सद्गुरु के इस अनोखे ख़ुलासे से आत्मज्ञान के बारे में हमारे विचार पूरी तरह से बदल सकते हैं, इतना ही नहीं, यदि हम एक विशेष स्तर पर इस दिशा में काम करें, तो इसे बिलकुल हासिल किया जा सकता है। विस्तार से जानने के लिए पढ़ें. . .
सद्गुरु: अगर आप ध्यान से देखें कि आप जीवन कैसे जीते हैं, तो आप पाएँगे कि आप बाध्यकारी भावनाओं के अधीन हैं। मान लीजिए आज आपकी पत्नी का जन्मदिन है या फिर आपके पति के लिए कोई विशेष दिन है। आप वाक़ई चाहते हैं कि कुछ गड़बड़ न हो- लेकिन बस उसी दिन आपको बेवजह ग़ुस्सा आ जाता है।
एक बार ऐसा हुआ, सुबह-सुबह शंकरन पिल्लई जोर-जोर से अपशब्द बोलते हुए पड़ोस से निकल रहे थे, ‘शैतान तुम्हारी जान ले ले, तुम्हारे मुंह में कीड़े पड़ें,’ ऐसे ही बस वे बोले जा रहे थे। आख़िरकार उनके एक पड़ोसी ने उन्हें रोककर पूछा, ‘सुबह-सुबह किसे इतने अपशब्द कहे जा रहे हैं?’, उन्होंने कहा इससे क्या फर्क पड़ता है कि किसे बोल रहा हूँ? कोई न कोई इनके रास्ते में आ ही जाएगा।’ तो ये किसी व्यक्ति या वस्तु के बारे में नहीं हैं। ये विवश करने वाली भावना है जो बाहर आ रही है, जो कोई भी आपके आस-पास होता है बस वो इसका शिकार बन जाता है।
लोग पूरा जीवन अपनी भावनाओं पर काबू पाने की कोशिश करते रहते हैं लेकिन कुछ नहीं बदलता। आपका मन बस उसी तरह काम करता है, जैसा कि आपका कार्मिक तत्व होता है। ये बस इस पर निर्भर करता है कि आपके पास किस तरह का संग्रह है। आपने जिस तरह का ढेर इकट्ठा किया है, उससे आपके भीतर एक ख़ास तरह की बाध्यता पैदा होती है, उस बाध्यता से परे जाने के लिए या तो आपको चेतना के अलग स्तर तक उठना होगा या फिर अपनी ऊर्जा को रूपांतरित करना होगा।
चेतना के स्तर को बढ़ाना असंभव नहीं है लेकिन ये बहुत पेचीदा है और इसमें धोखा हो सकता है। लोग समझते हैं कि उनकी चेतना का स्तर बहुत ऊंचा है, लेकिन अगर आप उनकी जाँच करें तो वे बुरी तरह असफल होंगे, क्योंकि मन की प्रकृति ऐसी है कि वो अंत तक आपको धोखे में रख सकता है। ज्यादातर लोग मन का केवल एक बहुत छोटा हिस्सा ही काम में लाते हैं, इसलिए उन्हें लगता है कि ये बहुत ही सरल है, लेकिन वास्तव में ये एक बहुत ही पेचीदा यंत्र है।
लोग समझते हैं कि वे बदल गए हैं लेकिन दरअसल उनकी परिस्थित थोड़ी अनुकूल हो गई होती है। अगर परिस्थितियाँ पहले जैसी हो जाएँ, तो वे वापस अपने उसी रूप में आ जाते हैं। चेतना के स्तर को बढ़ाने का मतलब है, जीवन को इस तरह से देखना कि आप जीवन-प्रक्रियाओं के अधीन नहीं हैं, बाहरी परिस्थित ये तय नहीं करतीं कि आप कौन हैं। इसकी संभावना है, लेकिन ज़्यादातर ये एक बहुत बड़ा धोखे का खेल होता है।
अपनी ऊर्जा को रूपांतरित करने का एक पक्का और निश्चित तरीका है, क्योंकि इसमें आप ख़ुद को मूर्ख नहीं बना सकते या चीज़ों की बस कल्पनाएं नहीं कर सकते। आपको केवल अपने अभ्यास के प्रति थोड़ा समर्पण और भागीदारी चाहिए। यदि सही समझ और मार्गदर्शन के साथ आप अपनी ऊर्जा पर पर्याप्त कार्य करें, तो ऊर्जा के स्तर पर आसानी से ज्ञान की प्राप्ति कर सकते हैं। हो सकता है आपकी चेतना परे न गई हो, लेकिन आपकी ऊर्जा प्रबुद्ध हो जाएगी।
