अपने भौतिक शरीर के साथ मजबूत पहचान और उसे लेकर जरूरत से ज्यादा चिंता, चरम संभावना को प्राप्त करने में सबसे बड़ी बाधा है। सद्गुरु बता रहे हैं कि कैसे भक्ति की प्रक्रिया में आप दरअसल भगवान जैसे बन सकते हैं।
सद्गुरु: जो लोग अपनी खुशहाली के लिए बहुत चिंतित रहते हैं, उन्हें हमेशा कोई न कोई समस्या रहती है। अपने बारे में यह जरूरत से ज्यादा चिंता इसलिए है क्योंकि आपके मन में एक स्पष्ट विचार है ‘यह मैं हूँ।’
आप जानते हैं कि जिस हवा में आप साँस ले रहे हैं, वह आपके अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण है लेकिन आप अपने फेफड़ों में कुछ हवा भरकर रखते हुए यह नहीं कह सकते ‘यह मेरी हवा है।’ यह एक निरंतर चलने वाला लेन-देन है।
साँस लेने की प्रक्रिया दर्शाती है कि आप खुद को इस क्षण में जो मानते हैं, अगले ही क्षण में आप वह नहीं हैं और जो इस क्षण में आप नहीं हैं, वह अगले क्षण में हैं। यही चीज़ आपके शरीर के हाड़-माँस के लिए भी सच है। अगर आप एक केला खाते हैं, तो वह आपके अंदर जाकर इंसान बन जाता है।
यह किसी खास देवता, विशेष रूप से स्त्री रूप, के प्रति भक्ति के द्वारा आपके लिए एक ज्यादा गहरी अनुभवजन्य हकीकत बन सकता है। यह आपको खुद से अलग किसी इकाई को अपने एक अंश के रूप में अनुभव करने में मदद कर सकता है।
अगर आप अपनी पहचान को इस रूप में विकसित करते हैं कि आप ‘इसके’ और ‘उसके’ बीच फर्क नहीं करते, तो यह आपको एक असाधारण क्षमता देती है। देवी को एक ऊर्जा रूप में बनाया गया है – उनके पास वे शारीरिक समस्याएं नहीं हैं जो आपके पास हैं। भक्ति एक प्रकार का तंत्र है। दक्षिण भारत को छोड़कर देश के दूसरे हिस्सों में तांत्रिक काफी हद तक देवियों, जैसे काली, भैरवी, दुर्गा या अन्य देवी रूपों के उपासक होते हैं।
जब दो लोग ऊर्जा के स्तर पर जुड़ते हैं, तो उनके अंदर जबरदस्त क्षमता होती है। ऐसा विरले होता है और मैंने अपने जीवन में ऐसी कुछ ही दुर्लभ स्थितियां देखी हैं। लेकिन जब लोग आपस में ऊर्जा से जुड़े होते हैं, तो आप पाएंगे कि वे काफी शक्तिशाली हैं।
अगर आपकी भक्ति, क्रिया या जो अनुष्ठान आप करते हैं, उसके कारण शारीरिक सीमाओं का आपका बोध काफी हद तक मिट जाता है और आप एक शक्तिशाली देवी या देवता के साथ ऊर्जा के स्तर पर जुड़ जाते हैं, तो आप ‘दो-शरीरी’ बन जाते हैं – एक आपकी अपनी ऊर्जा के साथ आपका अपना शरीर, दूसरा एक शक्तिशाली रूप। यह आपको शक्तिशाली बनाता है जिसका इस्तेमाल आप अपने विकास और हर किसी की खुशहाली के लिए कई अद्भुत तरीकों से कर सकते हैं।
ब्रह्मचारियों को चौदह से पंद्रह दिनों तक ध्यानलिंग में [1] रखने का मकसद यही होता है कि वे ऐसा संबंध विकसित कर लें जिससे वे सिर्फ उनकी मौजूदगी में होने भर से जबरदस्त शक्ति हासिल कर सकें। यही बात लिंग भैरवी के लिए है – हम उन्हीं लोगों को वहाँ भी रखना चाहते हैं, इस उम्मीद में कि एक दिन वे अपने भौतिक शरीर की सीमाओं तक सीमित नहीं होंगे बल्कि एक ही साथ वे दो शरीर में होंगे। फिर, उनकी हर चीज़ बदल जाएगी।
