मिट्टी बचाओ

संयुक्त राष्ट्र में ‘मिट्टी बचाओ’ अभियान की गूँज

वैश्विक संगठनों के नेताओं और सद्‌गुरु ने 5 अप्रैल 2022 को जेनेवा स्थित संयुक्त राष्ट्र कार्यालय में एक लाइव इवेंट में मिट्टी बचाओ अभियान पर चर्चा की। पैनलिस्ट में जेनेवा स्थित संयुक्त राष्ट्र कार्यालय के महानिदेशक के संदेश के साथ एसडीजी लैब से नादिया इस्लर, विश्व स्वास्थ्य संगठन के डॉ. नाओको यामामोटो, और इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर से स्टीवर्ट मैगनिस शामिल थे। सभी ने इस विषय पर अपना विद्वतापूर्ण नज़रिया पेश किया कि मानवता और पृथ्वी पर मौजूद समस्त जीवन के भविष्य के लिए मिट्टी को बचाना क्यों महत्वपूर्ण है। पेश है इस पैनल चर्चा के मुख्य अंश :

राजदूत इंद्र मणि पांडे ने सद्‌गुरु का स्वागत किया

संयुक्त राष्ट्र कार्यालय और जेनेवा में दूसरे अंतरराष्ट्रीय संगठनों में भारत के स्थायी प्रतिनिधि इंद्र मणि पांडे

इंद्र मणि पांडे: सद्‌गुरु जी, सभी महानुभाव, विशिष्ट अतिथिगण! नमस्कार। सद्‌गुरु जी का गर्मजोशी से स्वागत करते हुए मुझे बहुत खुशी हो रही है। मिट्टी बचाने के अपने वैश्विक अभियान के दौरान जेनेवा आने के लिए उनका धन्यवाद। जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए विश्वव्यापी कार्रवाई पर जोर दिया जाता रहा है। लोगों को एक स्वच्छ, स्वस्थ और स्थायी वातावरण देने की जरूरत है। पानी के मुद्दे पर भी दुनिया में काफी ध्यान दिया गया है। हालांकि, जैसा कि खुद सद्‌गुरु जी ने बताया है, मिट्टी के स्वास्थ्य पर दुनिया भर में उतना ध्यान नहीं दिया गया है, जो पृथ्वी पर हमारे जीवन का आधार है।

मिट्टी को बचाने के सद्‌गुरु जी के अभियान की अहमियत को अच्छी तरह समझने के लिए हमें मिट्टी की ज़रूरत को पृथ्वी पर हमारे जीवन को बनाए रखने के संदर्भ में देखना होगा। मुझे पूरा विश्वास है कि सद्‌गुरु जी द्वारा शुरू किया गया अभियान दुनिया भर की सरकारों और लोगों का ध्यान, मिट्टी को बचाने की जरूरत की तरफ खींचेगा और इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए जरूरी कदम उठाने के लिए प्रोत्साहित करेगा।

इस यात्रा के लिए फिर से धन्यवाद। दुनिया भर में इस तरह की जागरूकता पैदा करने के लिए अभियान शुरू करने के लिए धन्यवाद। हम आपसे और अधिक सीखने के लिए उत्सुक हैं कि इस लक्ष्य को प्राप्त करने में हम व्यक्तिगत और सामूहिक तौर पर क्या कर सकते हैं।

महानिदेशक का संदेश: मिट्टी बचाने का संबंध सतत विकास के लक्ष्यों से जुड़ा है

जेनेवा (यूएनओजी) में संयुक्त राष्ट्र कार्यालय के महानिदेशक के कार्यालय में एसडीजी लैब की निदेशक नादिया इस्लर जेनेवा में संयुक्त राष्ट्र कार्यालय की महानिदेशक तातियाना वालोवाया का एक संदेश दे रही हैं।

नाडिया इस्लर: राजदूत पांडे, सद्‌गुरु, महानुभावों, देवियो और सज्जनो, और बच्चों। जेनेवा में संयुक्त राष्ट्र कार्यालय की महानिदेशक सुश्री तातियाना वालोवाया की ओर से आज के कार्यक्रम में शामिल होने वाले सभी लोगों को बधाई देते हुए मुझे खुशी हो रही है। दुर्भाग्य से महानिदेशक जेनेवा में न होने के कारण इस कार्यक्रम में उपस्थित नहीं हो सकीं, लेकिन उन्होंने मुझे आपको जो संदेश देने के लिए कहा है उसे मैं पढ़कर सुनाती हूँ:

