प्रश्नकर्ता: सद्गुरु, पश्चिम का होने के कारण और महाभारत से बहुत परिचित नहीं होने के कारण, मेरा सवाल है कि क्या महाभारत सच में हुआ था, या ये केवल एक कहानी है?
सद्गुरु: इस देश की प्राचीन पुस्तकों को तीन श्रेणियों में रखा गया है- वेद, पुराण, और इतिहास। वेद में विशुद्ध विचार हैं, पुराणों में उन लोगों की कहानियाँ है जो मनुष्य नहीं थे, और इतिहास में इंसानों की कहानियाँ हैं। शिव की कथाएँ शिव पुराण कहलाती हैं, शिव इतिहास नहीं- यह समझना जरूरी है। हम शिव पुराण कहते हैं, लेकिन हम कृष्ण पुराण नहीं कहते हैं।
कहानी का समझदारी भरा स्वरूप
अगर आप पश्चिम के इतिहास की बात करें तो पश्चिमी बौद्धिकता की प्रकृति रही है - विश्लेषण करना, जहाँ तक संभव हो सके तथ्यों को हासिल करना, और फिर उन्हें तथ्य और विश्लेषण के रूप में पेश करना। देखिए, पाँच हज़ार पहले कोई पैदा हुआ था या नहीं, उससे आपकी जिंदगी में कोई फर्क नहीं पड़ता है। जब इस देश में इतिहास लिखा गया तो उसे इस प्रकार लिखा गया कि वो हमेशा लोगों के लिए प्रासंगिक रहे। कहानी और घटनाएँ वास्तव में घटित हुईं हैं, लेकिन उन्हें केवल तथ्यपरक विश्लेषण के रूप में लिखने के बजाय एक जीवंत प्रक्रिया के रूप में पेश किया गया।
अगर लोग हजार साल के बाद भी इस कहानी को पढ़ें तो वो उनके लिए कुछ मायने रखेगा। इसे ऐसे प्रसंग के रूप में लिखा गया है क्योंकि, ‘उसकी कहानी’ का मेरे लिए महत्व नहीं है - इस जिंदगी में ‘मेरी कहानी’ मेरे लिए महत्वपूर्ण है। मैं ‘उसकी कहानी’ के ज़रिए ‘अपनी कहानी’ को बेहतर करना चाहता हूँ, मैं ‘उसकी कहानी’ को ख़ुद पर एक बोझ बनने देना नहीं चाहता हूँ। इतिहास एक बोझ भी बन सकता है।
कहानी और घटनाएँ वास्तव में घटित हुईं हैं, लेकिन उन्हें केवल तथ्यपरक विश्लेषण के रूप में लिखने के बजाय एक जीवंत प्रक्रिया के रूप में पेश किया गया।
अमेरिका और यूरोप के इतिहास में कई ऐसे तथ्य हैं, जिन्हें छिपाने की कोशिश की गई है, क्योंकि वे मानवता का घिनौना रूप दिखाते हैं। साथ ही, जिन लोगों ने उसे झेला, वे इसे बनाए रखना चाहते हैं। इतिहास की किताबों में हर चीज़ की तथ्य और विश्लेषण के रूप में व्याख्या की गई है। अगर वही चीजें वैसे बताई जातीं जैसे महाभारत में कही गई हैं, तो सबको कहानी इस तरह से पता चलती कि वे उन गलतियों को फिर से न दोहराएँ। इतिहास को अपने सिर पर बोझ के रूप में ढोने के बजाय आप उसे जीवन के समाधान के रूप में ले सकते हैं। यही है महाभारत। हम इस 5000 साल पुराने इतिहास को जीवन के समाधान के रूप में लेकर चल रहे हैं।
महाभारत एक जीवंत प्रक्रिया है
जो इस किताब में है वो कहीं भी घटित हो सकता है पर जो इसमें नहीं है वो कहीं नहीं है। हर वो चीज जिससे इंसान गुजर सकता है, किसी न किसी रूप में महाभारत में है। इस कहानी से उसे समझ पाना आप पर निर्भर करता है। अगर आप इस कहानी को एक जीवंत प्रक्रिया के रूप में लेते हैं तो आखिर में युधिष्ठिर जैसे बन जाएंगे- सभी चीजों से शुद्ध। अगर आप इसे किसी और की कहानी मानकर चलते हैं, तो आप बैठकर विश्लेषण करेंगे, ‘अर्जुन अच्छा आदमी था या बुरा? दुर्योधन अच्छा इंसान था या बुरा?’ दुर्भाग्य से आज के दौर में इंसानी दिमाग इतना दूषित हो चुका है कि आप किसी का मूल्यांकन किए बिना रह ही नहीं सकते- चाहे वो इंसान हज़ारों साल पहले मर चुका हो।
