सद्‌गुरु एक्सक्लूसिव

तिब्बती बौद्ध धर्म में तंत्र इतना शक्तिशाली क्यों हैं?

कुछ साल पहले, सद्‌गुरु साधकों के एक दल को तिब्बत में भव्य कैलाश पर्वत ले गए, जहाँ उन्होंने तिब्बती बौद्ध धर्म की उत्पत्ति और तंत्र में उसकी जड़ों के बारे में बताया। वह आगे समझाते हैं कि विदेशी हमलावरों ने कैसे तंत्र को व्यवस्थित तरीके से भारत से खत्म किया।

प्रश्नकर्ता: नमस्कार सद्‌गुरु। क्या ‘पास्ट लाइफ रिग्रेशन’ (पूर्व जन्म में वापसी) कर्म को समाप्त करने में मददगार होता है?

सद्‌गुरु: ‘पास्ट लाइफ रिग्रेशन’ के रूप में आम तौर पर जो किया जा रहा है, वह मुख्य रूप से एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है। आप उस तरह पिछले जीवनों को नहीं छूते। वैसे भी आपके मन की इतनी सारी परतें हैं कि आप वहाँ तक कभी पहुँच नहीं पाते। आपके मन की बहुत क्षमताएँ हैं जिन्हें इस्तेमाल नहीं किया जाता। उदाहरण के लिए ‘डिसोसिएटिव आइडेंटिटी डिसआर्डर’ से पीड़ित व्यक्ति शायद अपनी मानसिक क्षमता का इस्तेमाल तथाकथित सामान्य व्यक्ति से ज्यादा करता है।

मानव मन की अविश्वसनीय शक्ति

मन इतना जटिल है कि वह अनुभव के अलग-अलग स्तर पैदा कर सकता है। उदाहरण के लिए अगर आप अभी मुझे देखें, तो सिर्फ विषय के रूप में मुझे इस्तेमाल करते हुए आप चाहें तो हज़ार पन्ने लिख सकते हैं। इंसानों में यह क्षमता है। कुछ ने उसे विकसित किया है, कुछ ने नहीं, लेकिन हर मनुष्य में वह मौजूद है

अगर मैं आपको सिर्फ एक विचार दूँ, आप उस पर पूरे जीवन का निर्माण कर सकते हैं। यह तंत्र की कला है। तंत्र का अर्थ है मन का इस प्रकार से इस्तेमाल करना कि आप हर चीज़ को विस्तार से रचें। शक्ति चालन क्रिया और दूसरी क्रियाएं जो आप कर रहे हैं, वे बहुत साधारण हैं, लेकिन उन्हें करने के लिए भी आपको अपने मन का इस्तेमाल करना पड़ता है। अगर आप हर दिन इसे करें, तो अपने मन को एक निश्चित तरीके से प्रशिक्षित कर सकते हैं।

पद्मसंभव ने, जो एक बहुत चतुर गुरु थे, सही अनुपात में तंत्र और बौद्ध धर्म को मिलाया।

जीवन के भौतिक धरातल पर, मानसिक सजगता अद्भुत चीज़ें कर सकती है – वह ख़ुद की एक दुनिया रच सकती है। यह शरीर धीरे-धीरे बनता है, एक-एक कोशिका, फिर उसके भीतर की बारीकी। उसमें जबरदस्त ध्यान लगा है। अगर वह ध्यान सचेतन हो जाए, फिर आप जागरूक हो जाते हैं। वरना, यह सिर्फ मानसिक सजगता होती है। मानसिक सजगता बहुत अद्भुत चीज़ें कर सकती है। तंत्र में, लोग मानसिक ध्यान के साथ इस हद तक काम करते थे कि अगर आप चाहें तो एक पूरी नई दुनिया का निर्माण कर सकते हैं।