भारत की स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ के संदर्भ में इस कार्यक्रम के आयोजन के लिए मैं अपने सहयोगियों के साथ राजदूत पांडे और भारत के स्थायी मिशन को ईमानदारी से धन्यवाद देना चाहती हूँ कि आपने पूरी दुनिया, इस ग्रह और मानव जाति के कल्याण के लिए यह कार्यक्रम आयोजित किया।

पिछले दिसंबर में, संयुक्त राष्ट्र महासचिव श्री एंटोनियो गुटरेस ने एक ऐतिहासिक भाषण दिया था, जिसने आने वाले समय में जलवायु पर कार्यवाही करने की इच्छा को तीव्र करने के लिए मंच तैयार किया। उन्होंने चेतावनी दी कि प्रकृति के साथ तालमेल बनाना 21वीं सदी का निर्णायक काम है। पेरिस जलवायु समझौते के बाद के छह साल अब तक के सबसे गर्म छह साल रहे हैं।

जलवायु परिवर्तन वास्तविक है। और यह कई संकटों को बढ़ा देता है। बाढ़ और सूखा, तूफान और जंगल की आग, बहुत ज्यादा तापमान और जलवायु से जुड़े दूसरे संकटों ने 2020 में 3 करोड़ लोगों को अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर किया। यह संख्या 2050 तक बढ़कर एक अरब हो सकती है। छोटे द्वीपीय देश और कम विकसित देश खास तौर पर जोखिम पर हैं।

हम कई सालों से जमीन, हवा और समुद्र को प्रदूषित कर रहे हैं, और अपने पास मौजूद सबसे कीमती चीज़ प्रकृति को नुकसान पहुँचा रहे हैं। हमारी पृथ्वी बरबाद हो रही है और मनुष्य का व्यवहार वह मुख्य कारक रहा है जिसने हमें इस मुकाम तक पहुँचाया है। इस साझा ग्रह के निवासियों के रूप में यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम वैश्विक जागरूकता बढ़ाने और स्थानीय समुदायों को संगठित करने के साथ पृथ्वी और पर्यावरण के प्रति ज्यादा जागरूक दृष्टिकोण को बढ़ावा दें।

मिट्टी बचाओ अभियान को इसी लक्ष्य के प्रति लोगों को संगठित करने के उद्देश्य से शुरू किया गया है। आज यहाँ इसके अगुआ सद्‌गुरु का स्वागत करना हमारे लिए सम्मान की बात है। हमारे साथ बने रहने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। उनके नेतृत्व में यह वैश्विक अभियान पूरी दुनिया में लोगों को संगठित करके, मिट्टी के स्वास्थ्य की बात करते हुए और जलवायु की चुनौतियों का समाधान करने के लिए ठोस नीतियों और कार्यों को लागू करने में राष्ट्रीय और स्थानीय नेताओं का समर्थन प्राप्त करते हुए मिट्टी के संकट को सबके सामने लाता है।

अब हम एक दूसरे से कहीं ज्यादा जुड़े हुए और तेजी से बदलते परिवेश में रहते हैं। जिन चुनौतियों का हम सामना कर रहे हैं, वे आपस में गहराई से जुड़ी हुई हैं। इसलिए कई अलग-अलग स्तरों पर संगठित होने की जरूरत है। उदाहरण के लिए कोविड-19 महामारी – एक दुखद यादगार है, जो बताती है कि हम सब एक दूसरे पर कितने ज्यादा निर्भर हैं। पारिस्थितिकी की चुनौतियों को सभी स्तरों पर नीतियों और कार्यवाही में शामिल करने के लिए सामुदायिक जुड़ाव महत्वपूर्ण है। देवियो और सज्जनो, सतत विकास के लिए 2030 एजेंडा या एसडीजी को लागू करना सभी की जिम्मेदारी है।

आइए आज हम सब सद्‌गुरु और उनके समर्थकों और आप सभी के काम से प्रेरित हों, और अपने लिए और अपनी पृथ्वी के लिए एक बेहतर और स्वस्थ दुनिया बनाने के लिए जलवायु को ठीक करने के प्रयास और सतत विकास लक्ष्यों से जुड़ी अपनी कोशिशों को दोगुना करें। बहुत बहुत धन्यवाद।

और यहाँ महानिदेशक का संदेश समाप्त हुआ। धन्यवाद।

डॉ. नाओको यामामोटो ने मिट्टी, खाद्य सुरक्षा और स्वास्थ्य पर विश्व स्वास्थ्य संगठन के नज़रिए को साझा किया

