मिट्टी बचाओ

भविष्य में होने वाले गृह-युद्ध को अभी रोकना होगा - सद्‌गुरु ‘द डेली शो विथ ट्रेवर नोआ’ पर

ट्रेवर नोआ एक कॉमेडियन, राजनीतिक टिप्पणीकार और अत्यंत लोकप्रिय ‘द डेली शो’ के टेलीविजन होस्ट हैं। उन्होंने मिट्टी बचाओ अभियान के बारे में बात करने के लिए सद्‌गुरु को अपने शो पर आमंत्रित किया।

ट्रेवर: सद्‌गुरु, द डेली शो में आपका स्वागत है। अब आप देखिए, यह मेरे लिए अजीब है, क्योंकि हमने इस इंटरव्यू को शुरू करने की कोशिश की, और फिर हमारे सामने एक तकनीकी समस्या आई और अब हम फिर से इंटरव्यू शुरू कर रहे हैं। तो क्या अब मैं उतना ‘विश्वसनीय’ हूँ, जितना कि मैं एक गुरु के साथ हो सकता था?

सद्‌गुरु: बस, अपने सहज रूप में रहिए। ‘विश्वसनीय’ जैसी कोई चीज नहीं होती। कोई नहीं जानता कि विश्वसनीय क्या है, क्योंकि मनुष्य उन कई हजार चीजों का परिणाम है जिसे उसने जगह-जगह से इकट्ठा किया है।

ट्रेवर: यह बहुत गहरी बात है। ख़ैर, आपके साथ बहुत मज़ा आने वाला है– इतना तो तय है। वैसे आज सुबह जब मैं उठा तो मैं कल सुबह के मुकाबले काफी नाखुश था, क्योंकि मुझे आपके साथ इस इंटरव्यू के लिए बहुत रिसर्च करना था। मुझे पता चला कि कुछ युद्ध सा चल रहा है। मैं ये तो जानता था कि हम जलवायु संकट का सामना कर रहे हैं। और अब, आपकी बदौलत, मैं ये भी जानता हूँ कि हम मिट्टी के संकट का भी सामना कर रहे हैं, जहाँ कुछ लोगों का अंदाज़ा है कि अगर हम कुछ नहीं करेंगे, तो 50 साल में हम शायद कुछ भी उगा पाने लायक नहीं रह जाएंगे, क्योंकि हमारे पास मिट्टी खत्म हो जाएगी। मेरी अज्ञानता के लिए माफ कीजिएगा – मैं वाक़ई नहीं जानता था कि मिट्टी भी एक ऐसी चीज़ है, जो ख़त्म होती जा रही है।

सद्‌गुरु: पिछले 50 से 100 सालों की औद्योगिक खेती में ऐसा हुआ है – मिट्टी का जैविक तत्व नष्ट हो रहा है क्योंकि उसकी भरपाई नहीं हो रही है। मिट्टी को फिर उपजाऊ बनाने के लिए, हमें पेड़-पौधों या पशुओं से मिलने वाला अपशिष्ट (कूड़ा) चाहिए। ये दोनों, खेतों से गायब हो चुके हैं क्योंकि हम यह सोचने लगे कि हम मशीनों से ही सब कुछ कर सकते हैं।

पिछले 50 से 100 सालों की औद्योगिक खेती में ऐसा हुआ है – मिट्टी का जैविक तत्व नष्ट हो रहा है क्योंकि उसकी भरपाई नहीं हो रही।

मशीनें वह काम कर सकती हैं जो पशु और मनुष्य कर रहे थे। लेकिन जैविक तत्व किसी मशीन से नहीं आ सकते। उसे वनस्पति या पशुओं के अपशिष्ट से आना है और वह हम मिट्टी में डाल नहीं रहे। अगर आप रेत में जैविक तत्व मिला दें, तो वह मिट्टी बन जाती है। अगर आप मिट्टी से जैविक तत्व निकाल दें, तो वह रेत बन जाती है। फिलहाल, मरुस्थलीकरण सबसे गंभीर समस्याओं में से एक है। जैसा कि आपने कहा, 50 से 60 साल के समय में, फसल उगाने के लिए हमारे पास पर्याप्त मिट्टी नहीं होगी।

लेकिन ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि 2045 तक, वैज्ञानिकों का अंदाज़ा है कि हम अभी जो उगा रहे हैं, उससे 40 फीसदी कम भोजन उगा पाएंगे और हमारी आबादी 9.2 अरब से भी ज्यादा होगी। वह ऐसी दुनिया नहीं होगी जिसमें आप रहना चाहेंगे। यह वह दुनिया नहीं है जिसे आप अपने बच्चों के लिए छोड़कर जाना चाहते हैं। तो, हमें अभी काम करना होगा। अभी हरकत में आना और इसे अपनी नीति में शामिल करना बहुत महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि यूएनएफएओ (यूनाइटेड नेशंस फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन) के अनुसार, हर साल औसतन 27,000 प्रजातियां विलुप्त हो रही हैं।

ट्रेवर : ऐसा हमारी खेती के तरीके के कारण हुआ है या अस्तित्व का एक कुदरती नतीजा है?

