सद्गुरु: पूर्णिमा, एक प्रतीक के रूप में हमारे जीवन की पूर्णता, खुशी, प्यार, परमानंद और अकारण उल्लास को दर्शाती है। लेकिन अगर आप सिर्फ पूर्णिमा के दिन ही थोड़ी बहुत खुशी, प्यार या और ऐसी कोई चीज़ महसूस करते हैं, तो बाकी के अट्ठाइस दिन आप क्या करते हैं?
तो ऐसा क्यों है कि कोई एक इंसान जीवन के बोझों और परेशानियों के बावजूद उल्लासमय और आनंदित रहता है, जबकि दूसरे इंसान को पूर्णिमा जैसे किसी विशेष माहौल की जरूरत पड़ती है? ऐसा क्यों है कि एक इंसान के भीतर हमेशा पूर्णिमा रहती है, जबकि दूसरे लोगों के मूड, भावनाएं, विचार और शरीर के स्राव ऊपर-नीचे होते रहते हैं।
वायु क्या है?
शरीर के भीतर कई तरह की हलचल होती रहती हैं। अगर आप डॉक्टर हैं, तो आप इस तरह सोचते हैं कि रक्त प्रवाह और ग्रंथियाँ आपके मूड और अनुभवों को निर्धारित करते हैं, लेकिन उससे भी गहरा कुछ है। शरीर में ऊर्जा और अलग-अलग तरह की वायु की गति में कोई रुकावट नहीं होनी चाहिए। शरीर के अंदर, खासतौर पर सिर के अंदर महत्वपूर्ण मार्ग होते हैं। अगर इस मार्ग में रुकावट हो तो खुद को उल्लासमय रखना बहुत मुश्किल हो जाता है।
शरीर में ऊर्जा और अलग-अलग तरह की वायु की गति में कोई रुकावट नहीं होनी चाहिए।
‘वायु’ शब्द का अर्थ है ‘जो गतिशील है,’ इसका अर्थ हवा से भी है। शरीर के भीतर, मूलभूत रूप से, 5 तरह के वायु होते हैं। अगर आप इसे थोड़ी और गहराई से समझना चाहते हैं, तो ये 10 तरह के हो जाते हैं। अगर आप उसकी हर बारीकी पर ध्यान देंगे तो ये 84 तरह के हो जाते हैं। लेकिन वे बहुत सूक्ष्म होते हैं, आपको ये चीज़ें समझने के लिए जीवन भर का ध्यान चाहिए। अगर आप पाँच वायु या पंच-प्राण को ठीक से संभाल लेते हैं, तो बाकी भी ख़ुद संभल जाएँगे।
पंच वायु का महत्व
पंचवायु हैं – प्राण वायु, समान वायु, अपान वायु, उडान वायु और व्यान। आपकी जठराग्नि के जलने के लिए, सर्कुलेशन के लिए, पोषक तत्वों के पूरे शरीर में फैलने के लिए और अपशिष्ट को कोशिकाओं से निकालने के लिए, आपको पंचवायु की सक्रियता की जरूरत होती है। अगर आप इस सक्रियता को रोक देते हैं, तो शरीर जीवन को बनाए नहीं रख पाएगा।
जिसने पंचवायु पर थोड़ी महारत हासिल कर ली है, उसमें जबरदस्त शारीरिक, मानसिक और ऊर्जा संबंधी शक्ति होगी।
जब इनके मार्ग पूरी तरह खुले नहीं होते हैं, तो ये वायु बासी होकर सुस्ती पैदा करती हैं। शरीर में प्राण की सक्रियता के बिना, ऊर्जावान होना संभव नहीं है। सिर्फ एक निश्चित मात्रा में प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट खाने से आपके अंदर ऊर्जा नहीं आएगी। ना ही सिर्फ़ इनके खाने भर से आप स्वस्थ रहेंगे। अगर पंच प्राण सहजता से प्रवाहित नहीं हो रहे हैं, तो आपके अंदर ऊर्जा, फोकस और जीवन के उल्लास की कमी होगी।
भारतीय संस्कृति में, वायु को हमेशा शक्ति के रूप में देखा जाता है। भीम और हनुमान वायुपुत्र या वायु देवता के पुत्र हैं। इसमें बहुत प्रतीकवाद है, लेकिन सबसे बढ़कर इसका यह अर्थ है कि जिसने पंचवायु पर थोड़ी महारत हासिल कर ली है, उसमें जबरदस्त शारीरिक, मानसिक और ऊर्जा संबंधी शक्ति होगी।
प्राण वायु एक उल्लासमय जीवन की कुंजी है
वायु का पहला और सबसे महत्वपूर्ण पहलू प्राण-वायु है। बाकी सभी वायु के अलग-अलग कार्य हैं और वे भी समान रूप से महत्वपूर्ण हैं, लेकिन यह बहुत मूलभूत है। प्राण वायु श्वसन क्रिया और विचार प्रक्रिया के लिए जिम्मेदार है। बहुत से लोगों ने इस हद तक कहा है कि आप जिस तरह सोचते हैं, उसी तरह हो जाते हैं। मैं इससे सहमत नहीं हूँ, लेकिन ऊपरी तौर पर यह सच है कि आप जिस तरह सोचते हैं, उसी तरह हो जाते हैं। अगर आप अपनी विचार प्रक्रिया को ठीक करने की कोशिश करें, तो आपको कुछ नतीजा हासिल होगा। लेकिन अगर आप अपने अस्तित्व के तरीके को ठीक करते हैं, तो आपको सौ फीसदी नतीजा मिलेगा। आप अपने जीवन के हर क्षण में पूर्णिमा का चाँद होंगे। ऐसा होने के लिए, आप कैसे सांस लेते हैं और आपके प्राण में किस स्तर की गतिशीलता है, यह महत्वपूर्ण है।
