हर रात लिंग भैरवी के पास, साधकों को अपनी साधना शुरू करने के लिए एक साथ ऊंची आवाज़ में एक मंत्र का जाप करते सुना जा सकता है। तीस मिनट बाद, समापन मंत्र लगभग एक फुसफुसाहट जैसा होता है। एक सूक्ष्म प्रक्रिया उनके जीवन के स्त्रैण आयाम को शक्तिशाली बना देती है।
पिछले दो महीने से ईशा योग केंद्र में कोई चीज़ चुपचाप हलचल मचाए हुए है। हर रात 9:00 बजे आश्रमवासी, स्वयंसेवक, आश्रम में ठहरे अतिथि और साधनापद प्रतिभागी लिंग भैरवी की तरफ चल पड़ते हैं। लगभग तीस मिनट बाद वे रूपांतरण के एक साधन से गहरे अभिभूत होकर वापस चले जाते हैं। भक्ति साधना चुपचाप अपनी मौजूदगी का महसूस करा रही है।
यह साधना आध्यात्मिक प्रक्रिया के एक महत्वपूर्ण स्त्रैण पहलू – भक्ति, को साधकों के जीवन में प्रवाहित होने देती है। भक्ति की शक्ति से उनके आध्यात्मिक रूपांतरण का तेज़ होना, कई प्रतिभागियों के लिए एक नई चीज़ है।
जैसा कि सद्गुरु कहते हैं, ‘भक्ति-योग आपकी भावना को नकारात्मकता से चरम सुख में बदलने का एक तरीका है।’ भावनात्मक तीव्रता यहाँ बहुत स्पष्ट होती है, भक्ति-साधना के स्थान पर आप देख सकते हैं कि सत्रों के खत्म होने के बाद भी साधक आँखें बंद करके बैठे हुए हैं और उनके गालों पर आँसू लुढ़क रहे हैं।
यह साधना प्रतिभागियों को सरल लग सकती है, लेकिन इसे सावधानी से तैयार किया गया है। यह प्रक्रिया ‘देवी सेवक दलों’ [1] के लिए पंद्रह दिन के चक्र में चलती है और हर शाम की एक अलग विशेषता होती है।
एक साधनापद प्रतिभागी का अनुभव इस विविधता को बताता है - ‘पहली रात ने मेरे शरीर और आस-पास के माहौल के बीच एक गहरे संबंध को प्रेरित किया क्योंकि मैंने देखा कि दोनों एक ही चीज़, सर्वव्यापी पाँच तत्वों की अभिव्यक्ति हैं। अगली रात, मेरे आस-पास हर चीज़ सृष्टि के स्रोत की शुद्ध अभिव्यक्ति थी जिसने मुझे सिर झुकाने पर मजबूर कर दिया।’ देवी सेवक के नए समूह सभी सत्रों में शामिल होते हैं, हालांकि आश्रम के मेहमान और स्वयंसेवक भी जिस सत्र में चाहें, शामिल हो सकते हैं।
भक्ति साधना का असर आश्चर्यजनक रूपों में देखा जा सकता है। हर्ष जल्ला नामक एक स्वयंसेवक याद करते हैं कि एक दिन सुबह-सुबह आश्रम के एक मेहमान ने गलती से वाश बेसिन में उनके हाथ पर थूक दिया। हर्ष को हैरानी हुई, जब वह अपनी अचेतन प्रतिक्रिया को रोकने में सफल रहे और उस मेहमान पर सिर्फ मुस्कुरा दिए। हर्ष कहते हैं, ‘भक्ति साधना मुझे उचित प्रतिक्रिया करने में मदद करती है ताकि मैं स्थितियों को ठीक करने की कोशिश करने से पहले खुद को ठीक कर सकूँ।’
[1] देवी सेवा एक अवसर है, जिसकी मदद से वॉलंटियर, देवी की उपस्थिति में सेवा कर सकते हैं