डॉ. नाओको यामामोटो, सहायक महानिदेशक, यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज/हेल्दियर पॉपुलेशंस, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ)। डब्ल्यूएचओ संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है जो अंतरराष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए जिम्मेदार है।

डॉ. नाओको यामामोटो: मिट्टी और मानव जाति के बारे में चर्चा करने के लिए आपके साथ इस कार्यक्रम में शामिल होकर मुझे बहुत खुशी हो रही है। मैं एक ‘जागरूक धरती’ के लिए सद्‌गुरु के नज़रिए को सुनने के लिए भी उत्सुक हूँ। मिट्टी मनुष्य के स्वास्थ्य में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

हमारे पास इस बात के प्रमाण बढ़ते जा रहे हैं कि स्वस्थ मिट्टी मनुष्य के स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा और पोषण की सुरक्षा में एक बुनियादी भूमिका निभाती है। हम जानते हैं कि स्वस्थ मिट्टी में खाद्य फसलें होती हैं जिनकी पौष्टिकता ज्यादा होती है और एक स्वस्थ आहार कई विनाशकारी गैर-संचारी रोगों को रोकने में मदद करता है और संक्रमण से बचाता है। स्वस्थ मिट्टी मनुष्य के लिए स्वस्थ पर्यावरण को भी बढ़ावा देती है। मसलन कार्बन सोखने और पानी की उपलब्धता के लिए स्वस्थ मिट्टी जरूरी है।

स्वस्थ मिट्टी जैव विविधता और इकोसिस्टम में सुधार करती है। उनसे आय अर्जित करने और हमारी पारिस्थितिकी-सामाजिक प्रणाली और गतिविधियों के लिए अवसर मिलते हैं। हमें स्वस्थ जंगलों, नदियों, महासागरों और स्वस्थ मनुष्यों के लिए स्वस्थ मिट्टी की जरूरत है। मिट्टी व्यापक इकोसिस्टम का एक हिस्सा है।

‘वन हेल्थ एप्रोच’ (एकीकृत स्वास्थ्य नज़रिया) में मिट्टी की सेहत को बचाना और उसे बढ़ावा देना एक महत्वपूर्ण योगदान है। हम जानते हैं कि वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में खेती का योगदान लगभग 25% है, और हम जानते हैं कि भूमि के उपयोग में बदलाव नई बीमारियों के प्रकोप के लिए सबसे बड़ा खतरा है। हम यह भी जानते हैं कि कीटनाशकों, या सिंथेटिक खाद का ज्यादा इस्तेमाल जैव विविधता के लिए बहुत बुरे नतीजे लाता है। मिट्टी की गुणवत्ता खराब होने से जलवायु परिवर्तन, गर्मी में बढ़ोत्तरी, जंगल की आग और कटाव को बढ़ावा मिलता है।

एक वैश्विक समुदाय के रूप में, हमें वन हेल्थ एप्रोच के समाधान के लिए मिलकर काम करने की जरूरत है। इसलिए, एफएओ [संयुक्त राष्ट्र का खाद्य और कृषि संगठन], यूएनईपी [यूएन पर्यावरण कार्यक्रम], ओआईई [विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन], और डब्ल्यूएचओ [विश्व स्वास्थ्य संगठन] वन हेल्थ संयुक्त कार्य योजना को अंतिम रूप दे रहे हैं, जिसमें पर्यावरण का इंटीग्रेशन शामिल है। हमें अब भी मिट्टी की समानता, खेती से संबंधित फसल उत्पादन और खाद्य विज्ञान तथा पोषण के साथ एक समग्र दृष्टिकोण से मानव स्वास्थ्य के लिए बेहतर तरीके से काम करने की जरूरत है।

जैसे सद्‌गुरु कहते हैं, इस प्रक्रिया में ‘जागरूक धरती’ एक मूलभूत तत्व है। आप सब के साथ काम करके हम बहुत खुश हैं। हमें यह अवसर देने के लिए फिर से बहुत-बहुत धन्यवाद।

स्टीवर्ट मैगिनिस: मिट्टी एक इकोसिस्टम है – खेती और प्रकृति संरक्षण को साथ-साथ चलना चाहिए

स्टीवर्ट मैगिनिस, इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) के ग्लोबल डायरेक्टर हैं, जो प्रकृति संरक्षण और प्राकृतिक संसाधनों के सतत उपयोग के क्षेत्र में काम करने वाला एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है। 1,400 से ज्यादा सरकारी और गैर-सरकारी संगठन आईसीयूएन के सदस्य हैं।

