संस्कृति

कृष्ण के अनेक रूप : जो जैसा उसने वैसा देखा  

सद्‌गुरु समझा रहे हैं कि क्यों कृष्ण को ईश्वर का पूर्ण अवतार माना जाता है, जबकि उनके आस-पास के लोगों ने अपनी-अपनी तरह से कृष्ण को देखा और महसूस किया।

सद्‌गुरु: बहुत कम इंसान कभी ऐसी जटिल परिस्थितियों में पड़ते हैं, जिनसे कृष्ण को गुज़रना पड़ा था। उन्होंने हर स्थिति में, क्या सत्य है और क्या नहीं, इसे समझने के लिए एक स्पष्ट दृष्टि और निश्चितता दिखाई। लोगों ने उन्हें भगवान के रूप में महसूस किया क्योंकि वह उनके अंदर स्पष्टता लेकर आए। इसीलिए कृष्ण को ईश्वर का पूर्ण अवतार माना गया।

अवतार क्या है?

पूर्व की संस्कृति में, चार्ल्स डार्विन से बहुत पहले, नौ अवतारों की बात की गई। पहले अवतार को मत्स्य अवतार कहा जाता है। इसका अर्थ है कि ईश्वर एक मछली के रूप में प्रकट हुए। चार्ल्स डार्विन कहते हैं कि धरती पर जीवन का पहला रूप जलीय जीव था यानी मछली। अगला अवतार है कूर्म अवतार – यानी कछुआ, जो जल और थल दोनों पर चलने वाला जीव है। तीसरा अवतार है वाराह अवतार, यानी सूअर, जो एक स्थलीय स्तनपायी है। चौथा अवतार है नरसिंह अवतार – आधा पुरुष और आधा पशु। अगला है, वामन अवतार, बौना मनुष्य। उसके बाद परशुराम – एक पूर्ण विकसित पुरुष लेकिन इतना ज्यादा हिंसक कि उसने अपनी माँ का भी सिर काट दिया। उसके बाद हुआ राम अवतार – बहुत शांतिपूर्ण लेकिन एक आयाम वाला व्यक्ति। अगला है, कृष्ण अवतार – जो एक बहुआयामी मनुष्य हैं।

तो कृष्ण अवतार को ईश्वर के पूर्ण अवतार के रूप में देखा गया। हालांकि कृष्ण ने खुद कभी इसका दावा नहीं किया, लेकिन उनके आस-पास के लोगों ने स्वाभाविक रूप से उन्हें भगवान मान लिया। कृष्ण के एक पूर्ण अवतार होने की इस पहचान के इर्द-गिर्द एक पूरी संस्कृति विकसित हुई।

कृष्ण के अनेक पहलू - उनके समकालीन लोगों की नज़र में

कृष्ण एक अद्भुत बालक, ज़बरदस्त शरारती, मन को मोहने वाले बाँसुरी वादक, एक गरिमापूर्ण नर्तक, एक सम्मोहक प्रेमी, एक सच्चे वीर योद्धा, अपने दुश्मनों को निर्ममता से हराने वाले, एक ऐसे इंसान जिसकी वजह से हर घर में एक दिल टूटा था, एक चतुर राजनेता और किंगमेकर, एक संपूर्ण भद्र पुरुष, सर्वश्रेष्ठ योगी, और सबसे लुभावने अवतार थे। अलग-अलग लोगों ने उन्हें कई अलग-अलग तरीकों से देखा, समझा और महसूस किया।

दुर्योधन ऐसा व्यक्ति है जो जीवन भर अपने हालातों के कारण असुरक्षित, क्रोधित, ईर्ष्यालु और लालची बन गया था, और उसे हमेशा लगता था कि उसके साथ गलत हो रहा है। अपने लोभ और क्रोध की वजह से किए गए कामों की वजह से वह अपने पूरे कुल के विनाश का कारण बन गया। दुर्योधन, कृष्ण के बारे में कहता है, ‘अगर कोई मुस्कुराता हुआ बदमाश है, तो वह कृष्ण हैं। वह खा सकते हैं, पी सकते हैं, गा सकते है, नाच सकते हैं, प्रेम कर सकते हैं, लड़ सकते हैं, बूढ़ी महिलाओं के साथ गपशप कर सकते हैं, और छोटे बच्चों के साथ खेल सकते हैं। कौन कहता है कि वे भगवान हैं?’ यह दुर्योधन की धारणा है।