अगर आप एक भी दिन का ब्रेक लिए बिना, लगातार 1008 दिन तक शक्ति चालन क्रिया करते हैं, तो फिर आपको कभी थकान नहीं होगी।
अगर आप अपनी सांस को इस प्रकार रखना सीखते हैं कि आपकी सांस आपके गले के गड्ढे और आपकी नाभि के बीच हो, तो आपकी प्राण वायु खुद को बेहतर करेगी। जब ऐसा होता है, तो विचारों में स्पष्टता आती है और एक फायदा और है कि आपकी सूँघने की क्षमता बहुत तीव्र हो जाती है। अगर आप जानते हैं कि शक्ति चालन क्रिया कैसे की जाती है, उसे करने का तरीका निश्चित रूप से एक वैज्ञानिक तरीका है। अगर आप एक भी दिन का ब्रेक लिए बिना, लगातार 1008 दिन तक शक्ति चालन क्रिया करते हैं, तो फिर आपको कभी थकान नहीं होगी।
सांस लेने का सही तरीका
अगर आप पूरे पेट से सांस लेते हैं, तो शरीर में सुस्ती आ जाएगी। कुछ आध्यात्मिक पद्धतियां, खासकर सुदूर पूर्व में, सुस्ती या निष्क्रियता को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करती हैं। वे पेट के निचले हिस्से से सांस लेते हैं ताकि अगर आप बैठ जाएं तो आपको उठने का मन न करे। आप बस बैठ सकते हैं। यह इस संस्कृति में बहुत स्पष्ट रूप से दिखता है। अगर आप भारत में गौतम बुद्ध के चित्र देखें, तो वह बहुत एथलेटिक दिखते हैं। जाहिर है, जो व्यक्ति जागरुकता पर इतना ज़ोर देता है, वह जरूरत से ज्यादा भोजन का एक ग्रास भी नहीं खाएगा। लेकिन सुदूर पूर्वी संस्कृतियों में, आप देखेंगे कि बुद्ध का बहुत मोटा पेट है – वह खुश दिखते हैं लेकिन उनमें कोई सक्रियता नहीं दिखती है।
भोजन की कुछ आदतें प्राण वायु के प्रवाह में रुकावट डालती हैं
अगर आप कुछ निश्चित तरह का खाना खाते है, जैसे बहुत सारी कंद वाली सब्जियाँ, तो आपकी नाभि के नीचे गैस बनने लगेगी । जब आपकी नाभि के नीचे गैस बनने लगेगी तो नाभि और गले के गड्ढे के बीच आपका प्राण उस तरह कार्य नहीं करेगा, जैसा उसे करना चाहिए और आपके शरीर की सक्रियता कम हो जाएगी। यही वजह है कि साधकों, विद्यार्थियों और जिन लोगों को अपना मन एकाग्र रखना है और लंबे समय तक जगे रहना है, उन्हें ऐसे पदार्थ नहीं खाने चाहिएँ।
जब आपकी नाभि के नीचे गैस बनने लगेगी तो नाभि और गले के गड्ढे के बीच आपका प्राण उस तरह कार्य नहीं करेगा, जैसा उसे करना चाहिए और आपके शरीर की सक्रियता कम हो जाएगी।
एक और कारण यह है कि जैसे-जैसे मूर्खों को लगता है कि वे आधुनिक होते जा रहे हैं, उनका भोजन बासी होता जाता है। उन्हें लगता है कि ताज़ा भोजन जंगली लोगों के लिए है। यह दुनिया भर में हो रहा है। अगर आप बहुत सभ्य हैं, तो आप सुपरस्टोर जाते हैं, किसी प्लास्टिक के डिब्बे या स्टील या एल्यूमिनियम के कैन में खाना खरीदते हैं, उसे माइक्रोवेव में गर्म करते हैं और फिर खाते हैं। यह भोजन कम से कम तीन महीने पुराना हो सकता है। लोग कहते हैं, ‘नहीं वह रेफ्रिजरेटर में था और उन्होंने उसमें प्रिजर्वेटिव डाले हैं ताकि वह खराब न हो।’ यह दोहरी गलती है।
भोजन पकने के डेढ़ घंटे के भीतर खा लें
योगिक संस्कृति के अनुसार, अगर आप कुछ पकाते हैं, तो आपको उसे डेढ़ घंटे के भीतर खा लेना चाहिए। कुछ चीज़ों के लिए, चार घंटे तक ठीक हैं, लेकिन उसके बाद आपको उसे छूना भी नहीं चाहिए, वरना आपके शरीर में गैस बनने लगेगी। आपको न सिर्फ पेट में गैस बनेगी बल्कि शरीर में जो वायु होगी वह आपकी प्राण वायु के खिलाफ काम करेगी। इसका मतलब है कि समय के साथ आपकी श्वसन क्रिया, विचार प्रक्रिया और गंध की क्षमता कम हो जाएगी। एक जीवंत इंसान होने के लिए ये तीनों आपके लिए बहुत जरूरी हैं।