जीवन के प्रश्न

विचारों और भावनाओं के बाध्यकारी चक्र से कैसे निकलें बाहर ?

क्या आप भावनाओं के चक्रव्यूह में फँसे हुए हैं और बाहर निकलने का रास्ता नहीं ढूंढ पा रहे हैं? सद्‌गुरु बताते हैं कि कैसे जीवन की प्रक्रियाएँ हमें बंधन में डालने का भय दिखाती हैं। आइए इस आलेख के ज़रिए जीवन के बाध्यकारी पैटर्न के बारे में अपनी समझ को विस्तार दें :

वही पुराना चक्र, केवल दृश्य बदलता है

प्रश्नकर्ता: बार-बार एक ही तरह के भावनात्मक पैटर्न से मैं गुज़रता रहता हूँ। मैं उनसे बाहर कैसे निकलूँ?

सद्‌गुरु: ये अच्छी बात है कि कम से कम आपने इस बात पर गौर किया है कि एक जैसे पैटर्न बार-बार घटित हो रहे हैं। अधिकतर लोग तो इसे देख ही नहीं पाते हैं। वे अलग-अलग माहौल में उन्हीं पैटर्नों को दोहराते रहते हैं और सोचते हैं कि वे ठीक हैं। जिंदगी का परिदृश्य बदलेगा। हो सकता है कि जब आप स्कूल में थे तब आपके साथ कुछ गलत हुआ हो। अगली बार जब ये हुआ, तब आप कॉलेज में थे, इस वजह से परिदृश्य अलग था। किसी और समय, आप नौकरी में थे। अगली बार आप विवाहित थे। लेकिन अगर आप अपनी ज़िंदगी का ध्यान से मुआयना करें, वहीं चीज़ें लगातार होती रहती हैं। इसका मतलब आप एक ही चक्र में घूम रहे हैं। 


अगर आप मानव-जीवन को केवल शरीर के रूप में देख रहे हैं तो ये तो क़ब्र में जाने वाला है। अगर आप यहाँ मात्र एक भौतिक रूप में रह रहे हैं, तब शुरू में तो यह एक खेल की तरह लगेगा, फिर यह सुख बन जाएगा, कुछ दिनों में ये और भी बहुत कुछ बन जाएगा, उसके बाद हर जोड़ में दर्द होने लगेगा और फिर ये डरावना बन जाता है क्योंकि अब ये अंत के निकट पहुंचने लगता है। भौतिक जीवन का यही विकास-क्रम है। लेकिन सौभाग्यवश हम केवल भौतिक शरीर नहीं हैं- हमारे और भी आयाम हैं।

सौभाग्यवश हम केवल भौतिक शरीर नहीं हैं- हमारे और भी आयाम हैं।

आपकी मानसिक और भावनात्मक अवस्था या तो लगातार विकसित हो सकती है या एक चक्र में घूमती रह सकती है। हो सकता है कि आप दूसरे आयामों के प्रति जागरूक न हों, पर वहाँ भी, आप या तो एक चक्र में घूमते रह सकते हैं या कहीं और पहुंच सकते हैं। आप जब ये कहते हैं, ‘मेरी जिंदगी एक साइकल में घूम रही है,’ आप दरअसल अपने आसपास की परिस्थितियों की चर्चा कर रहे होते हैं, और उससे भी बढ़कर अपनी खुद की मानसिक एवं भावनात्मक अवस्था की।

स्त्री होने का सौभाग्य

कुछ स्त्रियां इसे पुरुषों की तुलना में बेहतर तरीके से देख सकती हैं क्योंकि उनका मानसिक और भावनात्मक चक्र छोटा होता है। हर महीने एक निश्चित समय पर, कई स्त्रियाँ मानसिक एवं भावनात्मक अवस्था की पुनरावृत्ति से गुजरती हैं। एक शारीरिक हालात, एक मानसिक अवस्था तैयार कर रही है। ये ऐसी चीज है जिसे वे स्पष्ट रूप से देख सकती हैं।

दुर्भाग्य से, पुरुषों में मासिक चक्र नहीं होता है। मैं ‘दुर्भाग्य से’ इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि अगर पुरुषों को भी इस तरह की प्रबल चेतावनी मिलती, तो वे उसे अनदेखा नहीं कर पाते। पुरुषों का चक्र दूसरे तरह का होता है, इसलिए वे उसकी ओर से अपनी आँखे बंद कर सकते हैं और बिना उन पर गौर किए अपनी जिंदगी जी सकते हैं। स्त्रियाँ भाग्यवान हैं क्योंकि वे इसे अनदेखा नहीं कर सकतीं। पुरुषों को कहीं अधिक जागरूक रहने की जरूरत है। ये प्रबल चेतावनी जो स्त्रियों के शरीर में है ये कोई अभिशाप नहीं है - अगर आपको मालूम हो कि इसका इस्तेमाल कैसे करना है, तो यह एक वरदान है।

