21 जून 2022 को सद्गुरु ने लंदन से कोयंबटूर के ईशा योग केंद्र तक अपनी 100 दिनों की मोटरसाइकिल यात्रा को पूरा कर लिया। वह 27 देशों से गुज़रे, 600 से ज्यादा कार्यक्रमों में शामिल हुए और अनेक सोशल मीडिया मंचों के जरिए ऑनलाइन माध्यम से लगभग 3.9 अरब लोगों से जुड़े। देखते हैं कि सद्गुरु ने मिट्टी बचाओ यात्रा के बारे में क्या कहा और आने वाले महीनों में क्या होने वाला है। साथ ही वह जीवन के बारे में कुछ बहुत मूलभूत, आँखें खोलने वाली सच्चाइयां भी उजागर कर रहे हैं।
सद्गुरु: आज अंतरराष्ट्रीय योग दिवस है। योग का अर्थ है मेल। मेल कोई आविष्कार, सिद्धांत या विचारधारा नहीं है – यह जीवन की प्रकृति है। आप या तो उसके साथ तालमेल में हैं या आप उल्टा बहते हैं। जो लोग उल्टा बहते हैं, उनकी मांसपेशियां मज़बूत और पुष्ट तो हो जाएंगी, लेकिन वे कहीं नहीं पहुंच पाएंगे। इसका अर्थ है कि जीवन चमकदार तरीक़े से आगे नहीं बढ़ेगा। ज्यादा से ज्यादा वे दुनिया में थोड़ा-बहुत चमकेंगे, लेकिन जीवन नहीं चमकेगा।
जीवन के चमकने के लिए, उसे समावेशी होना होगा। जीवन ऐसे ही बना है। जब मैंने कहा कि योग का अर्थ है मेल में होना, तो यह मेरी ईजाद की हुई कोई चीज़ नहीं है – मैंने बस उसके बारे में बताया है। अगर मैं कहता हूँ कि हवा ठंडी और शीतल है, तो मैंने उसे नहीं बनाया – मैं बस उसके बारे में कह रहा हूँ। इसी तरह, मिट्टी बचाओ मेरा विचार नहीं है। यह जरूरी है, इसलिए हम इसे कर रहे हैं।
मुझे बुखारेस्ट जाने के दौरान हुई घटना याद आ गई। मुझे एक टेलीविजन इंटरव्यू के लिए शाम 7 बजे वहाँ पहुंचना था। वे तैयार थे और होटल में ढेर सारी चीज़ों की व्यवस्था कर रखी थी। लेकिन मौसम खराब हो गया और सड़कें खराब थीं, इसलिए जो मोटरसाइकिल यात्रा लगभग 5 ½ घंटे की होनी थी, उसमें 9 1/2 घंटे से ज्यादा समय लग गया। हम 11:15 पर वहाँ पहुँचे। मुझे लगा कि इंटरव्यू नहीं होगा। लेकिन एंकर के साथ पूरा क्रू 7 बजे से 11:15 बजे तक इंतज़ार कर रहा था।
मैं मोटरसाइकिल से उतरकर सीधे कैमरे के सामने चला गया। जब इंटरव्यू पूरा हुआ, तो लगभग 1 बज चुके थे। फिर मैं एंकर से बात कर रहा था, वह बोला, ‘सद्गुरु, इस उम्र में आप कैसे यह कर लेते हैं? नौ घंटे मोटरसाइकिल चलाकर आप इंटरव्यू देने आ जाते हैं और ये सारी चीज़ें बोलते हैं। अब आप यहां बैठे हैं और ठीक-ठाक हैं।’ उसने ‘इस उम्र में’ शब्द तीन बार बोला और मुझे वह पसंद नहीं आया।
