वही पुराना चक्र, केवल दृश्य बदलता है
प्रश्नकर्ता: बार-बार एक ही तरह के भावनात्मक पैटर्न से मैं गुज़रता रहता हूँ। मैं उनसे बाहर कैसे निकलूँ?
सद्गुरु: ये अच्छी बात है कि कम से कम आपने इस बात पर गौर किया है कि एक जैसे पैटर्न बार-बार घटित हो रहे हैं। अधिकतर लोग तो इसे देख ही नहीं पाते हैं। वे अलग-अलग माहौल में उन्हीं पैटर्नों को दोहराते रहते हैं और सोचते हैं कि वे ठीक हैं। जिंदगी का परिदृश्य बदलेगा। हो सकता है कि जब आप स्कूल में थे तब आपके साथ कुछ गलत हुआ हो। अगली बार जब ये हुआ, तब आप कॉलेज में थे, इस वजह से परिदृश्य अलग था। किसी और समय, आप नौकरी में थे। अगली बार आप विवाहित थे। लेकिन अगर आप अपनी ज़िंदगी का ध्यान से मुआयना करें, वहीं चीज़ें लगातार होती रहती हैं। इसका मतलब आप एक ही चक्र में घूम रहे हैं।
अगर आप मानव-जीवन को केवल शरीर के रूप में देख रहे हैं तो ये तो क़ब्र में जाने वाला है। अगर आप यहाँ मात्र एक भौतिक रूप में रह रहे हैं, तब शुरू में तो यह एक खेल की तरह लगेगा, फिर यह सुख बन जाएगा, कुछ दिनों में ये और भी बहुत कुछ बन जाएगा, उसके बाद हर जोड़ में दर्द होने लगेगा और फिर ये डरावना बन जाता है क्योंकि अब ये अंत के निकट पहुंचने लगता है। भौतिक जीवन का यही विकास-क्रम है। लेकिन सौभाग्यवश हम केवल भौतिक शरीर नहीं हैं- हमारे और भी आयाम हैं।