पद्मसंभव तंत्र को तिब्बत लेकर आए

कैलाश को तांत्रिक पर्वत के रूप में जाना जाता है, और तिब्बत को तंत्र की भूमि कहा जाता है। लेकिन तंत्र की उत्पत्ति यहाँ नहीं हुई। तिब्बत में तांत्रिक प्रक्रिया लाने वाले पहले गुरु भारतीय थे। यहाँ आने वाले पहले गुरु शांतरक्षित थे। उन्होंने कुछ हद तक प्रक्रिया शुरू की, लेकिन वे तांत्रिक से ज्यादा बौद्ध थे। जब उन्होंने महसूस किया कि उनकी शिक्षा वास्तव में लोगों को तंत्र विद्या के पुराने अभ्यासों से आध्यात्मिक प्रक्रिया में नहीं ला पाई, तो वे सही प्रकार के गुरु की खोज में निकले।

उन्हें पद्मसंभव एक द्वीप पर बैठे एक आठ वर्षीय बालक के रूप में मिले, जिनके एक हाथ में हीरा और दूसरे हाथ में कमल था। उनकी बहुत रहस्यमयी पृष्ठभूमि थी। हो सकता है कि वह एक द्वीप न रहा हो, जैसा कि हम उसे जानते हैं, बल्कि एक बिल्कुल अलग इलाक़ा हो। यहीं से वज्रयान बौद्ध धर्म आया, जो पूरी तरह तांत्रिक है। आज आप तिब्बती बौद्ध धर्म में जो देखते हैं, वे उसी के अवशेष हैं। यह बौद्ध धर्म और तंत्र का सामाजिक तौर पर सुविधाजनक मिश्रण है।

तंत्र कभी समाज में स्वीकृति हासिल नहीं कर पाता है क्योंकि तांत्रिक अक्सर बेरोकटोक वाले लोग होते हैं। बौद्ध धर्म बहुत स्पष्ट और साफ है। पद्मसंभव ने, जो एक बहुत चतुर गुरु थे, सही अनुपात में तंत्र और बौद्ध धर्म को मिलाया। बौद्ध धर्म सिर्फ एक दिखावा था। वह वास्तव में तंत्र को लेकर आए।

तिब्बत का खोया तंत्र

ये वो तांत्रिक थे जो सामाजिक स्वीकृति पाने के लिए बौद्ध धर्म की पोशाक पहनते थे। वे असाधारण चीज़ें करते थे, जो सरल ध्यान प्रक्रियाओं के साथ कभी नहीं की जा सकती थीं, जिससे आपको कष्ट जैसी चीज़ों से मुक्ति मिले। तिब्बत में जो किया गया, वह बहुत असाधारण था। लेकिन पीढ़ी दर पीढ़ी, विज्ञान ख़त्म होता गया और बस पोशाक रह गई। आज आप वही देखते हैं। वह पूरी तरह से नहीं खोया है, लेकिन ज्यादातर खो गया है।

तंत्र का मतलब है जीवन को फिर से काम में लाना। यह सब भारत में शुरू हुआ था और अब भी छोटे-मोटे तरीकों से सक्रिय है लेकिन ज्यादातर यह नष्ट हो गया क्योंकि लोगों ने इसे कुछ और समझ लिया। जब 13वीं सदी में हमलावर आए, तो उन्होंने हर उस चीज़ को मिटाना शुरू कर दिया, जो तंत्र है। क्योंकि उन्हें लगा कि तंत्र इस विचार के खिलाफ था कि भगवान ही एकमात्र रचयिता है। आप सृष्टि के साथ गड़बड़ नहीं कर सकते – यह उनका विचार था।

बाद में, जब अंग्रेज आए, तो अपने पाखंडपूर्ण विक्टोरियन विचारों के साथ, उन्होंने भी, जहाँ तक वे कर सकते थे, तंत्र को नष्ट कर दिया। अब इसके बहुत कम अवशेष बचे हैं, और कुछ आधुनिक लेखक उसे भी पूरी तरह विकृत कर रहे हैं। उसके कारण, जीवन का यह एक शानदार आयाम पूरी तरह से पटरी से उतर गया है।

लेकिन अगर आप यहाँ अतीत में किए गए कार्यों को देखें, तो यह वास्तव में अकल्पनीय है।