मैंने कहा, ‘देखिए, मैंने अपना जीवन बहुत तीव्रता से जिया है। मुझे बूढ़ा होने का समय नहीं मिला।’ बूढ़े होने के लिए, आपको ढेर सारा समय चाहिए, आपको बैठकर बूढ़ा होना होता है। मेरे आस-पास बहुत से लोग हैं, जो करीब 28 साल पहले मेरे पास आए थे, जब वे 18-20 साल के थे। अब वे लगभग चालीस साल के हैं, कुछ पचास के आस-पास हैं, वे अब भी उसी तरह दौड़-भाग करते रहते हैं। मैं अब भी उन्हें बॉयज़ बुलाता हूँ और वे अब भी लड़कों की तरह बर्ताव करते हैं क्योंकि मैंने यह पक्का किया कि उन्हें बैठकर बूढ़े होने का समय न मिले।
अगर आपके पास समय है, तो इसका मतलब है कि आप जीवित नहीं हैं। जो जीते जी मरा हुआ है, सिर्फ उसी के पास समय होता है। वरना, जीवन आपको व्यस्त रखेगा – जरूरी नहीं कि कार्य में, बल्कि ध्यान में।
मोटरसाइकिल चलाना ऐसी चीज़ है, जो एक-एक पल का ध्यान मांगती है। जब आप एक निश्चित रफ्तार में चला रहे होते हैं, तो एक क्षण के लिए भी आपका ध्यान भटकने पर आप बचेंगे नहीं। चाहे आप बहुत ज्यादा ध्यान देते हों, फिर भी कई बार ऐसा हो नहीं पाता है। ध्यान का संबंध किसी खास चीज़ से नहीं है। अगर आप सिर्फ कुछ चीज़ों या कुछ लोगों पर ध्यान दे सकते हैं, तो यह पक्षपाती ध्यान समावेशी नहीं हो पाने की वजह से आता है। ध्यान रोशनी की तरह है। वह हर चीज़ को रोशन कर देता है।
ध्यान की प्रकृति पक्षपाती नहीं है, लेकिन जैसे ही आप उसे पक्षपाती बनाते हैं, यानी आप सिर्फ उन्हीं चीज़ों पर ध्यान देते हैं, जो आपकी नज़र में महत्वपूर्ण हैं, या आपको अपनी लगती हैं, तो फिर जीवन आपको छोड़कर निकल जाएगा। आप कई चीज़ें कर सकते हैं, लेकिन जीवन आगे निकल जाएगा। आप भले ही अपने शरीर का स्वाद जान लें, आप भले ही अपने विचारों और भावनाओं का स्वाद जान लें, आप भले ही अपने आस-पास की चीज़ों का स्वाद जान लें, लेकिन आप जीवन का स्वाद नहीं जान पाएंगे।
और जीवन इकलौती चीज़ है जो आपके पास है। बाकी हर चीज़ आपके दिमाग की बकवास है। अगर आप इस सारी बकवास को बाहर रखें, तो जीवन स्पंदित होगा। जब आपका जीवन स्पंदित होता है, फिर यह एक जीवंत ब्रह्मांड होता है।
लोग मुझसे पूछते रहते हैं, ‘सद्गुरु, आप यह ऊर्जा कहाँ से लाते हैं?’
मैंने कहा, ‘आप खुद को वंचित क्यों कर रहे हैं? पूरा ब्रह्मांड ऊर्जा है। आप अपने ही पिंजड़े में क्यों बंद हैं?’ अगर आपका जीवन एक खुला रास्ता हो, तो ऊर्जा की कोई कमी नहीं होगी। लेकिन अगर आप खुद को एक कंक्रीट की दीवार बना लेते हैं, फिर सब कुछ पीड़ादायक होता है, सब कुछ परेशानी होती है, सब कुछ समस्या होती है। आपको खुश करने के लिए, हमें पूरी धरती को खोदना पड़ेगा। इसीलिए सेव सॉयल है।
अगर आप अपने स्वभाव से खुश और आनंदित रहना जानते, तो मिट्टी को बचाने की जरूरत कहाँ होती? अगर मनुष्य अपने स्वभाव से आनंदित होता, तो वह गौर करता कि क्या हो रहा है। लेकिन कोई कुछ भी गौर नहीं करता। हर कोई मुझसे पूछ रहा है, ‘सद्गुरु, आप मृदा वैज्ञानिक कैसे बन गए? आप इकोलॉजिस्ट कैसे बन गए?’