पिछले 20-25 वर्षों में हमने कई ऐसे लोग तैयार किए हैं जिनकी ऊर्जा प्रबुद्ध हो गई है, लेकिन उनकी चेतना नहीं बढ़ी है। हम एक निश्चित तरीके से इस पर कार्य रहे हैं, लेकिन हम लोगों की चेतना को बढ़ाने की कोई बड़ी कोशिश नहीं करते, क्योंकि ये आपको पूरे जीवन भर के लिए गलत रास्ते पर ले जा सकती है और जीवन के अंत में आपको पता चलता है कि आप तो ख़ुद को मूर्ख बना रहे थे। इसलिए हम मन को धीरे-धीरे परिपक्वता की ओर बढ़ने देते हैं। आप तब भी मूर्खतापूर्ण हरकतें कर सकते हैं लेकिन चूँकि आपकी ऊर्जा एक ख़ास ऊँचाई तक पहुंच गई होती है, इसलिए अब आपका जीवन इन मूर्खतापूर्ण चीज़ों के अधीन नहीं होता।
आपका जीवन किसी से यह पूछने में बर्बाद हो सकता है कि आपके शरीर, मन और भावनाओं से कैसे निपटा जाए। उनसे निपटने के लिए आपके पास सभी साधना या उपकरण मौजूद हैं। यदि आप वास्तव में बैठकर सम्यमा [1] करते हैं, तो आपका मन आपके पड़ोसी जैसा हो जाता है। आप चाहें तो उससे प्यार कर सकते हैं; वरना, आप उसे अकेला छोड़ सकते हैं। सम्यमा एक वैक्सीन की तरह है। आपको वायरस से लड़ने की जरूरत नहीं है - आप बस एक शॉट लें, और वायरस खत्म।
गुरु वह है जो आपके अंधकार को दूर कर दे। गुरु आपको योग आसन सिखाने, आपकी मानसिक समस्याओं से निपटने में मदद करने, या थोड़ा अधिक शांत रहने में मदद करने के लिए नहीं है। गुरु वह है, जो उन आयामों पर प्रकाश डालने में सक्षम हैं जो अभी तक आपके अनुभव में नहीं हैं। उसके यहाँ होने का यही उद्देश्य है। इसलिए जितनी जल्दी हो सके अपनी बकवास को खत्म कर दें। आपके पास ऐसा करने के लिए सभी उपकरण मौजूद हैं।
(1) ईशा के सम्यमा कार्यक्रम के दौरान सिखाया जाने वाला ध्यान अभ्यास
एक ज़ेन गुरु के बारे में एक बहुत ही सुंदर कहानी है, जिनका नाम था एनो। जब एनो अपने गुरु के आश्रम में आए तो गुरु ने उन्हें देखा और घोषणा कर दी कि ‘एनो को आत्मज्ञान प्राप्त हो गया है।’ अगले ही दिन उन्होंने एनो को रसोईघर में काम पर लगा दिया जहाँ वे अगले 12 सालों तक काम करते रहे।
इसकी वजह ये थी कि उस समय उनका आत्मज्ञान ऊर्जा के स्तर पर था, लेकिन उनकी चेतना जागृत नहीं थी। हमारे आसपास आज सैकड़ों लोग हैं जो ऊर्जा के स्तर पर प्रबुद्ध हैं लेकिन उनकी चेतना जागृत नहीं है और हमें उसकी कोई जल्दी भी नहीं है। वो धीरे-धीरे विकसित होगी।
हम छोटे समूहों के साथ कुछ विशेष क्रियाएं बड़े लम्बे समय से कर रहे हैं। यदि आप अपना पूरा ध्यान सुषुम्ना नाड़ी पर केंद्रित कर इसके साथ ठीक से संपर्क करें, तो ये जागृत हो जाती है और इससे एक चमक निकलती है। एक बार चमक निकलने लगे, तो ऊर्जा विकसित होकर बहुत कम समय में प्रबुद्ध हो जाती है। शिव ने भी इसके बारे में कहा है। शिव ने कहा, ‘जब मेरुदंड में सुषुम्ना को स्पर्श किया जाता है, तब आपके अंदर और आस-पास एक रौशनी जगमगाने लगती है।’
ऐसे में आपके पास एक आत्मज्ञानी का तेज होगा, लेकिन आपके पास आत्मज्ञानी वाली चेतना नहीं होगी। अगर आप केवल चुपचाप बैठे रहते हैं, तो आपका अस्तित्त्व शक्तिशाली होगा, लेकिन जैसे ही आप अपना मुँह खोलते हैं, आप एक मूर्ख दिखते हैं। आप कुछ ऐसे ही होंगे। लेकिन इस तरह होना अच्छा है और इस अवस्था को हासिल करना आसान है। इसके लिए अगर आपको किसी चीज़ की जरूरत है तो केवल समर्पण की। खास तौर पर जब मैं आसपास हूँ तो इसे करना बहुत आसान है। अगर हम सुषुम्ना को केवल स्पर्श करें तो वो चमकने लगेगी।
प्रश्नकर्ता: सद्गुरु, मुझे कैसे पता चलेगा कि मेरी सुषुम्ना को स्पर्श किया जा चुका है?
