चर्चा में

कायांत स्‍थानम : कोविड 19 से मरने वाले लोगों को ईशा की सम्‍मानजनक विदाई   

स्वामी अभिपादा ईशा संगठन में दाह-संस्कार सेवाओं की ज़िम्मेदारी संभालते हैं। एक बेबाक इंटरव्यू में वह बताते हैं कि कैसे कोविड-19 महामारी ने इस सेवा को और भी अधिक महत्वपूर्ण बना दिया है।अपनों को खोने वालों का दर्द और दुख शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। फिर भी हम हमेशा एक सकारात्मक योगदान दे सकते हैं।

ईशा स्वयंसेवक इस महामारी में जिन अलग-अलग तरीकों से स्थानीय लोगों की मदद कर रहे हैं, उनमें से एक यह भी है - अंतिम विदाई को गरिमापूर्वक करना, जो वाक़ई अनोखा है। ईशा संगठन कोयंबटूर और उसके आसपास 18 श्मशान घाटों की व्यवस्था संभालता है, जहाँ अंतिम संस्कार बहुत शुद्धता और मामूली कीमत पर किया जाता है। इन कायांत स्थानों के दैनिक संचालन की व्यवस्था स्वामी अभिपादा करते हैं। इस इंटरव्यू में, उन्होंने बताया कि यह काम इस महामारी के दौरान जीवित और मृत दोनों के लिए पहले से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण क्यों है।

जीवित और मृतकों के लिए सद्‌गुरु की दृष्टि

स्वामी अभिपादा: ईशा स्वयंसेवक पिछले दस सालों से कोयंबटूर नगर निगम के साथ शवदाह गृहों का संचालन कर रहे हैं। हम कुल अठारह शवदाह गृह चला रहे हैं, जिनमें से कुछ चेन्नई, नेवेली और नामक्कल में हैं। जब भारत में कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर आई, तो हमने सद्‌गुरु के साथ एक बैठक की, जहाँ उन्होंने हमें कोविड-19 से मरने वाले लोगों को सम्मानजनक विदाई देने के महत्व के बारे में बताया। उन्होंने कहा, ‘इन लोगों की इस दुनिया से अच्छी तरह से विदाई सुनिश्चित करना सबसे बड़ा योगदान है जो आप, उनके लिए और उनके प्रियजनों के लिए कर सकते हैं।’

सद्‌गुरु की दृष्टि के साथ, जो हमें राह दिखाने वाली रौशनी के रूप में हमारे साथ थी, हमने कोयंबटूर में 12 कायांत स्थानम् (ईशा द्वारा संचालित श्मशानगृह) में कोविड-19 से मरने वालों का अंतिम संस्कार करना शुरू किया। काया का अर्थ है शरीर, अंत का अर्थ है ख़त्म होना और स्थानम का अर्थ है जगह। कायांत स्थानम वह जगह है जहां शरीर का अंत होता है। हमारे लिए यह कोई समाज सेवा नहीं है। सद्‌गुरु कहते हैं कि मृत्यु किसी व्यक्ति के साथ होने वाली आखिरी चीज है, और यह सिर्फ एक बार होती है, इसलिए हम इस अंतिम संस्कार को सही तरीके से करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

चुनौतियाँ जो महामारी के साथ आईं

स्वामी अभिपादा: शवदाह गृह में सरकारी और निजी - दोनों अस्पतालों से शव आते हैं। हमने तीन श्मशान गैर-कोविड दाह संस्कार के लिए रखे हैं, जबकि बाकी खास तौर पर कोविड-19 दाह संस्कार के लिए समर्पित हैं। हमारे सामने कई चुनौतियाँ हैं। हमें सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखनी है, मास्क पहनना है और लगातार खुद को सेनिटाइज करना है। मृतकों के साथ यहाँ आने वाले लोगों को मैनेज करना काफी चुनौतीपूर्ण काम है, क्योंकि वे भावनात्मक रूप से कमजोर होते हैं। साथ ही, हमें दृढ़ता से यह सुनिश्चित करना होता है कि कोविड-19 प्रोटोकॉल का पालन किया जाए। इस नाजुक स्थिति को संभालने के लिए हम रिश्तेदारों और आगंतुकों के लिए एक छोटा सा ओरियेंटेशन आयोजित करते हैं ताकि हर कोई सुरक्षित रहे।

रिश्तेदारों और आगंतुकों के ओरियेंटेशन के बाद, शवों को काल भैरव मंदिर के सामने रखा जाता है, और सामूहिक रूप से अनुष्ठान किया जाता है। इसके बाद इकट्ठा लोग शव को छुए बिना दिवंगत को अंतिम विदाई देते हैं। हमने यहाँ दाह संस्कार के लिए आने वाले लोगों की मानसिकता में बुनियादी बदलाव आते देखा है। जब वे आते हैं तो वे भावनात्मक उथल-पुथल से भरे होते हैं, लेकिन जाते समय वे शांत होते हैं।

संवेदनाओं का सम्मान

स्वामी अभिपादा: हालांकि कई लोग हैं जो सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से हमारी मदद करते हैं। जो व्यक्ति श्मशानगृह की व्यवस्था करता है, उसे शारीरिक रूप से मजबूत और स्वस्थ रहने की जरूरत होती है ताकि वह आने वाली सभी चुनौतियों का सामना कर सके। कई बार दाह संस्कार में शामिल होने वाले परिजन बहुत भावुक हो जाते हैं और टूट जाते हैं। ऐसे में हम ऐसा माहौल बनाए रखते हैं कि लोगों की संवेदनाओं का सम्मान करते हुए भी बिना किसी रुकावट के कर्मकांडों को अंजाम दिया जा सके।

