संस्कृति

एक हत्यारे का आत्मज्ञानी में रूपांतरण : मिलारेपा की दिलचस्प कहानी

सद्‌गुरु एक सिद्ध तिब्बती योगी मिलारेपा की अनोखी कहानी सुना रहे हैं, जिन्होंने बेहद अजीब वजह से अपना मार्ग चुना – वजह थी अस्सी से ज्यादा लोगों की हत्या का प्रायश्चित करना। पढ़िए पूरी कहानी :

मिलारेपा एक हत्यारे कैसे बने

मिलारेपा ने छोटी उम्र में ही अपने पिता को खो दिया। उनके चाचा ने उनके पिता की जमीन और संपत्ति हथिया ली और उन्हें अपनी माँ और छोटी बहन के साथ अपने घर में दास की तरह रखा। वह कई तरह से उन पर अत्याचार करता था। मिलारेपा के अंदर नाराज़गी और गुस्सा भरा हुआ था, वह इन्हीं भावनाओं के साथ बड़े हुए। जब वह किशोर हुए, तो परिवार को छोड़कर तंत्र-विद्या सीखने चले गए, ताकि अपने चाचा और चाची से बदला ले सकें जिनकी वजह से उन्हें घोर अपमान और यातना सहनी पड़ी थी।

मिलारेपा ने कुछ तंत्र प्रक्रियाओं में महारत हासिल कर ली। कई सालों के बाद जब वह वापस आए, तो उनकी मां और बहन की मौत हो चुकी थी। उनका गुस्सा और भी बढ़ गया और वह मौके की तलाश में इंतज़ार करने लगे। जल्दी ही चाचा के बेटे की शादी का समय आया और उसने अपने सभी दोस्तों को न्यौता दिया। उस दिन मिलारेपा ने तंत्र विद्या का इस्तेमाल करके घर पर ओलों की भारी वर्षा कर दी। कहते हैं कि उस दिन उस ओलावृष्टि के कारण 80 से ज्यादा लोग मर गए, जिसमें उसके चाचा और चाची भी शामिल थे। शुरू में मिलारेपा को बहुत खुशी हुई और उसे लगा कि उसने न्याय किया, लेकिन कुछ समय बाद यह बात उन्हें परेशान करने लगी।

अगर कोई संवेदनशील इंसान किसी चीज़ का दुरुपयोग करता है, तो वह अंदर ही अंदर परेशान होने लगता है। अगर आपमें संवेदना हो ही नहीं, केवल तभी आप ऐसी चीज़ें करना जारी रख सकते हैं, क्योंकि जीवन की प्रकृति ऐसी ही है। ऐसा सामाजिक चेतना या नैतिकता की वजह से नहीं होता है। अगर बहुत बुनियादी स्तर पर कोई दुरुपयोग हुआ है, तो बहुत गहरी उथल-पुथल मच जाएगी।

मिलारेपा को उनके गुरु मिले

मिलारेपा ने इस सब का प्रायश्चित करने और आध्यात्मिक मार्ग पर चलने की जरूरत महसूस की। किसी ने उन्हें बताया कि सिर्फ मारपा उनकी मदद कर सकते हैं, तो वह उनकी तलाश में निकल पड़े। मारपा को ‘अनुवादक’ के नाम से जाना जाता था क्योंकि उन्होंने सभी महान भारतीय तांत्रिक ग्रंथों का तिब्बती भाषा में अनुवाद किया था। उन्होंने तीन बार भारत की यात्रा की थी, कुछ गुरुओं से मिले थे और उनके तरीकों और ग्रंथों का स्थानीय भाषा में अनुवाद किया था।