स्टीवर्ट मैगिनिस : यहाँ आकर वाकई खुशी हो रही है। मैं आईयूसीएन के दृष्टिकोण के साथ व्यक्तिगत दृष्टिकोण से भी बोलने जा रहा हूँ क्योंकि मैं एक छोटे किसान परिवार से आता हूँ, और मैंने अपना अधिकांश जीवन संरक्षण में बिताया है। और ईमानदारी से कहूँ तो वहाँ हमेशा थोड़ा सा तनाव रहा है। लेकिन सद्‌गुरु और सेव सॉयल की बदौलत हम वास्तव में अब यह देखना शुरू कर रहे हैं कि यह हम सब का साझा उद्देश्य है, और यह एहसास पैदा हो रहा है कि प्रकृति ही पृथ्वी पर जीवन को थामे हुए है।

चाहे वह सौर मंडल को चलाने की बात हो, चाहे आईपीसीसी [जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल] से आने वाली डरावनी चेतावनियों की बात हो, जिसमें कहा जाता है कि कार्यवाही न करने के लिए समय नहीं बचा है, या फिर छोटे किसानों और छोटे किसान समुदायों के जीवन और रोजी-रोटी को बनाए रखने की बात हो, प्रकृति ही इन सबकी वजह है। हम पुराने टकरावों से आगे बढ़ना चाहते हैं, और साझा उद्देश्य और साझा आधार - मिट्टी और मिट्टी की जैव विविधता पर ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं। हम वहीं से शुरू करते हैं।

सिर्फ़ ज़मीनी कवक की छह अरब प्रजातियां हैं। बैक्टीरिया की एक करोड़ प्रजातियां हैं, और अनगिनत प्रकार के प्रोटोजोआ हैं। अगली बार जब आप अपने बगीचे में हों, तो मुट्ठी भर मिट्टी लें और उसे देखें। उस मुट्ठी भर मिट्टी में, एक सौ अरब से ज्यादा अलग-अलग प्रजातियाँ हैं और कहीं न कहीं लगभग साठ किलोमीटर फिलामेंट्स [कवक के] हैं। यही जीवन को बचाए रखता है। यही वास्तव में कृषि उत्पादन के लिए ज़िम्मेदार है। यही वास्तव में हमें एकजुट करता है, चाहे संरक्षण में या कृषि में, लेकिन दुर्भाग्य से कुछ समय तक हम इस तथ्य को भूल गए कि मिट्टी एक इकोसिस्टम है और हमने सोचा कि मिट्टी बस फसलों तक पानी और पोषक तत्व पहुँचाने वाली एक सब्सट्रेट है।

लेकिन फिर सद्‌गुरु को धन्यवाद, मिट्टी बचाओ जैसे इस अभियान को धन्यवाद जिसे फिर से तैयार किया गया है। मैं वास्तव में सद्‌गुरु को उनकी पहल के लिए धन्यवाद देना चाहता हूँ। तो, मिट्टी बचाओ। चलिए इसे कर दिखाएं। मुझे लगता है कि यह वास्तव में उत्साहजनक है। बहुत बहुत धन्यवाद सद्‌गुरु, हम वास्तव में आपके कुछ विचार सुनना चाहेंगे।

सद्‌गुरु : मिट्टी को बचाने के लिए हमें तत्काल कार्यवाही की आवश्यकता क्यों है

सद्‌गुरु : नमस्कार और आप सभी को गुड आफ्टरनून। एसडीजी लैब की लगन और हाँ, यहाँ संयुक्त राष्ट्र में हमारे राजदूत और आईयूसीएन (प्रकृति के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ) की प्रतिबद्धता को देखकर बहुत अच्छा लगा।

मैं नहीं चाहता कि आप लोग सिर्फ यह कहें, ‘सद्‌गुरु, बहुत शानदार!,’ और फिर घर जाकर सबकुछ भूलकर सो जाएँ। एक पीढ़ी के रूप में हमें यह समझने की जरूरत है कि अगर हम अभी सही काम करते हैं, तो हम मुसीबत की कगार से पीछे हट सकते हैं - अगर हम सही चीज़ें करें। करने के लिए सही चीज़ क्या है? बहुत से वैज्ञानिक हैं जिन्होंने अपना जीवन मृदा विज्ञान में लगा दिया, लेकिन किसी वजह से कभी उनकी बात नहीं सुनी गई। दुनिया का लगभग हर देश, आज भी, काफी हद तक मिट्टी को एक जड़ पदार्थ के रूप में देखता है, जिसे आप कुछ रसायन डालकर ठीक कर सकते हैं।