सद्गुरु: दुनिया भर में ईशा के ज़्यादातर साधकों के साथ ऊर्जा के स्तर पर जो भी होता है, वो उन्हें सिखाने भर से नहीं होता। आध्यात्मिक क्रिया पूर्ण रूप से अस्तित्वगत है। आध्यात्मिक मार्ग पर आपके विचार, विश्वास, दर्शन, मत के लिए कोई जगह नहीं है। हम इनर इंजीनियरिंग को मन को समतल बनाने वाले एक प्रभावशाली साधन की तरह इस्तेमाल करते हैं। ये एक तरकीब है जिससे हमारी मनोवैज्ञानिक क्रियाओं की रुकावटें हट सकें। ये आपको एक मूर्ख की तरह महसूस कराती है जिससे आप ख़ुद को अपने विचार, मान्यताएं और जो भी बकवास, जिन पर आप भरोसा करते हैं, उसके साथ न जोड़ें।
जिस क्षण आप अपने आपको उन सबके साथ नहीं जोड़ते, वही क्षण आपके खुलने का एक अवसर होता है। और जब भी ये अवसर मिलता है, आपकी सुषुम्ना का स्पर्श होता है। आप चाहें तो इसे जगमगाने दे सकते हैं या फिर रुकावट डालकर रौशनी की जगह गर्मी पैदा कर सकते हैं - ये आप पर निर्भर करता है।
प्रश्नकर्ता: तो मैं इसे आगे कैसे विकसित करुँ?
सद्गुरु: अगर आप इसे आगे विकसित करना चाहते हैं तो आपको इस पर बहुत ध्यान देना होगा। आपके पास जो कुछ भी है उस सबके साथ ध्यान देना होगा। आपके पास अभी जो कुछ है वो काफी नहीं है, क्योंकि इससे ज़्यादा अभी और है जो अव्यक्त रूप में है। उस तक आपकी पहुँच नहीं है। यहाँ तक कि आपका पूरा मानसिक ध्यान भी अब तक वहां नहीं पहुंचा है।
अपने जीवन के अलग-अलग समय में, बल्कि किसी दिन के अलग-अलग समय में आप ध्यान (अटेंशन) के अलग-अलग स्तर पर होते हैं। अगर आप अपना कोई काम कर रहे हैं तो आप ध्यान के एक स्तर पर हैं, अगर आप कुछ ऐसा खा रहे हैं, जो आपको बहुत पसंद है तो आप ध्यान के एक अलग स्तर पर होंगे । अपने जीवन में किसी भी समय आपने ध्यान का जो भी सबसे ऊंचा मुकाम हासिल किया है, वो भी केवल उसका रत्ती भर है, जिसे आप हासिल करने योग्य हैं।
यदि मैं आपको वेलाँगिरी की पहाड़ियों के बीच रात के गहरे अन्धकार में, बिना किसी टार्च वगैरह के छोड़ दूँ, और आपको जंगली जानवरों की आवाजें सुनाई देने लगें, तो अचानक ही आप ध्यान के एक अलग स्तर पर होंगे। यदि ये जीवन-मृत्यु का प्रश्न हो, तब आप एक बिलकुल अलग तरह से ध्यानशील हो जाएंगे।
कुछ सालों पहले, जब ईशा योग केंद्र में हम कुछ ही लोग होते थे तब मैं उन्हें एक रेल की पटरी पर होते हुए ट्रेकिंग पर ले गया था, सुब्रमन्या और मंगलुरु के बीच 36 किमी लम्बा रास्ता था जिसमें 300 पुल और 100 सुरंगें थीं। कुछ सुरंगें एक किलोमीटर तक लम्बी थीं, यहाँ तक कि दिन के समय भी वहां घना अँधेरा था। यदि आप ऐसी किसी जगह पर होते हैं तो आपका ध्यान बहुत गहरा हो जाता है। यदि आप अपने ध्यान को जीवन के हर क्षण में इसी तरह रख सकें तो आप वास्तव में जगमगाने लगेंगे ।