उम्मीदें और उनका स्रोत – एक विषैला चक्र
उम्मीदों के न होने का मतलब दिशा का न होना नहीं है। बस आप हिसाब नहीं रखते- ‘मुझे जो चाहिए वो मुझे मिला नहीं, जो मुझे चाहिए वो हुआ नहीं।’ आप एक विशेष दिशा में जाना चाहते हैं लेकिन आप कितनी दूर जाएंगे ये इस पर निर्भर करता है कि आपमें कितना ईंधन है। और अगर आपकी उम्मीदें हैं तो आप अपना सारा ईंधन इंजन को ठीक करने व उसके रखरखाव में गँवा रहे हैं और आप ज्यादा दूर नहीं जा पाएँगे।
इतनी सारी उम्मीदें इसलिए होती हैं, क्योंकि बचपन से ही लोग आपसे पूछते रहे हैं, ‘बताओ मुझे, तुम क्या बनोगे? क्या तुम डॉक्टर बनोगे या फिर एक आई.टी. इंजीनियर?’ माँ-बाप को अपने बच्चों से जो उम्मीदें होती हैं वो ज़्यादातर अवास्तविक और बेवकूफी भरी होती हैं। वे न तो उनके लिए अच्छी हैं और न ही उनके बच्चों के लिए। बहुत छोटी उम्र से ही आप ये प्रवृत्ति पैदा कर लेते हैं।
आपकी उम्मीदों पर आपकी इतनी मज़बूत पकड़ इसलिए है, क्योंकि आप सोचते हैं, ‘यदि ये या वो होगा, केवल तभी मैं खुश रहूँगा।’ आप हमेशा ये सोचते हैं कि ख़ुशी कल की चीज़ है, आज की नहीं। जब वो चीज़ जो आप चाहते हैं रोज आपसे थोड़ा और आगे खिसक जाती है तो उम्मीदें और अधिक प्रबल हो जाती हैं और आप दुखी हो जाते हैं।
एक दृष्टिकोण जो सब कुछ बदल देता है
मान लीजिए अभी आप सचमुच आनंद में हैं लेकिन आप कुछ विशेष वस्तु चाहते हैं। आप उसके पीछे भाग रहे हैं, लेकिन वो पास आने की जगह और दूर चली जा रही है। लेकिन क्योंकि आप पहले से ही आनंदित हैं, ये आपको बहुत दुःख नहीं देगा।
सबसे पहले ये सुनिश्चित कीजिए कि आपके अंदर जो भी होता हो, उसे आप ही तय करेंगे, न कि कोई दूसरा।
तो खुद को ठीक किए बिना आप दुनिया में काम करने की कोशिश किए जा रहे हैं। बहुत समय पहले कृष्ण ने कहा था, ‘योगस्थः कुरु कर्माणि।’ जिसका मतलब है ‘पहले ख़ुद को योग में स्थापित कीजिए, उसके बाद कर्म कीजिए।’ लेकिन आपने गड़बड़ी में अपने काम शुरू कर दिए और अब आप योग में आते हैं। भूल जाइए कि आप खुद से क्या चाहते हैं, लोगो से क्या चाहते हैं और दुनिया से क्या चाहते हैं। सबसे पहले ये सुनिश्चित कीजिए कि आपके अंदर जो भी होता है, उसे आप ही तय करेंगे, न कि कोई दूसरा। अगर आप केवल ये एक चीज़ कर लेते हैं, तो स्वाभाविक रूप से आप खुशी का चुनाव करेंगे।
जब आप बहुत खुश होते हैं तो आपकी सोच बदल जाती है। मेरे जीवन में अभी तक दस हज़ार ऐसी चीजें हैं जो नहीं हुई हैं - तो क्या हुआ? ख़ुशी के साथ मैं उन्हें पाने की कोशिश करूँगा और तब उम्मीदों के पूरे होने की संभावना कहीं ज्यादा होगी। और अगर वो पूरी नहीं भी होंगी तो भी किसे फर्क पड़ता है। क्योंकि मेरे यहाँ होने का अनुभव अद्भुत है, चाहे जो भी हो।
उम्मीदों से कृतज्ञता की ओर
मूलभूत चीज़ों को ठीक किए बिना हम कहीं जाने की कोशिश कर रहे है - यही मुसीबत है। अगर आपको अपनी कार चलानी है तो आपको सबसे पहले देखना होगा कि वो ठीक से काम कर रही है या नहीं। अगर उसके दो पहिए ढीले हैं, अगर वो जैक पर है और फिर भी आप उसे चलाने की कोशिश करेंगे तो दुर्घटना निश्चित है।
जब आप युवा होते हैं तो यही समय है स्वयं को स्थापित करने का, न कि आगे बढ़ने का। अगर पहिए ठीक किए बिना आप सवारी करेंगे तो यह दुखदाई और अनर्थकारी होगा। ऐसा मत कीजिए। अगर आप जीवन को वैसे ही देखें जैसा वो वास्तव में है तो आप सृष्टि के शानदार स्वरुप से अभिभूत हुए बिना नहीं रह पाएंगे। पहाड़, तालाब, समुद्र, असीमित ब्रह्मांड और इस धरती पर मौजूद इतना विशाल अद्भुत जीवन।
अगर आप जीवन की प्रक्रिया पर ग़ौर करें और देखें उसके विविध प्रकार को, उसकी प्रतिभा को और अरबों-खरबों असंख्य जीवों का संतुलन बनाकर एक साथ इस धरती पर रहने की अद्भुत घटना को, तो आप अभिभूत हुए बिना नहीं रह सकते। मेरी कामना है कि आप इस सृष्टि के समस्त जीवन के लिए एक अथाह कृतज्ञता का अनुभव करें।