प्रोजेक्ट संस्कृति

प्रोजेक्ट संस्कृति : विश्व को ईशा संस्कृति की भेंट

भाग 2 : कलारीपयट्टू मॉड्यूल

पाँच कड़ियों की इस श्रृंखला में, हम आपके सामने ईशा संस्कृति के विद्यार्थियों, पूर्व-छात्रों और स्वयंसेवकों की नज़रों से प्रोजेक्ट संस्कृति की परदे के पीछे की कहानियाँ आपके सामने लेकर आ रहे हैं। इस कड़ी में ईशा संस्कृति के पूर्व छात्र और कलारीपयट्टू शिक्षक लोकेश जगदीशन हमें कलारीपयट्टू मॉड्यूल के, जिसे ऑनलाइन सिखाना खास तौर पर मुश्किल है, परदे के पीछे ले जा रहे हैं।  

एक प्राचीन मार्शल आर्ट के प्यार में

लोकेश जगदीशन - जैसे ही वे कमरे में प्रवेश करते हैं, उनका पुष्ट, प्रखर और तेज़ व्यक्तित्व आसानी से नज़र में आ जाता है। अगर आप ईशा के कार्यक्रमों और गतिविधियों पर नज़र रखते हैं, तो ईशा हठ योग और कलारीपयट्टू (कलारी) अभ्यास के चित्रों में आप उन्हें देखने से चूक नहीं सकते। ईशा संस्कृति के एक पूर्व छात्र लोकेश सबसे प्राचीन मार्शल आर्ट कलारी के विशेषज्ञ हैं, जिसे स्वयं सप्तऋषि अगस्त्य ने भारतीय संस्कृति को दिया था।    

बचपन से ही लोकेश मार्शल आर्ट्स की सारी विधाओं की ओर आकर्षित थे। जब उनके माता-पिता ने उन्हें ईशा संस्कृति में जाने का सुझाव दिया, तो लोकेश का बिल्कुल भी मन नहीं था। चूँकि सिर्फ उन्हें ही दाखिला मिलता है, जो इच्छुक होते हैं, इसलिए वे यह सोचकर इंटरव्यू में गए कि वे ‘ना’ बोल देंगे। अब वह मुस्कुराहट के साथ कहते हैं, ‘समस्या’ यह थी कि वे हमें तीन घंटे के ट्रेक पर लेकर चले गए और मैं बस फिदा हो गया। मेरे माता-पिता को विश्वास नहीं हो रहा था।’

जल्दी ही लोकेश ने ईशा संस्कृति में दाखिला ले लिया था और फिर उनका जीवन पूरी तरह बदल गया। हमेशा शारीरिक रूप से सक्रिय और स्कूल की सभी गतिविधियों में शामिल लोकेश ने संगीत और नृत्य को सीखने का पूरा आनंद लिया। लेकिन जब विशेषज्ञता का समय आया, तो उन्होंने खुद को दोराहे पर पाया। ‘मुझे लगा कि मुझे कलारीपयट्टू और योग चुनना चाहिए क्योंकि मुझे अपने अंदर एक तरह के संतुलन की जरूरत थी। लोगों ने मुझे दूसरे विषय लेने के सुझाव दिए लेकिन मेरे दिमाग में तय हो चुका था,’ वह साझा करते हैं। 

लोकेश अब पिछले चार सालों से ईशा हठ योग और कलारीपयट्टू के शिक्षक हैं। ईशा संस्कृति में आने के बाद से कलारीपयट्टू उनका पहला प्यार रहा है।

कलारी अभ्यास कैसे जीवन के हर पहलू पर असर डालता है

उन्होंने अपने स्कूली दिनों के दौरान कलारी के चार अलग-अलग स्टाइल सीखे। इसलिए लोकेश और उनके बैच के साथी इस कला को संपूर्णता में समझते हैं और किसी एक शैली पर ठहरे हुए नहीं हैं। कलारी के अभ्यास के प्रभावों के बारे में पूछे जाने पर वह कहते हैं, ‘शरीर और मन की सहनशक्ति का स्तर बढ़ता है। अब मैं हर गुजरते साल के साथ खुद पर और ज़ोर दे सकता हूँ। बेशक लचीलापन और शक्ति बढ़ती है लेकिन कलारी के बारे में एक अनोखी चीज़ यह है कि हालांकि यह एक मार्शल आर्ट और युद्ध प्रणाली है, लेकिन यह सिर्फ उसके लिए काम नहीं करता – यह जीवन के हर पहलू पर असर डालता है। मैं तनावपूर्ण स्थितियों में जिस तरह सोच सकता हूँ, वह क्षमता जबरदस्त तरीके से बढ़ी है।’

