पिछले कुछ सालों से, ईशा फाउण्डेशन सेना एवं अर्धसैनिक बल के जवानों को योग प्रशिक्षण देने में योगदान देती आ रही है। सद्गुरु के मार्गदर्शन में और केन्द्र सरकार की सक्रिय भागीदारी से ईशा हठ योग स्कूल और सशस्त्र भारतीय सेना का प्रशिक्षण विभाग, हमारे देश के समर्पित रक्षकों तक योग को पहुँचाने के लिए, मिलकर काम कर रहा है।
सद्गुरु कहते हैं, ‘मुझे लगता है कि जो लोग राष्ट्र के लिए जीते हैं, और राष्ट्र के लिए मरने को तैयार रहते हैं, उन्हें सबसे अधिक सशक्त होना चाहिए। सबसे पहला साधन जो हमारे पास मौजूद है, वो है हमारा शरीर, हमारा मन और हमारी ऊर्जा। हमारे शरीर, मन और सबसे बढ़कर, ऊर्जा और उत्साह को सबसे ऊँचे स्तर पर बनाए रखने के लिए योग के रूप में एक पूरी प्रणाली हमारे पास मौजूद है। और मेरे विचार में हर सैनिक जो इस देश की सेवा करता है, उसे इसका लाभ मिलना चाहिए।’
ईशा हठ योग स्कूल के सुमित माथुर, जो सेना और अर्धसैनिक बलों के लिए कार्यक्रमों के संयोजक हैं, कहते हैं, ‘सद्गुरु के निर्देश सरल हैं- सेना को अंगमर्दन सिखाओ! शारीरिक अभ्यास जो कि उनकी दिनचर्या का हिस्सा है, उन्हें शक्ति प्रदान करेगा, साथ में योगाभ्यास उनमें संतुलन और फुर्ती बढ़ाएगा। बार्डर सिक्यूरिटी फोर्स (बी.एस.एफ.) के एक अधिकारी ने ‘इन कॉन्वर्सेशन विद मिस्टिक’ कार्यक्रम के दौरान पूछा, ‘क्या एक सैनिक को सीमा की सुरक्षा करने और दुश्मन से लड़ाई के लिए क्रोधित और आक्रामक नहीं होना चाहिए?’
सद्गुरु ने जवाब दिया, ‘एक क्रोधित सैनिक कभी सही तरह से गोली नहीं चला सकता- केवल एक संतुलित सैनिक ऐसा कर सकता है।’
आयोजन की तैयारी में कई विभागों की टीमों के साथ मिलकर बहुत से काम किए गए। यह कार्यक्रम सबको आसानी से समझ आ जाए इसके लिए उप-योग, अंगमर्दन और सूर्य-क्रिया के प्रशिक्षण के निर्देशों का हिंदी में अनुवाद किया गया। अनुवाद के बाद सटीक सामग्री को और आवाज़ को चुनना, और फिर कई घंटों की रिकार्डिंग का काम था। साउँडस ऑफ ईशा ने इस काम के लिए अपना स्टूडियो तथा उपकरण भी दिए। उसके बाद ऑडियो निर्देशों का वीडियो से तालमेल बनाने में घंटों तक बहुत मेहनत से एडिटिंग की गई, जिसमें वीडियो पब्लिकेशन ने काफ़ी मदद की। वीडियो फाइल के पूरा होने पर ईशा हठ योग स्कूल की दूसरी टीम ने आईटी टीम के साथ मिलकर इसकी डिजिटल कॉपी बनाई ताकि उसे प्रशिक्षकों को दिया जा सके। सुमित बताते हैं, ‘इसका हिस्सा बनकर कई बार मैंने महसूस किया कि स्वयंसेवकों के लिए ईशांग, कितना सही नाम है, जो शरीर के विभिन्न अंगों की तरह मिलकर काम करते हैं, इसे केवल टीमवर्क कहना नाकाफ़ी होगा।
हठ योग शिक्षक भूपेंद्र मिश्रा, जो उस टीम का हिस्सा थे, जिसने आश्रम में भारतीय सेना के लिए हठ योग प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन संभाला था, कहते हैं, ‘भाग लेने वाले सैनिक, खुले, ग्रहणशील और चीज़ों को ग़ौर से देखने को हमेशा तत्पर थे। उन्होंने क्लास की व्यवस्था, भोजन परोसने के तरीके, शिक्षक, स्वयंसेवक, एवं निवासियों के आचार-व्यवहार को बड़े गौर से देखकर चीज़ों को आत्मसात किया।
उन्होंने बड़ी विनम्रता से साझा किया कि उन्हें कोई भी चीज़ थोपी हुई नहीं लगी, बल्कि उन्हें हर चीज़ एक विनम्र सुझाव की तरह लगी। उनके लिए कार्यक्रम बहुत तीव्र था, क्योंकि उनकी दिनचर्या सुबह 5.30 से शुरू होकर रात 9.30 बजे ख़त्म होती थी। उनमें से कुछ ने मज़ाक में कहा, ‘इस योग प्रोग्राम की तुलना में कमांडो ट्रेनिंग पाना कहीं आसान था।’
