जब मैं जेल से बाहर आया तो मैं भाव स्पंदन कार्यक्रम (बीएसपी) करने के लिए कोयंबटूर के ईशा योग केंद्र गया। मैंने शून्य ध्यान में भी दीक्षा ली। मैंने दो बार महाशिवरात्रि समारोह में भाग लिया और सद्गुरु के साथ कैलाश जाने की इच्छा जताई। जैसे-जैसे मैं नियमित रूप से योग करता गया, मेरा मन हल्का होता गया। मेरे अंदर जो दुश्मनी की भावना और गुस्सा था, वह बिना कोई निशान छोड़े गायब हो गए। फिर मेरे जीवन में एक और मोड़ आया - मेरी शादी हो गई। मेरी पत्नी ने भी योग कार्यक्रम किया और अब हम दोनों बिना नागा रोज़ अपनी साधना करते हैं।
मैंने महसूस किया कि एक बार जब हम गुस्से में चाकू उठा लेते हैं, तो उसे छोड़ना बहुत मुश्किल हो जाता है। इस समाज में किसी गैरकानूनी काम के दोषी व्यक्ति का चाहे कितना भी रूपांतरण क्यों न हो जाए, लोग उसे ऐसी नजर से देखते हैं, जिसे झेलना बहुत मुश्किल है। लेकिन मेरे जीवन में यह सब हुआ है। जब मैं 14 साल का था तब मैंने गलत रास्ता चुन लिया था। जब मैं 28 साल का था, तब ईशा योग कार्यक्रम ने मुझे पूरी तरह से बदल दिया। मेरे अंदर आया बदलाव स्पष्ट था, जबकि जवानी का जोश अभी भी मेरी रगों में दौड़ रहा था।
अभी कुछ साल पहले, 23 साल की उम्र में, मेरे खिलाफ कई आपराधिक मामले दर्ज हुए थे और मैं 60 से ज्यादा लोगों को आदेश देता था। मैंने वह सब छोड़ दिया। अब मैं जहाँ भी जाता हूँ, अपना काम खुद करता हूँ।