सद्‌गुरु : क्योंकि सूक्ष्म जीवों के लिए मिट्टी में कोई जैविक तत्व नहीं बचा है। जैसा कि आप जानते हैं, आँतों में मौजूद सूक्ष्म जीवों के बिना, आप उस भोजन को पचा नहीं सकते, जिसे आप खाते हैं। इसी तरह, मिट्टी में सूक्ष्म जीवों की सक्रियता के बिना, पौधों को मिट्टी से जरूरी पोषण नहीं मिल पाता। इसलिए, हम पौधों को बढ़ाने के लिए कैमिकल फेंक रहे हैं, लेकिन इस तरह पैदा किए जा रहे उत्पादों में जरूरी पोषण नहीं है। संयुक्त राज्य अमेरिका में 20वीं सदी की शुरुआत से लेकर अब तक के पोषण के स्तर [उगाए गए भोजन में] को मापने पर औसतन लगभग 90% की गिरावट पाई गई है।

1920 में आप जो एक संतरा खाते थे, उतना ही पोषण पाने के लिए आज आपको आठ संतरे खाने की जरूरत है। यह अव्यावहारिक है। हम उस स्थिति की तरफ जा रहे हैं, जहां भोजन का उत्पादन धीरे-धीरे कम हो रहा है। एफएओ की भविष्यवाणी है कि 2035 तक, भोजन की कमी के कारण दुनिया भर में दर्जनों गृहयुद्ध हो सकते हैं। और यह जरूरी नहीं कि यह अफ्रीकी देशों या दक्षिण अमेरिका में हो। यह कहीं भी हो सकता है। विश्व खाद्य कार्यक्रम 2035 तक शिकागो, इलिनोइस के आसपास अकाल की बात कर रहा है।

एफएओ की भविष्यवाणी है कि 2035 तक, भोजन की कमी के कारण दुनिया भर में दर्जनों गृहयुद्ध हो सकते हैं।

ट्रेवर: यह डरावना है। महामारी से पहले, मेरे ख्याल से एक तरह का घमंड था कि मनुष्य के पास सब कुछ है। हमें लगता था कि यह ऐसे ही चलता रहेगा। हम सुनते थे - कयामत की भविष्यवाणियां या दुनिया के एक बिंदु पर खत्म होने की चेतावनी या धरती इंसानों के रहने लायक नहीं रह जाएगी, ऐसी बातें सुनते रहते थे। लेकिन महामारी के आने तक, मेरे विचार से हमारे पास कोई स्पष्ट उदाहरण नहीं था कि दुनिया ठहर सकती है, या ख़त्म हो सकती है।

लोग यहाँ तक कहते थे, ‘आप दुनिया को कैसे रोक सकते हैं? आप यात्राओं को कैसे बंद कर सकते हैं? आप देशों को कैसे रोक सकते हैं?’ और अब हमने यह सब होते देख लिया है।

सद्‌गुरु: यह कयामत की भविष्यवाणी नहीं है। यह जगाने वाली आवाज़ है। हम ऐसे समय में हैं, जहाँ अगर हम अभी सही चीज़ें करें तो अगले 15 से 20 साल में हम एक महत्वपूर्ण बदलाव ला सकते हैं।

मिट्टी में कम से कम 3-6 फीसदी जैविक तत्व होना चाहिए। अगर आप मिट्टी के जैविक तत्व को बढ़ाकर 8-10 फीसदी तक कर दें, तो आपकी सिंचाई की जरूरत अभी के मुक़ाबले सिर्फ़ 30 फीसदी रह जाएगी क्योंकि जैविक रूप से समृद्ध मिट्टी में पानी को थामकर रखने की क्षमता होती है। अगर आप उसे बढ़ाकर 12-15 प्रतिशत तक कर दें, तो आपकी सिंचाई की जरूरत घटकर 10-15 प्रतिशत तक रह जाएगी। यानी 10 लीटर पानी के बदले, आप उसी फसल के लिए 1.5 लीटर पानी इस्तेमाल करेंगे। यही होना चाहिए। और हर जगह यही कहानी है।

अगर हम एक पीढ़ी के रूप में अभी हरकत में आते हैं, तो हम जरूरी नीतिगत बदलाव ला सकते हैं।

जब इकोलॉजी की बात आती है, जब मिट्टी की बात आती है, तो हमारी राष्ट्रीय सीमाएं, नस्ल, धर्म, जाति, वर्ग, लिंग, राजनीतिक विचारधारा – कुछ भी मायने नहीं रखता। यह एकजुट करने वाला कारक है। अगर हम एक पीढ़ी के रूप में अभी हरकत में आते हैं, तो हम जरूरी नीतिगत बदलाव ला सकते हैं, जो कोई रॉकेट साइंस नहीं है – पहले के किसान यह बात हमेशा से जानते थे, लेकिन पिछले 50 सालों में हम यह बात भूल गए हैं।

ट्रेवर: क्या आपको कोई संकेत मिला है कि सरकारें इस बारे में कोशिश करने और कुछ क़दम उठाने के लिए उत्साहित हैं?

