मिलिए साहिल झा से। मिट्टी की बिगड़ती हुई दशा के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए ज़मीनी स्तर पर इन्होंने कदम उठाया और इस कोशिश में ख़ुशी-ख़ुशी अपना जीवन समर्पित करने को तत्पर हैं। ये समझते हैं कि अगर सही कदम न उठाया गया तो आने वाली पीढ़ियों के जीवन में खाने की कमी होनी निश्चित है। 16 साल की उम्र के साहिल ने पूरी बहादुरी से 25,000 किलोमीटर की साइकिल यात्रा कोलकाता, पश्चिमी बंगाल से शुरू की है। दृढ़ संकल्प के साथ, साहिल ने अकेले यह कठिन यात्रा 01 मई 2022 को शुरू की, और ये अगले दो सालों तक वह अपनी यात्रा जारी रखेंगे जब तक उनका मकसद पूरा नहीं हो जाता।
इस यात्रा को करने की प्रेरणा उन्हें सद्गुरु से मिली, जिन्होंने 65 साल की उम्र में, मिट्टी बचाओ अभियान की अगुआई करते हुए 100 दिन में, इंग्लैंड से भारत तक 30,000 किलोमीटर की थका देने वाली मोटरसाइकिल यात्रा की। सद्गुरु के इस कथन ने - मिट्टी नहीं, तो खाना नहीं, जीवन नहीं – साहिल के दिल पर गहरा असर डाला और उन्हें अपनी यात्रा शुरू करने के लिए प्रेरित किया।
साहिल अपने रास्ते में भारत के ज़्यादातर राज्यों को शामिल करेंगे, पूर्वोत्तर के राज्यों को छोड़कर, और उन इलाक़ों को छोड़कर जहाँ लोग पहले से ही मिट्टी को बचाने वाले खेती के तरीकों का पालन कर रहे हैं, बाक़ी राज्यों के शहरी इलाक़ों पर ध्यान देंगे।
ये बिलकुल अविश्वश्नीय है कि इस यात्रा की कोई तैयारी नहीं की गई थी, अगर आप आम तौर पर एक युवक के अपने काम पर जाने-आने के लिए की गई यात्रा को, जो अमूमन 30 किलोमीटर हो सकती है, तैयारी की गिनती में न लें। साहिल निकल पड़े हैं - पांच ‘मिट्टी बचाओ’ वाली टी शर्ट्स, दो जोड़े पैंट, एक रेनकोट, और एक उम्मीद से भरी दुनिया अपने संग लेकर। अटूट अनुशासन और एक प्रेरित करने वाला कारण, फिर इन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा, फ़िलहाल हिम्मती साइकिल सवार की इस पहल के 100 से ज़्यादा दिन हो चुके हैं और इन्होने 4,000 किलोमीटर से ज़्यादा दूरी तय कर ली है।
इस मुश्किल साइकिल यात्रा में साहिल के पास सहयोग के लिए कोई सहायता-दल नहीं है और न ही ठहरने वाली जगहों पर कोई ध्यान रखने वाला है। आगे क्या होगा, वो यह नहीं जानते। साहिल ने खाने के लिए रुकने, आराम करने, या सोने की भी व्यवस्था नहीं की है। वो बस अपनी मुलाकातों के लिए साइकिल चलाते रहते हैं और अपनी बुनियादी ज़रूरतों, साइकिल की ज़रूरतों, ख़राब मौसम, और अप्रत्याशित घटनाओं के अनुसार रुकते हैं।
हालाँकि साहिल अभी नाबालिग हैं, लेकिन वे अपनी उम्र से ज़्यादा परिपक्वता दिखा रहे हैं। दो पहियों की यात्रा अपनी जेब में मात्र 500 रूपए से शुरू करके, वो रास्ते में मिलते इंसानों के दया भाव को संजो रहे हैं। ( लेकिन वो इस पर निर्भर नहीं हैं)। साहिल का जीवन की तरफ रवैया बिलकुल एक संन्यासी की तरह है, वो रास्ते पर अपने जीवन को एक दान पर आश्रित भिक्षु की तरह देख रहे हैं।