मैं मृदा वैज्ञानिक नहीं हूँ, मैं इकोलॉजिस्ट नहीं हूँ, मैं पर्यावरणविद या कार्यकर्ता भी नहीं हूँ। मैं इस धरती पर एक कीड़े की तरह हूँ। मैं लगभग साढ़े छह दशक से धरती पर रेंग रहा हूँ – मैं कैसे नहीं जानूंगा कि क्या हो रहा है? अब लोग कह सकते हैं, ‘अरे हम भी यहाँ रहे हैं।’ अधिकांश समय आप इस दुनिया में नहीं होते – आपकी अपनी दुनिया है। आपने असली दुनिया को नहीं छुआ है, जो जीवन से स्पंदित हो रही है, इसलिए आप अपनी मामूली सी दुनिया बना लेते हैं।
आपकी अपनी दुनिया एक बेवकूफाना सोच है। आप उसे दोस्त, देश, समुदाय, दोस्तों का समूह, क्लब या समाज कह लीजिए। लेकिन वह एक मूर्खतापूर्ण छोटी सी दुनिया है क्योंकि आपने उसे टुकड़ों से बनाया है। जीवन ऐसा नहीं है। जीवन अस्तित्व की भव्यता है। जाकर कोई ऐसी चीज़ देखिए जो जीवित है और उभर रही है, वह कैसे जीवन से स्पंदित हो रही है। अगर यह अनुभव आपके जीवन में नहीं आता, तो आपने जीवन नहीं जिया है।
इसके लिए ज़रूरी है जीवन के प्रति वासना। मैं इस शब्द को जानबूझकर इस्तेमाल कर रहा हूँ क्योंकि वासना, प्यार से ज्यादा बाध्यकारी होती है, वासना इच्छा से ज्यादा बाध्यकारी होती है। आपको हार्मोन से मिलने वाली वासना की जरूरत नहीं है, बस जीवन के लिए वासना की ज़रूरत है। फिर आपका ध्यान सूर्य की तरह चमकेगा। चाहे आप जगे हों या सोए, वह सक्रिय रहता है। अगर आपका ध्यान हमेशा केंद्रित रहे, तो कोई भी चीज़ पहुँच से बाहर नहीं है। कोई चीज़ नहीं है जिसका अनुभव नहीं किया जा सकता। कोई चीज़ नहीं है, जिसे किया नहीं जा सकता। यह सवाल है सिर्फ इच्छा का और इस बात का कि आप उसे करने के लिए कितने इच्छुक हैं।
खतरनाक यात्रा पूरी हो चुकी है। लेकिन असली मेहनत अब शुरू होती है। योग केंद्र में मेरे पास सिर्फ चार दिन हैं, फिर हम यूके, अमेरिका, कैरिबियाई देश और दक्षिण अफ्रीका जा रहे हैं क्योंकि ये सभी देश इसे आगे बढ़ाने के लिए तैयार हैं। लेकिन इन दिनों, वे एक शर्त रख रहे हैं, ‘अगर आप आएंगे, तो हम हस्ताक्षर करके इसे आगे बढ़ाएंगे। अगर आप नहीं आते, तो हम इंतज़ार करेंगे।’ मेरे ख्याल से अगले डेढ़ महीने मैं 20 से ज्यादा देशों की यात्रा करूंगा क्योंकि कार्यवाही का अगला चरण अभी होना चाहिए।
मेरा अनुमान है कि अगले 12 से 18 महीनों में, हम अधिकांश देशों को किसी तरह की सॉयल रीजेनेरेशन पॉलिसी बनाने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। इसे संभव बनाने के लिए, आपकी आवाज़ उठनी चाहिए और उठी हुई रहनी चाहिए। एक दिन का चीखना-चिल्लाना, नारेबाजी और रोना-पीटना काम नहीं आएगा। इसके लिए अटूट लगन चाहिए। कम से कम अगले 12 महीने तक दिन में कम से कम 10 से 12 मिनट के लिए मिट्टी का संदेश फैलाना आपकी दैनिक पूजा होनी चाहिए।