मिलारेपा जब मारपा से मिले तब वह खेत की जुताई कर रहे थे। मारपा ने उनकी ओर देखा तो हल छोड़ दिया, उन्हें स्थानीय रूप से तैयार बीयर पिलाई और कहा, ‘इसे पी लो और फिर इस जमीन को जोत दो।’ मिलारेपा ने उसे पी लिया और हल जोतने लगे। इस तरह,  मारपा ने उन्हें कई तरह के मेहनत वाले कामों में लगाया। एक दिन मिलारेपा ने उनके सामने झुककर उनसे कहा, ‘मुझे आपसे वह धम्म चाहिए जो मुझे इस जीवन में मुक्त कर दे। साथ ही मुझे भोजन और आश्रय देने की कृपा कीजिए।’ मारपा ने कहा, ‘अगर तुम चाहो, तो मैं तुम्हें भोजन और आश्रय दे सकता हूँ, धम्म कहीं और खोजो। या फिर मैं तुम्हें धम्म दूंगा, और तुम्हें अपना भोजन और आश्रय कहीं और तलाशना होगा। यह चुनाव तुम्हें करना है।’ मिलारेपा ने कहा, ‘ठीक है, मुझे आपका धम्म चाहिए। अपना भोजन और आश्रय मैं खोज लूँगा’, और वह भीख माँगने निकल पड़े।

वह दूर-दूर तक गए और गेहूँ की बोरियाँ और अपना खाना पकाने के लिए तांबे का एक बर्तन ले आए। इतना भारी बोझ उठाकर वह बहुत दूर से चलकर आए। जब वह मारपा के घर आए तो उन्होंने धड़ाम से उसे नीचे पटक दिया। मारपा, जो दोपहर का भोजन कर रहे थे, उठकर बाहर आए और बोले, ‘लगता है कि तुम बहुत गुस्से में हो। अपने गेहूं और बर्तन से तुमने पूरे घर को हिला दिया। बहुत हुआ! यहाँ से चले जाओ।’ मिलारेपा गिड़गिड़ाए, ‘यह बहुत भारी था इसलिए मैंने इसे पटक दिया।’ मारपा ने कहा, ‘कुछ नहीं चलेगा। तुमने इसे फेंका है, तुम मेरे घर में रहने लायक नहीं हो। तुम बाहर रहो, मेरे खेत की जुताई करो, मेरे घर की सफाई करो और मेरे काम करो।”

मिलारेपा की सालों की कड़ी मेहनत

मिलारेपा ने कई सालों तक यह सब किया। दूसरे विद्यार्थी आते और उन्हें कई प्रक्रियाओं की दीक्षा दी जाती, लेकिन उन्हें कुछ नहीं मिला। वह आठ सालों तक बिना किसी शिक्षा या दीक्षा के मेहनत करते रहे।

फिर एक दिन, जब एक सत्संग चल रहा था, वह चुपके से अंदर घुसकर दूसरे विद्यार्थियों के साथ इस उम्मीद में बैठ गए, कि उन्हें भी दीक्षा मिल जाएगी। आँखें बंद करके बैठे हुए मारपा ने अपनी छड़ी उठाई, बंद आँखों के साथ ही चलकर वहाँ पहुँचे और मिलारेपा को पीट-पीटकर बाहर निकाल दिया। ऐसा बार-बार हुआ। 13 साल से ज्यादा समय बीत गया और उन्हें कोई दीक्षा या शिक्षा नहीं मिली।

मिलारेपा ने मारपा की पत्नी से अनुरोध किया, जो उनके लिए माँ समान थीं, ‘कृपया उन्हें कहिए कि मुझे कुछ तो दें, सिर्फ एक उपदेश या एक छोटा सा ध्यान। मैं इतने सालों से यहाँ बैठा हूँ, लेकिन मैं कुछ नहीं जानता।’ मिलारेपा की पत्नी ने पति के साथ अच्छे संबंधों का फायदा उठाते हुए उनसे अनुरोध किया तो मारपा ने कहा, ‘पहले उसे मेरे बेटे के लिए तीन कोनों वाला घर बनाने दो, जिसे उसे अकेले बनाना है।’

मिलारेपा ने तीन कोनों वाला घर बनाया जिसमें उन्हें दो साल लग गए। तब मारपा ने कहा, ‘मेरे बेटे के लिए तीन कोनों वाला घर सही नहीं है। चार कोनों वाला घर बनाओ!’ मिलारेपा ने चार कोनों वाला घर बनाया। तब मारपा ने कहा, ‘यह अच्छा नहीं है, पाँच कोनों वाला घर बनाओ।’ इसी तरह कई साल बीत गए। मिलारेपा इन घरों को बनाते हुए खुद काम करते रहे। फिर मारपा ने कहा, ‘यह ठीक है, लेकिन मुझे अपने बेटे के घर के लिए 60 फुट का टावर चाहिए।’ मिलारेपा ने घर के चारों कोनों पर 60 फुट के चार टावर बनाए।