किस्मत से, वो बहुत से दयावान लोगों से मिल रहे हैं जो उनकी प्रतिबद्धता की सराहना करते हैं। उदाहरण के लिए, एक ईशा स्वयंसेवी ने, उन्हें साइकिल हेलमेट तोहफे में दिया। असीम आभार व्यक्त करते हुए, साहिल पूरे भारत में ईशा स्वयंसेवियों के उमड़ते सेवा भाव से बहुत प्रभावित हैं। अनजान लोग भी उन्हें सामान और फूल दे रहे हैं। एक बार सुबह के समय एक साइकिल की दुकान ने साहिल की साइकिल का टायर बिना पैसे के ठीक कर किया। आगे जाकर डीकैथलोन जैसी कुछ कंपनियों ने अचानक से साइकलोथोन का आयोजन कर दिया और यात्रा के कुछ हिस्से के लिए सामान भी दिया।
शायद इसमें कोई हैरानी वाली बात नहीं कि साहिल ने इस यात्रा पर निकलने के लिए अपने माता-पिता का आशीर्वाद नहीं लिया। एक सुबह वे उठकर अपनी साइकिल के पास गए और 10 किलोमीटर चलने के बाद अपने घर फ़ोन किया और बोले, ‘प्रणाम पापा! मैं मिट्टी बचाओ अभियान के लिए जागरूकता बढ़ाने के लिए अगले दो साल भारत में 25,000 किलोमीटर साइकिल चलाने जा रहा हूँ, तो मैं रात के खाने पर नहीं आऊंगा।’ उन्हें लगा साहिल मज़ाक कर रहे हैं! चाहे वो अपने 16 साल के बेटे के इस विशाल कार्य पर अकेले जाने के फ़ैसले को सहमति न दे पाएँ, लेकिन वो समझते हैं, कि वो सही रास्ते पर हैं और हर दिन उनसे बात भी करते हैं।
जहाँ तक शिक्षा की बात है, साहिल स्वाध्याय की अपनी सोच पर अडिग हैं। अगर इनके शौक की बात करें तो वो बहुत सी किताबें पढ़ते हैं खेती और खेती के तरीक़ों से लेकर उपन्यास और अध्यात्म तक। साहिल कहते हैं कि इस साइकिल यात्रा के दौरान उन्होंने जीवन के बारे में जितना सोचा था उससे कहीं ज़्यादा सीख रहे हैं, अपने से कहीं बड़े इस मक़सद के लिए खुद को समर्पित करके।
साहिल ने 50 से ज़्यादा विद्यालयों, कृषि विश्वविद्यालयों, और विज्ञान सभाओं में भाषण दिया है। इन्होंने लगभग सभी तरह के कारोबारियों और समाज के सभी तबके के लोगों से बातचीत की है। साथ ही, इन्होंने टेलीविज़न, डिजिटल मीडिया और अखबारों के लिए 300 से ज़्यादा साक्षात्कार भी दिए हैं। सोशल मीडिया से भी साहिल ने अपनी पहुंच के अनुसार कई लोगों से बात की है - कई उच्च श्रेणियों के प्रभावशाली लोगों को भू-मित्र बनाते हुए।
सौभाग्य से, अपनी यात्रा के पहले ही हिस्से में साहिल प्रदेश के विधायक और उनके सहायकों से मिल लिए। जिसके बाद उनके सहायकों ने इस युवा आंदोलनकारी को कई अधिकारियों से मिलवाया जिन्होंने मिट्टी बचाओ आंदोलन की सराहना की। इस कठिन यात्रा के लिए साहिल के उत्साह, युवावस्था, और सहनशीलता ने इन्हें काफी सहयोग दिलवाया है। साहिल की यात्रा के मक़सद को बताने की शायद ज़रूरत नहीं है – मर रही मिट्टी, खाने की कमी की वजह है।
केरल और उड़ीसा के राज्यपालों ने संसदीय समर्थन दिया है। प्राधिकरण ने खुलेआम साहिल से पूछा कि वो उसकी जागरूकता बढ़ाने की शपथ में भागीदारी देने के लिए क्या कर सकते हैं। साहिल ने केरल में शशि थरूर से एक यादगार मुलाक़ात की और उन्हें दुनिया को एक साथ काम करने के लिए सशक्त बनाने और एकजुट होकर एक जागरूक धरती बनकर काम करने के लिए बल दिया। सत्ता के लोग साहिल को सहयोग दे रहे हैं, ताकि यह गति बरकरार रहे। यह इस युवक के बदलाव लाने की कोशिशों को प्रोत्साहन देने का बहुत अच्छा तरीक़ा है।
