सद्‌गुरु एक्सक्लूसिव

अध्यात्म की राह में इतनी परेशनियाँ क्यों ?

क्या आपको लगता है कि अपनी आध्यात्मिक यात्रा शुरू करने के बाद, जीवन आपके सामने ज्यादा मुश्किलें पैदा कर रहा है? यह कोई बुरी बात नहीं है। आइए जानते हैं कि आध्यात्मिकता और जीवन की चुनौतियों के बीच के संबंध के बारे में सद्‌गुरु क्या कहते हैं। 

जब ज्यादा की कामना उठती है

प्रश्नकर्ता: जब से मैंने यह आध्यात्मिक प्रक्रिया शुरू की है, मुझे ऐसा क्यों लगने लगा है कि मुझे घर पर, काम पर, बल्कि आम तौर पर जीवन में ज़्यादा मुश्किल हालातों का सामना करना पड़ रहा है?

सद्‌गुरु: आप चाहे जिस भी वजह से योग कार्यक्रम में आए हों – हो सकता है किसी सेहत संबंधी समस्या के कारण आए हों या सांसारिक समस्याओं के कारण आए हों – एक तरह से आप उससे कुछ ज्यादा जानने की लालसा में फँस गए हैं, जितने की लोग आम तौर पर कामना करते हैं। एक तरह से योग एक जाल है, जो आपको इस तरह से फँसाता है कि कुछ समय बाद जानने की लालसा खुद से बड़ी हो जाती है।

जैसे ही हम किसी चीज का थोड़ा सा अनुभव करना शुरू करते हैं, उसके बारे में ज्यादा जानने और उसका पूरा अनुभव पाने की चाह इतनी बड़ी हो जाती है कि बाकी सब कुछ पीछे चला जाता है। जब ऐसा होने लगे, तो आपके लिए यह महत्वपूर्ण है कि आप अपनी बाहरी परिस्थितियों को थोड़ी चतुराई और कुशलता से संभालना सीखें, वरना वे अलग-थलग हो जाएँगी। जब आपके भीतर की लालसा इतनी तीव्र होती है कि आप अपने आस-पास किसी को भी नहीं समझा सकते, तो बाहरी हालात को संभालने के लिए एक कुशलता की जरूरत होती है। 

जीवन फास्ट फॉरवर्ड पर

जब कोई आध्यात्मिक चीज़ आपको छूती है, तो एक तरह से आप अपने जीवन को फास्ट-फॉरवर्ड कर रहे होते हैं। जब आप अपने जीवन को फास्ट-फॉरवर्ड पर रखते हैं, तो स्थितियां शायद पहले से ज्यादा बिगड़ने लगेंगी। आपकी खोज जितनी ज्यादा तीव्र होगी, ऐसा हो सकता है कि वैसे जो मुसीबतें दस साल में धीमी किस्तों में आपके पास आतीं, वह कुछ ही महीनों में आ जाएँ। इससे निराश होकर लोग सोच सकते हैं, ‘यह योग मुझे परेशान कर रहा है।’ योग आपके लिए परेशानी नहीं ला रहा। यह सिर्फ परेशानियों को तेज करता है ताकि आपकी परेशानियों का कोटा जल्द से जल्द खत्म हो जाए।

जब आप अपने जीवन को फास्ट-फॉरवर्ड पर रखते हैं, तो स्थितियां शायद पहले से ज्यादा बिगड़ने लगेंगी।

आध्यात्मिक साधना के शुरुआती चरण में, लोगों को पहले से कहीं अधिक परेशानी हो सकती है, सिर्फ इसलिए कि जीवन की प्रक्रिया को तेजी से आगे बढ़ाया जाता है। कोई व्यक्ति आध्यात्मिक मार्ग को इसलिए चुनता है क्योंकि उसे जल्दी है। वे दस लाख साल लंबा विकासपरक मार्ग अपनाने को तैयार नहीं हैं। वे इसे अभी, इसी जीवन में करना चाहते हैं। आध्यात्मिक लोग भौतिकवादी लोगों के मुकाबले बहुत ज्यादा जल्दी में होते हैं - वे अपना पूरा जीवन तेजी से आगे बढ़ा रहे हैं। वे छोटे-छोटे कामों को जल्दी निपटाते हुए तेजी से आगे बढ़ना चाहते हैं।