तब तक उनकी उम्र ढलने लगी थी। एक दिन मिलारेपा, मारपा की पत्नी के पैरों पर गिर पड़े और कहा, ‘कृपया कुछ कीजिए। मेरा जीवन निकल रहा है और मुझे एक शिक्षा तक नहीं मिली है।’ करुणा के ग़लत बहाव में आकर मारपा की पत्नी ने मारपा का लेटरहेड लेकर एक दूसरे भिक्षु को पत्र लिख दिया, जिसे दीक्षा देने की शक्ति प्राप्त थी। वह बिल्कुल मारपा के पत्र की तरह लग रहा था, जिस पर मारपा की मुहर भी लगी हुई थी।

मारपा की पत्नी ने पत्र मिलारेपा को दिया। मिलारेपा ने उस भिक्षु के पास जाकर दीक्षा ले ली, लेकिन कुछ नहीं हुआ। वह भिक्षु हैरान था। ‘जब मैं दीक्षा देता हूँ, तो कुछ न कुछ होना चाहिए। लेकिन तुम्हारे साथ कुछ नहीं हो रहा, क्या करें?’ मारपा को इसके बारे में पता चला, उन्होंने भिक्षु को बुलाया और उसे आगे से दीक्षा देने के लिए अयोग्य ठहरा दिया।

तिब्बत की चमकती रोशनी

आखिरकार घोर पछतावे में आकर, मिलारेपा आत्महत्या करने वाले थे। फिर मारपा ने उन्हें बुलाया और कहा, ‘ठीक है, बैठो।’ वह बोले, ‘मैंने तुम्हें वह सब खत्म करने के तरीके बताए थे जो तुमने अतीत में किया था। तुमने मेरे बताए अनुसार सब कुछ किया लेकिन फिर तुमने चोरी छिपे सीखने की कोशिश की, जिसने हर चीज़ को कई सालों तक आगे बढ़ा दिया।’

‘अब तुम्हारा पछतावा वास्तव में तुम्हारे अस्तित्व के मूल को छू रहा है – तुम उसके लिए मरने को तत्पर हो। इसका मतलब है कि अब तुम तैयार हो।’ मारपा ने उन्हें दीक्षा दी और तीसरे दिन ही मिलारेपा को एक डाकिनी दिखी। तांत्रिक परंपरा में वे हर चक्र के लिए एक देवी बनाते थे – एक स्त्री रूप जिसकी प्राण-प्रतिष्ठा की जाती थी और उसे जीवित किया जाता था, जिससे कुछ चीज़ें करवाई जा सकती थीं। तंत्र में कोई इन शक्तियों की मदद के बिना कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं कर पाता।

डाकिनी ने मिलारेपा को दर्शन दिए और उनसे कहा, ‘मारपा की शिक्षा में एक मूलभूत पहलू नहीं है, जिसके बारे में वह खुद नहीं जानते।’ जब मिलारेपा ने मारपा को यह बात बताई तो मारपा मिलारेपा के आगे झुक गए और कहा, ‘मेरे पास भी पूरी शिक्षा नहीं है, तो चलो भारत वापस चलते हैं।’ दोनों चलकर मारपा के गुरु के पास पहुँचे, जो नेपाल और बिहार की सीमा के पास कहीं रहते थे।

जब मारपा ने गुरु को इस घटना के बारे में बताया तो गुरु ने उन्हें देखकर कहा, ‘तुम्हारे साथ यह घटना नहीं हो सकती।’ फिर मारपा ने कहा, ‘वह मैं नहीं, मेरा एक शिष्य था।’ फिर गुरु ने तिब्बत की ओर मुड़कर प्रणाम किया। वह बोले, ‘चलो आखिरकार उत्तर में एक रोशनी चमकी।’

गुरु ने मिलारेपा और मारपा को सारी शिक्षा दी कि इस जीवन में पूर्ण आत्मज्ञान कैसे पाना है। फिर वे वापस तिब्बत पहुँचे और गुरु के रूप में शुरुआत करने वाले मारपा, मिलारेपा के शिष्य बन गए। मिलारेपा तिब्बती संस्कृति में एक चमकती रोशनी बन गए।