एक अन्य हठ योग शिक्षक विजय, सैनिकों के समर्पण का अपना भावविभोर अनुभव बताते हैं, ‘उनका निर्देशों को बिना किसी शर्त के स्वीकार करना प्रेरणादायक था। इन गुणों ने मुझे अंदर तक छू लिया है, और मैं उन गुणों को अपनाने की कोशिश कर रहा हूँ। यह देखना बड़ा अद्भुत था कि कार्यक्रम की समाप्ति पर पहुंचने तक वे लोग साधकों की भांति लंबे समय तक स्थिर बैठने में सक्षम हो गए थे।
‘यह देखकर यक़ीन करना मुश्किल था कि कैसे कार्यक्रम के दौरान ये प्रतिभागी अपनी आँखे बंद करके ध्यान करते हुए स्थिर बैठने लगे, जो कि पहले दिन उनके लिए लगभग असंभव लग रहा था। हर कार्यक्रम के अंत में ये परिवर्तन देखकर, मेरी आंखों में आंसू होते थे कि कैसे प्रक्रिया के प्रति दृढ़ निष्ठा के साथ, हमने जो प्रदान किया उसे उन्होंने आत्मसात् किया। किसी भी कार्य के प्रति उनकी गंभीरता अतुलनीय रही है।
आर्मी फिजिकल ट्रेनिंग कॉर्प (एटीपीसी) के तथा ज्वाइंट सेक्रेटेरी ऑफ आर्मी स्पोर्टस कंट्रोल बोर्ड के मुख्य निदेशक ले. कर्नल विशाल हूडा, आश्रम में हठ योग प्रोग्राम का अपना अनुभव बताते हैं, ‘हालाँकि शारीरिक तंदुरुस्ती और मानसिक दृढ़ता सिपाही के ख़ास गुण हैं, लेकिन इन प्राचीन अभ्यासों ने नए आयाम खोल दिए हैं। स्वयंसेवकों द्वारा बनाए उत्साहपूर्ण वातावरण में योग केंद्र की भरपूर ऊर्जा, शांत प्रकृति और शिक्षकों की अथक लगन ने अनुभव की गहराई को और बढ़ा दिया। जब हम अपने काम पर लौटे तो बाहरी तौर पर तो हम पहले जैसे थे, पर अंदर बहुत कुछ बदल गया था।
‘जीवन के अलग-अलग पहलुओं के प्रति नज़रिए में बुनियादी बदलाव हो चुका था। तब से करीब तीन साल हो गए हैं, लेकिन हर अभ्यास के साथ अनुभव का आयाम लगातार गहराता जा रहा है। बिना तनाव के प्रचंड होना, बिना उलझे हुए शामिल होना - ऐसी बातें हमारे जीवन में हक़ीक़त का रूप ले रही हैं।
अंगमर्दन सीखने के बाद ले. कर्नल हूडा का कहना था, ‘यह हमारे लिए संजीवनी जैसा है, क्योंकि हमने अक्सर देखा है कि जैसे-जैसे सिपाही की उम्र बढ़ती है और खासकर अगर उन्होंने कठिन परिस्थितियों में समय बिताया है, तो उनका स्वास्थ कुछ हद तक खराब हो जाता है। जब कभी हमें बंकर में लगातार चार-चार दिन बैठे रहना पड़ता है, तब हमें लगता है कि जो पीटी हमें सिखाई जाती है उसके अभ्यास के लिए पर्याप्त जगह ही नहीं है। लेकिन हम अंगमर्दन का अभ्यास 6x6 के बंकर में भी आसानी से कर सकते हैं।
‘मैं ये देखकर हैरान था कि अधिकांश प्रतिभागियों की आध्यात्मिक चाहत सोई हुई थी जो कि आश्रम के वातावरण में जाग गई,’ सुमित बताते हैं। ‘बाहर से कठोर सिपाही दिखने वाले इन स्त्री एवं पुरुषों का एक बिल्कुल अलग पहलू भी है। मैंने पाया कि उनमें और अध्यात्मिक साधक में एक बात समान है- गहनता। उनके काम की माँग है कि वे अपने काम को अच्छी तरह करने के लिए गहनता के चरम पर रहें, संभवतः यही उनके भीतर विस्तार और समर्पण का आयाम खोल देता है।’
नायक अजय सिंह, जो आर्मी फिजिकल ट्रेनिंग दल का हिस्सा थे, अपने आश्रम के दौरे के बारे में कहते है, ‘यहाँ के वातावरण में कुछ विशेष ताजगी और सुगंध है। जहाँ भी जाइए, आप इसे अनुभव कर सकते हैं। सुगंध कई तरह की होती है, पर ये सुगंध लोगों के मन में एक अलग ही भाव पैदा करती है। इस सुगंध में एक ख़ास शांति भी है।’
‘सैनिक आश्रम में हर चीज और हर इंसान को ध्यान से देख रहे थे,’ हठयोग शिक्षक और ईशा योग केंद्र में आर्मी को हठयोग प्रशिक्षण देने वाली टीम के सदस्य सुबोध जथर उत्साहपूर्वक याद करते हैं। ‘एक दिन एक प्रतिभागी मेरे पास आया और बोला, ‘सेना में अगर हमें कुछ करना है तो हम कठोर भाषा का इस्तेमाल करते हैं। नहीं तो, वो सुनते नहीं हैं। लेकिन यहाँ, मैं देख रहा हूँ कि कोई चिल्ला नहीं रहा है। बल्कि, सब बड़ी विनम्रता से बात कर रहे हैं, और तब भी काम हो रहा है! ऐसा कैसे संभव है?’