जब मुसीबतें आती हैं और स्थितियाँ पहले से कहीं ज्यादा नाटकीय रूप से बदलती हैं, तो उन सब को संभालने के लिए एक तरह के संतुलन और कौशल की जरूरत होती है। क्योंकि अगर हालात आपके आस-पास बिगड़ने लगें, तो आप अपनी आध्यात्मिक प्रक्रिया को छोड़ सकते हैं। बाहरी स्थिति को संभालने के लिए एक चतुराई चाहिए होती है।

ज़रूरत है सिर्फ फ़ोकस बनाए रखने की

एक दिन, शंकरन पिल्लै एक गुरु के पास जाकर बोला, ‘गुरुजी, मैं अपनी पत्नी से बहुत प्यार करता हूँ, लेकिन मैं सड़क पर दिखने वाली हर महिला की ओर आकर्षित और उत्तेजित हो जाता हूँ। मुझे शर्मिंदगी होती है, लेकिन मैं उसे रोक नहीं सकता। मैं क्या करूँ?’ गुरु ने उसे देखा और कहा, ‘बेटा, जब तक आप घर पर खाना खाते हैं, तब तक इससे फर्क नहीं पड़ता कि आपकी भूख कहाँ बढ़ती है।’

जब मुसीबतें आती हैं और स्थितियाँ पहले से कहीं ज्यादा नाटकीय रूप से बदलती रहती हैं, तो उन सब को संभालने के लिए एक तरह के संतुलन और कौशल की जरूरत होती है।

आप आध्यात्मिक प्रक्रिया में आ गए हैं, लेकिन अब भी आपको ऑफिस जाना है, अपने परिवार को संभालना है और अपने आस-पास की सामाजिक स्थितियों को संतुलित करना है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप अपने शरीर के साथ क्या बकवास करते हैं, चाहे आप किसी मंदिर में हों, होटल में हों या हिमालय पर हों, अगर आप जानते हैं कि हर चीज़ का इस्तेमाल एक आध्यात्मिक प्रक्रिया के रूप में कैसे कर सकते हैं। इससे भी कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप सज्जन लोगों के साथ रह रहे हैं या ऐसे लोगों के साथ जिनके साथ रोज़ खींचतान होती है। आप कैसी भी परिस्थितियों में रहें, और जो भी करें, उससे कोई फर्क नहीं पड़ता, अगर आप अपना फोकस बनाए रखते हैं।

अपने विकास के लिए हर स्थिति का लाभ उठाना

अगर आपको यह हुनर नहीं आता, तो आपके आस-पास के हालात खराब हो जाएंगे। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपके आस-पास के लोग कितने मूर्ख हैं। आमतौर पर, इस धरती पर बुद्धिमानों के मुकाबले मूर्खों के पास ज्यादा ताक़त होती है। यही मानवता का दुर्भाग्यपूर्ण इतिहास रहा है। बुद्धिमानों में कभी भी अपनी बुद्धि से कुछ बनाने की शक्ति नहीं थी, क्योंकि वे हमेशा आदर्श स्थितियों की तलाश में रहते थे।

कभी आदर्श स्थिति की तलाश मत कीजिए। हर स्थिति आदर्श है। वह जितनी अप्रिय होगी, उतनी ही अनुकूल है। अगर आप चाहते हैं कि कोई पौधा बहुत अच्छी तरह बढ़े, तो आप उस पर जितना ज्यादा गोबर फेंकेंगे, वह उतना ही अच्छा बढ़ेगा। जीवन जितनी ज्यादा गंदगी आप पर फेंकता है, उतनी ही तेजी और फुर्ती से आपको बढ़ना चाहिए। जो कुछ भी होता है उसका इस्तेमाल या तो विकास की प्रक्रिया के रूप में किया जा सकता है, या खुद को उलझाने और अपना दम घोंटने के लिए किया जा सकता है। हमारे आस-पास जैसी भी चीज़ें घटित होती हैं, वे कोई बाधा नहीं हैं अगर आप जानते हैं कि उन्हें कुशलता से कैसे संभालना है।