सेहत और योग

गर्भावस्था के दौरान क्या
करें और क्या नहीं?

‘मदर्स-डे’ के अवसर पर, सद्‌गुरु बता रहे हैं कि भारतीय परंपरा में गर्भवती माताओं की देखभाल किस तरह की जाती थी और आज भी हम माँ और बच्चे के लिए एक अनुकूल माहौल कैसे पैदा कर सकते हैं।

प्रश्नकर्ता: हम पूरी जिंदगी अपने मन को सही तरह से ढालने की कोशिश करते रहते हैं। क्या इसके लिए उस समय कुछ किया जा सकता है, जब बच्चा अपनी माँ की कोख में होता है।  

सद्‌गुरु: गर्भधारण करने के पहले से लेकर गर्भधारण करने तक, फिर गर्भावस्था के अलग-अलग समय से लेकर बच्चे के पैदा होने तक, और फिर जब तक माँ बच्चे को अपना दूध पिलाती है, हर अवस्था में एक स्त्री को कैसे भोजन करना चाहिए, उसे क्या काम करना चाहिए, किस तरह से लोगों से मिलना चाहिए, किस तरह के रूपों को देखना चाहिए और किस तरह की ध्वनियाँ सुननी चाहिए – यह सब बताने के लिए भारत में एक पूरी प्रक्रिया थी। यह सब कुछ तय होता था, लेकिन अब जीवन बदल गया है।

आजकल, अधिकांश महिलाएं काम पर जाती हैं। उसे कई तरह के धुएँ, आवाज़ों, शोर, गाली-गलौच – तमाम चीज़ों का सामना करना पड़ सकता है। एक तरह से हम अजन्मे बच्चे के साथ भी ऐसा ही कर रहे हैं।

गर्भवती होने का मतलब सिर्फ प्रजनन नहीं है – इसका अर्थ है, अगली पीढ़ी का निर्माण।

शायद ही कोई ऐसी नौकरी है, जहाँ से आप डेढ़ साल के लिए छुट्टी लेकर वापस उसे ज्वाइन कर सकते हैं। कई वजहों से, हम अगली पीढ़ी के निर्माण की प्रक्रिया को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। हम उस पर पर्याप्त ध्यान नहीं दे रहे हैं। समय आने पर हमें इसकी भारी कीमत चुकानी होगी। हमारी आज की सामाजिक स्थितियां एक स्त्री को इस प्रक्रिया के लिए जरूरी समय और ध्यान देने की गुंजाइश नहीं देतीं।

गर्भवती होने का मतलब सिर्फ प्रजनन नहीं है – इसका अर्थ है, अगली पीढ़ी का निर्माण। इस धरती पर हम जितनी चीज़ों का उत्पादन करते हैं, क्या उनमें शानदार मनुष्यों का उत्पादन करना सबसे महत्वपूर्ण नहीं है? लेकिन हमने ऐसे सामाजिक और आर्थिक हालात बना दिए हैं कि जिस तरह से उसका ध्यान रखा जाना चाहिए, उस तरह रखना लगभग असंभव है। कुछ महिलाएं या परिवार कुछ हद तक ऐसा कर सकते हैं लेकिन बड़े पैमाने पर समाज में इसका सवाल ही नहीं उठता।

शरीर की सहज बुद्धि को सहारा

इंसानी शरीर की बुद्धिमत्ता ऐसी है कि शिशु के लिंग के आधार पर, माँ के दूध की गुणवत्ता भी अलग हो जाती है। यह शरीर कोई अनगढ़ मशीन नहीं है, यह इस धरती पर मौजूद सबसे बढ़िया टेक्नोलॉजी है। इसलिए हमें इसे बहुत ध्यान से रखना चाहिए। विकास के चरण में प्रकृति ने मानव प्रणाली के डिजाइन को सटीक बनाने में लाखों साल लगाए है। लेकिन आर्थिक खुशहाली की अपनी अधीरता में, हम उस पर इतना ध्यान नहीं दे रहे हैं, जो उसे सर्वश्रेष्ठ स्तर पर काम करने और खास तरह के इंसानों को पैदा करने के लिए चाहिए।

तो सवाल है कि जब शिशु गर्भ में हो तब उसके दिमाग को कैसे विकसित करें? यह बहुत महत्वपूर्ण है कि जिस माहौल में बच्चा बढ़ रहा है, उसमें कम से कम गड़बड़ी, सही प्रकार का स्पंदन, सही तरह की ध्वनियां और सही तरह का भोजन हो। लेकिन आज, जब दुनिया के कई हिस्सों में गर्भवती महिलाएं कुपोषण का शिकार हैं, तो सही स्पंदन और वातावरण उत्पन्न करने का सवाल ही कहाँ उठता है?

नए जीवन के लिए एक ऊर्जावान स्थान

इसके लिए एक चीज़ यह की जा सकती है कि हर घर में और अगर संभव हो, तो हर कार्यस्थल पर एक ऊर्जावान स्थान हो। हम ऐसी ऊर्जावान वस्तुएं भी बना सकते हैं, जो वह अपने शरीर पर धारण कर सकती हैं। यह बहुत अच्छा समाधान नहीं है, लेकिन कुछ हद तक यह बाहरी स्थितियों के प्रभाव को बेअसर कर देता है। अगर वह एक ऊर्जावान स्थान में रहती और सोती है, तो कोख में पल रहे नए जीवन को कुछ राहत तो मिलेगी।