सद्गुरु के शब्दों को गहराई से देखें तो समझ आता है कि भक्ति साधना खास तौर पर लिंग भैरवी की सेवा करने वाले लोगों के लिए क्यों लाभदायक है। ‘अगर भक्ति ने आपके दिल को पिघला दिया है, तो देवी लाखों अलग-अलग तरीकों से आपको फल देंगी और लाभ पहुंचाएंगी, ऐसे तरीके जो आप समझ नहीं सकते।’
देवी सेवा शुरू करने के लिए, हर देवी-सेवक तीन दिन के मौन से गुजरता है, जिसमें उसे कुछ ख़ास चीज़ें सिखाई जाती हैं, जो कुछ लोगों को मुश्किल लग सकती हैं। सौभाग्य से, भक्ति साधना के मौजूदा स्वरूप के शुरू होने के बाद देवी सेवा के संयोजकों ने स्वयंसेवकों को अपनी नई सेवा के लिए तेजी से अभ्यस्त होते देखा। कार्यक्रम संयोजक मयूर कहते हैं, ‘जिस तरह से वे मेहमानों का अभिवादन करते हैं, उसमें असर स्पष्ट दिखता है - लिंग भैरवी के पवित्र स्थान में प्रवेश करने वाले हरेक व्यक्ति के भीतर मौजूद जीवन के प्रति गहरी श्रद्धा के साथ नमस्कार किया जाता है।’
‘नियमित रूप से इसमें शामिल होने वाले लोग समझने लगते हैं कि उनकी भावनाएं उनके नियंत्रण में हैं, और वे भक्ति साधना के दौरान भावनाओं की जो मिठास महसूस करते हैं, उसे अपने दिन के दूसरे समय में भी लाने की कोशिश करते हैं,’ वह बताते हैं। हालांकि मयूर को सत्र के आयोजन पर ध्यान देना होता है, लेकिन सत्र खत्म होने के बाद जब वह प्रतिभागियों को आँसुओं में देखते हैं, तो भावनाओं की एक लहर उन्हें भी अभिभूत कर जाती है। एक देवी-सेवक बैच का कार्यकाल समाप्त होने के बाद भी, वह कई प्रतिभागियों को वापस आते हुए और भक्ति साधना के अनुभव को साझा करने के लिए हर रात अपने साथ और ज्यादा लोगों को लाते हुए देखते हैं।
देवी सेवकों से परे भी यही पैटर्न देखा जा सकता है। साधनापद समूह की एक बैठक में, एक प्रतिभागी ने साझा किया कि उन्हें अपने अंदर और बाहर हालातों से लगातार जूझना पड़ता था। भक्ति साधना में शामिल होने के बाद उन्होंने सिर्फ एक पल के लिए किसी चीज़ के आगे सिर झुकाया, और उनके भीतर की सारी बाधाएं टूट गईं। तब से, उनके अंदर शांति है। जब उन्होंने अपना अनुभव साझा किया, तो लगभग 60 नए प्रतिभागी भक्ति साधना के लिए आए और कइयों के लिए उनकी भावनाएं इस तरह फूटीं, जिसकी तुलना वे सिर्फ भाव स्पंदन (सद्गुरु द्वारा तैयार एक एडवांस्ड ध्यान कार्यक्रम) में हुए अनुभव से कर सकते थे।
ज़ेनप ने लगभग एक साल पहले देवी की कृपा प्राप्त करने की एक भक्ति साधना – ‘भैरवी साधना’ का ऑनलाइन दैनिक अभ्यास शुरू किया था। लेकिन वह किसी साधारण चीज़ को, जैसे चप्पलों की जोड़ी को खुद से ऊँचा देखने की तार्किक बाधा को पार नहीं कर पा रही थी। जब उन्होंने ईशा योग केंद्र आकर भक्ति साधना की, तो उन्हें भक्ति का वास्तविक अनुभव हुआ। अब उन्हें समझ में आया, जो उनके इंस्ट्रक्टर ने पहले कहा था, ‘यह तर्क की नहीं – चमत्कार की जगह है।’
