प्रश्नकर्ता: कुछ लोग कहते हैं कि जब शिष्य तैयार होता है, तब गुरु ख़ुद खुद-ब-खुद सामने प्रकट हो जाएँगे। और जब शिष्य सचमुच पूरी तरह तैयार हो जाता है तब गुरु लुप्त हो जाते हैं। आपका इस बारे में क्या कहना है?
आध्यात्मिक रूपांतरण का सबसे अच्छा रास्ता क्या है? क्या आप गुरु को खोजते हैं या गुरु आपको खोजता है? और किसे लुप्त हो जाना चाहिए, गुरु को या शिष्य को? सद्गुरु इन सवालों के उत्तर देते हुए कुछ और भी बता रहे हैं।
प्रश्नकर्ता: कुछ लोग कहते हैं कि जब शिष्य तैयार होता है, तब गुरु ख़ुद खुद-ब-खुद सामने प्रकट हो जाएँगे। और जब शिष्य सचमुच पूरी तरह तैयार हो जाता है तब गुरु लुप्त हो जाते हैं। आपका इस बारे में क्या कहना है?
सद्गुरु: आजकल की तथाकथित आध्यात्मिकता की समस्या ये है कि लोग आध्यात्मिकता के बारे में बात करने और पढ़ने में ही व्यस्त हैं। आध्यात्मिकता बताने या पढ़ने वाली चीज़ नहीं है क्योंकि ये जीवन का वो पहलू है जो भौतिकता से परे है।
कुछ सिद्धांतों, नीतियों और नैतिकता को मिलाने से आध्यात्मिकता नहीं बन जाएगी। ये हमेशा से एक समस्या रही है, हर पीढ़ी में, जब भी कोई गुरु, मसीहा या फिर अलग-अलग संस्कृतियों में आप उन्हें जो भी कहें, आते हैं तो लोग हमेशा उनकी तुलना गुजरे वक़्त के गुरुओं से करते हैं।
आने वाली पीढ़ी भी इस पीढ़ी के गुरुओं को देखेगी और अपने गुरुओं से बिलकुल वैसा ही होने की अपेक्षा करेगी। और जब अगले गुरु आएंगे तो लोग कहेंगे कि आप असली नहीं हैं, क्योंकि पुराने वाले असली थे। अतीत के लिए हमारे मन में एक अंध-श्रद्धा होती है क्योंकि अतीत बीत चुका है।
हमें बीती हुई चीजें बहुत पसंद होती हैं। हमें मरे हुए लोगों से बड़ा प्यार होता है। जब वे जीवित होते हैं तब हम उनसे बात भी नहीं करते, लेकिन जब वे मर जाते हैं तब देखिए! किताबों से ये सारा मृत ज्ञान मत उठाइए जो कहता है कि जब आप तैयार हों तब गुरु आते हैं, और जब आप सचमुच तैयार हो जाते हैं तो गुरु चले जाते हैं।
जब आप सचमुच तैयार हैं तो ‘आपको’ गायब हो जाना चाहिए। यही सत्य है। अगर गुरु गायब हो जाते हैं तो ये गुरु के लिए अच्छा है, आपके लिए नहीं। आपको किसी छोटे बच्चे की तरह होना चाहिए, बिना किसी व्यक्तित्व के। किसी बच्चे में व्यक्तित्व बड़ी आसानी से गायब हो जाता है। अगर वो नाराज़ है, आप उसके साथ खेलिए और उसकी नाराज़गी गायब हो जाती है। वो दोबारा खुश हो जाता है। इसी तरह जब गुरु आते हैं तब आपको भी गायब हो जाना चाहिए।
अगर आप अपने अहम् में पूरी तरह से डूबे हुए हैं और गुरु गायब हो जाएँ तो वे बहुत खुशकिस्मत हैं, क्योंकि उन्हें एक भरे हुए प्याले को भरने की मुश्किल उठाने की जरूरत नहीं है। इस समय, आप इस बात पर फोकस कीजिए कि आपने जो सब इकट्ठा किया है, जिसमें आपका शरीर, मन और आध्यत्मिक धारणाएं सब शामिल हैं, वो कैसे गायब हो सकते हैं।
आप केवल वस्तुओं को इकट्ठा कर सकते हैं, प्राण को नहीं - वो पहले से ही मौजूद है। ये बस बाकी बहुत सी चीज़ों से ढंका हुआ है। अगर आप उस बड़े से ढेर को, जिसने इसे ढँक रखा है, थोड़ा कम कर दें तो ये दिखने लगेगा। इसलिए आपको गायब हो जाना चाहिए। अगर गुरु गायब हो जाएँ तो इसका मतलब है कि उन्होंने आपको छोड़ दिया है, शायद ढेर के बहुत बड़ा होने की वजह से। अगर संभावना करीब है तो उस पर हम एक तरह से काम करते हैं, अगर संभावना मौजूद है, लेकिन थोड़ी दूर है तो अलग तरह से, और अगर संभावना बहुत दूर है तो हम कुछ और तरह से काम करते हैं।