शकुनि ने, जो छल और धूर्तता का साकार रूप था, कहा, ‘मान भी लो कि वह भगवान है, तो क्या? भगवान क्या कर सकता है? भगवान सिर्फ उन भक्तों को खुश कर सकता है, जो उसे खुश करते हैं। उसे भगवान रहने दो। मैं उसे पसंद नहीं करता। और जब आप किसी को पसंद नहीं करते, तो आपको उनकी तारीफ करनी चाहिए।’ यही छल है।

राधा उनकी बचपन की प्रेमिका और गाँव की एक सरल ग्वालिन थी जो अपने अटूट प्यार और भक्ति के कारण इतनी महान हो गईं कि आज आप राधा के बिना कृष्ण की बात नहीं कर सकते। हम कृष्ण-राधा नहीं कहते, हम राधा-कृष्ण कहते हैं। गाँव की एक सरल स्त्री, कृष्ण जितनी, या उनसे भी कहीं ज्यादा, महत्वपूर्ण हो गई। राधे ने कहा, ‘कृष्ण मेरे पास हैं। वह हमेशा मेरे साथ हैं। वह जहाँ भी हैं, जिसके भी साथ हैं, फिर भी वह मेरे पास हैं।’ यह उनकी धारणा है।

वैंतेय, जो एक तेज-तर्रार युवक और गुरुड़ सरकार के ज्येष्ठ पुत्र थे, एक तरह की बीमारी के कारण वह पूरी तरह अपंग हो गए थे। कृष्ण ने उस अपंग युवक को अपने पैरों पर खड़ा कर दिया। इसलिए वैंतेय ने कहा, ‘वह भगवान हैं, वह निश्चित ही भगवान हैं।’

कृष्ण के चाचा अक्रूर का, जो एक बुद्धिमान और संत पुरुष थे, कृष्ण के बारे में कहना था, ‘जब मैं इस विचित्र युवक को देखता हूँ, मुझे सूर्य, चंद्रमा और सातों तारे उनके चक्कर लगाते दिखते हैं। जब वह बोलता है, तो उसकी आवाज़ शाश्वत लगती है। अगर इस दुनिया में कोई उम्मीद है, तो वह उम्मीद कृष्ण हैं।’

शिखंडी अपनी एक निश्चित स्थिति के कारण बचपन से ही एक प्रताड़ित मनुष्य था। उसने कहा, ‘कृष्ण ने कभी मुझे कोई आशा नहीं दिलाई, लेकिन जब वह होते हैं, तो आशा की हवा हर किसी को छूती है।’

लीला – रसिक का मार्ग

अलग-अलग लोगों ने कृष्ण के अलग-अलग रूप देखे। कुछ के लिए वह भगवान हैं, तो कुछ के लिए एक छलिया। कुछ के लिए वह एक प्रेमी हैं, तो कुछ के लिए एक योद्धा। वे बहुत कुछ हैं। अगर हम उस चेतना के सार का स्वाद लेना चाहते हैं जिसे हम कृष्ण कहते हैं, तो हमें लीला की जरूरत है। लीला का अर्थ है, रसिक का मार्ग। यह गंभीर लोगों के लिए नहीं है। हम सिर्फ खेलना नहीं चाहते - हम जीवन के सबसे गहन और सबसे गंभीर पहलू की खोज करना चाहते हैं, लेकिन क्रीड़ापूर्ण तरीके से। वरना कृष्ण नहीं मिलेंगे। दुनिया में अधिकांश लोग जीवन के सबसे गहन आयामों से चूक जाते हैं, क्योंकि वे नहीं जानते कि क्रीड़ापूर्ण कैसे रहें।

अगर आप क्रीड़ापूर्ण होना चाहते हैं, तो आपको प्यार से भरे दिल, एक आनंदित मन और एक उत्साहित शरीर की जरूरत है। जीवन के सबसे गहन आयामों की क्रीड़ापूर्ण तरीके से खोज के लिए, आपको अपनी जागरूकता, अपनी कल्पना, अपनी याद्दाश्त, अपने जीवन और अपनी मृत्यु के साथ खेलने के लिए तैयार रहना चाहिए। अगर आप हर चीज से खेलने को तैयार हैं, तो यही लीला है। लीला का मतलब किसी ख़ास व्यक्ति के साथ नृत्य करना नहीं है, बल्कि आप अपने दुश्मन और दोस्त, दोनों के साथ नृत्य करने को तैयार हैं। आप जीवन और अपनी मृत्यु के अंतिम क्षण तक नाचने को तैयार हैं। तभी लीला होती है।