प्रश्नकर्ता: सद्गुरु, जैसे भारत के पास महाभारत है, क्या और भी देश हैं जिनके पास एक समृद्ध लिखित इतिहास है?
सद्गुरु: लंबे और समृद्ध इतिहास वाली अधिकांश संस्कृतियां जैसे नॉर्स, मिस्र, मेसोपोटामिया, इंकान या माया, अब जीवित संस्कृतियां नहीं हैं। अगर आप उस संदर्भ में देखें तो एकमात्र प्राचीन संस्कृति जो अब भी जीवित है, वह भारतीय संस्कृति है। बाकी सभी महान संस्कृतियां आज सिर्फ संग्रहालयों में मौजूद हैं। यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हम इस संस्कृति की बहुआयामी प्रकृति को बचाकर रखें वरना यह भी एक दिन पुरातत्व का विषय बन जाएगी।
खुद अपना भगवान बनाने की अमूल्य आज़ादी
अगर सौ लोग एक भगवान के पीछे इकट्ठा हो जाएँ, तो वे एक लड़ाकू ताक़त बन जाएँगे। अगर हर किसी का अपना भगवान होगा, तो आप उसके लिए लड़ नहीं सकते। इस संस्कृति में आपसे उम्मीद की जाती है कि आपका एक इष्ट देवता होगा – आपकी पसंद का एक अपना भगवान। अगर आपको मौजूदा रूपों में से कोई पसंद नहीं है, तो आप नया बना सकते हैं। यह निश्चित रूप से यह पक्का करेगा कि आप शांति से रहें। यह संस्कृति अभी धरती की सबसे कीमती चीज़ों में से एक है क्योंकि यह इकलौती संस्कृति है जो भगवान की ओर नहीं बल्कि मुक्ति की ओर केंद्रित है।
धरती के इस हिस्से में कोई भी चीज़ भगवान केंद्रित या स्वर्ग केंद्रित नहीं थी – वह आपकी मुक्ति के लिए थी। मुक्ति सर्वोच्च लक्ष्य रहा है, भगवान तो सिर्फ एक सीढ़ी है। अगर आप भगवान को छोड़कर अपनी मुक्ति तक पहुँचने में सक्षम हैं, तो ऐसा ही कीजिए। अगर आप एक-एक कदम आगे बढ़ाना चाहते हैं, तो सीढ़ी चढ़िए। हम आपकी जरूरत के हिसाब से किसी भी तरह का भगवान बना सकते हैं। हर उम्र के लिए, आपके हर विचार और भावना के लिए हमारे पास आपके लिए एक ख़ास देवी या देवता हैं, क्योंकि हम भगवान को बनाने की तकनीक जानते हैं। यह सिर्फ एक विश्वास नहीं है – यह आपके जीवन में एक जीवंत दिव्यता की तरह काम करेगा।
यह इकलौती संस्कृति है जो भगवान की ओर नहीं बल्कि मुक्ति की ओर केंद्रित है।
इस संस्कृति का मकसद ईश्वर की तरफ ऊपर देखना नहीं बल्कि दिव्य बनना और एक दिव्यता के रूप में जीना है। आप जीवन के इस अंश को, जो आप हैं, अस्तित्व के उस आयाम तक ले जाना चाहते हैं, जहाँ आप जो हैं और जिसे आप दिव्यता कहते हैं, उसके बीच कोई भेद न रह जाए। इस संस्कृति की मूल प्रकृति विज्ञान आधारित है। दुर्भाग्य से हमने पिछले छह से सात सौ सालों से इस विज्ञान का ठीक से ध्यान नहीं रखा है।
यह विज्ञान अब भी प्रासंगिक है लेकिन उसकी अभिव्यक्ति नहीं, क्योंकि कुछ पीढ़ियों का अंतर आ गया है। अगर उसे जीवंत रूप से सीधे अगली पीढ़ी को दिया जाता, तो वह प्रासंगिक होता लेकिन हमलावर शासकों के कारण बहुत सी चीज़ें भूमिगत हो गईं और फिर कभी सामने नहीं आ पाईं।
यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हम इस विज्ञान को एक जीवंत प्रक्रिया की तरह बचाकर रखें। इसे सुरक्षित किए जाने की जरूरत नहीं है, इसे जीने की जरूरत है। अगर आप इसे संजोएंगे तो यह पुरातत्व का विषय बन जाएगा। आपको इसे जीना है। हम यहाँ इसी को फिर से बनाने की कोशिश कर रहे हैं – आध्यात्मिक प्राणियों के रूप में जीवन का विज्ञान। आध्यात्मिकता एक शिक्षा नहीं है – यह आपके अस्तित्व का तरीका है। उस तरह से मौजूद होने के लिए, आपको जरूरी माहौल बनाना पड़ता है।
विकास का माहौल बनाने के लिए एक सरल अभ्यास
एक सरल चीज़ मैं लोगों को बताता रहा हूँ और आप भी उसे कर सकते हैं।