सद्‌गुरु: पिछले दो सालों में, मैं कई राष्ट्र प्रमुखों, राजनेताओं और राजनीतिक दलों से बात करता रहा हूँ और हमने दुनिया के 730 राजनीतिक दलों को यह सुनिश्चित करने के लिए लिखा है कि वे मिट्टी और इकोलॉजी को अपने चुनाव घोषणापत्रों और राजनीतिक विचारधारा में शामिल करें। वे चाहे जिस चीज़ में विश्वास करते हों – दक्षिणपंथी, वामपंथी, या मध्यपंथी, वे जो भी हों, मिट्टी एक ऐसी चीज़ है, जो हम सभी के लिए एक सार्वजनिक कारक है।

हम हमेशा यह देखते हैं कि क्या चीज़ हमें बाँटती है – अब यह देखने का समय है कि क्या चीज़ हमें एक करती है। अगर आप इस ब्रह्मांड की चेतना और ऐसी चीज़ों को नहीं समझते, तो कम से कम आप यह समझिए कि आप मिट्टी से आए हैं, मिट्टी पर ही जीते हैं और मरने के बाद मिट्टी में ही मिल जाते हैं। पिछले दो सालों में मैंने यह देखा है कि हर कोई जानता है कि यह एक गंभीर समस्या है। हर कोई यह भी जानता है कि इसका समाधान क्या है। लेकिन ऐसा लगता है कि वे सब इंतज़ार कर रहे थे कि कोई मूर्ख आकर बिल्ली के गले में घंटी बांधे। तो मैं आ गया। मैं 65 साल का हूँ और मैं 30,000 किमी मोटरसाइकिल चला रहा हूँ।

हम हमेशा यह देखते हैं कि क्या चीज़ हमें बाँटती है – अब यह देखने का समय है कि क्या चीज़ हमें एक करती है।

ट्रेवर: सद्‌गुरु, मैं आपसे हमेशा के लिए बात करता रह सकता हूँ और मुझे लगता है कि इसीलिए लोग आपके कार्यक्रमों और सभाओं में आते हैं। वे आपकी किताबें पढ़ते हैं। वे देखना चाहते हैं कि आप क्या करने जा रहे हैं।

मिट्टी की यात्रा में, ऐसा महसूस होता है कि यह एक और चीज़ है जिसे हम उस सूची में जोड़ते हैं, जो सरकारों को करनी चाहिए, लोगों को करनी चाहिए, कि अगर हम इसे नहीं करेंगे, तो यह खत्म हो जाएगी।

सद्‌गुरु: यह बस एक और चीज़ नहीं है, ट्रेवर। मेरे हाथ में बहुत सारे काम हैं। लेकिन मैंने इसे इसलिए उठाया है क्योंकि एक पीढ़ी के रूप में, अगर हम अभी इसे नहीं करेंगे, तो हम वाकई बहुत पछताएंगे। अगर हम अभी इसे नीति में शामिल नहीं करेंगे और आगे 20 से 30 साल इसे छोड़ देंगे, तो बहुत देर हो जाएगी। यह अभी होना चाहिए। तो हम चाहते हैं कि 100 दिनों तक हर कोई मिट्टी की बात करे, अपने शब्दों में। अगर वे कुछ नहीं जानते तो हम अपनी वेबसाइट पर ढेर सारी जानकारी उपलब्ध कराएंगे।

वे उसे उठाकर अपना बनाकर इस्तेमाल कर सकते हैं, या खुद भी शोध कर सकते हैं – जैसे वे चाहें। अगर वे नहीं जानते कि और क्या कहें, तो बस हर रोज़ यह कहिए, ‘मिट्टी बचाओ, चलो इसे कर दिखाएं।’ अगर आप किसी को कोई मैसेज भेजते हैं, तो उसे ‘मिट्टी बचाओ’ से खत्म करें। अगर आप किसी को फोन करते हैं, तो कहिए, ‘मिट्टी बचाओ।’

ट्रेवर: मिट्टी बचाओ! आपसे बात करके बहुत अच्छा लगा, सद्‌गुरु। मिट्टी बचाओ, मेरे मित्र। यहाँ आने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।