चर्चा में

जीवन रूपांतरण : एक कट्टर अपराधी लेखक कैसे बना

रमेश – जो एक सजायाफ्ता अपराधी था, वह आज योग की रूपांतरणकारी शक्ति का प्रतीक बन गया है। क़ैदियों के लिए होने वाले ईशा के योग कार्यक्रमों ने उसे अपराध का जीवन पीछे छोड़कर एक नया जीवन शुरू करने में मदद की है। आज वह कानून का पालन करने वाला एक सभ्य नागरिक और लेखक भी है जिसे अपने लेखन से थोड़ी प्रसिद्धि भी मिलने लगी है। 

जब ख़ुद की पहचान बदलती है, तो चमत्कार होते हैं। यह बात उन कई अपराधियों ने सच साबित कर दी जिन्होंने ईशा योग के जादुई स्पर्श की बदौलत आत्म-रूपांतरण की नई राह पर क़दम बढ़ाया। 

जिस तरह से नारद मुनि ने एक कुख्यात अपराधी को वाल्मीकि ऋषि में बदल दिया था, उसी तरह के रूपांतरण की शुरुआत ईशा ने की है। एक अपराधी अन्नानगर रमेश ने अपना जीवन पूरी तरह से बदल लिया और अब लेखक रमेश के रूप में जाना जाता है।

1999-2000 की बात है, मदुरै जेल के एक अधिकारी ने कुछ अलग करने और कैदियों को योग सिखाने का फैसला किया था। तब ईशा ने मदुरै जेल में सजायाफ्ता अपराधियों के लिए पहला योग कार्यक्रम आयोजित किया। 

दिल व दिमाग में बदलाव

हालांकि योग के जरिये कट्टर अपराधियों का दिल बदलना कोई आसान काम नहीं है। रमेश भी ऐसा ही एक उदाहरण है। क्रोध के वश में आकर उसने कई हिंसक और गैरकानूनी अपराध किए और गिरफ्तार हुआ।

ईशा ने रमेश को प्यार का पाठ पढ़ाया और 10 दिन के भीतर ही इस कैदी की बोली, हरकत और यहाँ तक ​​कि उसके हाव-भाव में भी काफी अंतर आ गया। जैसे-जैसे योग कार्यक्रम आगे बढ़ा, जेल अधिकारी कैदियों, खासकर रमेश द्वारा की गई प्रगति के बारे में पूछताछ करते रहे। जेल अधिकारी चाहते थे कि रमेश में कुछ बदलाव आए, क्योंकि वह अक्सर समस्याएँ खड़ी करता रहता था।

फिर योग कार्यक्रम का एक महत्वपूर्ण चरण आया जब कैदियों को सिखाया गया कि सभी जीवन-रूपों को अपना ही रूप समझना और स्वीकार करना है।

रमेश की कहानी – उसी की ज़ुबानी

कार्यक्रम के बाद रमेश ने अपना अनुभव साझा किया:

सद्‌गुरु ने मुझे सबसे प्यार से बर्ताव करने के लिए कहा। लेकिन, यहाँ तो अगर एक क्षण के लिए भी मेरा ध्यान हट जाए तो लोग मुझे मारने के लिए तैयार थे। ऐसे में मैं उनकी सलाह कैसे मानूँ? अगर मैं कोई प्रतिज्ञा करता हूँ, तो मुझे उसे निभाना भी चाहिए। फिर मैंने यह प्रण लिया कि जो मुझसे प्यार करेगा, मैं उससे प्यार करूँगा।

योग कार्यक्रम के अपने अनुभव साझा करते हुए मैंने अपने मन में आए बदलाव के बारे में बताया। मैंने कहा, ‘प्यार की कमी है, इसलिए मैं खुद को योग के हवाले कर रहा हूँ।’ जेल के एक अधिकारी ने मेरी बात को मेरे ही शब्दों में पेश करते हुए मेरे लिए अपनी चिंता जताई। पहली बार मैंने इस जेल अधिकारी को प्यार से देखा, जिसे मैं उस दिन तक अपना दुश्मन मानता था। उस रात मेरी नींद उड़ गई और मुझे लगा जैसे सद्‌गुरु धीरे से मेरे कानों में बोल रहे हैं।

मैंने कभी उम्मीद नहीं की थी कि उसके बाद मेरा जीवन इतना बदल जाएगा! मैंने जेल की सलाखों के पीछे अपने जीवन और अपने अनुभवों के बारे में कई कविताएँ लिखीं। जेल अधिकारियों की नज़रों में मेरी थोड़ी प्रतिष्ठा बनने लगी थी। 