इस ब्रह्मांड में मिट्टी सबसे बड़ी जीवित प्रणाली है। ऊपर की 15 से 18 इंच की मिट्टी, इसमें जो जादू है, वह अविश्वसनीय है। अगर आप उसमें मृत्यु को भी बो दें तो उससे जीवन अंकुरित होगा। ब्रह्मांड में कहीं भी ऐसा दूसरा पदार्थ या जगह नहीं है जिसे हम जानते हैं। लेकिन हम इसके साथ ऐसा बर्ताव कर रहे हैं जैसे यह किसी तरह की चीज़ है जिसे हम इस्तेमाल करके छोड़ सकते हैं। मगर छोड़ने की कोई गुंजाइश ही नहीं है क्योंकि वह इकलौती जगह जहाँ आप कुछ भी वापस रख सकते हैं, वह मिट्टी है, वाकई। हम इसी से पैदा हुए हैं, हम इसी से पलते हैं। जब हम मर जाते हैं, तो उसी के पास वापस जाते हैं।

हम लिंग, जाति, धर्म, देश और तमाम अंतरों को बताने में व्यस्त रहे हैं। लेकिन मिट्टी एकजुट करने वाला कारक है। यह सिर्फ पारिस्थितिकी घटकों को एकजुट करने के लिए नहीं है, इंसान के रूप में भी हमारे पास एक जैसा आधार हो, अपने बीच एक कॉमन डिनोमिटेटर खोजना सबसे महत्वपूर्ण है। वरना अच्छे इरादों के बावजूद हम समाधान नहीं खोज पाएंगे। हम केवल समस्याओं को और अधिक बढ़ाएंगे जो हम करते आ रहे हैं क्योंकि हम हमेशा आपके और मेरे बीच के अंतर को देखते हैं। हम सब मिट्टी से आते हैं, और वापस मिट्टी में चले जाते हैं। तो सवाल है कि क्या यह हमें जीवित रहते मिलेगी या दफनाए जाने पर ही मिलेगी? सवाल बस सिर्फ यही है।

तो, हम क्या माँग रहे हैं? बहुत से जटिल समाधान हैं जो बहुत से लोग पेश कर रहे हैं, तकनीकें, एप्लीकेशन। मैं उन सबका सम्मान करता हूँ। लेकिन इन सबके काम करने के लिए, हमारे पास ठीक-ठाक जीवंत मिट्टी होनी चाहिए। अगर मिट्टी में जान नहीं है, तो आपकी तकनीक, आपके एप्लीकेशन, सभी महान आइडिया, कुछ भी काम नहीं करेंगे क्योंकि यह जीवन बनाने वाली चीज़ है। क्या मैं आपको एक कहानी सुना सकता हूँ?

मनुष्यों के रूप में हमें सृष्टि में अपनी जगह के प्रति जागरूक हो जाना चाहिए

2060 में ऐसा हुआ। वैज्ञानिकों के एक दल ने भगवान से एप्वाइंटमेंट मांगा। उन्हें मिल गया और वे वहाँ गए और भगवान से कहा, ‘हे बुज़ुर्गवार! आपने सृष्टि काफी अच्छी बनाई है। लेकिन आज हम भी वह सब कुछ कर सकते हैं जो आप कर सकते हैं। अब आपको रिटायर हो जाना चाहिए।’

भगवान बोले, ‘अच्छा, ऐसा है? आप लोग क्या कर सकते हैं?’

उन्होंने कहा, ‘यह देखिए’। उन्होंने थोड़ी मिट्टी खोदी, एक मानव शिशु की धुंधली छवि बनाई, कई तरह की चीज़ें कीं और कुछ मिनटों में वहाँ एक जीवित बच्चा था।

भगवान बोले, ‘अरे, यह तो काफी अच्छा था – लेकिन पहले अपनी मिट्टी लेकर आओ।’

आपने जीवन के रूप में जो कुछ भी देखा है, चाहे वह कोई कीड़ा मकोड़ा हो, पशु, पक्षी हो, पेड़ हो, पुरुष या महिला, यह सब मिट्टी से आए हैं। उसी सामग्री से हम जीवन का निर्माण कर पाते हैं। उसी एक चीज के कारण जीवन का चक्र चल रहा है। हर चीज के लिए कई जटिल समाधान हो सकते हैं, लेकिन सबसे सरल चीज जो हमें समझने की जरूरत है, वह है सूक्ष्म जीवन (माइक्रोबियल लाइफ) जिसके बारे में स्टीवर्ट ने बहुत स्पष्ट रूप से बात की। यह बहुत जटिल है। यह कैसे जीवित रहता है? यह कैसे फलता-फूलता है?