शारीरिक रूप से थका देने वाला जोखिम भरा काम करने की हिम्मत आसानी से नहीं आती। पहले एक व्यावसायिक क्रिकेट खिलाड़ी होने के बावजूद, उन्होंने इस कठिन साइकिल यात्रा पर जाने का साहसी कदम उठाया है। एक रात, इनकी साइकिल का टायर पंचर हो गया, जिस वजह से उन्हें अपनी साइकिल को चढ़ाई वाले रास्ते पर पास के गांव तक धक्का मारकर ले जाना पड़ा।
एक खतरनाक मोड़ तब आया जब साहिल ने एक फ्लाईओवर का सही आंकलन नहीं किया। इन्होंने चढ़ाई पर तेज़ी से साइकिल चलाई, और फिर इनकी साइकिल तेज़ी से नीचे आने लगी। संतुलन बिगड़ा और नीचे बिखरी बजरी पर फिसलते हुए, इनकी बाजू और हथेली छिल गई। एक दर्दनाक दोपहर और यह अकेले थे। जब तक ये ख़ुद स्वयंसेवी के घर तक नहीं पहुंचे, दृढ़ता और धैर्य से आगे चलते रहे।
कभी-कभी तेज़ हवा और बरसात के मौसम की बारिश साहिल को सड़क पर तेज़ी से चलती हुई बड़ी गाड़ियों की तरफ धकेल देती है। यह ऐसी स्थिति नहीं है जो इन्हे पसंद है लेकिन साहिल इनसे जूझते हैं। उन्हें लगता है कि ये कठिनाइयाँ उनके पहले से तय मीटिंग के लिए समयनिष्ठा को बढ़ाती हैं। कुछ चुनौतियाँ तब आती हैं जब तापमान असुविधाजनक तरीक़े से गिरता है, सोने के लिए कोई बिस्तर नहीं होता, और रास्ते का खाना खाने लायक़ नहीं होता। कृपया सुरक्षित रहें साहिल!
असुरक्षित रास्ते और भारी नुकसान का डर, साहिल ने बताया कि वो जानते हैं, वो महसूस करते हैं कि वो सद्गुरु की शरण की सुरक्षा में हैं। इस वजह से, यह उन्हें कठिन समय में सहारा देता है। इसके अलावा, उन्हें उनकी हर दिन की साधना, शाम्भवी महामुद्रा और ईशा क्रिया से और बल मिलता है।
औसतन साहिल हर दिन 50 से 100 किमी साइकिल चलाते हैं। यह काफी लोगों का हौसला शुरू में ही पस्त कर देगा। लेकिन साहिल का नहीं। सद्गुरु का आशीर्वाद, ईशा की योग साधना से ऊर्जा और इच्छाशक्ति इन्हें एक दिन में 170 किलोमीटर तक साइकिल चलाने का बल देती है।
2021 में साहिल कोई अच्छी किताब ढूंढ रहे थे। और उनके हाथ लगी न छूटने वाली किताब, ‘डेथ – ऐन इन्साइड स्टोरी।’ उनकी रुचि बढ़ी। साहिल की अगली मुलाकात हुई जब उन्होंने, ‘फ़्लावर्ज़ ऑन द पाथ’ पढ़ी, और फिर यह सिलसिला बढ़ा यूट्यूब विडिओ देखने तक। जुलाई 2021 में, साहिल ने सात दिन का इनर इंजीनियरिंग कार्यक्रम पूरा कर लिया था, उसी वक्त इन्होंने अपना इरादा बनाया।
हाल ही में अगस्त 2022 में जब वो ईशा योगा सेंटर गए, तो साहिल खुद सद्गुरु से मिलने में भाग्यशाली रहे। भावनाओं से भरे हुए, साहिल इस छोटी सी मुलाकात में एक शब्द भी नहीं बोल पाए। वो पूरी तरह सद्गुरु की उपस्थिति में डूब गए थे और, इन्होंने इस जीवन के लिए और इस लम्बी साइकिल यात्रा को आसानी से पूरा करने के लिए सद्गुरु का आशीर्वाद माँगा। ख़ुशी में साहिल के आंसू बह निकले - किशोरावस्था की प्रभावशाली यात्रा का एक और पड़ाव।
साहिल मिट्टी बचाओ अभियान को हर दिन अगले 12 से 18 महीने तक ऑनलाइन और लोगों से मिलकर बढ़ावा देने की ज़रूरत पर ज़ोर देते हैं। हम आपसे पूरी तरह सहमत हैं, साहिल। अब तक का आपका काम सराहनीय है, और आपकी यात्रा के लिए आपको शुभकामनाएं- आप बहुत बड़ी छाप छोड़ रहे हैं साहिल!
साहिल की यात्रा को ट्विटर पर @withsahiljha पर फॉलो करें।
मिट्टी बचाओ के बारे में अधिक जानने और इस अभियान में शामिल होने के लिए, इस लिंक पर जाएं savesoil.org