कोई भी परिवर्तनशील परिस्थिति, बदलाव की एक संभावना है। अगर यहाँ कोई प्रक्रिया सेट हो तो आप चीज़ों को आसानी से बदल नहीं सकते। लेकिन जब यहाँ सिस्टम में निश्चित समय पर परिवर्तन होना ही है तो वहाँ बदलाव की एक प्रबल संभावना रहती है।

अस्तित्व के चक्रीय स्वभाव को समझना

हर चीज़ चक्रीय है। पृथ्वी चक्र में चल रही है, चंद्रमा चक्र में चल रहा है। यहाँ जो सबसे लंबा चक्र चल रहा है वो 144 वर्षों का है। सौर मंडल में 144 सालों में एक बार कुछ खास घटित होता है जिसके अवसर पर हम महाकुंभ मेला करते हैं। अगला चक्र सवा बारह साल का होता है। बाकी सब और भी छोटे होते हैं। यहाँ तीन साल, अट्ठारह महीने, और सोलह महीने के चक्र भी हैं। आप जितने अचेतन, अस्थिर और अस्पष्ट हैं, उसी के अनुसार आप इन चक्रों में फंसते हैं।

ज्योतिष ये बताने की कोशिश करता है कि ये चक्र कैसे आपको बांधते हैं। आध्यात्मिक प्रक्रिया आपको इन चक्रों से बाहर निकलने के तरीके बताती है।

अगर आप पूरी तरह से अस्त-व्यस्त हैं, तो आप सबसे छोटे चक्र के अधीन हैं। अगर आपमें कुछ स्पष्टता है, तो थोड़े लंबे चक्र में उलझते हैं। लेकिन हर कोई किसी न किसी चक्र के अधीन है। अगर आप किसी निश्चित जागरूकता, संकल्प और कहीं पहुंचने के भाव के साथ नहीं खड़े होते, तो आप स्वाभाविक रूप से इन चक्रों के अधीन हो जाते हैं। ये चक्र बंधन की ओर भी ले जा सकते हैं और श्रेष्ठता की ओर भी। ये इस पर निर्भर करता है कि आप क्या हैं।

आध्यात्मिकता और ज्योतिष में केवल यही अंतर है - ज्योतिष ये बताने की कोशिश करता है कि ये चक्र कैसे आपको बांधते हैं। आध्यात्मिक प्रक्रिया आपको इन चक्रों से बाहर निकलने के तरीके बताती है। हम इन चक्रों को अस्वीकार नहीं कर रहे। ये चक्र यहाँ निश्चित रूप से हैं, लेकिन हम ये देख रहे हैं कि आप इन चक्रों से बाहर कैसे आएँ। अगर आप इन चक्रों के अनुसार जीते हैं तो आपके जीवन में एक खास तरह का संतुलन, सफलता, कल्याण और समृद्धि रहेगी। अगर आप लगातार इन चक्रों से बाहर निकलने का उपाय ढूंढ रहे हैं, तो आप मुक्ति की कामना कर रहे हैं। क्या आप मात्र खुशहाली चाहते हैं या आप मुक्त होना चाह रहे हैं? सवाल बस यही है। उसी के अनुसार आपको जीना चाहिए।

चक्रों की सवारी सीखना

अगर आपका जीवन चक्रों में घूम रहा है, तो आप कहीं नहीं पहुंचने वाले। तब आपको पैटर्न में बदलाव लाना होगा। मैं चाहता हूँ कि आप इस बात पर गौर करें कि ये हर माह हो रहा है, या तीन महीनों में, नौ महीनों में एक बार, सोलह से अट्ठारह महीनों में एक बार, तीन से सवा तीन सालों में एक बार या बारह सालों में एक बार हो रहा है। चाहे आप इसे देख पाएँ या न देख पाएँ पर ये हो रहा है। और ऐसा केवल आपकी मानसिक और भावनात्मक अवस्था के साथ ही नहीं होता, बल्कि आपको यह विचित्र लगेगा कि      आपके आसपास की भौतिक परिस्थितियां भी खुद को दोहराती हैं।

अगर ये हर तीन महीनों में प्रकट होता है, तो हम उसे नौ महीनों तक आगे बढ़ा सकते हैं; अगर ये हर नौ माह में जाहिर होता है तो हम उसे अट्ठारह महीनों तक आगे बढ़ा सकते हैं; हम इसे तीन साल तक, बारह साल तक या 144 साल तक बढ़ा सकते हैं। सबसे बड़ी बात, इन चक्रों को चकमा देने के बजाय हम इन चक्रों की सवारी कर सकते हैं।