एक बात यह है कि मिट्टी में मौजूद सूक्ष्म जीवों को हमारी तरह भोजन की जरूरत होती है क्योंकि इस पृथ्वी पर जीवन इसी तरह बनता है। पृथ्वी पर ऐसा कोई जीवन नहीं है जो बिना कुछ खाए अपने आप जीवित रह सकता है। मिट्टी में मौजूद यह जैविक सामग्री उनका भोजन है। जीवित रहने के लिए उन्हें कार्बन की जरूरत होती है। और वे कई तरह की दूसरी गतिविधियाँ करते हैं। यह ब्रह्मांड की सबसे जटिल साझेदारी है। और हम इसके बारे में बहुत कम जानते हैं, जैसा कि आज वैज्ञानिक खुलेआम स्वीकार कर रहे हैं।

जैविक सामग्री को बढ़ाने से उर्वरकों की जरूरत कम हो जाती है

जब हम इनके बारे में इतना कम जानते हैं, तो यह सोचना मूर्खता होगी कि हम इनके मालिक हैं। एक महत्वपूर्ण बात है कि धरती पर मानव जीवन और बाजार प्रणालियों को नुकसान पहुँचाए बिना प्राकृतिक चक्रों को जितना संभव हो, बहाल किया जाए। प्राकृतिक चक्र को बहाल करने का मतलब है कि इन सूक्ष्म जीवों को खाने के लिए भोजन दिया जाए। उन्हें भोजन से वंचित क्यों किया जा रहा है? इसकी शुरुआत तब हुई, जब 1914 में जर्मन वैज्ञानिकों ने नाइट्रोजन युक्त उर्वरक का ईजाद किया। लोगों ने इस जादुई पाउडर को लेकर जमीन में डाला और फसलें लहलहाने लगीं।

मान लीजिए आप काफी स्वस्थ हैं, और आप डॉक्टर के पास गए और डॉक्टर ने कहा कि आपका कैल्शियम, आयरन और फोलेट का स्तर ठीक नहीं है और उसने आपको तीन गोलियां दीं। अगले दिन आपने उन्हें खाया और आपको वाकई अच्छा महसूस हुआ। फिर आपने फैसला किया, ‘बस यही खाना है। तीन के बदले मैं 300 खाउंगा और मुझे अब भोजन की जरूरत नहीं है।’ ठीक ऐसा ही मिट्टी के साथ हुआ है। उन रसायनों को डालते ही हम सोचने लगे, इससे सब कुछ हो जाएगा। नियंत्रित तरीके से वह आज भी बहुत अच्छा काम करता है। अगर आप खेती से सभी रसायनों को हटा दें तो पृथ्वी पर हमारा खाद्य उत्पादन घटकर अभी की तुलना में सिर्फ़ 25% रह जाएगा। यह एक बड़ी आपदा होगी, यह वास्तव में मौत होगी।

तो हम इसके बारे में सोच भी नहीं सकते। अगर आप जैविक तत्व बढ़ाएंगे, तो रसायनों का इस्तेमाल धीरे-धीरे कम होता जाएगा। और हमें इसी तरह चलना है। जैविक तत्व को कैसे बढ़ाएं? सिर्फ दो चीज़ें हैं - वनस्पति जीवन, पशु जीवन। जैविक तत्व को वापस डालने का कोई दूसरा तरीका नहीं है।

जैविक तत्व के स्रोत और किसानों के लिए प्रोत्साहन जरूरी हैं

हम कार्बन सिक्वेसट्रिंग और कई दूसरी चीजों के बारे में अंतहीन बात कर सकते हैं। लेकिन, महत्वपूर्ण बात यह है कि अगर आप जैविक तत्व को बढ़ाते हैं, तो मिट्टी में सूक्ष्मजीवी जीवन अपने आप बढ़ जाएगा, और वे हमारे जीवन के आधार हैं। हम उनकी गतिविधियों का नतीजा हैं, विकास के संदर्भ में भी और आज एक इकोलॉजिकल प्रजाति के रूप में भी। जब हम इकोलॉजी कहते हैं, तो यह कोई विषय-वस्तु नहीं है - हम खुद इकोलॉजी हैं। आपके शरीर का साठ प्रतिशत हिस्सा माइक्रोबियल जीवन है। केवल चालीस प्रतिशत आपकी पेरेंटल जेनेटिक्स है।