वो 5000 साल पहले मर चुके हैं, लेकिन आपको उनके बारे में अपना निर्णय देना ही है - ये आपका अहंकार है, और इससे आपका पतन होगा। कहानी का आख़िरी भाग यही बता रहा है - जो लोग 5000 साल पहले हुए हैं उनका विश्लेषण करने में अपना समय और जीवन बर्बाद मत कीजिए। हमें देखना यह है कि कैसे ‘उसकी कहानी’, ‘मेरी कहानी’ को बेहतर बना सकती है। यही महाभारत है। इसे इस तरीके से पेश किया गया है जो सबसे अलग है। इतिहास के तौर पर अगर पूछें कि क्या ये सचमुच हुआ था? तो हाँ, हुआ था। यहाँ ऐसे स्थान, घटनाएँ और भवन हैं जो कि अभी भी मौजूद हैं।
जो लोग 5000 साल पहले हुए हैं उनका विश्लेषण करने में अपना समय और जीवन बर्बाद मत कीजिए। हमें देखना यह है कि कैसे ‘उसकी कहानी’, ‘मेरी कहानी’ को बेहतर बना सकती है।
कुछ परिवारों के पास ऐसी पुस्तकें हैं जो पीढ़ियों का लेखा-जोखा रखती हैं। मैं एक बार राजस्थान में किसी से मिला था। उन्होंने एक चर्मपत्र वाली किताब खोलकर मुझे दिखाई, ‘देखिए, यहाँ ये लिखा हुआ है कि हम सूर्यवंशियों की 333 वीं पीढ़ी हैं। हमारी पुस्तक के अनुसार, राम करीब 9000 साल पहले हुए थे। हम अभी भी सूर्यवंशियों के वंशज के तौर पर रह रहे हैं। हम उनकी वंशावली के ही हैं। हमने रक्त संबंध को बनाए रखा है।
एक कहानी, साधन बन सकती है
कहानी निश्चित रूप से घटित हुई थी, लेकिन इसे इतने बेहतरीन तरीके से प्रस्तुत किया गया है कि ये हमेशा प्रासंगिक रहेगी। ये पुराने ज़माने की ऐसी कहानी नहीं बनेगी जिसमें हमारी कोई दिलचस्पी ही न रहे। करीब अगले बीस-तीस सालों में आप देखेंगे कि महाभारत दुनिया में बहुत प्रसिद्ध हो जाएगी। क्योंकि इसका इरादा किसी दूसरे की कहानी सुनाना नहीं है। कहानी एक ऐसी चीज है जिसकी ओर मनुष्य स्वाभाविक रूप से आकर्षित होते हैं।
अगर आप किसी को शिक्षा दें, तो कोई सुनना नहीं चाहेगा। अगर आप एक कहानी सुनाएँ, सब सुनना चाहेंगे। और आधुनिक शैक्षणिक अनुसंधान स्पष्ट बताता है कि अगर हर चीज़ नाटक अथवा कहानी के रूप में पेश की जाए तो लोग बिना अपनी बुद्धिमत्ता का दमन किए शिक्षा हासिल कर पाएँगे। अगर आप स्कूल में जाकर उन्हें कहें, ‘A + B = C,’ तो बच्चे टेबल के नीचे छिप जाएँगे और भाग जाएँगे, लेकिन अगर आप उन्हें एक कहानी सुनाएँ, तो वो पास आकर बैठेंगे।
लोगों को जैसे-जैसे भौतिक समृद्धि मिल रही है, ये बहुत जरूरी है कि जहाँ तक संभव हो सके, मनुष्य अपनी चेतना की खोज में डूबे। हर इंसान अपनी आँखों की पुतलियों को चढ़ाकर नहीं बैठ सकता। लेकिन जब आप एक कहानी सुनाएँ तो लोगों की पुतलियाँ अपने आप चढ़ जाती हैं। हम महाभारत को बहुत विख्यात करना चाहते हैं, इसलिए नहीं कि ये इस इस देश का इतिहास है, बल्कि इसलिए क्योंकि ये आपकी और सबकी कहानी है। ये कहानी हर जीवित इंसान के लिए है। ऐतिहासिक रूप से क्या ये हुआ था? निश्चित रूप से ये हुआ था।