भक्ति साधना ने उन्हें देवी के साथ एक गहरा संबंध खोजने में भी मदद की जो उनके पूरे दिन में व्याप्त रहता है। वह तुर्की से आती हैं, जहाँ की संस्कृति में सिर्फ पौरुष की पूजा करने का रिवाज़ है, तो उनके लिए देवी का जश्न मनाने का विचार नया था। फिर भी लिंग भैरवी के साथ अपने अनुभव से अभिूभूत होकर उन्होंने अपनी देवी सेवा के दौरान एक कविता लिखी:
पहले देखी मैंने
बस एक आग
आपने जला दिया मेरे छलावे को
फिर सामने दिखी हकीकत
मौन की गोद में आपने दिखाया
कि कोई झिझक नहीं है
‘एक भक्त के लिए।’
मैं कैसे करूँ शुक्रिया - देवी का
जब सब कुछ मिलता है
उन्हीं की दया से
हे देवी, सभी रास्तों में
सबसे आसान है
आप पर भरोसा करना
आप एक अटल सत्य हैं
विशुद्ध प्रेम, अनंत करुणा।
हे देवी
जब आप सब कुछ जला देंगी
जो मैं नहीं हूँ और कभी नहीं थी,
सिर्फ आप बचेंगी
और आपकी सबसे तीव्र आग।
खुद को देवी के आगे समर्पित करक जेनब ने पाया कि उनका नज़रिया बदल गया है और अब वह जीवन के पौरुष और स्त्रैण आयामों को एक-दूसरे का पूरक और बराबर मानती हैं।
इस बीच अभिनव, जो लिंग भैरवी में स्वयंसेवा करते रहे हैं, कहते हैं कि वह आध्यात्मिक खोज पर पूरी गंभीरता से इस हद तक केंद्रित थे कि वे अपने सामाजिक और दूसरे साधारण रोज़मर्रा के कामों की अवहेलना करते थे। उनके देवी-सेवा अनुभव ने स्त्रैण ऊर्जा को उनके जीवन में वापस ला दिया और उनके फोकस को करुणा से संतुलित करके उन्हें अपने आस-पास के लोगों के प्रति ज्यादा जागरूक बना दिया। ‘अब मैं ज्यादा लोगों का अभिवादन करता हूँ। मैं खुश रहता हूँ, तो वह खुशी स्वाभाविक रूप से व्यक्त होती है।’ उनकी आंतरिक स्थिति, कपड़ों के बदले हुए चुनाव में भी झलकने लगी है। ‘मैं सिर्फ काले और नीले कपड़े पहनता था,’ अभिनव स्वीकार करते हैं, ‘लेकिन अब मैं नारंगी, लाल, पीला और यहाँ तक कि गुलाबी भी पहनता हूँ!’
जीवन के लिए एक नई नज़र
भक्ति साधना अपना दिन खत्म करने का एक सुंदर तरीका है। चाहे आपने दिन में सुखद या दुखद, जैसी भी स्थितियों का सामना किया हो, यह अपनी सारी पहचानों और इकट्ठा किए हुए ढेर को एक तरफ करके अपने आस-पास की हर चीज़ से जुड़ने का मौका है। सृष्टि को एक नई नज़र से देखते हुए, उसे सिर्फ वैसे देखते हुए, जैसी वह वास्तव में है – आपसे कहीं बड़ी – और उसके आगे स्वाभाविक रूप से सिर झुकाकर, आपके अंदर भावना की मिठास और भक्ति की भावना अपने आप उभर जाती है। आश्रमवासी अमित अपनी कविता में इसे समेट देते हैं:
बस चरणों को निहारते हुए
नतमस्तक हूँ,
चेहरे को देखकर त्योरी चढ़ाना
मूर्खों का काम है
लगातार राय कायम करने ने
मुझे बदल दिया एक नीरस ठोस में
अब समय है, सावधान हो जाने
और विवेक से काम करने का
हे माँ! मेरी मदद करो!
इस तरह होने और बने रहने में!