आप ही पर्यावरण भी हैं। और हमें लगता है कि हम पर्यावरण को ठीक कर देंगे – यही दूरी हमारे लिए बहुत सारी समस्याएं पैदा कर रही है। तो आसान बात यह है - माइक्रोब्स के भोजन को वापस डाल दीजिए। इस जैविक तत्व को वापस डालने के लिए, आपको या तो पौधों के कूड़े या जानवरों के अपशिष्ट की जरूरत होगी। इसके लिए आपको एक नीतिगत प्रोत्साहन की जरूरत है, वरना किसान इस तरफ वापस नहीं जाएंगे। पचास साल पहले हर किसान यह बात जानता था और वे इसे कर रहे थे। आज शायद दो पीढ़ियों में हमने इसे खो दिया है। हमें खेत में पौधों या पशुओं के अपशिष्ट को डालना होगा वरना आप मिट्टी में जैविक तत्व वापस नहीं ला सकते। लेकिन इसके लिए प्रोत्साहन की जरूरत है।

मिट्टी में जैविक तत्व के आधार पर उत्पादों का लेबल

अभी उत्तरी यूरोप में, मिट्टी में औसत जैविक तत्व 1.48% है। दक्षिणी यूरोप में, यह करीब 1.2% है। अमेरिका में यह लगभग 1.4% से 1.5% है। भारत के अधिकांश इलाकों में यह सिर्फ 0.68% है। और अफ्रीका में, यह 0.3% है, जो गंभीर मरुस्थलीकरण है।

इसलिए यहाँ जब आप सब इकट्ठा हैं, तो यहाँ होने के नाते, यदि कोई राष्ट्रीय सरकार इसकी घोषणा करती है कि यदि उनके किसान अपने खेत में जैविक तत्व बढ़ाएंगे, जिसका परीक्षण करना बहुत आसान है, तो उन्हें इसके लिए प्रोत्साहन दिया जाएगा। मिट्टी में जैविक तत्व का परीक्षण किसान द्वारा खेत पर ही किया जा सकता है। मान लीजिए, अगर कोई किसान इसे तीन प्रतिशत तक ले जाता है, तो सरकार को उसे एक निश्चित प्रोत्साहन देना होगा। फिर, जब आप बाज़ार में अपने उत्पाद लेकर जाएंगे, तो कोई व्यक्ति ऐसा हो जो आपके फल या सब्जी पर चिह्नित कर दे, ‘यह उस भूमि से आता है जिसमें 3% जैविक तत्व है।’

यह बताने के लिए पर्याप्त विज्ञान है कि अगर मिट्टी में 3% जैविक तत्व है, तो फल या सब्जी में सूक्ष्म पोषक तत्व (माइक्रोन्यूट्रिएंट) क्या होंगे और आपको क्या स्वास्थ्य लाभ होंगे। हमें बस उसे व्यवस्थित करना है, फिर बाजार खुद किसान को प्रोत्साहन देगा।

अगर आप कोई फल या सब्जी खरीदना चाहते हैं, जो 6% जैविक तत्व वाले मिट्टी में उगाई गई हो, तो जाहिर है, उसकी कीमत ज्यादा होगी, लेकिन आप 8 संतरे खाने के बजाय 1 खाकर भी उतनी ही पौष्टिकता पा सकते हैं। यही फर्क होगा। तो यह चीज़ अभी होनी चाहिए, कल नहीं। क्योंकि अगर आप अभी नीति बनाना शुरू करते हैं तो उसे कार्य रूप में साकार करने में 8 से 20 साल तक का समय लगेगा, फिर यह दुनिया भर में हो पाएगा। लेकिन अगर हम अभी नीतियां नहीं बनाते हैं ...

एक और प्रोत्साहन : किसानों के लिए कार्बन क्रेडिट

प्रश्नकर्ता: मैं भागीदारी को प्रेरित करने के लिए एक कार्बन-आधारित फाइनेंसिंग सिस्टम या करेंसी की व्यावहारिकता और संभावना पर आपके विचार जानना चाहूंगा। क्या आपको लगता है कि भविष्य में ऐसा होगा?

