‘ईशा आउटरीच’ के स्वयंसेवक ईशा योग केंद्र के पास के जंगलों में रहने वाली आदिवासी महिलाओं को सशक्त बना रहे हैं ताकि वे अपना कुछ व्यवसाय शुरू कर सकें और अपने समुदाय का जीवन स्तर बेहतर बना सकें। आइए नज़र डालते हैं उनकी इस ख़ुद को जानने की अद्भुत यात्रा पर . . .
ज़रा कल्पना कीजिए कि आप पहली बार हवाई यात्रा के लिए हवाई जहाज के रैम्प पर चल रहे हैं। आपका दिल ज़ोरों से धड़क रहा है लेकिन साथ ही आपमें उत्साह की लहरें भी उठ रही हैं। आप अपनी सीट पर बैठते हैं, सीट की पेटी बांधते हैं, और अभी आप सोच ही रहे होते हैं कि कहीं आप कोई सपना तो नहीं देख रहे, कि तभी आप ख़ुद को आकाश में उड़ते हुए बादलों के बीच पाते हैं। ऐसा ही अनुभव किया उन आदिवासी महिलाओं ने जब वे 22 जुलाई 2022 को आकाश में उड़ान भरने के लिए ले जाई गईं।
थानिकंडी, मदकाडू, मुल्लनकाडू और पत्तियारकोविलपाठी गाँव के आदिवासी समूह ईशा आउटरीच के साथ उड़ान भरने वाले पहले लोग बने।
ईशा आउटरीच के मुख्य स्वयंसेवक स्वामी चिदाकाशा याद करके हँसते हुए बताते हैं, ‘जैसे ही हवाई जहाज ज़मीन से ऊपर उठा सभी महिलाएँ और उनके परिवार के लोग अपने दोनों हाथ हवा में उठाकर ख़ुशी से चिल्लाए। उनका पूरा दल अपने नीचे की दुनिया को छोटा होते देख बहुत अचंभे में था।’
महिलाओं में से एक जो बहुत अधिक उल्लास में थीं, उन्होंने अपना अनुभव कुछ इस तरह बताया, ‘मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं बादलों के पास जाकर उन्हें पकड़ सकती हूँ।’ कुछ ने तो ज़मीन पर अदियोगी की प्रतिमा को ढूंढते हुए खिड़की से अपने चेहरे सटा दिए लेकिन वे उन्हें कहीं न पाकर निराश हो गए, जिससे दूसरे यात्री उन पर हंसने लगे।
इंडिगो एयरलाइंस ने इस मौके को इन परिवारों के लिये बहुत ख़ास बनाने के लिए अपने नियमों से विपरीत जाकर काम किया। उन्होंने कोयम्बटूर हवाई अड्डे पर एक बड़ा बैनर लगाकर इन सभी परिवारों का स्वागत किया, उनकी पहली हवाई उड़ान के सम्मान में केक काटा, और सबको भोजन कराया। उन्होंने चेन्नई पहुँचकर हर किसी को पहले से खींची गयी तस्वीरें भी फ्रेम करके दीं।
चेन्नई पहुँचते ही आदिवासी महिलाओं का टीवी चैनलों द्वारा साक्षात्कार किया गया। उन्होंने अपनी ज़िंदगी को बेहतर बनाने में ईशा के योगदान के बारे में बताया। उनका अगला पड़ाव था सत्यम सिनेमा, जहाँ पीवीआर समूह ने न केवल उनकी मेजबानी की, बल्कि ज़ोरदार तालियों से उनका स्वागत भी किया।
तमिलनाडु के मुख्य मंत्री एम.के. स्टालिन की पुत्रवधू और फिल्म निर्देशिका किरुथिगा उदयनिधि इन महिलाओं से इतनी प्रभावित हुईं कि उन्होंने उन महिलाओं से मिलकर उन्हें इस ऊंची उड़ान के लिए बधाई देनी चाही। एक महिला ने आश्चर्यभरी आँखों के साथ कहा, ‘जिन लोगों से हम पहले कभी नहीं मिले थे उन लोगों ने हमारा बहुत प्यार से स्वागत किया और हमने स्टालिन की पुत्रवधू से बात भी की।’
एक अन्य महिला ने कहा, ‘जब हम थिएटर में पहुंचे हम समझ ही नहीं पाए थे कि हम कहाँ थे। वो तो बड़े-बड़े बैनर देखकर हमने अंदाज़ा लगाया कि हम बड़ी स्क्रीन पर फिल्म देखने वाले हैं! कितना बढ़िया सरप्राइज़ था ये!’
