क्या कोई पर्फेक्ट हो सकता है?
सद्गुरु: कुछ समय पूर्व, भारत में एक प्रसिद्ध महिला ने मुझसे पूछा, ‘सद्गुरु, क्या आप एक पर्फ़ेक्ट गुरु हैं?’ मैंने पूछा, ‘क्या आप एक पर्फ़ेक्ट जिज्ञासु हैं?’ वे बोलीं, ‘मुझे ऐसा नहीं लगता।’ फिर मैंने पूछा, ‘क्या आप एक बेकार जिज्ञासु हैं?’ वह बोलीं, ‘नहीं सद्गुरु, मैं इस मामले में गंभीर और ईमानदार हूँ। मैं सच में जानने की इच्छा रखती हूँ।’ मैंने कहा, ‘ठीक है, अगर आप एक जिज्ञासु हैं, तो देखते हैं कि हम क्या कर सकते हैं। जब आप पर्फ़ेक्ट बन जाएंगी, तब मैं भी आपके लिए कुछ पर्फ़ेक्ट चीज करूंगा।’
ये ‘पर्फ़ेक्ट गुरु’ की धारणा लोगों के मन में कुछ आध्यात्मिक किताबें पढ़ने की वजह से आई है। जीवन में जो भी पर्फ़ेक्शन की तलाश कर रहा है, वह दरअसल नहीं जानता कि जीवन है क्या? अगर जीवन पर्फ़ेक्ट होता, तो क्या ये विकसित हो पाता? अगर आप पर्फ़ेक्ट होते, क्या आप विकास करते?’ पर्फ़ेक्शन का मतलब अनजाने में मरे हुए जैसा हो जाना है। मृत्यु हमेशा पर्फ़ेक्ट होती है। क्या आपने कभी किसी को आधे-अधूरे तरीक़े से मरते देखा है? लेकिन हर व्यक्ति आधा-अधूरा जीवन जी रहा है। जो कोई भी जीवन के प्रति खुला है, वह जानता है कि पर्फ़ेक्शन संभव ही नहीं है। आप जो भी करें, उसे उससे बेहतर करने की संभावना हमेशा रहती है।
एक बार ऐसा हुआ। शंकरन पिल्लै ने एक फ्रेंच मॉडल से विवाह किया। शादी के बाद उन्होंने वापस यूरोप जाने का फैसला किया। उसने देखा कि पत्नी ने सात बड़े सूटकेस, तीन बड़े-बड़े मेकअप केस, और भी कई चीजें पैक कर ली हैं। हर चीज़ एक बड़ी सी गाड़ी में भरकर वो एयरपोर्ट गए। शंकरन पिल्लै सब सामान निकालकर एयरलाइन काउंटर तक गया। फिर वो वापस मुड़ा और बोला, ‘काश मैं पियानो भी ले आया होता।’ पत्नी बोली, ‘तुम्हें मेरा मज़ाक़ उड़ाने की जरूरत नहीं है।’ उसने कहा, ‘अरे नहीं, मैंने टिकट पियानो पर ही रखा था।’