जब एक दिन देर रात लोकेश को प्रोजेक्ट संस्कृति के बारे में फोन आया, जो एक विशाल और बहुत चुनौतीपूर्ण प्रोजेक्ट था, तो दिमाग की यह स्पष्टता न सिर्फ लाभदायक बल्कि एक जरूरत साबित हुई। 

बहुत ही चुनौतीपूर्ण प्रोजेक्ट पर शुरुआत

यह कोई आश्चर्य की बात नहीं थी कि सद्‌गुरु द्वारा प्रोजेक्ट संस्कृति की सार्वजनिक घोषणा के पाँच दिन के अंदर सभी छह कार्यक्रमों का पंजीकरण फुल हो गया। ‘हमें पता था कि अगर सद्‌गुरु कोई घोषणा करते हैं, तो उसमें बड़े पैमाने पर भागीदारी होगी। हमें 52 देशों से लगभग 600 पंजीकरण मिले,’ लोकेश साझा करते हैं।

अब जबकि ऑनलाइन कलारीपयट्टू प्रोग्राम शुरू होकर आराम से चल रहा है, और दुनिया भर के प्रतिभागियों तक पहुँच रहा है, यह विश्वास करना मुश्किल है कि यह एकदम पहली कोशिश है। संस्कृति के इस पूर्व छात्र ने शून्य से शुरू करके पूरे 12 घंटे का प्रशिक्षण मॉड्यूल तैयार किया, जो इस प्राचीन अभ्यास को लोगों के घरों तक ले जाता है। प्रोजेक्ट संस्कृति के अलग-अलग मॉड्यूल्स में से, कलारीपयट्टू मॉड्यूल सबसे व्यापक और जटिल है और इसमें ट्रेनिंग, प्रदर्शन और दूसरे वीडियो, सुधार सत्र, प्रशिक्षकों और प्रतिभागियों के बीच संवाद और लाइव प्रश्नोत्तर सत्र शामिल हैं। 

इस प्रोजेक्ट के हर पहलू में जितनी तैयारी और ध्यान लगाना था, उसके कारण बहुत सी चुनौतियां पैदा हुईं और उनसे होकर गुजरने तथा उसे साकार करने में कई सीखने वाले अनुभव मिले।

बहुत सी मुश्किलों से होकर गुजरना

इस कला रूप को एक पैकेज मॉड्यूल के रूप में पेश करने का विचार, ताकि वे उसका आनंद और लाभ उठा सकें - एक बिल्कुल नई चीज़ थी जिसने कई जीवंत चर्चाओं को जन्म दिया। कलारीपयट्टू के एक जटिल मार्शल आर्ट होने के कारण इसकी ट्रेनिंग की कई जरूरतें हैं, जिन्हें स्थिति के अनुकूल बनाना पड़ता है, जैसे कि जगह की सीमाएं। 

यह जानते हुए कि उन्हें दूसरे मॉड्यूल्स के स्टैंडर्ड को मैच करना है, कलारी टीम ने अपने दृढ निश्चय और लगन से एक-एक करके अपना मॉड्यूल बनाया। अपनी विशेषज्ञता और सालों की ट्रेनिंग से, टीम ने सुरक्षा दिशा-निर्देश तैयार किए और मूलभूत चीज़ों, गुणवत्ता और लाभों से समझौता किए बिना एक सामान्य घरेलू जगह के आकार के लिए इस अभ्यास को तैयार किया।

यह तय करके कि मॉड्यूल को इंटरैक्टिव होना चाहिए, उन्होंने सुधार में सहायता के लिए स्वयंसेवकों की एक टीम बनाई। कलारी टीम के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक थी, प्रतिभागियों के लिए प्रदर्शन वीडियो रिकॉर्ड करना ताकि वे उसे देखकर सटीक शारीरिक गतिविधियां सीख सकें। थकाऊ डेमो रिकॉर्डिंग कार्य के बाद एक और मुश्किल काम था - वॉयसओवर रिकॉर्ड करना। यह काम लोकेश के पास आया, जो प्रोजेक्ट को खत्म करने के लिए देर रात तक, बल्कि सुबह तक भी, दो स्वयंसेवकों के साथ रिकॉर्डिंग स्टुडियो में बैठे रहते थे।

प्रतिभागियों की राय

मॉड्यूल के लिए कलारी की मूल बातों पर टिके रहने का फैसला करके यह टीम एक संतुलित अभ्यास बनाने में कामयाब रही जिससे सभी स्तरों पर अभ्यास करने वालों को लाभ हुआ। कार्यक्रम को आम जनता के लिए पेश किए जाने से पहले, ईशा स्वयंसेवकों के लिए ट्रायल प्रोग्राम आयोजित किए गए थे, जिनमें से 40 स्वयंसेवक प्रतिभागियों की मदद करने के लिए उपलब्ध हैं। उनका समय और लगन, इस पेशकश को संभव बनाने में महत्वपूर्ण है।

