इस अनौपचारिक बातचीत में सद्गुरु अपने गृह-नगर मैसूर के दशहरा उत्सव की कुछ प्रिय यादों के बारे में बताते हुए कहते हैं कि कैसे वहाँ की शोभायात्रा बच्चों के मन में कौतुहल पैदा कर देती थी। दुनिया के जाने-माने आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ. वसंत लाड आयुर्वेद की दृष्टि से दशहरा, नवरात्रि और देवी के महत्व के बारे में बताते हैं। वे यह भी बताते हैं कि पौधों में भी स्त्री-गुण और पुरुष-गुण का भेद होता है।
सद्गुरु: मैं मैसूर से हूँ और मैसूर में दशहरे का एक बड़ा कार्यक्रम होता है। हर साल, लोग वहाँ दशहरे की शोभायात्रा और उससे जुड़ी और भी कई चीजें देखने के लिए इकट्ठा होते हैं। बचपन से ही मैं दशहरे की कई शोभायात्राएँ देखने गया हूँ। जब हम बहुत छोटे थे तो हमारे माता-पिता हमें शोभायात्रा दिखाने ले जाते थे और बाद में हम स्वयं ही जाने लगे। लेकिन जब मैं करीब 16-17 साल का था तब एक बार मैंने सोचा, ‘इस शोभायात्रा में क्या रखा है?’ और हम लोग कहीं और चले गए।
एक बार, दशहरे के दिनों में मैं एक छोटे से अनाथालय के साथ जुड़ा हुआ था जहाँ करीब 40 बच्चे थे। ये बच्चे ऐसे थे कि जब मैं वहाँ उनके साथ खेलने जाता था, तो वे बड़ी आतुरता से आकर मेरे गले लग जाते थे। ये सब देखना अविश्वसनीय सा था। एक बार मैंने उनसे पूछा, ‘अभी दशहरे का समय है, क्या आप लोगों ने शोभायात्रा देखी है?’ उनमें से कुछ करीब 12 साल के रहे होंगे और ज्यादातर 4-5 साल के थे। किसी ने कभी शोभायात्रा नहीं देखी थी।
मैंने निश्चय किया कि मैं उन सभी को शोभायात्रा दिखाने के लिए ले जाऊँगा। मैंने अपने एक दोस्त से मेटाडोर ट्रक लिया और इन बच्चों को कार्गो डेक पर एक बड़े व्यक्ति के साथ बैठा दिया। मैं उनको वहाँ ले गया और शोभायात्रा देखने के लिए एक अच्छी सी जगह चुनकर बैठा दिया। मैं कभी नहीं भूल पाऊंगा कि वे बच्चे महाराज, हाथी और घोड़े देखने के लिए किस तरह उत्साहित थे। उस दिन मैं बस वहाँ बैठे-बैठे यह देखकर रोता रहा कि उस शोभायात्रा को देखने के क्या मायने हैं।
जब हम बड़े हो जाते हैं और फिल्म या कुछ और तमाशा देख लेते हैं तो हम पिछली चीज़ें भूल जाते हैं। पहले हम उन चीज़ों को देखने के लिए बहुत उत्साहित रहते हैं लेकिन बाद में सोचने लगते हैं, ‘उसे देखने में क्या है?’ लेकिन उन बच्चों को देखने के बाद मैंने सोचा, ‘अगर मैं मैसूर में रहूँ तो मुझे उस शोभायात्रा में जाना ही चाहिए, चाहे कुछ भी हो जाए।’
डॉ. वसंत लाड: दशहरे जैसे दिनों का आयुर्वेद में भी बहुत महत्व है। उदाहरण के लिए, नवरात्रि के समय, देवी के नौ दिन और नौ रातें - देवी के प्रत्येक नाम का आयुर्वेद में महत्व है। इनसे वनस्पति और जड़ी-बूटियों के नाम हैं। इन दिनों में जब हम 9 प्रकार की विशेष जड़ी-बूटियों का काढ़ा बनाकर लेते हैं तो ये स्पष्टता, सेहत और ख़ुशहाली लाता है। और आश्चर्य की बात यह कि यह तीनों दोषों को संतुलित भी करता है। अम्ल - जो कि शारीरिक प्रक्रियाओं से निकलने वाला एक हानिकारक तत्व है, उसे जलाकर नष्ट करता है। तो सारे विधि-विधानों और रस्मों के साथ आयुर्वेद का नाम जुड़ा हुआ है।
