मोहभंग होना क्यों अच्छा है?
क्या आपने अपने जीवन में कभी लोगों या घटनाओं की वजह से मोहभंग होने का अनुभव किया है? सद्गुरु बताते हैं कि क्यों ऐसे अनुभवों को कड़वाहट का कारण न होकर विकास का अवसर बनना चाहिए ।
राजा का मोहभंग
सद्गुरु: एक बार की बात है, भारत की उज्जैन नगरी में एक राजा थे। उनमें अध्यात्म के मार्ग पर जाने की प्रबल इच्छा थी। वह अपना राजमहल तक का त्याग करने के लिए तैयार थे। उनकी कई पत्नियाँ थीं, जिन सबको वह छोड़ सकते थे। लेकिन उनकी पिंगला नाम की एक पत्नी थी, जिससे उन्हें बहुत प्रेम था। इसी तरह कई वर्ष बीत गए। एक दिन राजा के दरबार में एक तपस्वी आए। एक उत्साही आध्यात्मिक जिज्ञासु होने के कारण, राजा ने उन्हें प्रणाम किया और उनका अच्छा आदर सत्कार किया। राजा की भक्ति से ख़ुश होकर तपस्वी ने उन्हें एक फल दिया और कहा, ‘यह समबुद्धि का फल है। यह न केवल आपको लम्बी आयु और आनंद देगा, बल्कि समबुद्धि भी देगा। आप इसे पाने के हक़दार हैं, इसलिए आपको यह दे रहा हूँ।’
राजा ने उसे ले लिया। वो उसे खाना चाहते थे, लेकिन फिर उन्होंने अपनी प्रिय पत्नी पिंगला के बारे में सोचा। उनके मन में आया, ‘मुझे इसे खाने से क्या मिलेगा? अगर मेरी पत्नी आनंदित, शांत और समबुद्धि रखने वाली हो जाए तो मुझे अधिक खुशी होगी।’ यह सोचकर उन्होंने वह फल अपनी पत्नी को दे दिया। हालाँकि पिंगला उनकी पत्नी थी और उनके बड़े अच्छे संबंध थे, पर उसका एक गुप्त प्रेमी भी था। वो उसका सारथी था जो उसे किशोरावस्था से ही बाहर सैर कराने ले जाता था, और उन लोगों में संबंध स्थापित हो गए थे। तो पत्नी ने सोचा, ‘यह फल उसे मिलना चाहिए’ और फिर उसने फ़ल को अपने सारथी को दे दिया।
सारथी बड़ा नाखुश रहता था क्योंकि पिंगला उससे प्यार तो करती थी पर उसका विवाह राजा से हुआ था, और इसलिए वह कभी-कभी ही उससे मिल पाती थी। इस नाराज़गी के कारण वो एक वैश्या के पास जाता था। वो वैश्या उसके साथ इतना अच्छा व्यवहार करती थी कि उसको उससे प्यार हो गया था। तो उसने सोचा, ‘यह फल उसको मिलना चाहिए’, और उसने वो फल उसे दे दिया। उस वैश्या ने समबुद्धि, उल्लास, शांति और लंबी आयु वाला वो फल ले तो लिया, फिर सोचा, ‘मैं इसका क्या करूँगी? अगर कोई इसके लायक है तो वो राजा है।’ तो वो उसे राजा के पास ले गई। जब राजा ने वो फल देखा तो उसे सारी बात समझ आ गई और फिर उसका मोह-भंग हो गया।
अपने भ्रम को मत संजोइए
