मुख्य चर्चा

कैसे आपकी उम्मीदें आपकी खुशियों को कम कर सकती हैं?

एक ही बिंदु पर केंद्रित ध्यान बहुत बड़े परिणाम ला सकता है। लेकिन अगर आपकी उम्मीदें आपकी संतुष्टि को आगे खिसकाती रहें तो क्या करें? सद्‌गुरु उम्मीदों और आपकी ख़ुशी के बीच की कड़ी को उजागर कर रहे हैं और बता रहे हैं कि जीवन में असली सफलता हासिल करने के लिए आप क्या कर सकते हैं।

प्रश्नकर्ता: मैं लोगों के साथ बहुत अधिक जुड़ जाता हूँ और फिर मैं उनसे बहुत उम्मीदें करने लगता हूँ। मैं अपनी उम्मीदों से कैसे छुटकारा पाऊँ?  

सद्‌गुरु: आप जिसे जुड़ाव कहते हैं, वो ख़ुद को अलग और ख़ास समझने का एक स्वाभाविक परिणाम है। जिस पल आप दो में से एक को चुनते हैं, आप स्वाभाविक रूप से उसके साथ उलझ जाते हैं। हम मिट्टी और फल, दोनों को ही स्वीकार करते हैं, लेकिन जब खाने की बात होती है तो हम फलों को चुनते हैं- यह एक चयन है जो हम करते हैं।  

जब एक विशेष कार्य की बात हो, तो हम चुनते हैं। लेकिन जब हम यहाँ केवल बैठे हैं तो चुनाव की क्या जरूरत है। जीवन के हर क्षण चुनाव न करते रहना ही समावेश है।

जुड़ाव और नफ़रत एक ही सिक्के के दो पहलू हैं

समावेश का मतलब ये नहीं कि आप अपनी भेद करने की क्षमता को खो दें। आपके पास भेद करने की क्षमता है लेकिन आप उसका इस्तेमाल केवल कार्य करने के लिए कीजिए - यहाँ मौजूद रहने के लिए नहीं।  यहाँ मौजूद रहने के लिए आपको किसी प्रकार के भेदभाव की कोई जरूरत नहीं हैं। आपका भेदभाव करना जीवन के लिए काम नहीं करेगा। लेकिन काम करने के लिए आपको भेद करने की जरूरत पड़ेगी नहीं तो आप समझदारी से काम नहीं कर पाएंगे।  

किसी से अत्यधिक जुड़ाव स्वाभाविक तौर पर बाकी कई लोगों से गहरी अरुचि लाता है। आप अपने एक व्यक्ति के प्रति तथाकथित प्रेम को संतुलित करने के लिए कई लोगों से नफ़रत करते हैं। आप उन्हें झेल नहीं सकते। ध्यान दीजिए और देखिए कि चीज़ें किस तरह से हैं।

क्या बदलना चाहिए?

आपकी उम्मीदें केवल लोगों से ही नहीं बल्कि सभी चीज़ों से होती हैं। ‘जीवन उस तरह नहीं चल रहा जैसा मैं चाहता हूँ’ – इंसान के जीवन में कष्ट का एकमात्र कारण यही सोच है। पूरी दुनिया को बदलने से आसान है अपनी सोच बदलना।

और सबसे पहली बात, आप जो सोचते हैं अगर वो आपके लिए इतना महत्वपूर्ण है तो क्या आपने सोचने की इस शक्ति को अपने वश में रखा है या फिर आप मानसिक दस्त की अवस्था में हैं। अगर आपके विचारों में जो कुछ भी आता है, वो सब आपके जीवन में सच होने लगे तो आप बर्बाद हो जाएंगे। ये आपका सौभाग्य है कि वो सब सच नहीं होता।

पूरी दुनिया को बदलने से आसान है अपनी सोच बदलना।

मेरी ये कामना है कि आपके सपने पूरे न हों। क्योंकि आपकी उम्मीदें जीवन के एक बहुत ही सीमित नज़रिए से आती हैं। अगर आप इस दुनिया में ज़्यादा से ज़्यादा पाना चाहते हैं - केवल आध्यात्मिक ही नहीं बल्कि भौतिक जीवन से भी – तो आपको कोई उम्मीद नहीं करनी चाहिए।

उम्मीदें और उनका स्रोत – एक विषैला चक्र

उम्मीदों के न होने का मतलब दिशा का न होना नहीं है। बस आप हिसाब नहीं रखते- ‘मुझे जो चाहिए वो मुझे मिला नहीं, जो मुझे चाहिए वो हुआ नहीं।’ आप एक विशेष दिशा में जाना चाहते हैं लेकिन आप कितनी दूर जाएंगे ये इस पर निर्भर करता है कि आपमें कितना ईंधन है। और अगर आपकी उम्मीदें हैं तो आप अपना सारा ईंधन इंजन को ठीक करने व उसके रखरखाव में गँवा रहे हैं और आप ज्यादा दूर नहीं जा पाएँगे।