जंगलों में बहुत साधारण जीवन जीते हुए ये आदिवासी महिलाएं शायद ही कभी अपने घरों से बाहर निकली होंगी। स्वाभाविक तौर से इनका बाहरी दुनिया से संपर्क लगभग शून्य था। ऐसे में अकेले पास के किसी भीड़भाड़ वाले चेन्नई जैसे शहर जाना भी उनके लिए सपने की तरह था। आज इन महिलाओं का इतना विनम्र होना और इनकी बच्चों के जैसी मासूमियत शायद कुछ अलग लगे, लेकिन ये महिलाएं अपने समुदाय की अत्यधिक सम्मानित महिलाएं हैं जो अपने पैरों पर खड़ी हैं।
जैसे ही आगंतुक अपनी गाड़ियों से उतरते हैं, आदियोगी का जादुई चेहरा उनकी नज़रें अपनी ओर खींचता है और चारों ओर से सद्गुरु की आवाज़ में ‘योग योग योगेश्वराय’ का जाप उनके कानों में पड़ता है। ये सब उनके मन में आश्चर्य और आनंद पैदा करता है। वो आगे बढ़ते हैं तो तरह-तरह के खाने-पीने की चीज़ों के स्टाल्स की एक लंबी क़तार उनका इंतज़ार कर रही होती है, जहाँ सजे हैं मशहूर व्यंजनों की बहुत सारी क़िस्में। इन स्टाल्स के पीछे खड़ी हैं - ये प्यारी सी महिलाएं, एक अलग तरह की टोपी पहने हुए – उद्यमी (आंत्रप्रोन्योर) की टोपी।
जब 2017 में अदियोगी का अनावरण हुआ तो आगंतुकों की संख्या में अचानक तेज़ वृद्धि हुई। जिससे व्यापार, हल्के-फुल्के भोजन, पेय पदार्थों आदि की ज़रूरतें सामने आईं, जिसने ईशा योग केंद्र के आस-पास रहने वाले स्थानीय लोगों के जीवन को बेहतर करने में बड़ी मदद की। वेलंगिरी पहाड़ियों के नीचे थानिकंडी गाँव की 11 साहसी आदिवासी महिलाओं ने अपनी चाय की दुकान खोलने की चुनौती ली।
थानिकंडी आदिवासी समुदाय जंगलों में रहता है और इनके पास खेती के लिए बहुत कम संसाधन उपलब्ध हैं। खेती ही तमिलनाडु के गाँवों में जीविका का एक मात्र साधन है। इस कारण ये लोग आय के कुछ अनियमित स्रोतों पर निर्भर होते गए, जैसे समय-समय पर मिलने वाली मजदूरी, या गाँव में मिलने वाली खेत मजदूरी। ऊपर से दुर्दशा ये कि उनमें से मुट्ठी भर लोग ही 8वीं तक पढ़ सके जबकि बाकियों ने रोज़ की भूख मिटाने का इंतज़ाम करने के लिए पढ़ाई छोड़ दी।
उत्साह से भरे, सभी को समाहित करने वाले और अपने काम के प्रति समर्पित स्वामी चिदाकाशा, ईशा योग केंद्र के आस-पास रहने वाले स्थानीय लोगों के लिए काम करते हैं। किसी भी दिन या तो आप उन्हें गाँव वालों के साथ शिद्दत से बातें करते हुए देखेंगे या उनके जीवन को बेहतर बनाने के लिए किसी नए विचार पर काम करते हुए।
एक सुबह वे गाँव में गए और फूड स्टॉल लगाने का सुझाव दिया। वे साझा करते हैं, ‘थानिकंडी की महिलाओं को व्यापार करने के लिए तैयार करना बड़ी चुनौती थी। उनमें से ज़्यादातर उस चीज़ को शुरू करने के लिए डर रही थीं जिसके बारे में वो ज़्यादा कुछ जानती नहीं थीं।’ मुस्कुराते हुए वे आगे बताते हैं, ‘थोड़ा मनाना पड़ा, लेकिन बढ़िया परिणाम देखकर मैं खुश हूँ कि मैंने हार नहीं मानी।’
स्टॉल चलाने वाली महिलाओं में से एक, गायत्री, याद करते हुए बताती हैं, ‘हम व्यापार के बारे में कुछ भी नहीं जानते थे। माल कैसे खरीदना है? ग्राहकों से बात कैसे करनी है? मुनाफ़ा कैसे कमाना है? ये प्रस्ताव हमारे लिए समझ पाना बहुत बड़ी बात थी, लेकिन स्वामी चिदाकाशा ने हमें विश्वास दिलाया कि ईशा आउटरीच और उसके स्वयंसेवक हमेशा हमारे साथ खड़े रहेंगे चाहे कुछ भी हो जाए। तब हम 11 ने इस योजना पर बात की और आख़िरकार सहमत हुए।