सद्‌गुरु: मुझे भविष्यवाणियां पसंद नहीं हैं, क्योंकि भविष्यवाणियां मौजूदा बेजान तथ्यों के आधार पर की जाती हैं, इस बात का ध्यान नहीं रखा जाता कि अभी आपके दिल में क्या धड़क रहा है। इसलिए मुझे कोई भविष्यवाणी नहीं करनी है, बल्कि मेरे पास एक योजना है। हमारे पास योजना और उस पर अमल करने की इच्छाशक्ति चाहिए। क्या हमारे पास जरूरी लगन है? क्या हम इतना ध्यान दे पा रहे हैं कि मुसीबत में पड़ने के बाद रोना न पड़े? हम आपदाओं के घटित होने से पहले उन्हें कम कर सकते हैं।

इसलिए अभी लोगों को सक्रिय करना महत्वपूर्ण है। कार्बन-ज़ब्ती और कार्बन मार्केट - ये महत्वपूर्ण हैं। पहला प्रोत्साहन सरकार को देना होगा। दूसरा प्रोत्साहन निगमों और दूसरे लोगों से आना चाहिए जो कार्बन क्रेडिट देंगे। अगला बाजार से आएगा। कुल मिलाकर किसानों को बड़ा फायदा होगा। यह हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

अभी भारत की 63 फीसदी आबादी खेती करती है लेकिन 2 फीसदी किसान भी नहीं चाहते कि उनके बच्चे किसान बनें। उनमें से बहुत से लोग आत्महत्या करना चाहते हैं क्योंकि गुजारा करना असंभव है। यह बहुत जरूरी है कि अगले 10-15 सालों में हम खेती को ऐसा बना दें कि एक किसान कम से कम एक इंजीनियर या डॉक्टर या वकील जितना कमा सके। वरना मिट्टी को भोजन में बदलने का यह जादू करने का हुनर ​​किसी में नहीं रह जाएगा। यह हमारे जीवन के लिए सबसे बड़ी और सबसे महत्वपूर्ण चीज है।

हम उदासीनता चुनेंगे या जिम्मेदारी?

अभी यूएन एफएओ के अनुसार पृथ्वी पर जैव विविधता का नुकसान प्रति वर्ष 27,000 प्रजातियों की दर से हो रहा है। इस दर से लगभग 30-35 सालों में हम एक ऐसे मुकाम पर पहुँच जाएँगे जहाँ अगर हम मिट्टी को पुनर्जीवित या बेहतर बनाना चाहें  तो उसमें 150-200 साल लगेंगे जो एक आपदा होगी। इसीलिए तत्काल कार्यवाही करने की जरूरत है।

यह अभियान लोगों को प्रेरित करने के लिए है। अमूमन हमारी सरकारें लोकतांत्रिक तरीके से चुनी जाती हैं। लोगों के जनादेश को पूरा करने के लिए आप उन्हें 4-5 साल का कार्यकाल देते हैं। क्या किसी देश के अधिकांश लोगों ने खड़े होकर कहा, ‘हम दीर्घकालिक नीति निर्धारण के लिए तैयार हैं। हम कुछ ऐसा करने के लिए तैयार हैं जो हमारे बच्चों और उनके बच्चों की भलाई के लिए हो। हम निवेश करने और उस दिशा में काम करने के इच्छुक हैं?’ लोगों ने यह नहीं कहा है। इसलिए सरकारें सिर्फ चार से पांच साल के भीतर लोगों के जनादेश को पूरा करने की कोशिश करती हैं।

मिट्टी के लिए बोलिए जो हमारे जीवन का आधार है

दुनिया में 5.26 अरब लोग हैं जिनके पास [राजनीतिक] मताधिकार है। इन 100 दिनों में हम चाहते हैं कि 3-4 अरब लोग मिट्टी के बारे में बात करें। आपको मेरा समर्थन करने की जरूरत नहीं है। मिट्टी के बारे में अपनी बात कहें। सोशल मीडिया पर, सड़क पर, अपनी कार पर, अपने चेहरे पर - आप जहां चाहें, हर दिन मिट्टी के बारे में कुछ कहें। यह मजाक नहीं है। अगर हम अभी काफी काम नहीं करते हैं तो 20 साल में गंभीर रूप से पछताएंगे। चलिए, हम पछताने की बात नहीं करते।

यहाँ मौजूद हर किसी को मेरा आभार। इस पृथ्वी पर अभी हमारा समय है। क्या हम जीवन को एक जिम्मेदार तरीके से जिएंगे या एक घटिया और गैर-जिम्मेदार तरीके से? हमारे पास सिर्फ यही चुनाव है। और अभी यूएन एफएओ के अनुसार हम वह भोजन खा रहे हैं जो अजन्मे बच्चे के हिस्से का है। हम इस समय जरूरत से ज्यादा खपत कर रहे हैं। भावनाओं के नज़रिये से देखें तो अगर हम एक अजन्मे बच्चे का खाना खाते हैं तो यह मानवता के खिलाफ अपराध है। हमें खुद को ऐसा करने से रोकना होगा।