सद्गुरु: आयुर्वेद एक प्रकार से भारतीय संस्कृति के साथ घुला-मिला है। परंपरागत औषधियाँ किसी एक डॉक्टर की जानकारी पर आधारित नहीं होतीं थीं। इसमें सभी को पता होता था कि उन्हें ख़ुद के साथ क्या करना है। इसी वजह से हमने ग्रामीण भारत के 123 से ज्यादा गावों में हर्बल गार्डन बनाया। किसी भी गाँव में जब कोई ज़मीन का टुकड़ा हमें दान करता था तो हम वहाँ करीब 108 प्रजातियों की जड़ी-बूटियाँ लगाते थे। हमने गांव वालों को इनका प्रयोग करना भी सिखाया। वे उन्हें अपने इस्तेमाल के लिए तोड़ सकते थे।
आजकल जब बच्चों को पेट में दर्द हो या फिर किसी के सर में दर्द हो तो वे डॉक्टर के पास चले जाते हैं। जब हम बड़े हो रहे थे तब ये सब घर में ही संभाल लिया जाता था। जब आपको पेट में दर्द है तो आप बीमार नहीं हैं, बस आपका शरीर किसी चीज़ से छुटकारा पाना चाहता है। लेकिन आजकल अगर आप को ज़रा सा पेट दर्द हो तो आप बीमार कहे जाते हैं। इसलिए हमने ये हर्बल गार्डन शुरू किया और अब उन्ही गाँवों के लोग उनकी देख-रेख कर रहे हैं।
सद्गुरु: दक्षिण भारत की जनजातीय संस्कृति में पेड़-पौधों को भी स्त्री-गुण या पुरुष-गुण के आधार पर जाना जाता है। क्या पुरुषैण और स्त्रैण जड़ी-बूटियों जैसा भी कुछ होता है?
डॉ. वसंत लाड: हाँ, ये सही है। ये शिव स्वरोदय1 पर आधारित है। शिव स्वरोदय, सूर्य स्वर, चन्द्र स्वर, इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना के बारे में एक अद्भुत विज्ञान है। हर पौधे में इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना होती है। अगर आप एक पत्ता लें तो उसमे एक केंद्रीय नाड़ी होती है जिसे सुषुम्ना कहते हैं। हरेक पत्ते में एक सूर्य भाग होता है और एक चंद्र भाग होता है।
चमकीली सतह सूर्य-भाग होती है क्योंकि ये सौर ऊर्जा लेती है और दूसरी खुरदुरी सतह चन्द्र-भाग होती है। हर पत्ते पर आड़ी लकीरें भी होती हैं जिन्हे सीरा कहा जाता है। अगर आप इन सिराओं की गणना करें और ये सम-संख्या हो तो ये एक स्त्रैण पौधा है। और अगर विषम संख्या हो तो ये एक पुरुषैण पौधा है। इस तरह आड़ी रेखाओं की गणना से किसी पौधे का लिंग ज्ञात किया जा सकता है। ये बहुत ही अचंभित करने वाला विज्ञान है।
आयुर्वेद में रस-वीरा-विपाक होता है। रस स्वाद है, वीरा शरीर में गरमी और ठंडक पैदा करने वाली शक्ति है और पाचन के असर को विपाक कहा जाता है। फिर आता है ‘प्रभाव।’ पीलू-पाक और पितर-पाक पर होने वाली प्रक्रिया को ‘प्रभाव’ कहते हैं। पीलू पाक आणविक स्तर पर कोशिकीय झिल्ली पर घटित होता है। पितर मायने माता-पिता, जो कि एक अनुवांशिक कारक है। तो जड़ी-बूटियाँ आनुवंशिक और आर.एन.ए, डी.एन.ए. के स्तर तक जाती हैं।
आयुर्वेद सचमुच स्त्रीलिंग और पुल्लिंग पौधों के बारे में बताता है। स्त्रीलिंग और पुलिंग शक्ति, शिव और शक्ति, पुरुष और प्रकृति, यिंग और यांग, इड़ा और पिंगला - ये सब पौधों में भी मौजूद होते हैं।