प्रतिभागियों की राय
मॉड्यूल के लिए कलारी की मूल बातों पर टिके रहने का फैसला करके यह टीम एक संतुलित अभ्यास बनाने में कामयाब रही जिससे सभी स्तरों पर अभ्यास करने वालों को लाभ हुआ। कार्यक्रम को आम जनता के लिए पेश किए जाने से पहले, ईशा स्वयंसेवकों के लिए ट्रायल प्रोग्राम आयोजित किए गए थे, जिनमें से 40 स्वयंसेवक प्रतिभागियों की मदद करने के लिए उपलब्ध हैं। उनका समय और लगन, इस पेशकश को संभव बनाने में महत्वपूर्ण है।
एक ट्रायल प्रतिभागी, श्रवंत वल्लुरु, जो पिछले 11 सालों से योग का अभ्यास कर रहे हैं, कहते हैं कि उन्हें उम्मीद थी कि कलारी अभ्यास मुश्किल नहीं होगा। वह आगे कहते हैं, ‘मुझे यह महसूस नहीं हुआ कि मेरा शरीर किसी भी रूप में थक रहा है या तनाव में है, लेकिन निश्चित रूप से मेरे शरीर की हर मांसपेशी का इस्तेमाल हुआ। मुझे अपने शरीर को इस तरह से इस्तेमाल करना पड़ता है, जैसे मैं आम तौर पर नहीं करता हूँ और वह मेरी शारीरिक सीमाओं को आगे बढ़ा रहा है। मैंने यह भी गौर किया कि मेरे साँस लेने का तरीका बदल गया है।’
श्रवंत ने गौर किया कि हालांकि वह काफी फिट थे, मगर कलारी ट्रेनर्स के शरीर एक अलग ही स्तर पर होते हैं। ‘माँसपेशियों के अर्थ में नहीं, बस उनका शरीर कुछ अलग होता है। अगर वे आपको इन मॉड्यूल्स जैसा कुछ दे रहे हैं, जिससे आप शारीरिक फिटनेस का यह स्तर पा सकते हैं, तो बेशक आपको इसे करना चाहिए,’ श्रवंत आगे कहते हैं।
ट्रायल की एक और प्रतिभागी, अश्विनी सद्दी, ने हाल ही में कंधे के दर्द के कारण अपने कुछ ज्यादा गहन योग अभ्यासों को बंद कर दिया था, लेकिन वह कहती हैं कि कलारी अभ्यास करना उनके लिए भी संभव था। ‘जब हमने उन अभ्यासों को डेमो वीडियो में देखा, तो कुछ चीजें ऐसी लग रही थीं कि आम लोग ऐसा नहीं कर सकते। कुछ आसनों के लिए अभ्यास चाहिए, लेकिन कुछ ऐसे ही हो गए। आपको यह पता भी नहीं था कि आपका शरीर यह सब कर सकता है, लेकिन जब आपने कोशिश की तो यह हो गया।’ अब कलारी प्रशंसक बन चुकी अश्विनी कहती हैं कि जब दूसरे कलारीपयट्टू मॉड्यूल उपलब्ध होंगे तो वह और भी सीखना चाहेगी।
पाँच महीने की अथक तैयारी के बाद, पहला कलारीपयट्टू कार्यक्रम 3 सितंबर को शुरू हुआ। अब यह मॉड्यूल नियमित तौर पर 9 दिनों में 9 सत्रों में सिखाया जाता है। लोकेश साझा करते हैं, ‘कार्यक्रम का सबसे संतोषजनक हिस्सा यह है कि प्रतिभागी वाकई समर्पित और केंद्रित हैं। चूंकि इसमें अलग-अलग टाइम ज़ोन के प्रतिभागी हैं, तो ऐसे कई लोग हैं जो स्थानीय समयानुसार आधी रात से सुबह 4 बजे के बीच लॉगिन करते हैं, और पूरे समर्पण के साथ अभ्यास करते हैं।’
यह तो सिर्फ शुरुआत है
भारत का एक गहन प्राचीन मार्शल आर्ट दुनिया भर में असर पैदा कर रहा है, लेकिन यह सिर्फ एक शुरुआत है। टीम अपनी कोशिशों और सद्गुरु की दृष्टि को साकार होते देखकर बहुत खुश है। ‘यह सब ‘कलारीपयट्टू के बारे में जागरुकता बढ़ाने’ के सरल विचार के साथ शुरु हुआ था और यहाँ हमें किसी ऐसी चीज़ पर काम करने का सौभाग्य मिला है जो दुनिया भर में लोगों की जिंदगियां बदल सकता है,’ लोकेश कहते हैं।
प्रतिभागियों के उत्साह और भागीदारी से चकित टीम अब 10-15 मिनट के छोटे प्रैक्टिस मॉड्यूल बनाने में जुटी है, जिनसे ऐसे लोगों को सिखाया जा सकता है जो इन अभ्यासों का आनंद लेना चाहते हैं लेकिन उनके पास समय की कमी है।
‘जब प्रोजेक्ट संस्कृति शुरू हुई, तो हमें कम से कम दो साल तक इसके लिए समय देने को कहा गया था, लेकिन हम जानते हैं कि यह लंबे समय तक चलेगा। मैंने नवंबर 2021 में संस्कृति को अलविदा कहने की योजना बनाई थी, लेकिन अब पीछे हटने का सवाल ही नहीं है,’ उन्होंने अपनी बात समाप्त की।