पॉंचवें अंतरराष्ट्रीय एग्रोनॉमी कांग्रेस में, डॉ. अनीता वोदुर ने सद्गुरु का इंटरव्यू लिया, जो ‘प्रोफेसर जयशंकर तेलंगाना राज्य कृषि विश्वविद्यालय’ में पोस्ट-ग्रेजुएट स्टडीज की डीन हैं। डॉ. अनीता ने सद्गुरु से पूछा कि बदलाव लाने के लिए लोगों के बड़े समूहों को कैसे प्रेरित किया जाए। सद्गुरु ने बताया कि पिछले 25 वर्षों में ईशा ने पर्यावरण के लिए जो पहल और आंदोलन किए हैं, उनका अनूठा पहलू यह है कि वे सभी हमारे सामूहिक कल्याण से जुड़े हैं। बहुत जोश और स्पष्टता के साथ, सद्गुरु ने कहा कि अभी मिट्टी के संरक्षण को पहली प्राथमिकता बनाना बहुत जरूरी है, क्योंकि यह जलवायु से जुड़े सभी मुद्दों और सारे जीवन रूपों के लिए महत्वपूर्ण है।
सद्गुरु ने अमेरिकी म्यूजिक ग्रुप ‘ब्लैक आइड पीज़’ के बहुमुखी संगीतकारों से मुलाकात की, और ‘कांशस प्लैनेट आंदोलन’ तथा पृथ्वी की मिट्टी का कायाकल्प करने के लिए जरूरी कार्रवाई के बारे में बातचीत की। इस कार्यक्रम में उत्साही दर्शक शामिल थे, जिसमें कइयों ने सवाल पूछे और तमाम तरीकों से समर्थन की पेशकश की। सद्गुरु ने साझा किया कि जब तक इकोलॉजी एक चुनावी एजेंडा नहीं बन जाती, तब तक जरूरी कार्रवाई नहीं होगी, और लोकतांत्रिक राष्ट्रों के जिम्मेदार नागरिकों के रूप में, हमें अपनी सरकारों को यह बताने की जरूरत है कि इकोलॉजी हमारे लिए कितनी मायने रखती है।
महान अमेरिकी फुटबॉल क्वार्टरबैक टॉम ब्रैडी ने सद्गुरु को अपने पॉडकास्ट पर आमंत्रित किया जहां स्पोर्ट्सकास्टर जिम ग्रे भी उनके साथ एक दिलचस्प बातचीत में शामिल हुए। टॉम ने सीधे-सीधे सद्गुरु से पूछ लिया कि क्या उनके पास अपने श्रोताओं के लिए कोई सलाह है। जवाब हाजि़र था, ‘दूसरे लोगों की सलाह मत सुनिए।’ उन्होंने कहा कि सलाह लेने पर व्यक्ति समर्थक बन जाता है और उन्होंने इसके बजाय लोगों को यह सुझाव दिया कि उन्हें दुनिया की हर चीज को सुनना चाहिए, खासकर अपने शरीर को। सद्गुरु ने लक्ष्य पर जरूरत से ज्यादा ध्यान देने के बजाय प्रक्रिया में शामिल होने को जरूरी बताया।
बातचीत की शुरुआत मिट्टी की गुणवत्ता खराब होने की चर्चा के साथ हुई, जिसमें अफ्रीका पर विशेष बल दिया गया, जहाँ मिट्टी का मरुस्थलीकरण 45% तक पहुंच गया है, और भोजन तथा पानी की कमी के कारण गंभीर संकट का खतरा, तेज गति से बढ़ती आबादी की वजह से और अधिक बढ़ गया है।
दोनों ने अफ्रीकी अमेरिकियों के इतिहास और उनके सामने मौजूदा चुनौतियों के बारे में भी बातचीत की। सद्गुरु ने कहा कि हमें अतीत के दर्द और कठिनाई को जरूरी समझदारी में बदलने की जरूरत है। उन लोगों का सम्मान करना चाहिए जो अकल्पनीय अनुभवों से गुजरे हैं, और सामुदायिक संघर्ष को एक लड़ाई के रूप में नहीं देखना चाहिए क्योंकि गुस्सा और नाराज़गी प्रक्रिया में बाधा ही डालती हैं। इसके बजाय, उन्होंने सुझाव दिया कि उन्हें आत्म-रूपांतरण और समुदाय के सशक्तिकरण के अवसरों के रूप में देखा जाना चाहिए।
