सद्गुरु: कुछ समय पहले, अमेरिका में किसी ने मुझसे पूछा कि एक आत्मज्ञानी व्यक्ति आम कैसे खाता है। अगर यह सवाल आपको बचकाना लग रहा है तो आपका बता दूँ कि आम कोई आम चीज़ नहीं है। जब मैं छोटा बच्चा था, तो साल में चार महीने यह फल भारत में एक धर्म की तरह होता था। आम के मौसम में मैं अक्सर सिर्फ आम खाकर रह जाता था। हमारे पेट में और कुछ नहीं, सिर्फ आम होते थे। जब आम का पागलपन चढ़ता था, तो हमारे पूरे चेहरे पर, हमारे कपड़ों पर आम ही आम होता था, हमसे आम की गंध आती थी, बल्कि पूरे घर से आम की गंध आती थी – आम ही सब कुछ होता था।
यहाँ तक कि मेरी परीक्षाएं छूट गईं क्योंकि मैं आम के अध्ययन में व्यस्त था। मैसूर के आस-पास, बहुत से जंगली आम और आम के बागान थे। मैंने करीब 5-6 साल आमों की जगह और किस्में खोजते हुए गुजारे और उस इलाके के सभी आम के पेड़ मेरे मन पर नक्शे की तरह छपे हुए थे। आम स्वाभाविक रूप से अलग-अलग स्वाद में आते हैं और उनका रंगरूप और स्वाद, मार्च से जुलाई के अंत तक बदलता रहता है।
यह घटना तब की है, जब मैं प्री-यूनिवर्सिटी कोर्स में था, जिसे बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि उसमें मिलने वाले अंक आगे की शिक्षा के बारे में तय करते हैं। सत्र खत्म हो चुका था लेकिन हमें ज्यादा से ज्यादा अंक लाने के लिए खूब मेहनत करनी थी। उस समय परिवार हमारे बाहर आने-जाने पर रोक लगा देता था जिसे सहन कर पाना मेरे लिए बहुत मुश्किल था। कॉलेज में स्पेशल क्लासेज ने मुझे घर से निकलने का मौका दे दिया।