200 रु प्रति व्यक्ति के निवेश और उधार के स्टोव और बर्तनों के साथ 8 अप्रैल 2018 को उनकी चाय की दुकान तैयार थी। हालाँकि ये उन महिलाओं और ईशा आउटरीच के लिए कोई एक दिन के काम का नतीजा नहीं था। उनकी सफलता महीनों की ट्रेनिंग और तैयारी का फल थी। स्वामी चिदाकाशा बताते हैं, ‘पहले चाय बनाने से लेकर भीड़ को संभालने तक सब कुछ उनके लिए एक लड़ाई की तरह था, व्यापार की तो बात ही छोड़िए।’
गायत्री बताती हैं, ‘हम लाभ का हिसाब लगाना नहीं जानते थे और हमने घाटे में सामान बेच दिया।’ पर समय के साथ स्वामी के सुझावों से महिलाओं ने दुकान जमाना, पैसे का हिसाब-किताब, ग्राहक सेवा और आपूर्ति जैसे नए कौशल सीख लिए। ये उनकी वास्तविक ज़िंदगी से बहुत अलग था, लेकिन उन्होंने सारी चुनौतियों को पार किया।
स्वामी कहते हैं, ‘वे कुछ सार्थक बनाने के लिए सारी मुसीबतों के बीच से उठ खड़ी हुईं। उनका ये बदलाव सच में प्रभावी है।’ जैसे-जैसे उनकी आय और लाभ बढ़े, वैसे-वैसे समाज में उनका स्थान भी बेहतर हुआ। स्वामी आगे कहते हैं, ‘ये महिलाएं अपने समुदाय में बहुत आदरणीय हैं, इतनी कि लोग इनसे दीवाली और जन्माष्टमी को प्रायोजित करने के बारे में पूछते हैं’।
गायत्री गर्व के साथ कहती हैं, ‘अब हम अपनी युवा पीढ़ी को पढ़ा सकते हैं, जिससे वे हमारी तरह न होकर पढ़ें और ग्रेजुएट हो सकें। अब हम पैसों से घर के ज़रूरी सामान और हर किसी के लिए कपड़े खरीद सकते हैं। मैंने तो अपने लिए कुछ गहने भी लिए हैं। जब हमने सफलता को अनुभव करने की शुरुआत की तब हमारी ख़ुशी का ठिकाना नही था। अब हम एक महीने में 10 से 15 हज़ार रुपए कमाते हैं। हम में से कुछ बचत भी कर रहे हैं।’
स्टॉल की सफलता देखकर थानिकंडी और पास के गाँव के आदिवासी जो पहले व्यापार शुरू करने के इस विचार से सहमत नहीं थे, वे भी स्वामी के पास पहुंचे। गायत्री कहती हैं, ‘स्वामी ने हमारे स्टॉल के पास उनके लिए स्टॉल का इंतज़ाम किया। उन्होंने हमसे कहा कि उन्हें भी हमारी तरह बढ़ना चाहिए। हमें बहुत गर्व है कि हमने दूसरों के लिए उदाहरण पेश किया।’
स्वामी चिदाकाशा बताते हैं कि सद्गुरु जन-कल्याण विभाग पर बहुत ध्यान देते हैं। यहाँ तक कि वे ईशा आउटरीच के स्वयंसेवकों के साथ खुद बैठते हैं, उनके पास स्थानीय समुदायों की ज़िन्दगी को बेहतर बनाने के विचारों की भरमार है। ‘सद्गुरु ने मुझे लोगों के जीवन को रूपांतरित करने में मदद करने का अवसर दिया है। दुनिया में कुछ भी इतनी संतुष्टि नहीं दे सकता जो ये काम देता है।’
गायत्री नमस्कार के लिए हाथ जोड़ते हुए कहती हैं, “ये ‘शुक्रिया’ शब्द कभी भी आश्रम और उसके लोगों के प्रति आभार दिखाने के लिए काफ़ी नहीं हो सकता। जन्म से ही ईशा योग केंद्र ने मुझे पाला-पोसा है। मैं कभी नहीं भूल सकती कि स्वामी हमारे लिए सुन्दर नीली साड़ियाँ लाए थे जो हमने सद्गुरु से मिलने के समय पहनी थीं। हमने उनके साथ बात करके, ठहाके लगाके बहुत मज़े किए थे। हम नाचे भी। आज मैं खुद की और अपने परिवार की मदद कर सकती हूँ और इसका सारा श्रेय मेरे गुरु को जाता है।”