एक रेजिमेंटल ट्रेनिंग सेंटर ऑफ आर्मी की एक घटना को याद करते हुए हठयोग शिक्षक विजय कहते हैं, ‘एक बार किसी कारणवश एल.ई.डी. स्क्रीन आने में देर हो रही थी, और उस बीच हमें दूसरी मीटिंग के लिए जाना पड़ा। जब हम वापस आए, तब तक प्रतिभागियों ने स्क्रीन इंस्टॉल कर दिया था और वो अच्छी तरह काम कर रहा था। जब हमने देखा तो लगा कि इसकी ऊँचाई कुछ इँच कम होनी चाहिए। जब हमने अपना विचार उन्हें बताया तो बिना कोई सवाल किए उन्होंने तुरंत स्क्रीन को अलग कर दिया, रेजर बदला और फिर से इंस्टॉल कर दिया, जिसमें उन्हें कुछ घंटे लगे। उनका समर्पण देखकर हमारे आँसू निकल पड़े।’
एक अन्य हठयोग शिक्षक जो 2019 में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस समारोह के लिए पोर्ट ब्लेयर, अंडमान निकोबार गई टीम के सदस्य थे, बताते हैं कि व्यक्तिगत तौर पर इस पहल का उनके लिए क्या अर्थ है – ‘कारगिल युद्ध मेरे विद्यार्थी जीवन के दौरान हुआ था। मेरे अंग्रेज़ी के शिक्षक ने युद्ध के बारे में समझाने का प्रयास किया था कि राष्ट्र की सुरक्षा का कितना महत्व है, और कैसे सैनिक देश की रक्षा के लिए अपनी ज़िंदगी, परिवार और सब कुछ एक तरफ रख देते हैं। मुझे अभी भी याद है कि तब हममें से कई बच्चे रो पड़े थे। हमारे स्कूल के विद्यार्थियों एवं शिक्षकों ने कारगिल रिलीफ फंड में दान किया था, और वो हमारे लिए बड़े गर्व का अवसर था। तब से, ये संबंध बना हुआ है।’
2019 में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर सियाचिन गए दल के सदस्य और हठयोग शिक्षक सुबोध जथर, याद करते हैं, ‘इस यात्रा के दौरान हमें कुछ स्मारकों पर जाने का अवसर मिला जहाँ सैनिकों की अनवरत वीरता को दर्शाने वाली प्रदर्शनी देखने को मिली। जब मैं हर चीज़ को ग़ौर से देख रहा था, मुझे अपने अंदर गहरी पीड़ा का अहसास हुआ। उसके पहले, मुझे लगता था कि मुझे पता है कि हमारे सैनिक हमारे देश की रक्षा के लिए कैसी कठिन ज़िंदगी जीते हैं।
लेकिन अब मैं सब कुछ खुद देख रहा था, उन लोगों से बातें कर रहा था, उन चिट्ठियों को ख़ुद पढ़ रहा था जिन्हें अपने शहीद बेटों को उनके माता-पिता ने लिखा था, वो पत्र जिसे सैनिक ने शहादत के ठीक पहले लिखा था, एक तरह से वास्तविकता की एक झलक मुझे मिली। मुझे लगा हर भारतीय को इस स्थान का दौरा जरूर करना चाहिए। जब हम बाहर आ रहे थे, मुझे दरवाजे पर एक पंक्ति दिखी, ‘जब आप घर जाएँ, उन्हें हमारे बारे में बताएँ और कहें, आपके कल के लिए, हमने अपना आज बलिदान कर दिया।’