इतनी सारी उम्मीदें इसलिए होती हैं, क्योंकि बचपन से ही लोग आपसे पूछते रहे हैं, ‘बताओ मुझे, तुम क्या बनोगे? क्या तुम डॉक्टर बनोगे या फिर एक आई.टी. इंजीनियर?’ माँ-बाप को अपने बच्चों से जो उम्मीदें होती हैं वो ज़्यादातर अवास्तविक और बेवकूफी भरी होती हैं। वे न तो उनके लिए अच्छी हैं और न ही उनके बच्चों के लिए। बहुत छोटी उम्र से ही आप ये प्रवृत्ति पैदा कर लेते हैं।  

आपकी उम्मीदों पर आपकी इतनी मज़बूत पकड़ इसलिए है, क्योंकि आप सोचते हैं, ‘यदि ये या वो होगा, केवल तभी मैं खुश रहूँगा।’ आप हमेशा ये सोचते हैं कि ख़ुशी कल की चीज़ है, आज की नहीं। जब वो चीज़ जो आप चाहते हैं रोज आपसे थोड़ा और आगे खिसक जाती है तो उम्मीदें और अधिक प्रबल हो जाती हैं और आप दुखी हो जाते हैं।

एक दृष्टिकोण जो सब कुछ बदल देता है

मान लीजिए अभी आप सचमुच आनंद में हैं लेकिन आप कुछ विशेष वस्तु चाहते हैं। आप उसके पीछे भाग रहे हैं, लेकिन वो पास आने की जगह और दूर चली जा रही है। लेकिन क्योंकि आप पहले से ही आनंदित हैं, ये आपको बहुत दुःख नहीं देगा।

सबसे पहले ये सुनिश्चित कीजिए कि आपके अंदर जो भी होता हो, उसे आप ही तय करेंगे, न कि कोई दूसरा।

तो खुद को ठीक किए बिना आप दुनिया में काम करने की कोशिश किए जा रहे हैं। बहुत समय पहले कृष्ण ने कहा था, ‘योगस्थः कुरु कर्माणि।’ जिसका मतलब है ‘पहले ख़ुद को योग में स्थापित कीजिए, उसके बाद कर्म कीजिए।’ लेकिन आपने गड़बड़ी में अपने काम शुरू कर दिए और अब आप योग में आते हैं। भूल जाइए कि आप खुद से क्या चाहते हैं, लोगो से क्या चाहते हैं और दुनिया से क्या चाहते हैं। सबसे पहले ये सुनिश्चित कीजिए कि आपके अंदर जो भी होता है, उसे आप ही तय करेंगे, न कि कोई दूसरा। अगर आप केवल ये एक चीज़ कर लेते हैं, तो स्वाभाविक रूप से आप खुशी का चुनाव करेंगे।  

जब आप बहुत खुश होते हैं तो आपकी सोच बदल जाती है। मेरे जीवन में अभी तक दस हज़ार ऐसी चीजें हैं जो नहीं हुई हैं - तो क्या हुआ? ख़ुशी के साथ मैं उन्हें पाने की कोशिश करूँगा और तब उम्मीदों के पूरे होने की संभावना कहीं ज्यादा होगी। और अगर वो पूरी नहीं भी होंगी तो भी किसे फर्क पड़ता है। क्योंकि मेरे यहाँ होने का अनुभव अद्भुत है, चाहे जो भी हो।

उम्मीदों से कृतज्ञता की ओर

मूलभूत चीज़ों को ठीक किए बिना हम कहीं जाने की कोशिश कर रहे है - यही मुसीबत है। अगर आपको अपनी कार चलानी है तो आपको सबसे पहले देखना होगा कि वो ठीक से काम कर रही है या नहीं। अगर उसके दो पहिए ढीले हैं, अगर वो जैक पर है और फिर भी आप उसे चलाने की कोशिश करेंगे तो दुर्घटना निश्चित है।

जब आप युवा होते हैं तो यही समय है स्वयं को स्थापित करने का, न कि आगे बढ़ने का। अगर पहिए ठीक किए बिना आप सवारी करेंगे तो यह दुखदाई और अनर्थकारी होगा। ऐसा मत कीजिए। अगर आप जीवन को वैसे ही देखें जैसा वो वास्तव में है तो आप सृष्टि के शानदार स्वरुप से अभिभूत हुए बिना नहीं रह पाएंगे। पहाड़, तालाब, समुद्र, असीमित ब्रह्मांड और इस धरती पर मौजूद इतना विशाल अद्भुत जीवन।  

अगर आप जीवन की प्रक्रिया पर ग़ौर करें और देखें उसके विविध प्रकार को, उसकी प्रतिभा को और अरबों-खरबों असंख्य जीवों का संतुलन बनाकर एक साथ इस धरती पर रहने की अद्भुत घटना को, तो आप अभिभूत हुए बिना नहीं रह सकते। मेरी कामना है कि आप इस सृष्टि के समस्त जीवन के लिए एक अथाह कृतज्ञता का अनुभव करें।