एक ट्रायल प्रतिभागी, श्रवंत वल्लुरु, जो पिछले 11 सालों से योग का अभ्यास कर रहे हैं, कहते हैं कि उन्हें उम्मीद थी कि कलारी अभ्यास मुश्किल नहीं होगा। वह आगे कहते हैं, ‘मुझे यह महसूस नहीं हुआ कि मेरा शरीर किसी भी रूप में थक रहा है या तनाव में है, लेकिन निश्चित रूप से मेरे शरीर की हर मांसपेशी का इस्तेमाल हुआ। मुझे अपने शरीर को इस तरह से इस्तेमाल करना पड़ता है, जैसे मैं आम तौर पर नहीं करता हूँ और वह मेरी शारीरिक सीमाओं को आगे बढ़ा रहा है। मैंने यह भी गौर किया कि मेरे साँस लेने का तरीका बदल गया है।’

श्रवंत ने गौर किया कि हालांकि वह काफी फिट थे, मगर कलारी ट्रेनर्स के शरीर एक अलग ही स्तर पर होते हैं। ‘माँसपेशियों के अर्थ में नहीं, बस उनका शरीर कुछ अलग होता है। अगर वे आपको इन मॉड्यूल्स जैसा कुछ दे रहे हैं, जिससे आप शारीरिक फिटनेस का यह स्तर पा सकते हैं, तो बेशक आपको इसे करना चाहिए,’ श्रवंत आगे कहते हैं।   

ट्रायल की एक और प्रतिभागी, अश्विनी सद्दी, ने हाल ही में कंधे के दर्द के कारण अपने कुछ ज्यादा गहन योग अभ्यासों को बंद कर दिया था, लेकिन वह कहती हैं कि कलारी अभ्यास करना उनके लिए भी संभव था। ‘जब हमने उन अभ्यासों को डेमो वीडियो में देखा, तो कुछ चीजें ऐसी लग रही थीं कि आम लोग ऐसा नहीं कर सकते। कुछ आसनों के लिए अभ्यास चाहिए, लेकिन कुछ ऐसे ही हो गए। आपको यह पता भी नहीं था कि आपका शरीर यह सब कर सकता है, लेकिन जब आपने कोशिश की तो यह हो गया।’ अब कलारी प्रशंसक बन चुकी अश्विनी कहती हैं कि जब दूसरे कलारीपयट्टू मॉड्यूल उपलब्ध होंगे तो वह और भी सीखना चाहेगी।

पाँच महीने की अथक तैयारी के बाद, पहला कलारीपयट्टू कार्यक्रम 3 सितंबर को शुरू हुआ। अब यह मॉड्यूल नियमित तौर पर 9 दिनों में 9 सत्रों में सिखाया जाता है। लोकेश साझा करते हैं, ‘कार्यक्रम का सबसे संतोषजनक हिस्सा यह है कि प्रतिभागी वाकई समर्पित और केंद्रित हैं। चूंकि इसमें अलग-अलग टाइम ज़ोन के प्रतिभागी हैं, तो ऐसे कई लोग हैं जो स्थानीय समयानुसार आधी रात से सुबह 4 बजे के बीच लॉगिन करते हैं, और पूरे समर्पण के साथ अभ्यास करते हैं।’

यह तो सिर्फ शुरुआत है

भारत का एक गहन प्राचीन मार्शल आर्ट दुनिया भर में असर पैदा कर रहा है, लेकिन यह सिर्फ एक शुरुआत है। टीम अपनी कोशिशों और सद्‌गुरु की दृष्टि को साकार होते देखकर बहुत खुश है। ‘यह सब ‘कलारीपयट्टू के बारे में जागरुकता बढ़ाने’ के सरल विचार के साथ शुरु हुआ था और यहाँ हमें किसी ऐसी चीज़ पर काम करने का सौभाग्य मिला है जो दुनिया भर में लोगों की जिंदगियां बदल सकता है,’ लोकेश कहते हैं।

प्रतिभागियों के उत्साह और भागीदारी से चकित टीम अब 10-15 मिनट के छोटे प्रैक्टिस मॉड्यूल बनाने में जुटी है, जिनसे ऐसे लोगों को सिखाया जा सकता है जो इन अभ्यासों का आनंद लेना चाहते हैं लेकिन उनके पास समय की कमी है। 

‘जब प्रोजेक्ट संस्कृति शुरू हुई, तो हमें कम से कम दो साल तक इसके लिए समय देने को कहा गया था, लेकिन हम जानते हैं कि यह लंबे समय तक चलेगा। मैंने नवंबर 2021 में संस्कृति को अलविदा कहने की योजना बनाई थी, लेकिन अब पीछे हटने का सवाल ही नहीं है,’ उन्होंने अपनी बात समाप्त की।