अब ये आप पर है कि आप ख़ुद को ऐसे रखें कि संभावना आपके नजदीक हो और आप वो सब कर चुके हों जो आप कर सकते थे। वो छोटी-छोटी बातें जो आपको नहीं पता कि कैसे करनी हैं, उन्हें वो (आपका गुरु) आपके लिए करेगा। अगर आप कुछ न करें तो क्या आप सोचते हैं कि आपके लिए वो सारी गन्दगी साफ़ करेगा? नहीं, आप सफ़ाई कीजिए और वो सारी आध्यात्मिक बकवास जो आपने इकट्ठी की है उससे छुटकारा पाइए ताकि हम आपके अंदर कुछ ज्वलंत कर सकें। अगर आपमें सीलन है तो आपको कैसे प्रज्वलित किया जाए। अगर आप उस सबसे छुटकारा पा लें तो आपको प्रकाशित करना आसान होगा। उस प्रक्रिया के लिए तैयार होना आपका काम है।
जीवन के अलग-अलग समय में, कुछ ऐसी चीज़ें होती हैं जिन्हें आप कर सकते हैं और कुछ ऐसी होती हैं जिन्हें आप नहीं कर सकते। आप जो कर सकते हैं, अगर आप वो कर लें तो जो आप नहीं कर सकते, उन्हें आपके लिए किया जा सकता है। लेकिन आप जो कर सकते हैं, अगर वो नहीं करते हैं तो कोई आपको धक्का देना नहीं चाहेगा।
एक बार इतिहास पर नज़र डालिए - जब कृष्ण आए, वे बड़े ही आनंदित, अच्छे कपड़े पहनने वाले, प्रेमरस से भरपूर और सबके साथ शामिल होने वाले थे। लोगों ने उन्हें कपटी कहा क्योंकि उनसे पहले राम आए थे जो बड़े ही शांत, सीधे और पूर्ण रूप से नैतिक मूल्यों पर खरे उतरने वाले इंसान थे। इसलिए लोगों ने कहा कि कृष्ण वास्तविक नहीं हैं, क्योंकि एक असली दिव्य व्यक्ति राम जैसा होगा। लेकिन कृष्ण की मृत्यु के बाद सब कहने लगे कि कृष्ण एक अद्भुत व्यक्ति थे और उनके जैसा कोई नहीं है।
उसके बाद बुद्ध आए। वे केवल बैठे रहते थे। लोगों ने कहा, ‘आप किस तरह के इंसान हैं, केवल शांत, एक मरे हुए इंसान की तरह बैठे रहते हैं! आपको पता है कृष्ण कैसे थे? वे कितने ज़िन्दादिल थे, वे कैसे मुरली बजाते थे, कैसे नृत्य करते थे, कैसे प्रेम करते थे? ख़ुद को देखिए, आप एक मरे हुए व्यक्ति जैसे हैं। हमें आपकी ज़रूरत नहीं है। गौतम बुद्ध के बाद ऐसे कई लोग अलग-अलग पीढ़ियों में आए।
जब भी गुरु या आध्यात्मिक गुरु आते हैं, लोग उनकी तुलना पुरानी पीढ़ी के साथ करते हैं और कहते हैं कि आज वाले अच्छे नहीं हैं। जब जीसस जीवित थे तब लोगों ने उनके साथ भयानक व्यवहार किया, उनकी मृत्यु के बाद लोगों ने उनका भी गुणगान किया। हम ये सब युगों से करते आ रहे हैं। आज जो आपके पास मौजूद है उसकी क़ीमत समझने के लिए आपका जागरूक होना जरूरी है, आपको उसके प्रति सचेत होना जरूरी है। किसी की मृत्यु के बाद तो सब उन्हें पूजते हैं, क्योंकि एक बार गुरु के जाने के बाद आप उन्हें जैसा चाहे वैसा रूप दे सकते हैं।
जब वे जिन्दा थे तो आपको अशांत करके असुविधा पैदा करते थे। तो मन ही मन आप चाहते थे कि वे चले जाएं। क्योंकि एक मृत गुरु से जुड़ना हमेशा ही अद्भुत निवेश होता है। आप उनसे एक नया धर्म शुरू कर सकते हैं, आप उनसे आजीविका कमा सकते हैं।
लेकिन एक जीवित गुरु आपकी बहुत सारी चीज़ें समाप्त कर देता है। संभावना और वास्तविकता के बीच एक दूरी होती है जो आपको तय करनी है। हम उस संभावना को बहुत स्पष्ट रूप से आपको उपलब्ध कराएँगे लेकिन आपको वो थोड़ी सी दूरी तय करनी होगी। जीवन के साथ कोई और तरीका नहीं है।
इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपको क्या उपलब्ध कराया गया है। जब तक आप संभावना से वास्तविकता तक की वो छोटी सी दूरी तय नहीं करते, वो आपके जीवन की सच्चाई नहीं बनेगी। ये मेरी कामना और आशीर्वाद है कि ये आपके जीवन की सच्चाई बने। आप अपने लिए और अपने आसपास के जीवन के लिए एक वरदान हों। आपको इसी तरह होना चाहिए। अगर आप सांस ले तो आपके आसपास जीवन खिल उठे। मेरी कामना है कि आप ऐसे ही हों।