नवरात्रि के पहले तीन दिन – देवी को कुमकुम से सजाया गया जो दुर्गा का रूप हो जाती हैं – तीव्र, दिव्यता का मूर्त रूप, जिनका संबंध है - शक्ति और सांसारिक ख़ुशहाली से।
नवरात्रि के पहले दिन देवी को पुष्प-अर्पण
नवरात्रि के चौथे दिन हल्दी में देवी का देदीप्यमान रूप। चौथे से छठे दिन - देवी के स्त्रैण गुण - लक्ष्मी (रजस) - के प्रतीक होते हैं।
नवरात्रि के अंतिम तीन दिन – देवी चंदन के लेप में लिपटी हुईं – यह उनके सत्व गुण यानी सरस्वती रूप को दर्शाता है।
धान्य समर्पण – नवरात्रि के हर दिन अनाज, जो प्रतीक है जीवन-ऊर्जा के, देवी को भेंट चढ़ाकर उनसे कृपा की प्रार्थना की जाती है।
लिंग भैरवी के पास ख़ूबसूरत दीपमाला
ईशा संस्कृति के बच्चों के साथ शंकरन मेनन का वाइयलिन वादन
नवरात्रि की हर रात को मनमोहक सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन हुआ जिसे लोगों ने लाइवस्ट्रीमिंग के ज़रिए भी देखा।
मंच पर ईशा संस्कृति की एक पूर्व छात्रा मनमोहक प्रदर्शन करती हुई
दिव्या नायर – कलाक्षेत्र कॉलेज ऑफ़ फ़ाइन आर्ट्स की पूर्व छात्रा और ईशा संस्कृति में शास्त्रीय नृत्य की शिक्षिका – भरतनाट्टयम का ख़ूबसूरत प्रदर्शन करती हुईं।
एक संगीतमय भेंट - ईशा संस्कृति के बच्चों द्वारा, जो बचपन से ही शास्त्रीय संगीत और भक्ति के रस में डूबे होते हैं।
शास्त्रीय नृत्य की एक अनुपम प्रस्तुति – ईशा संस्कृति के बच्चों द्वारा
अपने गुरु के साथ एक ईशा संस्कृति का छात्र – नवरात्रि की रात को अपनी कला और भक्ति के उजास से रौशन करते हुए
‘ताला वाद्य मेलम’ – ईशा संस्कृति के विद्यार्थियों द्वारा एक जोशीली वाद्य प्रस्तुति के साथ नवरात्रि उत्सवों का समापन
देवी दंडम : दिव्यता के स्त्रैण अभिव्यक्ति के प्रति समर्पण ही नवरात्रि का सार है