मुख्य चर्चा

क्या हम रोक सकते हैं दुनिया में होने वाले युद्ध?

यूक्रेन में चल रहे युद्ध ने दुनिया भर को स्तब्ध कर दिया है, मगर यह उन कई भयानक युद्धों में से सिर्फ एक है, जो हाल में हुए हैं। सद्‌गुरु आज के हिंसक संघर्षों की चर्चा करते हुए दो प्रमुख तरीके बता रहे हैं कि कैसे हम सभी लोग अगले 25 सालों में असली विश्व शांति लाने में योगदान कर सकते हैं।

सद्‌गुरु: दुनिया के करीब-करीब हर देश ने हथियारों, गोला बारूद, बमों और मिसाइलों के निर्माण और भंडारण में ढेर सारा पैसा लगाया है। बम निर्माता ‘स्मार्ट बम’ का विज्ञापन कर रहे हैं। वे हवाई जहाज से एक बम गिरा सकते हैं और उसे खिड़की से किसी घर के अंदर भेज सकते हैं। और उन्हें इस पर गर्व है।

हजारों लोग कहीं बैठे हैं, इस बात से बेखबर कि क्या हो रहा है, आप बस एक बम गिराते हैं, और वे सभी मर जाते हैं - मुझे नहीं पता कि इसमें क्या समझदारी है। यह करना सबसे बड़ी बेवकूफी का काम है। कम से कम इन भयानक तकनीकी हथियारों का उपयोग मत कीजिए जो सच में सामूहिक विनाश के हथियार हैं।

हमें युद्ध, हत्याओं और दूसरे लोगों की पीड़ा के प्रति इस अमानवीय नज़रिए से बाहर निकलना चाहिए।

यह सिर्फ एक देश की बात नहीं है – यह दुनिया भर में हो रहा है। जब ये सभी बम जमा होते रहते हैं, तो हमें कोई चिंता नहीं होती। कोई फिल्म किसी बम या कम से कम एक लहूलुहान चेहरे के बिना नहीं बनती, और हम उसे देखकर मज़े लेते हैं। जब वह वास्तव में होता है, तो हम हैरान हो जाते हैं। जीवन ऐसे काम नहीं करता।

आप इस आपदा पर शोक मनाएंगे या आप ऐसी पीढ़ी बनेंगे जो इस आपदा को पलट दे? हमारे पास बस यही चुनाव है। धरती पर यह हमारा समय है। हमें अभी अपना मन बना लेना चाहिए कि हम दुनिया पर कैसे असर डालने वाले हैं।

हथियारबंद संघर्षों से किसे लाभ होता है?

युद्ध होना लगभग तय ही है क्योंकि अर्थव्यवस्थाएं युद्ध पर आधारित हैं। हथियार और युद्ध का साजो–सामान बनाने का उद्योग दुनिया के सबसे बड़े उद्योगों में से एक है। अगर आप बंदूकें और गोलियां बनाकर बेच रहे हैं, तो आप कैसे सोचते हैं कि उनका इस्तेमाल नहीं किया जाएगा? अगर आप इंसानों को बदल सकते हैं, तो बहुत बढ़िया। अगर वह संभव नहीं है, तो कम से कम उन्हें हथियारों से मजबूत मत बनाइए। ज़ाहिर है कि युद्धों को रोकने का हमारा इरादा ही नहीं है।

जब यह हमारे साथ होता है, या जब यह हमारे करीब होता है, तो हम रोते हैं। जब यह कहीं और हो रहा होता है, तो यह नाटक लगता है। हमें युद्ध, हत्याओं और दूसरे लोगों की पीड़ा के प्रति इस अमानवीय नज़रिए से बाहर निकलना चाहिए।

अधिकांश बुरी चीज़ें बुरे इरादों के कारण नहीं, बल्कि सिर्फ उदासीनता के कारण हुई हैं। आप जीवन भर सोते रहते हैं। क्या सोना अपराध है? नहीं, सोना अच्छी चीज़ है। लेकिन अगर आप सोते हुए जीवन गुज़ार देते हैं, तो यह एक आपदा है। मिट्टी और युद्ध दोनों के संबंध में दुनिया में यही हो रहा है – हम उस मुद्दे पर बस सो रहे हैं।

अच्छे इरादे काफी नहीं हैं

काफी युद्ध हो चुके हैं। पहले और दूसरे विश्व युद्ध में क्या आपने काफी कष्ट नहीं देख लिया? मानव-जाति  को ऐसे आतंक का सामना नहीं करना चाहिए, लेकिन लोगों को वह भुगतना पड़ा। दूसरे विश्व युद्ध के बाद ऐसा लगा कि हर किसी में एक किस्म की समझदारी आ गई है। लोगों ने कहा कि ऐसे युद्ध फिर कभी नहीं होने चाहिए, सिर्फ यूरोप में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में।

उन्होंने संयुक्त राष्ट्र बनाया। इसका मकसद एक वैश्विक संगठन बनाना था जिसके जरिये हम बातचीत कर पाएं, एक दूसरे को निशाना न बनाएं। हम किसी परियों की दुनिया में नहीं हैं कि हमें कोई समस्या नहीं है। हमारे पास आर्थिक समस्याएं हैं, संपत्ति की समस्याएं हैं, हमारे पास विरोधाभासी विश्वास हैं – हमारे पास सच में समस्याएं हैं। उसका मकसद था एक ऐसा मंच बनाना, जहां हम समस्याओं को हल कर सकें। फिर क्या हुआ? हमने उसे दरकिनार कर दिया है और एक-दूसरे के साथ जो चाहते हैं, वो कर रहे हैं।