जब आप फोन उठाते हैं, तो आप कहते हैं ‘हैलो।’ आप क्यों नहीं ‘नमस्ते’ या ‘नमस्कार’ कहते हैं? जब आप ‘नमस्ते’ कहते हैं, तो इसमें एक गहनता है। ‘हैलो’ में वह गहनता नहीं है।
अगर आप मंदिर जाते हैं तो आप ‘नमस्ते’ करते हैं। अगर भगवान आपके सामने आ जाएँ तो आप वही करेंगे। तो अगर आप एक सुंदर पहाड़ को देखें, तो आप यही करें। चाहे कोई ज्ञानी व्यक्ति आ जाए या कोई मूर्ख आए, आप यही करें। इसका मतलब है कि आप चाहे किसी आदमी को देखें, औरत को या चट्टान को, आप यह स्वीकार करें कि स्रष्टा का हाथ सृष्टि के हर अंश में सक्रिय है। आप उसके आगे सिर झुकाते हैं। इस तरह से आप अपने विकास के लिए एक माहौल तैयार करते हैं।
भारतीय संस्कृति का मकसद बस एक मनुष्य के आध्यात्मिक विकास के लिए जरूरी माहौल बनाना रहा है।
चाहे मैं आपको एक जादुई बीज दे दूँ जो ढेर सारी फसलें उगा सकता हो, तो वह भी कुछ नहीं उगा पाएगा अगर आप उसे किसी पत्थर पर रख दें। यानी विकास के लिए जरूरी माहौल होना चाहिए, वरना विकास संभव नहीं हो पाएगा। भारतीय संस्कृति का मकसद बस एक मनुष्य के आध्यात्मिक विकास के लिए जरूरी माहौल बनाना रहा है। हालाँकि यह कई मायनों में दूषित हो गया है, लेकिन मौलिक धागा अभी नष्ट नहीं हुआ है। वह आध्यात्मिक धागा सबसे महान चीज़ है जो हम दुनिया को दे सकते हैं।
हर मनुष्य के खुशहाल जीवन के लिए अलग-अलग विज्ञान का समन्वय
दुनिया के दूसरे हिस्सों में भौतिक विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में काफी तरक़्क़ी हुई हैं। यह ज्ञान के सबसे महान आदान-प्रदान का कारण बन सकता है। हमारे पास आंतरिक ज्ञान है – उन्होंने बाहरी क्षेत्र में बहुत अच्छा किया है। लोगों के दो समूहों के पास ज्ञान के दो अलग-अलग आयाम हैं। अगर हम दोनों यह ध्यान दें कि हमें एक-दूसरे की जरूरत है, तो यह दुनिया में हर किसी के लिए खुशहाल जीवन का एक सटीक फॉर्मूला बन सकता है। लेकिन लोग अच्छे जीवन की जगह लड़ना चुन लेते हैं।
अगर हम दुनिया में आध्यात्मिक विकास के लिए जरूरी माहौल नहीं बनाते, तो आप चाहे कितनी भी क्रियाएं सिखा लें, जितने चाहें मंदिर बना लें, लेकिन लोग बहुत दूर तक नहीं जा पाएंगे। आपको एक ऐसा माहौल बनाना पड़ता है, जिसमें हर क्षण आपको एक रिमाइंडर मिलता रहे। यह संस्कृति लगातार आपके विकास का एक माहौल बनाती है ताकि आपके पास कृपा के लिए जरूरी ग्रहणशीलता हो।
कृपा के महत्व और जीवन के नियम
महाभारत कार्यक्रम, मुख्य रूप से आपको अपने जीवन में कृपा के महत्व को समझाने के लिए एक खोज रहा है। अगर आप कृपा के लिए उपलब्ध नहीं हैं, तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपके पास कितना पैसा है, आप एक सुंदर जीवन नहीं जिएंगे। यह मेरा श्राप नहीं है, बल्कि जीवन ऐसे ही काम करता है। यह धर्म है, जीवन का नियम। अगर आप उसका पालन करेंगे, तो जीवन एक सुंदर फूल की तरह खिलेगा। अगर आप उसका पालन नहीं करेंगे, तो आप अनावश्यक रूप से सृष्टि की शक्तियों से जूझते रहेंगे। आप उनसे लड़ नहीं सकते- आप सिर्फ उनकी सवारी कर सकते हैं। यह सर्फिंग करने जैसा है। बस लहर पर सवार रहिए। अगर आप उससे लड़ेंगे, तो वह आपका दम घोंट देगा।
यह कोई दर्शन नहीं है। यह सामान्य समझ है। अगर आप समुद्र पर चलना चाहते हैं, तो आपको लहर पर सवार होना होगा, आप लहर से लड़ नहीं सकते। और हम जिसकी बात कर रहे हैं, वह सिर्फ एक समुद्र नहीं है। हम सृष्टि और ब्रह्मांडीय शक्तियों की बात कर रहे हैं, जहाँ समुद्र पूरे ब्रह्मांड में बस पानी की एक बूँद की तरह है। इस ब्रह्मांड में, आपको लहर की सवारी करना सीखना है। धर्म यही सिखाता है – कैसे लहर की सवारी करें, उसके नीचे कुचले न जाएँ।