संस्कृति

शिव के नटराज रूप का क्या है रहस्य?

नृत्य का योग से क्या संबंध है? शिव को नटराज या ‘नृत्य का देवता’ क्यों कहा जाता है और उनके इस चित्रण के पीछे क्या रहस्य है? इस लेख में सद्‌गुरु ऐसी बहुत सी चीज़ों पर रोशनी डाल रहे हैं।

सद्‌गुरु: प्रकृति में मौजूद पाँच तत्वों के लिए दक्षिण भारत में पाँच लिंगों का निर्माण किया गया था। ‘आकाश’ तत्व के लिए जो लिंग ‘चिदम्बरम’[1] में है, उसकी प्राण-प्रतिष्ठा पतंजलि ने की थी। मंदिर परिसर एक विशाल और शानदार कृति है जो पत्थर से तराशी गई है और 40 एकड़ में फैली हुई है। जब पतंजलि ने मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा की, तो उन्होंने लोगों का एक दल तैयार किया, जिन्हें साधना और अनुशासन का एक स्तर बनाए रखना था और एक निश्चित तरीके से मंदिर में दैनिक अनुष्ठान करने थे। उन परिवारों की संख्या कई गुना बढ़ गई और उन्होंने मंदिर को जीवंत बनाए रखा।

पतंजलि ने योग सूत्र लिखे और उन्हें आधुनिक योग का जनक माना जाता है। उनके पास ऐसी बुद्धि थी कि उनके सामने दुनिया के महान वैज्ञानिक भी किंडरगार्टन के बच्चे नजर आते। न सिर्फ एक योगी के रूप में बल्कि एक इंसान के रूप में भी जिस तरह की क्षमताएं उनमें थीं, और इतनी सारी चीज़ों पर उनकी जो महारत थी, वह बहुत अविश्वसनीय है। लेकिन वह ऐसे ही थे। इस मंदिर का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि उसमें शिव नृत्यरत हैं, अपने नटराज रूप में हैं।

[] तमिल नाडू का मंदिरों का शहर

भारतीय देवता नृत्य क्यों करते हैं?

शिव नटराज – नर्तकों के राजा हैं। सिर्फ भारत ऐसी जगह है, जहाँ हमारे देवताओं को नाचना ज़रूर आना चाहिए। अगर वे नाच नहीं सकते, तो वे देवता नहीं हो सकते। ऐसा इसलिए है क्योंकि इस सृष्टि के सृजन की घटना को आप जो सबसे नज़दीकी उपमा दे सकते हैं, वह यह कि यह एक नृत्य की तरह है। आज, आधुनिक भौतिक विज्ञानियों का मानना है कि ऐसा लगता है मानो हर चीज़ नाच रही हो। ऐसा लगता है कि इसमें कोई तार्किक सामंजस्य नहीं है, लेकिन अगर आप इसे बहुत करीब से देखेंगे, तो पूरी प्रक्रिया में एक बहुत गहरी प्रणाली दिखेगी।

जब तक इस नृत्य के दर्शक उस सामंजस्य को अपने भीतर प्राप्त नहीं कर लेते, वे वास्तव में नृत्य का आनंद नहीं उठा सकते।

उस जगह तक पहुँचने में सालों का प्रशिक्षण और अभ्यास लगता है, जहाँ आप अपने हाथ-पैरों को हर उस चीज के साथ सामंजस्य में ला सकते हैं, जिसे आप दिखाना चाहते हैं। और जब तक इस नृत्य के दर्शक उस सामंजस्य को अपने भीतर प्राप्त नहीं कर लेते, वे वास्तव में नृत्य का आनंद नहीं उठा सकते। अगर आप एक शास्त्रीय नृत्य देखें, तो भले ही आप कहानी को जानते या समझते नहीं हैं, लेकिन सिर्फ उसका ज्यामितीय सौंदर्य ही आपको कहीं छू जाएगा। यही चीज़ संगीत पर भी लागू होती है, एक अलग आयाम में।

भौतिक-विज्ञानियों ने इस बात पर गौर किया है। शुरू में उन्होंने कहा, ‘सब कुछ आकस्मिक और संयोग है।’ लेकिन अब नज़दीकी अवलोकन से, उन्होंने पाया कि जो कुछ आकस्मिक और संयोग लगता है, वह वास्तव में किसी न किसी रूप में सुसंगत है। हर चीज़ में किसी तरह का सामंजस्य है, जिसका हम अब तक पता नहीं लगा पाए हैं।

योग और नृत्य में क्या समान है?

योग तभी संभव है, जब व्यक्तिगत जीवन और सृष्टि की व्यापक अभिव्यक्ति में तालमेल हो। अगर तालमेल न होता, तो आप नहीं होते। अगर कोई तालमेल नहीं होगा, तो योग की कोई संभावना नहीं है। चूंकि सृष्टि एक नृत्य है, इसलिए हमने कहा, ‘ईश्वर एक नर्तक है। वरना, ईश्वर इस नृत्य को कैसे संभव कर सकता था?’ जब हम कहते हैं कि शिव एक ब्रह्मांडीय नर्तक हैं, तो हम ब्रह्मांड में किसी शख्स के नृत्य की बात नहीं करते, हम ब्रह्मांड के नृत्य की बात करते हैं। इसीलिए नटराज के चारों ओर एक गोला या वृत्त होता है।

ब्रहांडीय नर्तक के रूप में शिव

वृत्त हमेशा ब्रह्मांड का प्रतीक होता है क्योंकि किसी चीज़ के गतिशील होने पर अस्तित्व में उभरने वाला सबसे कुदरती आकार गोलाकार है। पृथ्वी, चंद्रमा, सूर्य, सब गोल हैं। किसी निश्चित चरण में होने पर उसका आकार थोड़ा बिगड़कर अंडाकार हो सकता है, लेकिन आम तौर पर कोई भी चीज़ जो गतिशील है, वह कुदरती तौर पर गोलाकार है क्योंकि गोल आकार सबसे कम प्रतिरोध वाला आकार होता है। इसीलिए नटराज के चारों ओर का गोल घेरा ब्रह्मांड का प्रतीक है। उन्हें हमेशा एक ब्रह्मांडीय नर्तक माना गया है।

ब्रह्मांड एक नृत्य है और उस नृत्य का निर्देशन एक ख़ास तरह की बुद्धिमत्ता करती है।

ब्रह्मांड एक नृत्य है और उस नृत्य का निर्देशन एक ख़ास तरह की बुद्धिमत्ता करती है। हम उस बुद्धिमत्ता को व्यक्ति का रूप देना चाहते हैं क्योंकि हम ख़ुद एक व्यक्ति हैं और अपने बोध में हम हर चीज़ को एक अलग जीवन-रूप की तरह समझते हैं। लेकिन यह मत मान लीजिए कि ऊपर एक आदमी सारे ब्रह्मांड में नाच रहा है।

नर्तक के लिए सबसे बड़ा सम्मान

पूरा ब्रह्मांड नृत्य में है। इसे देखने के लिए पर्याप्त सुबूत हैं। जब हम कहते हैं कि ईश्वर इस ब्रह्मांड का स्रोत है, तो स्वाभाविक रूप से वह नर्तक ही होगा। शिव नटराज हैं, सबसे श्रेष्ठ नर्तक और चिदम्बरम मंदिर उनका घर है। कहा जाता है कि शिव ने खुद आकर वहाँ नृत्य किया था। इसके कारण, चिदम्बरम मंदिर में नृत्य करना किसी भी नर्तक के लिए सबसे बड़ा सम्मान होता है।