आजकल आपको इन सबसे गुजरने की जरूरत नहीं है। आपके ब्यायफ्रेंड, गर्लफ्रेंड, पति, पत्नी आपका बड़ी जल्दी ही मोहभंग कर देते हैं। मोह का भंग होना कोई बुरी बात नहीं है। इसका मतलब है कि आपके सारे भ्रम दूर हो गए हैं। पर आपको लगता है ये नई गर्लफ्रेंड बनाने का समय है! अगर आप अपने किसी प्रियजन को खो देते हैं तो आप तुरंत ही उसका विकल्प ढूंढने लगते हैं। आपको इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। कुछ समय के बाद आप ऐसी हालत में होंगे कि अगर आप समबुद्धि, शांति, और उल्लास का फल भी खा लें तो उसका आप पर कोई असर नहीं होगा, क्योंकि आपने अपने भ्रम को मंदिर में मूर्ति की तरह सज़ाकर रखा हुआ है।
संसार में हमारी लिप्तता - चाहे वो काम, परिवार, रिश्ते, या और किसी चीज़ के लिए हो - ये सब बहुत जरूरी हैं, लेकिन ये सापेक्ष हैं, स्वयं में विशुद्ध और संपूर्ण नहीं। अगर हम इस बात को भूल जाएँ तो हम भ्रम की हालत में बने रहेंगे और हमें उस फल जैसे जो उपहार मिलेंगे उसे भी हम गँवा देंगे।
हर चीज़ जो आपने इकट्ठा की है या बनाई है, उसे छीना या तोड़ा जा सकता है। चाहे वो आपका शरीर हो, मन हो, रिश्ते, काम-काज या घर हों- इनसे एक खास सद्भाव और पवित्रता से पेश आना चाहिए, नहीं तो वो आपके साथ नहीं टिक पाएंगे। साथ ही यह भी जानना जरूरी है कि वो विशुद्ध और संपूर्ण नहीं हैं। यदि आप इसके बारे में जागरूक हैं तो आपमें एक अनासक्ति का भाव रहेगा। अनासक्ति का मतलब भावनाशून्य होना नहीं है। अनासक्ति का मतलब ये समझ लेना है कि आपने अपना जीवन जीने के लिए इन सब चीजों को अपने आसपास बनाकर रखा है।
आपके इंतजामात आपका जीवन नहीं हैं- आप जीवन हैं। ये सारे इंतज़ाम आपने अपनी जिंदगी को अच्छे से जीने के लिए किए हैं। जब आप इसे भूल जाते हैं तब जीने के ये संसाधन जीवन से ज्यादा महत्वपूर्ण बन जाते हैं। ‘जिंदगी’ से मेरा मतलब आपका एक व्यक्ति विशेष के रूप में होना नहीं है। हम यहाँ बैठे हुए अंतर कर सकते हैं कि ये मेरा शरीर है- वो आपका शरीर है, ये मेरा मन है -वो आपका मन है। लेकिन यहाँ ‘मेरा जीवन’ और ‘तुम्हारा जीवन’ जैसी कोई चीज़ नहीं है। यह एक जीवित ब्रह्मांड है। अगर इस जीवन में आप इसका अनुभव नहीं कर पाते हैं तो आपका मनुष्य शरीर पाना बेकार हो गया है।
मनुष्य बनना
अगर आप पृथ्वी पर जानवरों के विकास-क्रम को देखें जिसमें उनका जीवन और उन्हें क्या करना और क्या नहीं करना चाहिए शामिल हैं, तो दिखेगा कि सब कुछ पहले से तय है। लेकिन जब आप मनुष्य के रूप में आते हैं, तो दूसरे जीवों के विपरीत, आपमें सजग होकर विकास करने की क्षमता होती है। आपको विकास की इस क्षमता का उपयोग, सीमाओं को तोड़ने के लिए, और न केवल अगले स्तर तक पहुँचने के लिए, बल्कि अपनी चरम प्रकृति तक पहुँचने के लिए, ज़रूर करना चाहिए। यही मनुष्य होने की महत्ता है। अपनी सीमाओं से समझौता करके मत बैठे रहिए। अपने जीवन की कल्पनाओं, विचारों, और भावनाओं के तरीकों को सीमित करके मत रखिए। अपने जीवन के अनुभवों को चरम संभावना हासिल करने की दिशा में बढ़ने दीजिए ।