पहली चीज़ यह है कि आपके दिल से गुस्सा और नफरत खत्म होनी चाहिए।

दूसरे विश्व युद्ध के बाद से, दुनिया में कितने युद्ध हुए हैं? जब वर्ष 2000 आया, तो हमने कहा कि 20वीं सदी बहुत भयानक थी जो युद्धों से भरी हुई थी – 21वीं सदी सूचना तकनीक का युग है – हम लड़ेंगे नही। लेकिन 2000 के बाद से, दुनिया भर में कितने भयानक युद्ध हुए हैं? कितने राष्ट्र तबाह हुए हैं? कई सारे।

ये ऐसी चीज़ें हैं, जिन्हें आप रातों–रात नहीं बदल सकते। लेकिन पहली चीज़ यह है कि आपके दिल से गुस्सा और नफरत खत्म होनी चाहिए।

सिर्फ हवाई बातें?

मैं एक समय में ढेर सारे विश्व शांति सम्मेलनों में भाग लेता था। फिर मैंने देखा कि बहुत से लोगों के लिए, सम्मेलनों में जाना एक पेशा है, वे उससे अपनी आजीविका कमा रहे हैं। मैं एकमात्र मूर्ख था जो वहाँ बैठकर यह सोच रहा था कि हम विश्व शांति के लिए काम कर रहे हैं।

तो, मैं एक बहुत महत्वपूर्ण सम्मेलन में था, बहुत से नोबल पुरस्कार विजेता और कुछ पूर्व राष्ट्राध्यक्ष उसमें भाग ले रहे थे। जब वे राष्ट्र प्रमुख होते हैं, तो वे युद्ध करते हैं, रिटायर होने के बाद वे शांति की बात करते हैं। दुनिया का यही तरीका रहा है। तीसरे दिन की दोपहर को एक नोबल पुरस्कार विजेता की बोलने की बारी आई। वह जाकर इस विशाल पोडियम के पीछे खड़ा हुआ, अपनी फाइल खोली और अपना सिर ऊपर उठाए बिना 42 पन्ने पढ़ने शुरू कर दिए। मैं पहली पंक्ति में बैठा था और हर शब्द को समझने की कोशिश कर रहा था। फिर मैंने चारों ओर देखा – हॉल में पूरी तरह शांति छाई थी क्योंकि हर कोई सो गया था। मैंने सोचा, ‘यह तो वाकई विश्व शांति है।’

अगर आप अपने मन को शांतिपूर्ण नहीं बना सकते, तो दुनिया को शांतिपूर्ण बनाने का सवाल ही नहीं उठता।

फिर मेरी बोलने की बारी आई। मैं बोला, ‘पिछले तीन दिनों में, मैंने विश्व शांति बनाने के बारे में भारी-भरकम शब्दों वाले भाषण सुने। लेकिन मैं ईमानदारी से आपसे पूछ रहा हूँ – आपमें से कितने लोग अपने दिल पर हाथ रखकर यह कह सकते हैं कि आपका मन शांत है? क्योंकि अगर आप अपने मन को शांतिपूर्ण नहीं बना सकते, तो दुनिया को शांतिपूर्ण बनाने का सवाल ही नहीं उठता। आप दुनिया में जो कुछ देख रहे हैं, वह मानव मन में हो रही घटनाओं की एक बड़े स्तर पर अभिव्यक्ति है।’ अगर इस धरती पर इंसान ही नहीं होते, तो दुनिया शांतिपूर्ण होती।

फिर मैंने पूछा कि दोपहर के सत्र में हर कोई सो क्यों गया था। उन्होंने कहा, ‘सद्‌गुरु, कल शाम को एक बकार्डी फेस्टिवल था।’ मुफ्त की शराब थी, तो हर कोई शांतिपूर्ण हो गया था। वह आखिरी शांति सम्मेलन था, जिसमें मैं गया।

विश्व शांति के लिए व्यक्तिगत, अथक प्रतिबद्धता की जरूरत होती है

हम हर किसी के मन को शांतिपूर्ण नहीं बना सकते। आप अपने मन को शांतिपूर्ण बना सकते हैं, मैं अपने मन को शांतिपूर्ण बना सकता हूँ, वह अपने मन को शांतिपूर्ण बना सकती हैं। यह सिर्फ इसी तरह काम करता है। हम दुनिया, समाज और मानवता की बात करते हैं – ये सिर्फ शब्द हैं। सिर्फ इंसान मायने रखते हैं। अगर हर व्यक्ति अपनी समस्या नहीं सुलझा सकता, तो दुनिया की समस्याएं कभी नहीं सुलझ सकतीं। वह कई रूपों में प्रकट होती रहेंगी।

आप सभी को यह मांग करनी चाहिए कि कम से कम अब से, अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल सैन्य हथियारों के लिए नहीं होना चाहिए।

मैं आप सभी से अनुरोध करता हूँ कि जहाँ तक संभव हो, आप एक मजबूत प्रतिक्रिया दें। जब तक अथक प्रतिबद्धता न हो, तब तक कुछ नहीं हो सकता। सिर्फ एक दिन करके छोड़ न दें। आप सभी को यह मांग करनी चाहिए कि कम से कम अब से, अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल सैन्य हथियारों के लिए नहीं होना चाहिए। आपको इसके लिए आवाज़ उठानी चाहिए। इसे रातों–रात  हासिल नहीं किया जा सकता। लेकिन अगर आप एक पीढ़ी के रूप में सक्रिय रहेंगे तो अगले पच्चीस सालों में हम वहाँ तक पहुँच सकते हैं। लेकिन इसके लिए अथक प्रतिबद्धता चाहिए।