कार्यकर्ता, लेखक और सार्वजनिक वक्ता ज़ैनब साल्बी ने अपने पॉडकास्ट ‘रिडिफाइंड’ के लिए सद्गुरु का इंटरव्यू लिया। उन्होंने कर्मा पुस्तक पर चर्चा की, और सद्गुरु ने बताया कि किसी व्यक्ति के लिए अपने जीवन और अपने अनुभव को अपने हाथ में लेने का अर्थ है – अपनी प्रकृति से आनंदित रहना। ज़ैनब ने सद्गुरु से उनकी स्पष्टता के स्रोत के बारे में पूछा, तो उन्होंने बताया कि वह अपने सामने आने वाली हर चीज़ पर पूर्वाग्रह से परे होकर और बेधड़क ध्यान देते हैं।
मार्क बेनिऑफ दुनिया की सबसे बड़ी क्लाउड-आधारित सॉफ्टवेयर कंपनियों में से एक सेल्सफोर्स के संस्थापक, अध्यक्ष और सीईओ हैं। इकोलॉजी के जोशीले समर्थक होने के नाते, उन्हें सद्गुरु से मिलकर खुशी हुई और उन्होंने पृथ्वी को बचाने के लिए मिट्टी को बचाने के महत्व को दोहराया। संवाद के बाद, सद्गुरु ने ट्वीट किया: ‘बिजनेस से परे मार्क के सरोकार को दुनिया में हर बड़े बिजनेस के लिए प्रेरणा बनना चाहिए। इकोलॉजी से जुड़ी चिंताएं भविष्य की बात नहीं हैं - वे वर्तमान के मुद्दे हैं #SaveSoil मिट्टी बचाओ, अपने शरीर को बचाएं। चलिए इसे कर दिखाते हैं।’
नए काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के उद्घाटन समारोह के दौरान टाइम्स नाउ न्यूज चैनल से बात करते हुए, सद्गुरु ने काशी की विशालता, मानवता के लिए इसकी संभावना, इसके इतिहास की अहमियत और भविष्य के लिए इसकी क्षमता के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि भारत की आध्यात्मिक संस्कृति में जीवन के सभी पहलुओं पर बहुत ध्यान दिया गया था, खासकर मानव तंत्र और मानव अनुभवों पर। काशी के नवीनीकरण के प्रयासों की सराहना करते हुए, सद्गुरु ने आने वाली पीढ़ियों के सामने इस संस्कृति का सर्वश्रेष्ठ इतिहास पेश करने के महत्व पर प्रकाश डाला।
थिरुक्कलिकुंद्रम (चेन्नई से 70 किमी दूर) के पास प्राचीन कुमारेश्वर मंदिर दशकों से जीर्ण-शीर्ण हालत में है। हाल ही में हुए जीर्णोद्धार से इस मंदिर में एक नवजीवन प्रवाहित हुआ। ईशा ब्रह्मचारियों और सैकड़ों ईशा स्वयंसेवकों ने शक्तिशाली योगेश्वराय मंत्र का जाप करके उद्घाटन प्रक्रिया में भाग लिया और सद्गुरु द्वारा प्रतिष्ठित यंत्र को कलशम (मंदिर के ऊपर रखा तांबे का कलश) में रखा। इसके बाद गुरु पूजा में आध्यात्मिक गुरुओं के प्रति आभार व्यक्त किया गया, जिन्होंने आने वाली पीढ़ियों के लिए आध्यात्मिकता को एक जीवित प्रक्रिया के रूप में संप्रेषित किया है।
आध्यात्मिक प्रक्रिया को पूरी जीवंतता के साथ पुनर्जीवित करने के लिए देश भर में नष्ट हो रहे हजारों मंदिरों के जीर्णोद्धार की दिशा में यह एक छोटा लेकिन महत्वपूर्ण कदम है।