श्मशान भूमि या शवदाह गृहों में काम करने वाले लोगों के साथ एक सामाजिक धब्बा भी जुड़ा हुआ है। आम तौर पर बहुत कम लोग ही इस तरह का काम करना चाहते हैं। लेकिन हमारे साथ ऐसा नहीं है। प्रत्येक कर्मचारी जो हमारे साथ है, स्वेच्छा से यहाँ आया, जब उन्हें पता चला कि इस स्थान का प्रबंधन ईशा संगठन करता है। हम उन्हें जरूरी चिकित्सा सुविधाओं और पौष्टिक भोजन सहित उनके स्वास्थ्य और संपूर्ण सेहत के मामले में हर संभव मदद देते हैं। वे सभी एक योग कार्यक्रम में शामिल होते हैं ताकि उनकी शारीरिक फिटनेस, दिमागी सेहत और भावनात्मक संतुलन बेहतरीन हालत में हो।

सुबह की शुरुआत हमेशा योग से होती है। यह महत्वपूर्ण है, क्योंकि लोग दिल में भारी दुख लिए श्मशान आते हैं और जब वे अपने प्रियजनों का अंतिम संस्कार होते देखते हैं, तो भावनात्मक गुबार, रोना और चिल्लाना – ये सब हो सकता है। अगर स्थिति को संभालने वाला संतुलित और शांत न हो, तो उन पर विपरीत असर पड़ सकता है। हमारे लोग मानसिक रूप से प्रभावित हुए बिना दाह-संस्कार के लिए जो कुछ भी जरूरी है, उसे करने के लिए संतुलन बनाए रखने में अच्छी तरह से प्रशिक्षित हैं।

सही माहौल क्यों जरूरी है

स्वामी अभिपादा: बढ़ती हुई मृत्यु दर के कारण हम हमेशा समय के साथ रेस लगाते रहते हैं। हम सुबह 7 बजे से रात 9 बजे तक लगातार काम करते हैं। कभी-कभी, रात 8 बजे के बाद भी हमें फोन आते हैं। दाह संस्कार तुरंत होना होता है क्योंकि रिश्तेदार कोविड-19 संक्रमित शव को अपने घर ले जाकर अगले दिन वापस नहीं ला सकते हैं। अगर हमें रात 8 बजे के आसपास ऐसा कोई अनुरोध मिलता है, तो दाह संस्कार की प्रक्रिया पूरी होने में और 2 से 2½ घंटे लगते हैं। हम ऐसी स्थितियों के लिए तैयार रहने का हर संभव प्रयास करते हैं क्योंकि किसी प्रिय की मृत्यु लोगों के जीवन में एक उदासी भरा लेकिन अविस्मरणीय अनुभव है। जैसा कि सद्‌गुरु कहते हैं, यह उनके लिए आध्यात्मिकता की ओर पहला कदम हो सकता है। हम वास्तव में पाते हैं कि इसका लोगों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है कि हम अंतिम संस्कार कितनी गरिमापूर्वक और कुशलता से करते हैं।

अंतिम संस्कार कालभैरव की सन्निधि में किया जाता है, जिसे सद्‌गुरु ने तैयार किया है और हम इस बात के साक्षी हैं कि कैसे लोगों के भय और निराशा इस जगह आकर गायब हो जाती हैं। यहाँ काम करने वाले स्वयंसेवक और कर्मचारी भी जरूरी माहौल बनाने में योगदान देते हैं।

अथक लगन और जिम्मेदारी

स्वामी अभिपादा: हमारे लोग काम करने के लिए इतने इच्छुक हैं कि भारत में कोविड-19 की दूसरी लहर आने के बाद से उनमें से किसी ने भी ब्रेक नहीं लिया है। हमें उन्हें ब्रेक पर जाने के लिए प्रोत्साहित करना होगा क्योंकि हम नहीं चाहते कि वे अपनी सेहत से समझौता करें।

सद्‌गुरु हमेशा कहते हैं कि हमारी जिम्मेदारी सिर्फ जीवित लोगों के लिए ही नहीं बल्कि मृतकों के लिए भी है। हमारे स्वयंसेवकों और कर्मचारियों की अथक लगन और जिम्मेदारी की भावना के कारण ही हम दिन भर दाह संस्कार की एक सतत धारा को मैनेज कर पा रहे हैं।

एक गरिमापूर्ण अंतिम संस्कार

स्वामी अभिपादा: एक व्यक्ति ने मेरे साथ साझा किया कि कायांत स्थानम् में परिवार के एक सदस्य का अंतिम संस्कार करने के बाद उन्हें कैसा लगा। उनका कहना था, ‘हमें नहीं पता था कि दाह संस्कार कैसे किया जाएगा। लेकिन यहाँ आकर और कालभैरव मंदिर के पवित्र वातावरण में पूर्ण श्रद्धा के साथ हो रहे दाह संस्कार को देखकर, हमें समझ नहीं आ रहा कि हम आपको धन्यवाद कैसे दें। यह हमारी उम्मीदों से कहीं परे है।’

यह भावना हमारे दरवाजे से बाहर निकलने वाले हरेक व्यक्ति में होती है। हमें एक गहरा संतोष भी है कि हम सख्त जरूरत के समय में लोगों को यह सुविधा उपलब्ध करा पा रहे हैं। मुझे लगता है कि यह केवल सद्‌गुरु की कृपा से ही संभव है, और इस तरह से खुद को अर्पित करने से हमें अपने आध्यात्मिक मार्ग पर भी बहुत मदद मिलेगी।