्छुक थीं कि उन्होंने स्वयं को पूरी तरह उनको समर्पित कर दिया। शिव ने उन्हें अपने भीतर खींच लिया और वो उनके साथ एक हो गईं।

आपको ये समझने की जरूरत है कि यदि उन्होंने उन्हें अपने शरीर में स्थान दिया होता तो, उन्हें अपने आधे शरीर का त्याग करना पड़ता, इसलिए उन्होंने अपने आधे शरीर का त्याग कर उन्हें स्वयं में शामिल कर लिया। अर्धनारीश्वर की ये कथा है। ये वास्तव में यह बताने की कोशिश कर रहा है कि आपमें स्त्रीत्व एवं पुरुषत्व समान रूप से विभाजित हैं। और जब उन्होंने उन्हें स्वयं में मिला लिया, वे परमानंद की स्थिति में पहुँच गए। ये बताया जा रहा है कि जब आंतरिक स्त्रीत्व एवं पौरूष का मिलन होता है तब आज एक चिर परमानंद की स्थिति में पहुँच जाते हैं। अगर आप इसे बाहरी तौर पर करते हैं तो ये नहीं टिकता है और इसके साथ आने वाली परेशानियाँ एक लगातार चलने वाला नाटक बन जाती हैं!

#3 वे नृत्य-मंच को ध्वस्त करते हैं


सद्गुरु: नटेश या नटराज, नृत्य के देवता के रूप में शिव, शिव का एक अत्यंत महत्वपूर्ण रूप है। जब मैंने स्वीटजरलैंड में सर्न का दौरा किया, जो कि एक भौतिक प्रयोगशाला है जहाँ अणु- विघटन का कार्य होता है, वहाँ मैंने द्वार के सामने नटराज की प्रतिमा देखी, क्योंकि उन्होंने ये जान लिया था कि वे जो कुछ कर रहे हैं उससे मिलता जुलता मानव संस्कृति में कुछ और है ही नहीं। यह सृजन की जीवंतता और सृजन के नृत्य को प्रस्तुत करता है, जो शाश्वत शांति से अपने आप पैदा हुआ था।

#4 वे सदा प्रसन्न रहते हैं


सद्गुरू: शिव पियक्कड और साथ ही तपस्वी एक साथ दोनो ही रूपों में दर्शाए जाते हैं। वे एक योगी हैं- अगर वो ध्यान में बैठते हैं तो वे हिलते नहीं हैं। साथ ही वो हमेशा नशे में उन्मत्त रहते हैं। इसका ये मतलब नहीं है कि वो किसी शराबखाने में जाते हैं! योग विज्ञान आपको ये संभावना देता है कि शांत रहते हुए भी सर्वोच्च आनंद की स्थिति में रह सकते हैं। योगी आनंद के विरुद्ध नहीं हैं। वे कम आनंद के साथ संतुष्ट रहना नहीं चाहते हैं। वे लोभी हैं। वे जानते हैं कि अगर आप वाइन का एक छोटा गिलास पियेंगे तो आपको थोड़ा सुरूर आयेगा और फिर अगले दिन सिरदर्द और भी बहुत कुछ होगा। आप नशे का आनंद तभी ले सकते हैं जब नशा करके भी सौ प्रतिशत स्थिर और सजग रह सकें। और प्रकृति आपको ये संभावना देती है।

एक इजरायली वैज्ञानिक ने कई सालों तक मानव मस्तिष्क के एक खास हिस्से का अध्ययन किया और उसने पाया कि मस्तिष्क में लाखों मादकता ग्रहण करने वाले तंतु हैं! न्यूरोलॉजिस्ट लोगों ने पाया है कि शरीर के पास ऐसे मादक रसायन बनाने की क्षमता है जो इन तंतुओं को संतुष्ट कर सके। जब उन्होंने इस रसायन को जाना जो कि इन तंतुओं तक जाते हैं, तो वैज्ञानिक इसे कोई अनुकूल नाम देना चाहते थे। कई ग्रंथों की पड़ताल करने पर, उसे आश्चर्य हुआ जब उन्हों ने पाया कि केवल भारतीय ग्रंथ ही ऐसे हैं जो परमानंद की बात करते हैं। इसलिए उसने इस रसायन का नाम” आनंदमाइड” रखा।

इसलिए आपको केवल थोड़ा सा आनंदमाइड उत्पन्न करना है क्योंकि आपके भीतर ही अफीम का पूरा बागान मौजूद है। अगर आप सही तरीके से इसे तैयार करें और क्रियाशील रखे तो आप हर समय नशे में रह सकते हैं।

#5 सबसे बड़े नियम विरोधी



सद्गुरु: जब आप “शिव” कहते हैं, ये कोई धर्म नहीं है। आज दुनिया धर्म के आधार पर बंटी हुई है। इसलिए अगर आप कुछ कहते हैं तो लगता है कि आप किसी धर्म का अनुसरण कर रहे हैं। यह कोई धर्म नहीं है, यह आंतरिक विकास का विज्ञान है। यह परे जाने और मुक्त होने के बारे में है । इससे फर्क नहीं पड़ता कि आपकी वंशावली क्या है, आपके पिता कौन थे, या आप किन सीमाओं में जन्में या बाद में बंध गये। अगर आप प्रयत्न करने को तैयार हैं तो आप इन सबके परे जा सकते हैं।

प्रकृति ने मनुष्यों के लिए कुछ नियम निर्धारित किये हैं- उन्हें उसके भीतर ही रहना है। भौतिक प्रकृति के नियमों को तोड़ना आध्यात्मिक प्रक्रिया है। इस दृष्टि से, हम लोग नियमविरोधी हैं, और शिव सबसे बड़े नियम विरोधी हैं। इसलिए आप शिव की आराधना नहीं कर सकते, पर आप उनकी टोली में शामिल हो सकते हैं।

ये महाशिवरात्रि न केवल जागृति की रात बने, बल्कि ये आपके लिए प्रबल जीवंतता एवं सजगता की एक रात्रि बने। यह मेरी इच्छा और मेरा आशीर्वाद है कि आप इस दिन प्रकृति द्वारा दिये गए इस अद्भुत उपहार का लाभ उठाएँ। मैं आशा करता हूँ कि आप सब इस प्रवाह की सवारी करें और जिन्हें हम “शिव” कहते हैं, उनके सौंदर्य एवं आनंद की अनुभूति करें।

    Share

Related Tags

शिव तत्व

Get latest blogs on Shiva

Related Content

विष्णु भगवान की कथाएं