[1] यहाँ लिंग अर्पणं की बात हो रही है – जो कि दो हफ्ते का समय है जिसके दौरान ब्रह्मचारी ध्यानलिंग के क्षेत्र में सेवा करते हैं।
आजकल वैज्ञानिक यह स्वीकार करने लगे हैं कि अगर आप सही चीज़ें करें तो मानव जेनेटिक्स की मूलभूत चीज़ें बदली जा सकती हैं। अगर जरूरी मेहनत की जाए, तो आप जैसे दिखते हैं, आपका शारीरिक ढांचा, और जिस तरह से आप सोचते, महसूस करते और जीवन का अनुभव करते हैं, वह सब बदला जा सकता है। अगर इसे बचपन से किया जाए तो यह ज्यादा आसान है, लेकिन बाद में भी इसे करना संभव है। हमने यहाँ कई लोगों को देखा है, जिनके चेहरे और आँखों का आकार और सब कुछ एक ही दीक्षा के साथ बदल जाता है, क्योंकि जेनेटिक्स का असर स्थायी नहीं होता।
हम मृतकों के लिए जो क्रिया-कर्म करते हैं, वे मुख्य रूप से खुद को अपने जेनेटिक स्रोत से दूर करने के लिए होते हैं। जेनेटिक स्रोत आपके शरीर की सीमाएं तय करता है, लेकिन वह कोई दैवीय रेखा या सीमा नहीं है। शरीर की सीमाएं मुख्य रूप से इससे तय होती हैं कि आप अपने जेनेटिक स्रोत से कितनी गहरी पहचान रखते हैं।
भले ही आप साथ न पैदा हुए हों, लेकिन अगर दो लोग एक-दूसरे से अपनी पहचान कुछ ज्यादा जोड़कर रखते हैं, तो वे एक जेनेटिक संबंध बनाते हैं जिसे ‘ऋणानुबंध’ कहा जाता है। इसीलिए यौगिक प्रणाली में कहा जाता है, ‘हमेशा अकेले बैठो, किसी को मत छुओ।’ क्योंकि अगर आप कुछ विशेष क्षणों में किसी को छूते हैं, तो इससे एक जेनेटिक संबंध बनता है, जो हम आध्यात्मिक प्रक्रिया में नहीं चाहते।
एक भक्त, एक अभौतिक रूप से, इस प्रकार संबंध स्थापित करना चाहता है कि वह अपने भौतिक शरीर के जेनेटिक तत्वों द्वारा बनाई गई सीमाओं को तोड़ दे। एक बार जब आपकी भौतिक सीमाएं टूट जाती हैं, तो उस देवी-देवता में निहित सभी क्षमताएं आपके लिए उपलब्ध हो जाती हैं।
तंत्र में ऐसा करने के परिष्कृत तरीके हैं, जो व्यक्ति के विकास को बहुत बढ़ा सकते हैं और आस-पास मौजूद हर किसी को लाभ पहुंचा सकते हैं। मेरी परदादी चींटियों के साथ तंत्र करती थीं। जब चींटियां खाती थीं, तो उनका पेट भर जाता था। मैंने ऐसे लोग देखे हैं।
भक्तों को यह अनुभव होता है। अगर वे देवता की पूजा करके उसे प्रसाद चढ़ाते हैं, तो वे पोषित महसूस करते हैं। आप देखेंगे कि बहुत से भक्त बहुत कम खाकर भी ठीक रहते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि वे देवता में बहुत तल्लीन होते हैं, शरीर की भौतिक सीमाएं टूट जाती हैं और पोषण अलग रूपों में मिलता है।
भक्ति का संबंध सिर्फ भावना से नहीं है। भावना को सही प्रक्रियाओं से बल मिलता है, जो एक तरह से आपके शरीर की सीमाएं निर्धारित करने वाली पिन निकाल लेती हैं और आपको किसी और चीज़ से आदान-प्रदान करने देती हैं। अपनी सीमाओं को तोड़ने के लिए खुद से बड़ी इकाई को चुनना बेहतर है। उसे हासिल करने से आपकी क्षमता काफी बढ़ जाएगी।