चाकू को छोड़ना

जब मैं जेल से बाहर आया तो मैं भाव स्पंदन कार्यक्रम (बीएसपी) करने के लिए कोयंबटूर के ईशा योग केंद्र गया। मैंने शून्य ध्यान में भी दीक्षा ली। मैंने दो बार महाशिवरात्रि समारोह में भाग लिया और सद्‌गुरु के साथ कैलाश जाने की इच्छा जताई। जैसे-जैसे मैं नियमित रूप से योग करता गया, मेरा मन हल्का होता गया। मेरे अंदर जो दुश्मनी की भावना और गुस्सा था, वह बिना कोई निशान छोड़े गायब हो गए। फिर मेरे जीवन में एक और मोड़ आया - मेरी शादी हो गई। मेरी पत्नी ने भी योग कार्यक्रम किया और अब हम दोनों बिना नागा रोज़ अपनी साधना करते हैं।

मैंने महसूस किया कि एक बार जब हम गुस्से में चाकू उठा लेते हैं, तो उसे छोड़ना बहुत मुश्किल हो जाता है। इस समाज में किसी गैरकानूनी काम के दोषी व्यक्ति का चाहे कितना भी रूपांतरण क्यों न हो जाए, लोग उसे ऐसी नजर से देखते हैं, जिसे झेलना बहुत मुश्किल है। लेकिन मेरे जीवन में यह सब हुआ है। जब मैं 14 साल का था तब मैंने गलत रास्ता चुन लिया था। जब मैं 28 साल का था, तब ईशा योग कार्यक्रम ने मुझे पूरी तरह से बदल दिया। मेरे अंदर आया बदलाव स्पष्ट था, जबकि जवानी का जोश अभी भी मेरी रगों में दौड़ रहा था।

अभी कुछ साल पहले, 23 साल की उम्र में, मेरे खिलाफ कई आपराधिक मामले दर्ज हुए थे और मैं 60 से ज्यादा लोगों को आदेश देता था। मैंने वह सब छोड़ दिया। अब मैं जहाँ भी जाता हूँ, अपना काम खुद करता हूँ।

शांति से तूफानों को सहना

एक और बदलाव जिस पर मैंने गौर किया, वह था कि मैं ऐसे हालात में भी शांत रह पाता हूँ, जिनमें पहले मुझे बहुत ज्यादा गुस्सा आता था। पहले मैं आक्रामक हो जाता था, लेकिन अब मैं शांत रह सकता हूँ, और यह केवल ईशा की वजह से ही संभव हुआ है। मेरे योगाभ्यास से और अब मैं जो प्राकृतिक भोजन करता हूँ, उससे मुझे बहुत मदद मिली है।

अब मेरे पास एक पुस्तकालय है, और वहाँ सद्‌गुरु की एक बड़ी सी तस्वीर है। मुझे पूरा विश्वास है कि वह मेरा मार्गदर्शन करते हैं। अब मदुरै में लोग मुझे लेखक रमेश के रूप में पहचानते हैं।

ईशा सिर्फ एक व्यक्ति को ही नहीं बल्कि पूरे समाज को बदल देती है। मैं आपको अपने साथ हुई एक घटना के बारे में बताता हूँ। एक बार जब मैं अपनी पत्नी और बच्चे के साथ अपने टूव्हीलर पर जा रहा था, तो उल्टी दिशा से एक टूव्हीलर आया और उसने गलती से हमें टक्कर मार दी। हम नीचे गिर गए और जब मैंने उठकर उसकी ओर देखा तो मैंने उसे पहचान लिया, क्योंकि उसने भी ईशा योग कार्यक्रम किया था। हमने बस एक-दूसरे को देखा, हँसे और वहाँ से निकल गए।

हर तरफ़ प्रेम

ये घटना किसी और के साथ होती तो क्या होता? लेकिन ग़ुस्से के बजाय हम एक मुस्कान के साथ वहाँ से चले गए, यह ईशा की वजह से ही हो सका। अगर यह दुर्घटना उस समय हुई होती, जब मैं हमेशा लड़ता रहता था, तो एक अपराध हो जाना तय था। अगर ईशा योग कार्यक्रम जल्दी-जल्दी और कई जगहों पर आयोजित किए जा सकें, तो पुलिस के पास करने के लिए कोई काम नहीं होगा। मैं एक पूर्व-अपराधी के तौर पर बहुत विश्वास से यह बात कह रहा हूँ। 

एक बार, मेरा एक करीबी दोस्त आत्महत्या करने की कगार पर था, क्योंकि उसके किसी करीबी ने उसे धोखा दिया था। मैंने उसका परिचय ईशा योग से कराया। लेकिन उस समय मदुरै के आसपास कोई कार्यक्रम नहीं हो रहे थे। मैंने कार्यक्रम होने तक उसे तसल्ली दी और उसे सद्‌गुरु की किताबें पढ़ने के लिए कहा। फिर मैंने उसे एक कार्यक्रम में शामिल कराया। अब वह बिलकुल ठीक है।

सिर्फ वही नहीं – अगर आज मैं जिंदा भी हूँ, तो सिर्फ ईशा की वजह से।

- रमेश